असंभव को संभव कर दिया, मुर्दे में जान डाली -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
मैं बलजिंदर कुमार उर्फ सोनू पुत्र श्री ज्ञान चंद, गांव व डाकखाना जंडवाला, मीरा सांगला, जिला फाजिल्का (पंजाब) का रहने वाला हूं। यह बात सन 2020 सितंबर के महीने की है जब कोरोना का कहर बड़ी तेजी से फैल रहा था। प्रतिदिन की दिनचर्या के अनुसार मैं दफ्तर से घर आया तो मुझे हल्का सा बुखार महसूस हुआ और थकावट भी बहुत महसूस हो रही थी। जैसे अक्सर घरों में हम कोई दवाई ले लेते हैं, मैंने भी परवाह नहीं की और घर पर ही दवाई ले ली।
तीन-चार दिन ऐसे ही भाग-दौड़ में निकल गए। मैंने अपनी सेहत को नजरअंदाज कर दिया। चौथे दिन रात को लगभग 12:00 बजे अचानक मेरी तबीयत बहुत खराब हो गई। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरा दम घुट रहा है। अचानक मुझे सांस लेने में बहुत परेशानी होने लगी। मेरी ऐसी गंभीर होती हालत को देखते हुए मेरे परिवार वाले भी घबरा गए और जल्दी मुझे शहर फाजिल्का के सिविल हॉस्पिटल में ले गए पर मेरी हालत सुधरने की बजाये और बिगड़ती देख कर डॉक्टर भी घबरा गए।
उन्होंने मुझे जल्दी से जल्दी किसी अच्छे हॉस्पिटल में ले जाने के लिए कहा और मुझे श्री गुरु गोबिंद सिंह मेडिकल कॉलेज वह हस्पताल फरीदकोट के लिए रैफर कर दिया। मेरा परिवार कई पुश्तों से डेरा सच्चा सौदा, सरसा के साथ जुड़ा हुआ है, अत: सभी पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरण कमलों में प्रार्थना करने लगे। मेरी बिगड़ी हुई हालत को देखकर मुझे जल्दी से एमरजेंसी में एडमिट किया गया और वेंटिलेटर पर रखा गया। डॉक्टरों ने मेरे सैम्पल्स व टैस्ट लिए। मेरी रिपोर्ट्स से पता चला कि मेरे फेफड़े कोरोना के कारण 80 प्रतिशत खराब हो चुके हैं। अभी इस मुसीबत से परिवार जूझ रहा था कि इसी दौरान मेरे पापा और बड़े भाई की तबीयत बिगड़ गई, उन्हें भी अलग-अलग हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया मेरे पास मेरी पत्नी थी। मेरे दो बच्चे व मम्मी हॉस्पिटल के पास रहने के लिए आ गए।
3 से 4 दिनों के अंदर-अंदर जैसे मेरी सारी दुनिया ही अस्त-व्यस्त हो गई। वहां के अनुभवी डॉक्टर लगातार मेरी हालत को सुधारने का प्रयत्न कर रहे थे, पर मेरी हालत में कोई भी सुधार नहीं हो रहा था। मेरी सांस लेने में दिक्कत और भी बढ़ती जा रही थी। मेरा आॅक्सीजन लेवल दिन-ब-दिन कम ही होता जा रहा था। इसी दौरान मेरी बहन पूनम इन्सां जोकि डेरा सच्चा सौदा दरबार में गुरब्रह्मचारी सेवादार है, उसने एडम ब्लॉक के जरिए पूज्य पिता जी के चरणों में मेरी चल रही स्थिति को ब्यान किया और पिता जी ने आशीर्वाद के साथ वचन फरमाए कि टैंशन नहीं लेनी, पॉजिटिव रहो, सारी दुनिया ठीक हो रही है।
सारा परिवार सुमिरन करो और जो भी खाने को देते हो सुमिरन करके देना है। एक तरफ तो पूज्य हजूर पिता जी के भेजे हुए वचनों से सब को राहत की सांस आई लेकिन दूसरी तरफ मेरी हालत बद से बदतर हो गई। आखिर वह पल आ गया जब डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया और कहा कि यह (मैं) कुछ घंटों या दिनों का ही मेहमान है। मेरे परिवार वालों के पैरों तले जमीन निकल गई। मेरी पत्नी लगातार पूज्य हजूर पिता जी के चरणों में मेरी जान बख्शने की अरदास कर रही थी। मेरी जान बचाने का आखिरी प्रयत्न डॉक्टर्स के अनुसार एक मेडिकल प्रोसीजर ट्रैचीओसटोमी था जिसमें मेरे अंदर पाइप डाली जानी थी, परंतु इस प्रक्रिया में मेरी जान जाने के चांस 99 प्रतिशत थे। मेरी पत्नी ने कांपते हुए हाथों से डॉक्टर के कहे अनुसार इस प्रक्रिया को करने की अनुमति देते हुए साइन कर दिए।
मेरी पत्नी बताती है कि उस वार्ड में लगातार मौतें हो रही थी। हर रोज के इस मंजर को देखकर वो हर पल मरती थी। कोरोना का प्रकोप बहुत बढ़ गया था। हर तरफ मौत का तांडव चल रहा था। आखिर डॉक्टरों ने मेरे मुंह के जरिए मेरे शरीर में पाइप डाल दी। मेरे हाथों और पैरों को मेरे बैड से बांध दिया ताकि मैं किसी तरह की हरकत ना करूं। मुझे मेरी मौत बिल्कुल मेरे सामने नजर आ रही थी। मेरी सांस बिलकुल रुक गयी थी। तभी मुझे एहसास हुआ जैसे हजूर पिता जी साक्षात् मेरे सामने खड़े है। पूज्य हजूर पिताजी ने सबसे पहले मेरे हाथों और पैरों को खोला, फिर मेरे मुंह से पाइप निकाली और नूरी दीदार से मुझे प्यार बख्शते हुए आशीर्वाद दिया।
फिर पिताजी ने मुझे गोद में बिठाया और मुझे ऊपर की तरफ ले गए। मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे हम किसी बहुत बड़े बर्फ के पहाड़ पर पहुंच गए जैसे कि हिमाचल के डेरे चचिया नगरी का दृश्य हो। पिताजी ने फरमाया ‘किवें भोलेया उत्ते रहना है के थल्ले?’ मैने पिता जी को हाथ जोड़ कर कहा कि पिताजी मेरे बच्चे छोटे-छोटे हैं, मेरी पत्नी की उम्र भी बहुत कम है वो बच्चों का पालन पोषण नहीं कर पाएगी। इसी दौरान मेरी पिताजी से बहुत सारी बातें हुई। मैंने पिताजी से शंका जताते हुए पूछा कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है जबकि मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया। पूज्य हजूर पिता जी ने मुझे मेरे बीते समय की घटनाओं को याद करवाते हुए फरमाया कि आज से 10 साल पहले तेरा एक भयंकर कर्म था जब तेरी गाड़ी का एक्सीउेंट हुआ था जिसमें तेरी हड्डी में बहुत दिक्कत हो गई थी, तब तेरा सर्जरी वाला कर्म तेरे से सिर्फ कुछ कसरत करवा के ही काट दिया था।
इसके बाद 2019 में तुझे किसी झूठे केस में फंसा दिया गया था जिससे तेरी बदनामी भी हुई पर हमने वो केस भी बंद करवा दिया और आज फिर तेरी जान बख्श रहे हैं। तेरे अंदर एक नया इंजन रख दिया है। हुण याद रखीं सानूं, तैनूं जिंद बख्शी है, तेरे भरा नूं वी कह दर्इं कि तेरियां बाहां मोड़ रहे हां। जो कह रहे सी कि तू बचदा नहीं, ओहनां नू कह दर्इं कि ऐवें कच्चा धूआं ना मारेया करन… असीं वी केहा कि होण असीं वी नहीं दिंदे कुछ…। हुण सेवा सुमिरन करके जिंदगी बसर करना। मैंने शंका जताते हुए पूछा कि क्या मुझे दरबार में रहकर सेवा करनी है तो पिताजी ने फरमाया कि नहीं भोलेया, रहना तां गृहस्थी ’च ही है।
तभी पिताजी मुझे गोद में बैठा कर दोबारा हॉस्पिटल के उसी कमरे में ले आए। उसके बाद लगातार मुझे हजूर पिता जी के दर्शन होते रहे। डॉक्टर बड़े हैरानी से मुझे देख रहे थे क्योंकि मेरे मुंह में से पाइप निकल चुकी थी और मेरे हाथ-पैर भी खुले थे। वह कह रहे थे कि आखिर कोई अपनी ही पाइप कैसे निकाल सकता है! मेरी हालत में धीरे-धीरे सुधार आना शुरू हो गया। जब मेरी पत्नी मेरे पास आई तो मैंने सतगुरु जी की रहमत का करिश्मा सुनाया।
मुझे पता है कि पिताजी के एहसान बोलकर या शब्दों की लिखावट में ब्यान नहीं किए जा सकते, क्योंकि उनके परोपकारों की तो कोई सीमा ही नहीं है। वह तो पल पल अपने जीवों की संभाल करते हैं। सारी दुनिया पिताजी के सुनारिया धाम से आने का इंतजार कर रही थी, वहीं हजूर पिता जी साक्षात मेरे पास रहकर मेरी लगातार संभाल कर रहे थे। मेरी सुधरती हालत को देखकर डॉक्टर्स बड़े हैरान थे। उनमें से एक अनुभवी डॉक्टर रुपिंदर का कहना था कि जिसको हम डेड घोषित कर दें वह जिंदा रहना नामुमकिन होता है। उन्हें समझ नहीं आ रही थी कि ऐसे कैसे हो गया! यह उनके लिए चमत्कार से कम नहीं था पर उन्हें नहीं पता था कि मेरे रक्षक हर वक्त मेरे पास ही रहते हैं।
मुझे पिता जी के हर पल दर्शन हो रहे थे, कभी मेरे बेड के पास, कभी सामने, तो कभी धूप को रोकने के लिए लगाई गई खिड़की पर चादर में से मुझे निहारते रहते थे। पिताजी ने सिर्फ मेरी जान ही नहीं बख्शी बल्कि मां की तरह हर वक्त मेरी निगरानी भी की। एक दिन जब मैं अपने कमरे में बैड पर लेटा हुआ था तो मुझे बहुत ज्यादा गर्मी लग रही थी। मैंने पिताजी से कहा, पिताजी मुझे बहुत ज्यादा गर्मी लग रही है। घट-घट के जाननहार पिताजी ने कहा कि बेटा, कल शाम को 6 बजे तुझे ए सी रूम में शिफ्ट कर देंगे और ठीक वैसा ही हुआ। अगले दिन 6 बजे मुझे ए सी रूम दे दिया गया। फिर मुझे दवाईयों के कारण कब्ज की बहुत ज्यादा शिकायत हो गई, मैं बहुत परेशान हो गया।
बार-बार इसकी दवाई लेने पर भी मुझे कोई राहत नहीं मिली। मेरा दो से तीन बार एनिमा भी किया गया पर फिर भी कोई सुधार नहीं हुआ। मैंने फिर पिताजी से विनती की कि मेरी कब्ज ठीक नहीं हो रही, तो पिता जी ने फरमाया कि बेटा, कुछ नहीं है, बिसलेरी का पानी मंगवा कर पी ले। अगले दिन जब मेरा भाई मुझे मिलने के लिए आया तो मैंने उसे कहा कि मुझे बिसलेरी का पानी लाकर दे। उस पानी को पीते ही मेरी तबीयत ठीक हो गई और मुझे इस से भी राहत मिली।
लगातार बीमार रहने के कारण मेरा शरीर बहुत कमजोर हो गया था। मेरा वजन लगभग 90 किलो से 42 किलो तक आ गया था। मेरा बिस्तर से उठना भी मुश्किल था। परिवार वालों ने बताया कि मुझे नॉर्मल चलने फिरने में भी डॉक्टर के अनुसार 3 महीने का समय लगेगा। इसी दौरान मेरी बहन पूनम ने मेरे लिए पिताजी के आशीर्वाद से बादाम का प्रसाद भेजा। मेरे परिवार ने जैसे ही वह प्रसाद मेरे मुंह में डाला, उसे खाते ही एकदम से मेरा शरीर बहुत तेजी से कांपने लगा। मेरी ऐसी हालत को देखकर सभी डर गए। अचानक मेरा शरीर फिर नॉर्मल हो गया और जैसे मेरे अंदर बहुत पावर आ गई। मैंने मेरी पत्नी को कहा कि मुझे कुछ कदम चलना है और कुछ ही पलों में मैं अपने कमरे में चलने लगा। यह सब पूज्य हजूर पिता जी की ही कृपा का नमूना था।
कहते हैं ना कि ‘मैं जेहड़ी सोचां ओही मन लैंदा, किवें भुल्ल जावां पीर नूं।’ मैंने पिताजी को कहा कि मैं हॉस्पिटल से उकता गया हूं, तो पिताजी ने फरमाया कि ठीक 1 महीना 3 दिन बाद तुझे यहां से छुट्टी मिल जाएगी। फिर पिताजी ने फरमाया कि अब हम चलते हैं, अब तूं बिल्कुल ठीक है। पिताजी के वचन अनुसार मुझे ठीक 1 महीना 3 दिन के बाद हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई। पूज्य हजूर पिता जी ने ना केवल मेरी और मेरे परिवार की संभाल की बल्कि मेरी बीमारी, मेरी परेशानी और मेरी शंकाओं को भी अपनी अपार रहमत से दूर किया।
पूर्ण मुर्शिद की शरण सौभाग्य से नसीब होती है और मैं वो भाग्यशाली हूं जिसकी सतगुरु जी ने पल-पल संभाल की और कर रहे हैं। धन्य है मेरे सतगुरु जी। मेरा और मेरे परिवार का रोम-रोम सतगुरु जी का आभारी है। अब सतगुरु जी के चरणों में मेरी यही अरदास है कि मैं ताउम्र सेवा सुमिरन करके अपनी जिंदगी को वैसे ही बसर करूं जैसा पूज्य पिता जी ने मेरा मार्गदर्शन किया है।