बेपरवाह जी की रहमत से शिष्य की जान बची पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
सत्संगियों के अनुभव
बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की खुद पर बरसी रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-
प्रेमी भंवर लाल मिस्त्री पुत्र बृजलाल गांव रामगढ़ सेठां वाला जिला सीकर(राजस्थान) हाल आबाद, कल्याण नगर सरसा से मैं और मेरा बड़ा भाई मनीराम शहनशाह मस्ताना जी महाराज के समय से डेरा सच्चा सौदा दरबार में चिनाई की सेवा करते आ रहे हैं। हमें तीनों पातशाहियों की पावन हजूरी में सेवा करने का अवसर उन्हीं की दया-मेहर से प्रदान हुआ है। शहनशाह मस्ताना जी के समय दिन-रात चिनाई की सेवा चलती रहती थी। उस समय हमें सुबह तीन बजे काम से छुट्टी होती थी और सुबह 6 बजे फिर काम पर लग जाते थे।
सेवा इतने जोरों की चलती थी कि नहाने व कपड़े धोने का समय भी नहीं मिलता था। मैं कई दिनों से नहाया नहीं था। मैंने एक दिन शाम के चार-पांच बजे सच्चे पातशाह जीके चरणों में अर्ज कर दी, ‘साईं जी! मैंने नहाना है।’ सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘फकीर का कहना मान, अभी लगा रह काम पर, रात को तीन बजे नहलाएंगे।’ मैं सतगुरु जी का हुक्म मान कर तुरन्त काम पर लग गया। उस समय चमकौर मिस्त्री तथा और भी कई पे्रमी मिस्त्री मेरे साथ थे। उसके बाद सेवा करते हुए मुझे इतनी खुशी मिली कि मैं नहाना ही भूल गया। इस तरह सेवा करते करते महीने ही बीत गए।
एक दिन शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने मुझे रात के बारह बजे अपने पास बुलाया। मैं तुरन्त शहनशाह जी के चरणों में पहुंच गया। सच्चे सार्इं जी बड़े नीम के पास विराजमान थे। उस समय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज भी अपने पूजनीय मुर्शिद के पास ही खड़े हुए थे। परम पिताजी अपने ऊपर काली कम्बली ओढ़े हुए थे। दयालु सतगुरु जी ने मेरे तरफ ईशारा करते हुए वचन फरमाए, ‘पुट्टर जर्सी पहनेगा, लड्डू खाएगा कि कम्बल पहनेगा? फकीर सिर दीजिए तो भी खुश नहीं होता क्योंकि वह तो बेपरवाह है पर आज तेरे पर खुश हैं।
जो मांगना है सो मांगो।’ मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ कर कहा कि सार्इं जी! मुझे और कुछ नहीं चािहए, बस मुझे आपकी दया-मेहर चाहिए। बेपरवाह मस्तना जी ने मुझे तीन बार उपरोक्त वचन फरमाए पर मैंने हर बार यही अर्ज की सार्इं जी! मुझे और कुछ नहीं चाहिए। इस पर सच्चे पातशाह जी बहुत खुश हुए और मुझे अनन्त खुशियों की दात बख्शी।
उन्हीं दिनों में शाह मस्तना जी धाम में अनामी गुफा के पीछे छोटी कोठियां बन रही थी जहां पर साधु बहिनें रहा करती। पूरे-जोरों पर ही सेवा चल रही थी। जहां पर सेवा चल रही थी वहां पर बेपरवाह मस्तना जी महाराज मकानों को लगी सीढ़ी पर चढ़ कर खड़े हो गए। सीढ़ी के बिल्कुल पास ही मैं छत पर टाइलें लगा रहा था जबकि दूसरे मिस्त्री मेरे आगे पीछे सेवा कर रहे थे। सच्चे सतगुरु जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए वचन फरमाए, ‘जो तुम सेवा करते हो, तुम्हें अकाल मौत नहीं मरने देंगे। गोली भी आप पर चलेगी तो पोकर (खाली) चली जाएगी। बाद में तुम आकर साध-संगत को मिलोगे।’
सन् 1970 की बात है। मैं कोटा(राजस्थान) शहर में ठेके पर चिनाई का काम कर रहा था।
मेरे अधीन तीन मिस्त्री नाईलोन की फैक्टरी में पलस्तर कर रहे थे। अन्धेरा हो गया था। मैं कमरा नं. 4 में बल्ब लगाने लगा, पीतल का होल्डर था। बल्ब लगाते समय मुझे बिजली का करंट लग गया। करंट मेरे शरीर में आ गया। मेरी आवाज बंद हो गई। अपने सच्चे सतगुरु के वचनों का ख्याल आया कि सार्इं जी ने कहा था, ‘तुम्हें अकाल मौत नहीं मरने देंगे, पर आज तो मैं दुनिया से जा रहा हूं। मैंने ख्यालों में ही अपने सतगुरु के चरणों में प्रार्थना की ‘सच्चे सार्इं जी! मुझे बचाओ।’ उसी समय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज वहां पर अपने नूरी स्वरूप में प्रकट हो गए।
उस समय उनके चारखाने की जाकेट पहनी हुई थी। सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने तार को पकड़ कर मेरे हाथ से छुड़ा दिया तथा उसी पल शहनशाह जी अलोप हो गए। मैं नीचे गिर गया। इतने में मेरे साथ काम करने वाले मिस्त्री मेरे पास आ गए। जब मैंने उन्हें बताया कि मेरे बिजली का करंट लग गया था तो उन्होंने कहा कि तूने आवाज क्यों नहीं मारी? मैंने कहा कि आवाज निकली ही नहीं।
पूरा सतगुरु अपने शिष्य (सेवक) की पल-पल, क्षण-क्षण संभाल करता है। जो जीव सतगुरु के वचनों को मान कर उन्हीं की रजा में रहते हैं सतगुरु उनको बेअंत खुशियां बख्शता है। उनके अनेकों कर्म काटता है। उनकी भलाई के लिए असम्भव काम भी सम्भव कर देता है जैसा कि उपरोक्त प्रमाण से स्पष्ट है।