Became the leader of Jindaram

बन आए जिन्दाराम के लीडर Became the leader of Jindaram

28 फरवरी विशेष 60वां महारहमो-करम (गुरगद्दीनशीनी) दिवस

रूहानी बख्शिश का होना आध्यात्मिकतावाद का अनोखा व दुर्लभ वृत्तान्त होता है। कोई ईश्वरीय ताकत ही इस पदवी को हासिल कर सकती है। बेशक वो आम लोगों के बीच रहकर उन्हीं की तरह अपना जीवन बसर करे, पर उस ताकत का भेद उचित समय आने पर ही खुलता है। इस रहस्य को खोलना उससे भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक जलता हुआ दीप ही दूसरे दीपकों को प्रज्ज्वल्लित कर सकता है।

रूहानी ताकत

इसी तरह कोई रूहानी ताकत ही किसी रूहानी ताकत को प्रकट कर सकती है। यह कारज कोई आम इन्सान नहीं कर सकता। कोई कामिल फकीर ही अपने स्वरूप को पहचान सकता है और वही कामिल फकीर ही उसे दुनिया के सामने प्रकट कर सकता है, और वही पूरी दुनिया को अटल सच्चाई से रू-ब-रू करवा सकता है।

डेरा सच्चा सौदा की पहली पातशाही पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को अपने वारिस(उत्तराधिकारी) के रूप में डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरी पातशाही प्रकट करके लोगों को एक उस महान ईश्वरीय ताकत के साथ रू-ब-रू करवाया जिसके सहारे सब खण्ड-ब्रह्मण्ड टिके हैं और सब वेद-पुराणों व संतों ने जिसका गुणगान किया है।

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा घूकांवाली दरबार में सत्संग फरमाने के बाद खुद आवाज देकर स्वयं बुलाकर (जैसा कि बेपरवाह जी ने पहले ही वचन किए थे कि जब समय आएगा खुद आवाज देकर, खुद बुलाकर, नाम देंगे) और अपने पास बिठाकर नाम शब्द की दात बख्शी। असल में यह पवित्र दिन भी अपने आप में अति महत्वपूर्ण है। क्योंकि सार्इं मस्ताना जी महाराज ने उस समय अपने ईलाही वचन भी फरमाए, कि ‘आपको इसलिए पास बिठाकर नाम देते हैं कि आप से कोई काम लेना है। आपको जिन्दाराम का लीडर बनाएंगे जो दुनिया में नाम जपाएगा।’

उस समय पर मौजूद और कई लोगों ने, उस दिन जो उन नाम शब्द लेने वालों में शामिल थे, वचनों को हालांकि खुद सुना था, पर इन वचनों का भेद कोई नहीं पा सका था। संतों के वचन हमेशा-हमेशा अटल होते हैं। उनके वचनों में गहरा राज छुपा होता है जिसे आम इन्सान समझने मेंअसमर्थ होता है। सार्इं जी ने पूजनीय परम पिता जी के अंदर की ईश्वरीय हस्ती का ईशारा पहले भी कई बार किया था। एक बार जब सार्इं जी ने अपने साथ चल रहे सेवादारों को एक पैड़ (पांव के निशान) पर अपनी डंगोरी से दायरा लगाकर फरमाया कि ‘आओ भई! तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं।

देखो भई! ये रब्ब की पैड़ है।’ हालांकि पूजनीय सार्इं जी ने अपने स्पष्ट शब्दों में पूजनीय परमपिता जी के पांव के निशान (पद-चिन्ह) को रब्ब की पैड़ बता दिया था, परन्तु कोई इसे चाहे कुछ भी कहता रहे और कहा भी कि सार्इं जी, ये तो सरदार हरबन्स सिंह जी श्री जलालआणा साहिब के जैलदार के पांव के निशान हैं, पर सार्इं जी ने अपने वचनों पर जोर देते हुए फरमाया, ‘असीं किसी भी सरदार या जैलदार को नहीं जानते, असीं तो ये जानते हैं कि ये रब्ब की पैड़ है।’

जीवन परिचय:

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब तहसील कालांवाली जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी के पूज्य पिता जी का नाम जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू और पूज्य माता जी का नाम माता आस कौर जी था। पूजनीय पिता जी बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक थे। घर में किसी भी दुनियावी पदार्थ की कमी नहीं थी। चिंता-फिक्र और कमी थी तो अपने वारिस की। जबकि शादी-विवाह को लगभग 18 साल बीत गए थे। पूज्य माता-पिता जी ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु की भक्ति और साधु, संत-महात्माओं की सच्चे दिल से सेवा किया करते।

एक बार एक सच्चे फकीर-बाबा से उनका मिलाप हुआ। सार्इं बाबा ने पूज्य माता-पिता जी के पवित्र अंत:करण, उनकी सच्ची सेवा-भावना से प्रसन्न होकर कहा कि ईश्वर आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। आपके घर आपका वारिस जरूर आएगा। वह केवल आपके खानदान का ही नहीं, कुल दुनिया का वारिस कहलाएगा। इस प्रकार फकीर बाबा की दुआओं और ईश्वर की कृपा से आप जी ने 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। इस शुभ अवसर पर वो फकीर-बाबा का दोबारा गांव में आगमन हुआ। उसने पूज्य माता-पिता जी को बधाई देते हुए कहा, ‘भाई भगतो! आपके घर आपकी संतान के रूप में खुद परम पिता परमात्मा का अवतार हुआ है। इसे कोई आम बच्चा न समझना।

ये स्वयं ईश्वरीय स्वरूप हंै। ये आपके यहां 40 वर्ष तक ही रहेंगे। उसके बाद सृष्टि उद्धार (जीव कल्याण) के जिस उद्देश्य से ईश्वर ने इन्हें भेजा है, समय आने पर उन्हीं के पास, उसी पुनीत कार्य के लिए चले जाएंगे।’ आप पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान थे। आप जी सिद्धू वंश से संबंध रखते थे। पूज्य माता-पिता जी ने आपका नाम सरदार हरबन्स सिंह जी रखा था। उपरान्त पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम बदल कर सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।

आप जी के बचपन की अनोखी क्रियाएं, बोल-चाल, कार्य व्यवहार, क्रिया-कलापों को देखकर गांव के सभी लोगों की जुबां पर एक ही बात थी कि ‘जैलदारां दा काका आम मुंडेयां वांग नही, कोई खास हस्ती है।’ बड़े होने पर आपजी के परमार्थी कार्याें तथा परमात्मा की भक्ति का दायरा भी और विशाल हो गया।

अल्लाह, वाहेगुरु, राम की सच्ची वाणी को हासिल करने के लिए, हालांकि आप जी ने अनेक साधु-महापुरुषों से भेंट की, पर कहीं से भी अंदर की तसल्ली नहीं हुई। जैसे ही आप जी का मिलाप पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से हुआ उनके पवित्र मुख से इलाही वाणी को श्रवण किया तो हर तरह से आपजी को पूर्ण तसल्ली प्राप्त हुई और सच्ची संतुष्टि भी।

जैसे ही आप जी ने अपने-आपको तन, मन, धन से पूर्ण तौर पर अपने सतगुरु सार्इं मस्ताना जी महाराज के हवाले कर दिया था, वैसे ही पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने भी अपने भावी उत्तराधिकारी के रूप में आप जी को पा लिया था। ‘रब्ब की पैड़, जिन्दाराम का लीडर’ आदि रब्बी कलाम पूज्य सार्इं जी ने आप जी के उपलक्ष्य में सेवादारों, साध-संगत में इशारों तथा स्पष्ट रूप में फरमाए थे। बल्कि नाम शब्द प्रदान करने के बाद तो पूज्य बेपरवाह जी आप जी को डेरा सच्चा सौदा के भावी वारिस के रूप में निहारने लगे थे।

सख्त परीक्षा:

पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को अपने भावी उत्तराधिकारी के रूप पा लिया था। इसी सिलसिले(रूहानी परीक्षा के प्रसंग) में पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज एक बार जब श्री जलालआणा साहिब पधारे, बेपरवाह जी उन दिनों वहां पर लगातार 18 दिन तक रहे। उस दौरान पूज्य बेपरवाह जी ने कभी गदराना का डेरा गिरवा दिया तो कभी रातों-रात चोरमार का डेरा गिरवा कर डेरे का मलबा श्री जलालआणा साहिब डेरे में मंगवा लिया।

गदराना डेरे का मलबा भी पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी के द्वारा श्री जलालआणा साहिब में मंगवा लिया। इधर आपजी दिन-रात गिराए गए डेरों का मलबा ढोने में लगे रहे तो दूसरी तरफ पूज्य सार्इं जी ने वहां पर एकत्रित मलबा कभी घूकांवाली की साध-संगत को ले जाने का आदेश दे दिया और कभी गदराना की साध-संगत को ले जाने का हुक्म दे दिया, बल्कि स्वयं साध-संगत व सेवादारों के पास खड़े होकर एकत्रित मलबा अलग-अलग डेरों में भिजवा दिया। यह एक रूहानी रहस्य, कोई बेपरवाही अलौकिक खेल ही था।

दूसरे शब्दों में पूजनीय परमपिता जी का इम्तिहान भी कहा जा सकता है, परन्तु आप जी तो पहले दिन से अपने पीरो-मुर्शिद पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर चुके थे। पूज्य बेपरवाह जी जो भी हुक्म आप जी को फरमाते, आप जी अपने खुद-खुदा, प्यारे सतगुरु जी के हर हुक्म को सत्-वचन कह कर उन वचनों पर फूल चढ़ाते। इस प्रकार पूज्य बेपरवाह जी ने आप जी को हर तरह से योग्य पाया और एक दिन आखिर अपने उपरोक्त खेल का रहस्य प्रकट करते हुए साध-संगत में फरमाया कि ‘असीं हरबंस सिंह(पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) का इम्तिहान लिया पर उन्हें पता भी नहीं चलने दिया।’

जब अपने हाथों से अपनी हवेली को गिराया:

फिर एक दिन जैसे ही पूज्य बेपरवाह जी द्वारा हवेली (अपना मकान) तोड़ने व सारा सामान डेरे में लाने का आदेश आप जी को मिला तो आप जी ने तुरंत हुक्म की पालना की। आप जी ने स्वयं कस्सी, फावड़ा, सब्बल, हथौड़ा हाथ में लेकर हवेली की एक-एक र्इंट अलग-अलग कर दी। दुनिया की नजर से देखा जाए तो यह बहुत सख्त इम्तिहान था, पर आप जी ने दुनिया की लोक-लाज की जरा भी परवाह नहीं की। इतनी बड़ी हवेली की एक-एक र्इंट, छोटे कंकर तक, लकड़-बाला, स्लीपर, छत के गार्डर और इसी तरह घर का सारा सामान बेपरवाही वचनानुसार सूई से लेकर हर चीज ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भर कर डेरा सच्चा सौदा सरसा में पावन हजूरी में लाकर रख दिया।

इतने बड़े घराने का सामान भी इतना ज्यादा था कि सामान का बहुत बड़ा ढेर लग गया। माहवारी सत्संग का दिन था। शनिवार की रात को सामान तुरंत बाहर निकालने का हुक्म हुआ कि जिसका भी है वो अभी बाहर निकालें और अपने सामान की खुद रखवाली करें। सर्दी की ठण्डी रात, ऊपर से हल्की-हल्की बूंदा-बांदी व शीत लहर से वातावरण और भी अधिक ठण्डा हो गया था। इतनी जबरदस्त ठंड कि हाथ-पांव सुन्न हो रहे थे। आप जी ने अपने सच्चे रहबर के हर हुक्म को हंस कर हृदय से लगाया। किसी चीज को भी इस इलाही पथ की रुकावट नहीं बनने दिया। अगले दिन सारा सामान, एक-एक वस्तु साध-संगत में बांट कर(लुटाकर) पावन हजूरी में आ विराजमान हुए।

पूज्य परम पिता जी ने अपने एक भजन-शब्द में भी लिखा है:-

प्रेम देयां रोगियां दा दारू नहीं जहान ते।
रोग टुट्ट जांदे दारू दर्शनां दी खाण ते।
प्रेम वाला रोग शाह सतनाम जी वी देखेआ।
अपनी कुल्ली नूं हत्थीं अग लाके सेकेआ।
कर ता हवाले वैद्य शाह मस्तान दे। रोग टुट्ट जांदे….।।

गुरगद्दी बख्शिश:

दिनांक 28 फरवरी 1960 को पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज के हुक्म द्वारा पूजनीय परम पिता जी को सिर से पैरों तक नए-नए नोटों के लम्बे-लम्बे हार पहनाए गए। इधर एक जीप में विशेष कुर्सी लगाकर खूब सजाया गया। पूज्य परमपिता जी को कुर्सी पर विराजमान कर पूरे सरसा शहर में एक प्रभावशाली शोभा यात्रा(जलूस के रूप में) निकाली गई। जलूस को सारे शहर में घुमाया गया ताकि कुल दुनिया को भी पता चले कि पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी के साहिबजादे सरदार हरबन्स सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा में अपना स्वरूप बख्श कर अपना उत्तराधिकारी खुद-खुदा, कुल मालिक बना दिया है। उस शहनशाही जुलूस में डेरे का हर शख्स(छोटा-बड़ा) शामिल था।

पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने डेरे में एक अति सुंदर तीन मंजिला गोल गुफा(तेरा वास) कुछ दिन पहले ही तैयार करवा दी थी। यह तीन मंजिली गोल गुफा विशेष तौर पर पूजनीय परमपिता जी के लिए बनवाई गई थी। शहनशाही जुलूस की वापसी पर पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने मेन गेट के बाहर खड़े होकर स्वयं स्वागत किया और अपना पावन आशीर्वाद प्रदान किया। इसके उपरान्त पूज्य बेपरवाह जी ने नोटों के ढेर सारे हार आप जी को पहनाते हुए वचन फरमाए, ‘असीं अपने मुर्शिदे कामिल दाता सावण शाह सार्इं के हुक्म से सरदार सतनाम सिंह जी को आज आत्मा से परमात्मा कर दिया, कुल मालिक बना दिया है।

’ आप जी को तीन मंजिला अनामी गुफा में सुशोभित करके सार्इं जी ने वचन फरमाया कि ‘ये अनामी गुफा सरदार सतनाम सिंंह जी को इनकी इतनी भारी कुर्बानी के बदले इनाम में दी जाती है।’
पूजनीय बेपरवाह जी ने सारी साध-संगत के सामने पूजनीय परमपिता जी को अपना उत्तराधिकारी डेरा सच्चा सौदा का वारिस बतौर दूसरी पातशाही बना कर स्टेज पर अपने साथ बिठाया। बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने फरमाया, ‘जिस सतनाम को दुनिया जपदी जपदी मर गई वो सतनाम ये (शाह सतनाम सिंह जी महाराज)हैं। असीं इनको अर्शाें से लेकर आए हैं और आपके सामने बिठा दिया है। असीं इन्हें कुल मालिक सतगुरु बना दिया। सभी ने इनके हुक्म में रहना है।’

गोल गुफा का भेद:

तीन मंजिली गोल गुफा की वास्तविकता को स्पष्ट करते हुए पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया कि यहां पर हर कोई रहने का अधिकारी नहीं है। ये गोल गुफा तो भीतों (ईटों आदि) की बनी हुई है, पर जो असली गोल गुफा है वो दोनों आंखों के बीच है, जो इनको (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज को) दी गई है। उस असली गोल गुफा की बराबरी ये तीन लोक भी नहीं कर सकते। जैसे मिस्त्री-कारीगरों ने इस इमारत(गोल गुफा) की मजबूती के लिए ‘तीन बंद’ लगाए हैं, उसी तरह असीं भी सरदार सतनाम सिंह को (अपने हाथ से इशारा करते हुए) एक, दो, तीन-तीन बंद लगा दिए हैं। ना ये हिल सकें और न ही कोई इन्हें हिला सके। दुनिया की कोई भी ताकत इन्हें हिला नहीं सकेगी। युग पलट सकते हैं, लेकिन ये वचन सदा अटल हैं और अटल ही रहेंगे।

लाखों लोगों को बख्शा नव-जीवन:

पूजनीय परम पिता जी ने 28 फरवरी 1960 को बतौर दूसरी पातशाही गद्दीनशीन होकर लगभग 31 साल तक (अप्रैल 1963 से अगस्त 1990 तक) ग्यारह लाख से भी ज्यादा लोगों को नाम-गुरमंत्र प्रदान कर नया जीवन बख्शा। आप जी ने जहां लोगों को मांस, शराब आदि बुराइयों से मुक्त किया, वहीं राम-नाम के द्वारा उनकी आत्मा को जन्म-मरण से भी मुक्त किया। आज करोड़ों लोग आप जी की पवित्र शिक्षाओं को धारण कर मजे की, बेफिक्री की जिंदगी जी रहे हैं।

अवर्णनीय रहमो-करम:

साध-संगत के प्रति आप जी के अनगिणत परोपकार हैं। संगत के प्रति आप जी के अपार रहमो-करम का वर्णन नहीं किया जा सकता। आपजी के पवित्र मुख-वचन कि साध-संगत तो हमें दिलो-जान, अपनी संतान से भी अधिक प्यारी है। दिन-रात हम साध-संगत के भले की, साध-संगत दी चढ़दी कला की परमपिता परमात्मा से दुआ करते हैं। और एक और महान रहमो-करम कि आप जी ने पूजनीय मौजूदा गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं अपने पवित्र कर-कमलों से बतौर तीसरे पातशाह(अपना वारिस, अपना उत्तराधिकारी)डेरा सच्चा सौदा में गद्दीनशीन किया, बल्कि स्वयं भी लगभग पंद्रह महीने तक साथ मौजूद रहे।

आप जी का यह अपार रहमो-करम साध-संगत कभी भी भुला नहीं सकती। आप जी ने 13 दिसम्बर 1991 को ज्योति-जोत समा कर अपने मौजूदा स्वरूप को अपने जानशीन, पूज्य गुरु जी की नौजवान पवित्र बॉडी में प्रवर्तित कर लिया।
पूज्य मौजूदा गुरु जी की प्रेरणानुसार डेरा सच्चा सौदा के मानवता भलाई कार्य विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। आप जी के बताए सच के मार्ग पर चलते हुए आज करोड़ों लोग नशा, भ्रष्टाचार, वेश्यावृति आदि बुराइयों को छोड़ कर राम-नाम, परम पिता परमात्मा की भक्ति से जुड़े हैं। आप जी की प्रेरणानुसार घर-घर में प्रेम-प्यार की गंगा बह रही है।

घर-घर में राम-नाम की चर्चा है और वहीं दीन-दुखियों को सहारा मिल रहा है। मानवता भलाई के नाते डेरा सच्चा सौदा आज हर दुखिए के लिए आस-उम्मीद की किरण बन चुका है। समाज व मानवता के भले के लिए दिन-रात प्रयत्नशील है। पूज्य गुरु जी के वचनानुसार पूजनीय परम पिता जी का गुरगद्दीनशीनी दिवस 28 फरवरी का दिन डेरा सच्चा सौदा में महारहमो करम दिवस के रूप में हर साल भण्डारे के तौर पर और परोपकारी कार्य करके मनाया जाता है। पवित्र दिवस की सारी साध-संगत को बहुत-बहुत बधाई हो। पूज्य गुरु जी को लख-लख बार सजदा करते हैं ाी।

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