सब नियति को सौंप दो
मानव जीवन में बहुधा कुछ ऐसे क्षण आते रहते है जब वह चारों तरफ से समस्याओं से घिर जाता है। वहाँ से निकलने का उसे कोई मार्ग नहीं सुझाई देता। उस समय जब उसका विवेक कोई निर्णय नहीं ले पाता, तब सब कुछ नियति के हाथों में सौंपकर उसे अपने उत्तरदायित्व व प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त उसके पास और कोई उपाय भी शेष नहीं बचता। वास्तव में यश-अपयश, हार-जीत, दु:ख-सुख, हानि-लाभ, जीवन-मृत्यु आदि का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है। मनुष्य को सदा ही विश्वासपूर्वक उस मालिक के निर्णय का सम्मान करते हुए अपना सिर उसके सामने झुका देना चाहिए।
संसार में हर व्यक्ति को सब कुछ अपना मनचाहा नहीं मिलता। संसार में रहते हुए कुछ लोग उसकी प्रशंसा करते हैं तो दूसरी ओर कुछ लोग उसकी आलोचना करते हैं। दोनों ही अवस्थाओं में मनुष्य को लाभ होता है। एक तरह के लोग जीवन में उसे प्रेरित करते रहते हैं और दूसरे प्रकार के लोग उसके अन्तस में परिवर्तन लेकर आते हैं। मनुष्य जब तक स्वयं न चाहे उसे किसी प्रकार की प्रशंसा या निंदा से कोई अन्तर नहीं पड़ता। जब उसका अपना मन कमजोर पड़ता है तब उसे सभी से ही कष्ट होने लगता है।
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एक कथा को देखते हैं। जंगल में एक गर्भवती हिरणी बच्चे को जन्म देने वाली थी। वह एकान्त की तलाश में इधर-उधर भटक रही थी। इसी बीच उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखाई दी। उसे वह स्थान शिशु को जन्म देने के लिए उपयुक्त लगा वहाँ पर पहुँचते ही उसे प्रसव पीड़ा शुरू हो गयी। उसी समय आसमान में घनघोर बादल छा गए और बिजली कड़कने लगी। ऐसा लगने लगा कि अभी बदल बरसने लगेंगे। उसने अपनी दायीं ओर देखा तो एक शिकारी तीर का निशाना उसकी तरफ साध रहा था। घबराकर ज्योंही वह दाहिने मुड़ी तो वहाँ एक भूखा शेर, झपटने के लिए तैयार बैठा था। सामने सूखी घास थी जिसने आग पकड ली थी। नदी में जल बहुत था।
अब असहाय मादा हिरणी करती भी तो क्या? वह प्रसव पीड़ा से व्याकुल थी। अब उसका और उसके शावक का क्या होगा? क्या वह जीवित बचेगी? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी? क्या शावक जीवित रहेगा? क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी? क्या हिरणी शिकारी के तीर से बच पाएगी? क्या हिरणी भूखे शेर का भोजन बनेगी? एक तरफ वह आग से घिरी है और पीछे नदी है, क्या करेगी वह? ये सभी प्रश्न उसके मन में कुलबुला रहे थे।
हिरणी ने अपने आपको शून्य में ईश्वर के भरोसे छोड दिया और अपना ध्यान बच्चे को जन्म देने में लगा दिया। ईश्वर का चमत्कार देखिए। बिजली चमकी और तीर छोड़ते हुए शिकारी की आँखें चौंधिया गयी। उसका तीर हिरणी के पास से गुजरते हुए शेर की आँख में जा लगा। शेर दहाड़ता हुआ इधर-उधर भागने लगा। शिकारी शेर को घायल जानकर भाग गया। मूसलाधार वर्षा आरम्भ हो गयी। उससे जंगल की आग बुझ गयी। हिरणी ने शावक को जन्म दिया। फिर उस ईश्वर को उसने धन्यवाद किया जिसने उसकी और उसके नवजात शावक दोनों की रक्षा की।
इस कथा से हमें यही समझ में आता है कि परिस्थितियाँ कितनी भी विकट क्यों न हो जाएँ, मनुष्य चाहे चारों ओर से शत्रुओं या परेशानियों क्यों न घिर जाए, उसे अपने विवेक से काम लेना चाहिए। अपने विवेक का दामन उसे नहीं छोड़ना चाहिए। यदि परिस्थितियाँ अपने कण्ट्रोल से बाहर हो जाएँ तो उस समय सिर पकड़कर नहीं बैठ जाना चाहिए। न ही उसे हाय तौबा मचाते हुए आसमान सिर पर उठा लेना चाहिए। उस मालिक पर पूर्ण विश्वास करते हुए स्वयं को तथा अन्य सब दु:खों- तकलीफों को उस पर छोड़ देना चाहिए। वह पलक झपकते सभी कष्टों का निवारण करके मनुष्य को उभार देता है।
मनुष्य को हर अवस्था में उस मालिक का कृतज्ञ होना चाहिए। एक वही है जो कोई अहसान जताए बिना उसके हर कदम पर उसके साथ रहता है। मनुष्य को अपने सभी कर्म उसे अर्पित करके, उसके फल की कामना से मुक्त हो जाना चाहिए। इसी में मनुष्य जीवन की सार्थकता है।
-चन्द्र प्रभा सूद