‘तुम्हें शूल नहीं लगने देंगे’ -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
प्रेमी लखपत राय इन्सां सुपुत्र सचखंडवासी श्री प्रमुख जी दास गांव खजूरी जाटी नजदीक मोहम्मदपुर रोही, जिला फतेहाबाद (हरि.) से पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की अपने परिवार पर हुई रहमतों का वर्णन इस तरह से करते हैं:-
सन् 1953 की बात है, बेपरवाह मस्ताना जी महाराज मानवता भलाई केन्द्र डेरा सच्चा सौदा अमरपुर धाम मोहम्मदपुर रोही में जब भी सत्संग फरमाने के लिए आते तो काफी दिनों तक निरंतर इस दरबार में रहते। हर रोज रात को नौ बजे से सुबह चार बजे तक सत्संग करते। मेरी माता गंगा देवी गांव की अन्य चार-पांच औरतों (माता-बहनों) के साथ हर रोज हमारे गांव से पैदल चलकर अमरपुर धाम दरबार में सत्संग पर जाती। उस समय रास्ते कच्चे हुआ करते थे, वे श्रद्धा-भाव से नंगे पांव ही जाती थी। कुछ ईष्यालु लोग भी होते हैं, उनको इन औरतों का सत्संग में जाना अच्छा नहीं लगता था।
कुछ शरारती लोग रास्ते में कांटेदार झाड़ियां या कांटे (सूलें) बिछा देते ताकि इनके पांवों में कांटे चुभें। उनका विचार था कि पांवों में कांटे चुभने से ये सत्संग पर जाने से रुक जाएंगी। ये माता-बहनें उन कांटों की कोई परवाह न करती और पांवों से कांटे निकालकर फिर चल पड़ती और सत्संग पर पहुंच जाती। एक दिन घट-घट व पट-पट की जानने वाले सतगुरु शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने मेरी माता जी से पूछा- ‘पुट्टर ठीक तो हो?’ मेरी माता ने कहा- ‘बाबा जी! ठीक तो हो, पर लोग रास्ते में कांटे डाल देते हैं ताकि मैह सत्संग में ना आ सकां। बाबा जी, अब थै ही बताओ मैह के कैरां।’ यह बात सुनकर शहनशाह मस्ताना जी महाराज रब्बी मौज ने फरमाया-‘पुट्टर थोड़े समय की बात है, तुम चाहे मोहम्मद पुर डेरे आओ, चाहे सरसे आओ, तुम्हें शूल नहीं लगने देंगे।’ पूज्य सतगुरु जी के जैसे ही ये वचन हुए कि मालिक-सतगुरु जी ने हम पर इतनी अपार रहमत की कि हमें गाड़ियां, टैÑक्टर, मोटरसाईकिल आदि सब कुछ आ गया। फिर हमें कभी पैदल नहीं जाना पड़ा।
एक बार मुझे यानि लखपत राय इन्सां को हार्ट की दिक्कत हो गई। मेरा बापू प्रमुख दास मुझे हिसार में डॉक्टर वर्मा के पास ले गया। उस समय मैं बेहोश था। डॉक्टर ने चैकअप किया और मेरे बापू को कहा कि बच्चे के बचने की कोई उम्मीद नहीं है। अगर आप किसी भगवान यानि देवी-देवता को मानते हो तो अपने बच्चे के बचने के लिए उनसे दुआ करो, क्या पता भगवान आपकी सुन ले। तो मेरे पिता जी ने कहा कि मैं तो किसी को नहीं मानता। मैं तो केवल अपने मुर्शिद दाता सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज को ही अपना भगवान मानता हूं। तो डॉक्टर कहने लगा कि तुम अपने मुर्शिद, गुरु को याद कर लो, क्योंकि तेरा बच्चा खतरे में है।
तो मेरे पिताजी ने अपने सतगुरु दाता शहनशाह मस्ताना जी महाराज का बख्शा नारा ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ ऊंची आवाज में बोला और अपने अंदर ही अंदर अर्ज की कि ‘हे सार्इं शहनशाह जी! मैं मृत बच्चे को घर नहीं ले जाऊंगा। आप क्या नहीं कर सकते। आप सब कुछ कर सकते हैं। सार्इं जी, अब तेरा ही आसरा है। तूने ही इसे ठीक करना है।’ नारा लगाने पर अस्पताल के डॉक्टर साहिबान व अन्य भी कुछ लोग वहां आ गए थे। मेरे पिता जी द्वारा अर्ज-विनती करते-करते ही बच्चे के (मेरे) हाथों-पांवों में थोड़ी सी हरकत हुई। डॉक्टर साहिब ने मेरे हाथ पर व पांवों पर चाबी मारी। चाबी लगते ही मेरे हाथों-पांवों में और हरकत आ गई। कुछ ही देर में मुझे होश में आ गया। डॉक्टर ने मेरे पिताजी को कहा कि पंडित जी, आपका बच्चा खतरे से बाहर है, अब बच जाएगा। मालिक ने तेरी फरियाद सुन ली। कुछ ही दिनों में मैं बिलकुल स्वस्थ हो गया।
मैं पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से अरदास करता हूं कि पिता जी, आज भी हमारा सारा परिवार ज्यों का त्यों आप जी की रहमत से आपजी के पवित्र चरण-कमलों में डेरा सच्चा सौदा से जुड़ा हुआ है जी। पिता जी, सारे परिवार को सेवा-सुमिरन व दृढ़-विश्वास का बल बख्शना जी।