रामबाण है राम का नाम :
रूहानी सत्संग (21 अगस्त 2016, रविवार) शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा, सरसा
मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! वो नजारा, वो खुशियां, जिससे इंसान को लगे कि उड़ रहा है, जिससे इंसान को लगे कि वो यहां पर आया है तो जिंदगी सफल हो गई…, ऐसी खुशियां, जिसकी इंसान कल्पना करता रहता है…, लज्जत, अनुभव जिसके लिए इन्सान तड़पता रहता है, व्याकुल रहता है…, ऐसी इज्जत, ऐसी शोहरत जिसको पाने के लिए इंसान ललायित रहता है…, ऐसी बरकतें जिसकी सपनों में सोच रहती है…, ऐसी तंदुरुस्ती जिसकी कामना हर कोई करता है…, अगर ये सारी चीजें एक ही बात से मिल जाएं, तो वह एक बात है ‘राम का नाम’, ‘अल्लाह, वाहेगुरु की याद, गॉड की प्रेयर’! सच्ची श्रद्धा, भावना, तड़प से अगर आप मालिक के नाम का जाप करते हैं, उसकी भक्ति इबादत करते हैं, तो यकीनन ये तमाम खुशियां, दया-मेहर, रहमत आप पर बरस सकती हैं। उसकी दया-मेहर, रहमत को हासिल करने के लिए, कामयाबी के लिए, आप राम का नाम जपें और ये ‘रामबाण’ है।
‘रामबाण’, बहुत बड़ी बात कही जाती है। इन्द्रजीत, जो रावण का बेटा था…, लक्ष्मण से युद्ध हो रहा था! किसी भी तरीके से, वो हार नहीं रहा था। तो लक्ष्मण ने हर तीर चला लिए, हर सार्इंस का प्रयोग कर लिया, लेकिन वो मेघनाथ, वो इंद्रजीत काबू में नहीं आया। बहुत युद्ध चला! लक्ष्मण जी को लगा कि यह तो बड़ी गड़बड़ हो गई है! तो फिर उन्होंने एक तीर श्रीराम जी के नाम का निकाला कि ‘तुझे आन-बान-शान श्री राम जी की, खत्म करके ही लौटना!’ और वो तीर मारा…! कहते हैं कि सारे तीर हार चुके थे। कोई भी तीर लग नहीं रहा था, सिर्फ उस एक तीर ने मेघनाथ को खत्म कर दिया। इसलिए हर एक अचूक चीज को कहा जाता है ‘रामबाण’।
…तो आज वैसा युद्ध तो आपका है नहीं, लेकिन उससे भी भयानक युद्ध आपकी मन-इन्द्रियों से आपका चल रहा है। काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन, माया ये दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी स्पीड से बढ़ रहे हैं। इन्सान इनसे घायल, जख्मी हो रहा है, पर जख्मी होकर भी खुश है। टेंशन होती है, परेशानियां होती हैं, मुश्किलें आती हैं, बहुत-सी तकलीफें उठानी पड़ती हैं, तरह-तरह के ख्याल-विचार इन्सान को दु:खी, जख्मी करते रहते हैं और इनसे बचने का कोई उपाय नजर नहीं आता।
कइयों को गलत आदतें पड़ जाती हैं और उन आदतों को बदलना चाहते हैं, तो इन सबके लिए रामबाण ‘राम का नाम’ है, वाहेगुरु, गॉड, खुदा की भक्ति-इबादत है। आप भक्ति-इबादत करते हैं, मालिक का नाम जपेंगे, तो यकीनन आप अपने विचारों पर कंट्रोल कर पाएंगे। आप अपनी इच्छाओं को, जो गलत हैं, उन्हें खत्म कर पाएंगे और अच्छी इच्छाओं को आगे बढ़ा पाएंगे। वो खुशियां मिलेंगी, जिसकी कल्पना भी आपने कभी की नहीं होती। अपने विचारों का शुद्धिकरण करना, अपनी आदतों को बदलना चाहते हो, तो मालिक का नाम जपा करो। अदरवाईज इन्सान जिस भी आदत का शिकार हो जाए, उससे बच नहीं पाता।
चुगली-निंदा जो करते हैं, जब तक वो दो-चार चुगलियां न कर दें, किसी की निंदा न कर दें, उनके रोटी हजम नहीं होती। इस पर एक बात ख्याल में आई।
एक ऐसा नाई था। उसके कोई बात हजम नहीं होती थी, जब तक वो बात को बता नहीं देता। चुगली, यानि आपने बात सुनाई, वो दो-चार मिर्च-मसाला लगाकर दूसरे को सुना देना, उसे भड़काना। उसका नाम था ‘घोघू नाई’, और उसका काम था चुगली-निंदा करना। राजा के पास बात पहुंच गई कि ‘आपके जो बाल काटता है, वो घोघू तो एक नंबर का ‘चुगलखोर’, लड़ाई करवाने वाला आदमी है’। बादशाह कहता, ‘मैं सुधार देता हूं।’ लोगों ने कहा कि जी नहीं! वो नहीं सुधर सकता। बादशाह कहता कि मैं नहीं सुधारूंगा, तो कौन सुधारेगा?
राजा ने उसको बुलाया। राजा ने सिर पर थोड़ी-सी टोपी-सी ले रखी थी, और कहा कि ले बाल काट दे। घोघू से रहा नहीं गया, वो बोला कि बादशाह सलामत! बाल तो मैं काट देता हूं, पर ये आपने थोड़ा-सा कपड़ा…! ये क्यों ढक रखा है? बादशाह कहने लगा कि घोघू, बड़ी गड़बड़ हो गई। मेरे यहां सींग निकल आए हैं!
अगर किसी को तूने बता दिया, तो समेत बच्चे कोल्हू में पिड़वा दूंगा। घोघू को वहीं अफारा चढ़ना शुरु हो गया। जैसे-तैसे कटिंग की, अब दुकान पर गया, जो भी आए उसको बताने लगे, राजा…, तभी उसके ख्यालों में आ जाए कि समेत बच्चे कोल्हू में पिड़ रहे हैं और वो बात बदल दिया करे, …बहुत अच्छा है…।
एक दिन गुजरा, तो उसकी रोटी छूट गई। दो दिन गुजरे, चार दिन गुजरे, तो उसका बुरा हाल हो गया! क्योंकि उसको रोटी हजम होनी बंद हो गई। उसकी घरवाली कहती, गड़बड़ तो कोई है, तू मुझे बता दे चक्कर क्या है? कहता कि चक्कर तो है, पर नहीं बता सकता। वो कहती कि भले-मानस, मुझे नहीं बता सकता, तो किसी दीवार को बता दे, पेड़-पौधे को बता दे! कहता कि ये पहले तूने क्यों नहीं बताया! अब घोघू नाई खेत में भागा।
खेत में एक बण का बहुत पुराना पेड़ था, जो अंदर से खोखला होता है कई बार। घोघू नाई ने उसके अंदर देखा और फिर इधर-उधर देखा, दूर-दूर तक कोई नहीं था, और उसने उस पेड़ के अंदर बोला, ‘राजा के सीं…ग…’, ‘राजा के सीं…ग…’, ‘राजा के सीं…ग…’। उसका अफारा उतर गया। घर आकर रोटी खा ली। काम बढ़िया हो गया।
महीना, दो महीने गुजरे। राजा के यहां कोई सारंगी बजाने वाला आया। जैसे ही राजा के सामने सारंगी बजाने लगा, उसने गज मारा, तो सारंगी से आवाज आई ‘राजा के सीं…ग…’, ‘राजा के सीं…ग…’। राजा समझ गया और घोघू को बुला लिया। उससे पूछा कि तूने किसी को बताया था? घोघू कहता कि ना जी, मैंने मरना है क्या! मुझे बच्चे मरवाने हैं! राजा ने कहा कि बजा भाई साज! जैसे ही साज बजाया, गज मारा, तो आवाज आई ‘राजा के सीं…ग…’। …तो घोघू बोला कि जी, मार दो चाहे मुझे! बच्चों को न कुछ कहना! राजा बोला कि बता तो सही क्या हुआ था?
पता करवाया गया कि घोघू ने जिस बण के पेड़ के अंदर आवाज दी थी, उसी की लकड़ी से वो साज बना था और उसी लकड़ी (साज) में से आवाज आ रही थी, ‘राजा के सीं…ग…’, ‘राजा के सीं…ग…’।
कहने का मतलब है कि कई तो घोघू नाई होते हैं। उनके कोई बात हज़म नहीं होती। जब तक वे एक-दूसरे को लड़ा न दें, उनको मजा ही नहीं आता। वो सुखी देख ही नहीं सकते किसी को।
बहनों का खैर नंबर है, लेकिन आजकल भाई भी नेक-टू-नेक मुकाबले में हैं। इकल्ले बैठेंगे, आप देख लेना, न राम-नाम की बात! न कोई अच्छी बात! न भले की बात! बस, गप-शप चलती रहती है। हम देखा करते थे, वहां बुजुर्ग ताश खेला करते थे, जो सामने से गुजर जाए, तो उसका अगला-पिछला सब हिसाब कर देते! हां, मैं जानता हूं इसको! ये जवानी में ऐसा था! फलाना ऐसा था! वैसा था।
तेरी क्या दाल खा गया, जो उसकी निंदा कर रहा है? हटते नहीं, बस आदत बन गई है! लोगों को रोटी हज़म नहीं होती। कई रोटी खाकर जाएंगे चुगली-निंदा करने, क्योंकि सच में ही उनकी रोटी हज़म नहीं होती। बहनें बैठेंगी रोटी खाकर! कई तो रोटी खाते-खाते ही प्रोग्राम स्टार्ट हो जाता है कि तू जानती है आज ऐसे हुआ! दूसरा सामने वाला उससे ज्यादा चटकारू होता है…, अच्छा…! ऐसे लगता है उसके मुंह में रसगुल्ले आ गए पांच-सात ! वो सुनाता है कि फलां के ये हुआ, वो हुआ…! इतना कहकर वो चुप हो जाए। लेकिन जब सामने वाला कह देता है… अच्छा…आ…आ…आ…!
तो वो फिर शुरू हो जाता है ताड़-ताड़, ताड़-ताड़! क्योंकि वो ऐसी पंपिंग करता है और सामने वाले को लगता है कि आज मेरे जैसा न्यूज चैनल दुनिया में दूसरा कोई है ही नहीं! हर कोई न्यूज चैनल बना घूम रहा है बिना वजह। इससे एक आपका टाईम बर्बाद और वेदों-शास्त्रों में लिखा है, जब आदमी दूसरों की निंदा करता है…, तो जिसकी निंदा कर रहा है, उसका तो कुछ होता नहीं, और जो कर रहा है, उसके पास कुछ रहता नहीं।
‘‘निंदा भली किसै की नाही, मनमुख मुगध करंनि।।
मुह काले तिन निंदका, नरके घोरि पवंनि।।’’
‘पर निंदा सो गऊ घात समाना।।’ कि पराई निंदा करते हो, सौ गऊओं का घात करने के बराबर है, ये रामायण में लिखा हुआ है। कई बच्चे अपने मां-बाप की निंदा करते हैं। बुरा न मानना…, अगर आप अपने मां-बाप की निंदा करते हो, तो आप कैसे अच्छे हो सकते हो? आपके अंदर भी तो उन्हीं का ही खून है! ठीक है! अगर आपके मां या बाप, कोई गलत रास्ते पर चले हैं, तो उनको समझाओ! उनके गीत निंदा के दुनिया में गाते न फिरो! वरना, लोग आपको भी बुरी निगाह से देखने लग जाएंगे। इसलिए धर्मों में लिखा है ऐसा कि निंदा कभी किसी की करो न! कभी किसी को कुछ गलत कह कर मालिक के दर से दूर न किया करो, वरना आपका हाल ऐसा होगा कि ‘धोबी का कुत्ता न घर का, न घाट का।’ अच्छा है कि आप किसी को जोड़ो। चाहे उसके लिए कभी कुछ झूठ ही बोलना पड़ गया, राम-नाम से किसी को जोड़ दिया, तो यकीन मानो उसकी खुशियां हाथों-हाथ आपके ही नहीं, आपके परिवार की झोलियों में जरूर जाएंगी। तो इसलिए कभी निंदा न किया करो।
एक बार कोई मुर्गी बेचने वाला आया। एक-जैसी मुर्गियां, एक जैसा वजन! एक के पांच रुपए और एक के पच्चीस रुपए। किसी ने पूछ लिया कि यार, वजन भी एक जैसा है, अंडे भी रोज देती है, तो एक का रेट फिर पांच और दूसरे का पच्चीस क्यों! कहने लगा कि जिसका रेट पांच रूपए है, ये अण्डा बाद में देती है और शोर पहले मचाती है। इतना शोर मचाती है कि आजू-बाजू की बिल्लियां, कुत्ते सारे ही तैयार हो जाते हैं और जैसे ही अण्डा देती है, वो खा जाते हैं। जबकि दूसरी मुर्गी (25 रुपए वाली) का तो पता ही नहीं चलता कि अण्डा देगी और जब दे देती है, तब भी नहीं पता चलता। तो कोई उठा नहीं पाता, हमें ही मिल जाते हैं
वो अण्डे। इसलिए इसका पच्चीस, और उसका पांच। तो आप कौन-सी वाली मुर्गी हैं, सोच के देखिए! राम का नाम जपें, अच्छे कर्म करें, भक्ति-इबादत करें। अगर दृढ़ यकीन रखकर अंदर हजम रखते हैं, तो ये गारंटेड है कि नूरी स्वरूप में भगवान के दर्शन हो सकते हैं।