spiritual guide - sachi shiksha

याद-ए-मुर्शिद Yaad-e-Murshid
रूहानियत के सच्चे रहबर, महान परोपकारी, दु:खी-गरीबों के मसीहा व महान विश्व समाज सुधारक परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का समूचा जीवन मानवता हित में समर्पित रहा है। डेरा सच्चा सौदा के दूसरे पातशाह के रूप मे विराजमान रहकर समाज के लिए अपने जीअ तोड़ प्रयास किए व लाखों लोगों का जीवन जन्नत बना दिया। परम पिता जी 13 दिसम्बर 1991 को ज्याति जोत समा गए।

पूज्य परम पिता जी के ज्योति-जोत समा जाने की इस पुण्य तिथि को पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां एक पवित्र याद के रूप मे मनाते हैं जिसके उपलक्ष्य मे नेत्र रोगों से जूझ रहे पीड़ितों का ईलाज किया जाता है। रुहानियत के सच्चे रहबर परम पिता जी की पावन याद को समर्पित यह दिन लाखों अंधेरी जिंदगियों मे उजाला भरने वाला सिद्ध हुआ है।

मुर्शिद प्यारे की याद में मनाया जाने वाले यह दिन समाज के लिए नई प्रेरणा लेकर आया है जिससे शिक्षा हासिल कर लोग जरुरतमंदों की सेवा-संभाल करने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। इसका प्रमाण भी इस दौरान लगने वाले नेत्र चिकित्सा कैंप में देखा जा सकता है। हजारों सेवादार निस्वार्थ भाव से मरीजों की सेवा करके मिसाल बन रहे हैं।

इन सेवादारों मे महान नेत्र विशेषज्ञों से लेकर मरीजों को चाय-पानी,लंगर-भोजन खिलाने व उनको रफा-हाजत के लिए लेकर जाने तक का सारा काम बड़ा लग्न से करते हैं। सेवा-भावना का ऐसा उदाहरण अविरल है।

याद-ए-मुर्शिद के रुप मे मनाये जाने वाली यह पुण्य तिथि पूरे समाज के लिए एक लहर है जो साल-दर-साल जनकल्याण कार्यांे के नए आयाम स्थापित कर रही है। नेत्र रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए यह लहर एक नया सवेरा है। अपनी अंधेरी जिंदगी मे फिर से उजाला पा कर लोगों का रोम रोम परम पिता परमात्मा की याद में खिल उठता है।

ऐसे जरुरतमंद व असहाय पीड़ितजनो की रुह पूज्य गुरू जी का लाख-लाख शुक्रिया अदा करती है।
जिनके करम से वो अपने नेत्र विकारों से मुक्ति पा कर जगत को देख सकने के काबिल हो जाते हंै। पूज्य गुरू जी का समाज पर यह महान करम है। आप जी की अपार दया-मेहर के लिए हर कोई ऋणी है। हर जीवात्मा आप जी का गुणगान कर रही है।

पावन जीवन पर एक झलक-

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का जन्म गांव श्री जलालआणा साहिब, तहसील कालांवाली जिला सरसा, (हरियाणा) में पूज्य पिता सरदार वरियाम सिंह जी व पूज्य माता आस कौर जी के घर हुआ। आप जी के पूज्य बापू जी बहुत बड़े जमींदार व गांव के सत्कार योग्य जैलदार थे तथा पूज्य माता जी शुभ-धार्मिक विचारों व अत्यन्त दयालु स्वभाव वाले थे। पूजनीय माता जी के पवित्र संस्कारों के कारण भी पूज्य परम पिता जी शुरू से ही असल सच (खुद-खुदा) के मिलाप की चाहत रखते थे। आपजी ने अपने रूहानी उद्देश्य पूर्ति के लिए बहुत बड़े-बड़े महात्मा की संगत-सोहब्बत की परन्तु कहीं से तसल्ली नहीं हुई। 14 मार्च 1954 को आपजी ने पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से नाम दीक्षा हासिल की। ‘रब्ब से रब्ब’ का मिलाप हो गया।

निश्चित समय आ गया था अब रब्ब को जाहिर करने का। उस फकीर के वचनों के अनुसार यह सच्चाई तब साबित हुई जब परम पूज्यनीय परम पिता जी ने 40 वर्ष की आयु में अपने सच्चे रहबर बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के हुक्मानुसार अपना सब कुछ जमीन-जायदाद, घर का सारा सामान और यहां तक कि अपनी बहुत बडी हवेली को स्वयं अपने हाथों से तोड़कर उसकी एक-एक र्इंट, एक-एक कंकर भी लाकर डेरा सच्चा सौदा में अपने मुर्शिदे-कामिल की पवित्र हजूरी में रख दिया व खुद को जन-कल्याणकारी कार्यों हेतु अपने सतगुरु जी के सुपूर्द कर दिया।

पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी की अब तक हर तरह से परीक्षा ले ली थी। आपजी अपने सतगुरु जी की हर परीक्षा में पूर्णत: सफल हुए। 28 फरवरी 1960 को पूज्य मस्ताना जी महाराज ने आपजी को अपना स्वरुप बख्श कर सरदार हरबंस सिंह जी से ‘शाह सतनाम सिंह जी’, कुल मालिक बनाया। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा के लिए दिन-रात एक कर दिया।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यू.पी आदि राज्यों में दूर-दूर तक हजारों रूहानी सत्संग लगाकर घर-घर में राम-नाम, मालिक की सच्चाी भक्ति की ज्योति प्रजवल्लित की और लाखों लोगों को राम-नाम प्रदान कर उन्हें नशा व अन्य हर तरह की बुराईयों से मुक्त स्वस्थ जीवन प्रदान किया । आपजी ने अपने परोपकारी उद्देश्य  को लेकर गर्मी, सर्दी, वर्षा, आंधी आदि की कभी परवाह नहीं की थी।

कई बार तो पूज्य परम पिता जी 104 डिग्री बुखार के होते हुए और डाक्टर साहिबानों तथा सतब्रह्मचारी सेवादारों के सत्संग कैंसिल करने की प्रार्थना करने के बावजूद भी सत्संग करने जाते। सतब्रह्मचारियों व सेवादारों की सत्संग कैंसिल करने वाली अर्ज पर आपजी वचन फरमाते, ‘‘ बेटा, संगत बेचारी पता नहीं कब से इन्तजार कर रही होगी! हम नहीं जाएंगे तो बेचारे निराश होकर लौटेंगे, उनका दिलटूट जाएगा।’’

सच्चे रहबर जी मानवता की भलाई के लिए, समाज में फैली बुराईयों को खत्म करके साफ-सुथरे समाज का निर्माण करने के लिए दिन-रात प्रयासरत रहते। जनसंख्या को नियन्त्रित रखने के लिए आपजी ने साध-संगत को ‘छोटा-परिवार सुखी-परिवार’ की शिक्षा दी। आपजी अक्सर ये वचन फरमाते कि बेटे की इच्छा में कई बार परिवार बहुत बड़ा हो जाता है।

फलस्वरुप बच्चों का उचित पालन-पोषण नहीं हो पाता तथा घर में गरीबी, बेकारी जैसी समस्याएँ पनपने लगती हैं। इसलिए बेटा-बेटी को एक समान मानना चाहिए और बेटी को भी बेटे के बराबर अधिकार देने चाहिएं। उसे भी बराबर पढ़ना-लिखना सिखाना चाहिए व अच्छे संस्कार देने चाहिएँ। इसी तरह आप जी इस बात पर भी बल देते कि जन्म व मृत्यु के समय पुरानी परम्पराओं व रूढ़िवादी गलत धारणाओं के अनुसार बाहरी लोक दिखावे पर व्यर्थ खर्च नहीं करना चाहिए। आपजी दहेज प्रथा के बहुत विरुद्ध थे।

आपजी ने मानवता की भलाई के लिए डेरा सच्चा सौदा में बिना दान-दहेज के शादियों की एक स्वस्थ परम्परा चलाई जिसके तहत आप जी के वचनों पर चलकर आज लाखों परिवार सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
आपजी ने अनेक सरलभाषी अपने रूहानी वचनों के पवित्र ग्रन्थों की रचना की है, वहीं जहां अपने स्वयं द्वारा रचित हजारों शब्द-भजनों को सचखण्ड दा संदेशा, सतलोक का संदेश नामक ग्रंथों में संग्रहित करके संगत में अर्पित किए हैं जिनसे प्राप्त आप जी की रूहानी खुुशबू से जीवात्मा हर समय सराबोर, मालिक के प्यार में मस्त रहती है।

परम पिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को मौजूदा हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह शहनशाही स्टेज पर विराजमान कर अपने कर-कमलों से अनामी से लाया हुआ हल्वे का प्रसाद खिलाकर तथा फूलों का हार पहनाकर गुरगद्दी बख्शिश की। उपरान्त 13 दिसम्बर1991 को आप जी ने अपने शारीरिक स्वरूप को भी पूज्य गुरु संत डा. एमएसजी के जवां रूप मे अभोद कर दिया।

आपजी ने लगभग 30-31 वर्ष तक इस पावन दरबार तथा साध-संगत को जो अमूल्य प्रेम बख्शा और अपनी इस पावन फुलवाड़ी को अपने रहमो-करम के अमृत से जिस प्रकार सींचा, उसी के फलस्वरुप आज डेरा सच्चा सौदा दुनिया-भर में सूर्य की तरह चमक रहा है। आपजी की पावन प्रेरणा से ही डेरा सच्चा सौदा अपनी सच्चाई, ईमानदारी, आत्म-निर्भरता और मानवता भलाई के कार्यो के लिए विश्व-भर में प्रसिद्धि हासिल कर चुका है।

परम पिता जी द्वारा चलाई गई मानवता भलाई और समाजोत्थान के कार्यों की लड़ी पूज्य हजूर पिता जी की रहनुमाई में दिन दोगुणी, रात चौगुणी बढ़ती जा रही है पूज्य परम पिता जी ने बगैर किसी भेदभाव के सभी के प्रति प्रेम, प्यार व हमदर्दी का संदेश दिया है।

पूज्य परम पिता जी के वचनानुसार:-

‘संत खड़े बाजार में, सब की मांगें खैर।
सबहूँ से हमारी दोस्ती, नहीं किसी से बैर।।’
हर किसी के भले की दुआ और हर किसी से हमदर्दी, यही है डेरा सच्चा सौदा की पवित्र शिक्षा और जो आज भी ज्यों की त्यों कायम है। किसी व्यक्ति की तो बात बहुत दूर, यहाँ पर तो आज तक किसी जीव-जन्तु, कुत्ते, बिल्ली और यहां तक कि किसी जहरीले जानवर (सांप, बिच्छू आदि) को भी डंडा तक नहीं मारा जाता। भूखे को भोजन, प्यासे को पानी, दीन-दुखियों, बीमारों की मदद् अर्थात् इन्सानियत की प्रैक्टीकली शिक्षा की जीती-जागती तस्वीर प्रत्यक्ष रूप में यहाँ पर देखी जा सकती है।

पूज्य गुरू जी स्वयं हर पल मानवता की भलाई के कार्यों में दिन-रात लगे हुए हैं। पूज्य गुरू जी की पावन रहनुमाई में डेरा सच्चा सौदा द्वारा किये जा रहे रूहानियत व इन्सानियत की सेवा तथा नेकी-भलाई के कार्यों से हर कोई लाभान्वित हो, इसी उद्देश्य से ही पूज्य गुरू जी दिन-रात प्रयासरत रहते हैं। छह करोड़ से ज्यादा लोग आज डेरा सच्चा सौदा से जुड़कर मानवता के इन सेवा कार्यों में डेरा सच्चा सौदा का सहयोग कर रहे हैं।

वैसे तो पूरा दिसम्बर महीना ही डेरा सच्चा सौदा में साध-संगत पूज्य मौजूदा हजूर पिता जी की रहनुमाई में चलाए जा रहे कार्यों के प्रति सजग व समर्पित रहती है, लेकिन 13-14-15 दिसम्बर के ये दिन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में एक बहुत ही अहम स्थान रखते हैं। सन् 1992 से हर साल 13-14-15 दिसम्बर को पूज्य हजूर पिता जी की रहनुमाई में शाह सतनाम जी स्पैशेलिटी हॉस्पिटलस सरसा में पूज्य परम पिता जी की पवित्र याद में ‘याद-ए-मुर्शिद’ शाह सतनाम जी फ्री आई कैम्प (आँखों का नि:शुल्क कैम्प) लगाया जाता है।

जिसमें हर वर्ष हजारों लोगों की नि:शुल्क नेत्र जांच व आप्रेशन किए जाते हैं। सन् 1992 से वर्ष 2015 (अब) तक लगे इन 24 नि:शुल्क कैंपों में 25919 आॅपरेशन किए जा चुके हैं जबकि देश व विदेशों के लाखों लोगों ने इन कैंपों के द्वारा आंखों के अन्य रोगों की नि:शुल्क जांच व उपचार करवाकर लाभ उठाया है।

विगत वर्ष 2015 में लगे कैंप में 11417 मरीजों ने आंखों की जांच कराई थी व 996 मरीजों के आंखों के विभिन्न तरह के आप्रेशन किए गए थे और 500 मरीजों को चश्में भी वितरित किए गए। खास बात यह है कि वर्ष 2010 में लगे इसी विशाल आई कैंप को एक दिन में 12 दिसम्बर को सबसे ज्यादा 4603 लोगों की आई हैल्थ स्क्रीनिंग (आंखों की जांच) करने पर डेरा सच्चा सौदा का नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में नामांकित किया गया था और जबकि वर्ष 2013 में लगे इसी कैंप के एक दिन (12 दिसम्बर) को 11715 लोगों की आंखों की जांच कर डेरा सच्चा सौदा ने इस रिकॉर्ड को सुधार कर फिर से अपने नाम कर लिया है।

सेवा में समर्पित पूरा दिसम्बर माह सेवा के महाकुंभ से जुड़े हर व्यक्ति को आत्मिक खुशियों से भरपूर रखता है।
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