पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
मेरा सतगुरु ‘मोया राम’ नहीं, वो ‘जिंदाराम’ है – सत्संगियों के अनुभव
माता जमना देवी इन्सां पत्नी सचखण्ड वासी चम्बा राम रानियां जिला सरसा (हरियाणा) से अपने सतगुरु की रहमत का वर्णन इस प्रकार करती हैं:-
फरवरी 1960 में मेरी शादी हुई। जब शादी हुई तो मेरे पति बीमार थे। वह इतने बीमार थे कि कुछ खाते-पीते नहीं थे। हर कोई कहता था कि ये बचेंगे नहीं, चोला छोड़ेंगे। उन दिनों में बेपरवाह मस्ताना जी महाराज डेरा सच्चा सौदा रानियां में पधारे हुए थे।
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आश्रम में निर्माण कार्य चल रहा था।
गाँव के प्रेमियों ने शहनशाह मस्ताना जी महाराज के चरणों में अर्ज की कि सार्इं जी, चौधरी चम्बा राम बहुत बीमार है। प्यारे सतगुरु जी ने फरमाया, ‘भई! उसको बुलाओ!’ प्रेमी भाई चम्बा राम को पकड़ कर व सहारा देकर डेरा सच्चा सौदा रानियां दरबार में ले आए। पूज्य बेपरवाह जी ने चम्बा राम पर अपनी दया दृष्टि डालते हुए वचन फरमाया,‘नलका गेडने की सेवा कर।’ चम्बा राम नलका गेड़ने लगा। वही चम्बा राम जो बीमारी के कारण लाचार था व कुछ खाता-पीता नहीं था। वह नलका गेड़ने से बिल्कुल स्वस्थ हो गया। वह उसी दिन से आश्रम का लंगर-भोजन खाने लगा।
28 फरवरी 1960 को पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी को डेरा सच्चा सौदा की गुरु गद्दी बख्श कर 18 अप्रैल 1960 को ज्योति जोत समा गए। हम सार्इं मस्ताना जी के हुक्मानुसार पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के सत्संग में आने लगे।
मैं आश्रम में सेवा भी करने लगी।
करीब आठ वर्ष तक मेरे कोई संतान न हुई थी आश्रम में मेरे साथ सेवा करने वाली बहनें मुझे अक्सर कहती कि तू संतान के लिए पूजनीय परम पिता (शाह सतनाम सिंह जी महाराज) जी के आगे अर्ज क्यों नहीं करती। मैं कहा करती कि मालिक तो हाजिर नाजिर है।
वह ‘मोया राम’ नहीं है। वह तो ‘जिन्दाराम’ है। वह सब जानता है। उसे अर्ज करने की क्या जरूरत है? एक दिन मैं रानियां से सरसा शहर में दवाई लेने के लिए आई। परन्तु जिस नर्स से दवाई लेनी थी, वह न मिली और न ही दवाई मिली। मैंने सोचा कि चलो डेरे में गुरु जी के दर्शन ही कर आते हैं। मैं डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम में जाने के लिए चल पड़ी।
जब मंै शाह मस्ताना जी धाम के अन्दर दाखिल हुई तो उस समय पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज बेरी के पास कुर्सी पर विराजमान थे। मैं परम पिता जी को नारा लगाया सजदा किया। पूज्य परम पिता जी ने मुझसे पूछा, ‘बेटा संघर से आई है या रानियां से?’ यहां पर यह बात उल्लेखनीय है कि मेरे मायके संघर साधा और ससुराल रानियां में हैं और परम पिता जी दोनों परिवारों को जानते थे। मैंने कहा कि पिता जी, राणियां से आई हूँ।
पूज्य परम पिता जी ने दोबारा पूछा,
‘बेटा, तू किवें आई सी?’ मैंने जवाब दिया कि पिता जी, दर्शन करने आई हूँ। इस पर अन्तर्यामी सतगुरु जी ने फरमाया, ‘बेटा! तू दर्शन करन तां नहीं आई।’ फिर मैंने दोबारा कहा कि पिता जी! शहर से दवाई लेने आई थी। नर्स नहीं मिली तो मैं डेरे में आ गई। पूजनीय परम पिता जी ने फिर फरमाया, ‘बेटा! तूँ पहलां क्यों नहीं दसेआ कि तैनूँ कोई तकलीफ है? असीं तैनूं किन्नी वार पुच्छेआ है। हुण तूँ साडे कोल होके जाना।’(मिल के जाना)।
फिर मैंने अर्ज की कि पिता जी,
अगर सेवादारों ने मुझे आप के पास न मिलने दिया तो। इस पर परम पिता जी ने फरमाया कि हम खिड़की में बैठे होंगे। परम पिता जी से आज्ञा लेकर मैं सेवा करने लग गई। आश्रम की दीवारों को धोने की सेवा चल रही थी। मैं सेवादार बहनों के साथ पाँच बजे तक सेवा करती रही। सर्दी का मौसम था। सूर्य अस्त होने वाला था। जब मैं पाँच बजे सेवा छोड़कर परम पिता जी से आज्ञा लेने गुफा (तेरावास)के पास गई तो पूज्य परम पिता जी खिड़की में बैठे हुए थे।
सतगुरु जी ने मुझे देखते ही फरमाया,
‘बेटा! कुवेला कर लेआ।’ परम पिता जी ने मुझे इलायची और मिसरी का प्रशाद दिया और हुक्म किया, ‘बेटा! किसे प्रेमी नूँ देख कि उह तैनूँ बस चढ़ा आवे। वहाँ पर प्रेमी सरैण सिंह मंगाले वाला खड़ा था। वह मुझे बस चढ़ाने आया। परन्तु वह बस मेरे सामने से ही निकल गई। फिर मैं दूसरी बस द्वारा घर पहुँची।
कुल मालिक पूजनीय परम पिता जी के वचनानुसार उसी वर्ष मेरे घर पुत्री ने जन्म लिया, फिर पुत्र, फिर पुत्री और फिर पुत्र ने जन्म लिया। यानि सतगरु जी की मेहर से दो पुत्र व दो पुत्रियों ने जन्म लिया। मालिक सतगुरु ने मेरी प्रत्येक इच्छा को पूरा किया। मेरी अब परम पूजनीय हजूर पिता जी के चरणों में अर्ज है कि मेरी ओड़ निभा देना जी।
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