charan das insan - satsangi experience - Sachi Shiksha Hindi

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की दया-मेहर
सत्संगियों के अनुभव
प्रेमी चरणदास इन्सां पुत्र श्री गंगा सिंह वासी डण्डी कदीम जिला फाजिल्का ने बताया कि जब परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को गुरगद्दी बख्शिश की रस्म का आयोजन किया तो उससे पहले 20 सितम्बर की रात को मुझे अर्द्ध निद्रा की अवस्था में आवाज आई, ‘बुजुर्गाे सरसे आ जाना।’ जब सुबह हुई तो मैंने अपने परिवार के सदस्यों को उक्त बात बताई कि मुझे रात को आवाज आई है कि बुजुर्गाे सरसे आ जाना। मेरे परिवार के सदस्य कहने लगे कि कोई सुपना होगा।

दूसरे दिन रात को फिर वैसी ही आवाज आई, ‘बुजुर्गाे तुझे सरसा आने के लिए कहा है, तू मानता क्यों नहीं?’ मेरे गांव के पास ही गांव काहने वाला है, मैंने वहां के प्रेमी अमरनाथ से उक्त वचन के बारे में बात की कि ऐसे ऐसे आवाज आई है। लगता है कोई नौजवान सरसा बुला रहा है। प्रेमी अमरनाथ ने भी मुझे यह कह कर टाल दिया कि कोई स्वप्न होगा। तीसरी रात वो नौजवान लड़का सामने दिखाई दिया और उसने कहा, ‘बुजुर्गाे, आज तीसरी बार कहते हैं, सरसा आना, फिर मत कहना कि मुझे बुलाया नहीं।’ फिर मुझ से रहा न गया। मैं सरसा आने के लिए तैयार हो गया और प्रेमी अमरनाथ को कहा कि उसने सरसा जाना है तो चले, नहीं तो मैं अकेला ही जा रहा हूं।

मैं दुनियावी कामों की वजह से कुछ दिन लेट हो गया। इतने में पे्रमी अमरनाथ भी सरसा जाने के लिए तैयार हो गया। हम दोनों डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम पहुंच गए। मजलिस लगी हुई थी। वहां शाही स्टेज पर परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के साथ वही नौजवान(परम पूजनीय हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) बैठे हुए थे। मैंने पे्रमी अमरनाथ को कहा कि यह वही लड़का है जो मुझे बार-बार सरसा आने के लिए कहता था। मैंने और सत्संगियों को भी बताया तो मुझे पता चला कि परम पिता जी ने इसी नौजवान लड़के(परम पूजनीय हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को गुरगद्दी बख्श दी है, अपना वारिस बना लिया है। डेरा सच्चा सौदा का प्रबंध व रूहानी ताकत इनको बख्श दी है। अब इन्हें संत जी कह कर संबोधन करना है।

इतना कुछ देखने व सुनने पर मुझे वैराग्य आ गया और मेरी आंखों में से आंसू बहने लगे जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मैं सारा दिन पश्चाताप करता रहा। मुझे अत्यधिक अफसोस हुुआ कि बार-बार बुलाने पर भी मैं बदनसीब गुरुगद्दी नशीनी के पवित्र अवसर पर पहुंच न सका। मुझे मेरे सतगुरु बेपरवाह मस्ताना जी साईं जी व उनके स्वरूप परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने बेशुमार प्यार बख्शा है और हजूर पिता जी के रूप में बख्श रहे हैं।

मैं नादान, गुनहगार मन के पीछे लगकर दुनियादारी में फंसा रहा और सतगुरु का वचन ‘बुजुर्गाे सरसे आ जाना’ नहीं मान सका। मैंने सतगुरु से जो भी मांगा, वह ही मिला। मुझे स्वामी जी महाराज, बाबा जैमल सिंह जी, हजूर बाबा सावन सिंह जी महाराज, बेपरवाह शहनशाह मस्ताना जी, परम पिता शाह सतनाम सिंह जी तथा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां सभी पवित्र बाडियों के नूरी स्वरूप में दर्शन हुए हैं। सतगुरु जी मुझे उसी पवित्र बॉडी में दर्शन दे देते हैं जिसमें मैं करना चाहता हूं। इन सभी की पवित्र बाडियों में सतगुरु का नूर है। अब मेरी हजूर पिता जी के चरणों में यही विनती है कि मेरी गल्ती के लिए मुझे माफ करना और मुझे बल बख्शना कि मैं आप जी के वचनों पर अमल कमा सकूं।

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