सतगुरु जी की रहमत से ही पुत्र की दात प्राप्त हुई -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का रहमो-करम
प्रेमी रण सिंह इन्सां सुपुत्र श्री राम लाल इन्सां गांव झांसा तहसील ईस्माईलाबाद, जिला कुरुक्षेत्र (हरि.) से अपने पर हुई पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत का वर्णन इस तरह करता है:
प्रेमी जी बताते हैं कि मैं करीब पिछले 35 वर्षों से डेरा सच्चा सौदा दरबार से जुड़ा हुआ हूं। मेरे घर हमारी पांच लड़कियां ही थी, लड़का नहीं था। एक बार जब मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में सेवा करने गया हुआ था, (अक्सर ही सेवा पर दरबार में जाता ही रहता था और अब भी समय-समय पर जाता रहता हूं।) उसी दौरान एक दिन मैं परम पूज्य हजूर पिता जी की पावन हजूरी में अपनी झोली (दामन) फैलाकर खड़ा हो गया। पूज्य गुरु जी एक बार तो मेरे पास से होकर थोड़ा आगे निकल गए थे, परंतु उसी पल चार-कु कदम पीछे लौटकर मेरे पास आ गए।
पूजनीय दयालु दाता जी ने अपनी पावन रहमत करते हुए मुझसे पूछा, ‘बेटा, क्या बात है?’ मैंने अर्ज की कि पिता जी, मेरे पांच लड़कियां ही हैं… और इतना कहते ही मुझे वैराग्य आ गया तथा और कुछ भी बोल न सका। सच्चे पातशाह जी ने मुझे अपना पावन आशीर्वाद दिया और पवित्र मुखारबिंद से वचन फरमाया, ‘यहां से वैद्य जी से दवाई लेकर जाना है।’ मैंने बेपरवाही पावन वचनानुसार वैद्य जी से (कमरा नं. 10 से) दवाई ले ली और उन्हीं के बताए अनुसार दवाई अपनी पत्नी को खिलाई।
दवाई का तो बहाना था (जबकि हमने इतने वर्षों से बेटे की तड़प में क्या-कुछ नहीं किया था)। वास्तव में बेटा तो हमें मेरे सतगुरु प्यारे ने उसी पल ही मंजूर कर दिया था। पूज्य सतगुरु जी की अपार दया-मेहर से 17 मार्च 2004 को हमारे घर बेटे ने जन्म लिया। मेरी अपने पूजनीय सतगुरु पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन चरण-कमलों में यही अरदास है कि हमें जो बेटे की दात बख्शकर समाज और हमारे भाईचारे में हमारा मान बढ़ाया है, तो कृप्या हमारे बेटे को आप जी के द्वारा दर्शाए सच्ची इन्सानियत और राम-नाम के मार्ग पर चलने का बल बख्शना जी और उसे सेवा, सुमिरन करने वाला एक परमार्थी इन्सान बनाना जी।
एक बार डेरा सच्चा सौदा दरबार में बेर तोड़ने की सेवा चल रही थी और मैं भी वहां अन्य सेवादारों व साध-संगत के साथ सेवा कर रहा था। उस दौरान मैंने किसी भी जिम्मेवार सेवादार के पूछे बगैर चुपके से (चोरी से) एक बेर खा लिया। बस, उस दिन के बाद मेरे पेट में निरंतर ही दर्द रहने लगा और वह दर्द कई वर्षों तक रहा। दवाईयां वगैरह भी ली, परंतु दर्द ठीक नहीं हुआ। मैंने अल्ट्रासाउंउ भी करवाया, एक्स-रे भी करवाए, परंतु उनमें कुछ नहीं आता था। फिर एक दिन अचानक मुझे चोरी-छुपे (चुपके-चुपके से) दरबार में से एक बेर खाने वाली बात याद आ गई।
तो मैंने मन में निश्चय किया कि मुझे मेरी इस गलती की पूज्य गुरु जी से माफी जरूर लेनी चाहिए। इस उद्देश्य से एक दिन मैं डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम सरसा गया। वहां से मुझे पता चला कि पूज्य पिता जी जीवोद्धार के लिए एमएसजी डेरा सच्चा सौदा व मानवता भलाई केन्द्र शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा (यूपी) में सत्संग फरमाने के लिए गए हुए हैं। मैं भी बरनावा आश्रम में पहुंच गया। वहां आश्रम में उन दिनों जो भी सेवा चल रही थी, मैं भी वहां सेवा में लग गया।
पूजनीय हजूर पिता जी एक दिन वहां दरबार में विशेष तौर पर सेवादारों से स्पेशल मिले। पूज्य पिता जी शाम को करीब चार-कु बजे शाही स्टेज पर आकर विराजमान हो गए। पूज्य गुरु जी अपने पावन वचनों व दर्शनों से सेवादारों को अपनी अपार खुशियों से निहाल कर रहे थे। इसी दौरान घट-घट के जाननहार पूज्य सतगुरु जी ने फरमाया, ‘बेटा, किसी ने कोई बात करनी है तो कर सकता है। बीमारों ने खड़ा नहीं होना।’ मैं उसी समय खड़ा हो गया और मेरे से आगे एक और सेवादार भाई भी खड़ा था। पूज्य गुरु जी ने पहले उस सेवादार भाई से पूछा, ‘क्या बात है?’ उसने कहा कि पिता जी, मेरे घुटने में दर्द है। पूज्य पिता जी ने फरमाया, ‘भाई, अभी तो बोला है कि बीमारी वाला कोई खड़ा न हो।
उनके लिए तो हमने पहले ही बोल रखा है।’ फिर मुझसे पूछा, ‘हां बेटा, क्या बात है?’ तो मैंने हाथ जोड़कर अर्ज की कि पिता जी, मैंने एक दिन दरबार में सेवा करते समय चुपके-चुपके से (चोरी-छुपे) एक बेर खा लिया था। मुझे माफ कर दो जी। तो पूज्य दयालु, दया-मेहर के दाता, सतगुरु जी हंसकर कहने लगे, ‘चुपके-चुपके से बेर खाया, तो चुपके-चुपके से ही दर्द हुआ। बेटा! नारा लगाकर बैठ जाओ, माफ कर दिया।’ पूज्य पिता जी ने यह भी फरमाया कि ‘दरबार आपका अपना है, पूछकर खा लिया करो भाई।’ यह बात 19 मार्च 2002 की है। जिस दिन व जिस पल प्यारे दाता रहबर सतगुरु जी ने मुझे माफ कर दिया तो उसके बाद मुझे कभी दर्द नहीं हुआ।
हम अपने कुल मालिक सतगुरु पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां द्वारा बख्शी उनकी अपार रहमतों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकते। बस, धन्य-धन्य ही करते हैं। पूज्य सतगुरु पिता जी, अपनी अपार दया-मेहर, रहमत इसी तरह बनाए रखना जी।































































