सतगुरु जी ने अपने शिष्यों की मांग पूरी की

सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

सतगुरु जी ने अपने शिष्यों की मांग पूरी की
प्रेमी कबीर जी गांव महमदपुर रोही जिला फतेहाबाद (हरियाणा) से परम संत शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करता है:-

सन 1952 की बात है कि मेरे गांव के कुछ सत्संगी भाइयों ने डेरा सच्चा सौदा सरसा में पहुँच कर बेपरवाह मस्ताना जी के चरण-कमलों में विनती की कि शहनशाह जी हमारे गांव में सत्संग करो जी। बेपरवाह जी ने उनकी विनती मंजूर कर ली। हमारे गांव के सभी लोग बहुत खुश थे, क्योंकि हमारे गांव में वाली दो जहान दयालु सतगुरु जी पधार रहे थे। सत्संग की तैयारी शुरु कर दी गई। उतारे(ठहराव) वाली जगह को खूब सजाया गया।

सारे रास्ते में उतारे वाली जगह तक साफ कपड़े बिछाए गए।

जब बेपरवाह जी आए तो उन्होंने बिछाए हुए कपड़ों को उठवा दिया और फरमाया, ‘हमें आपकी श्रद्धा और प्यार देखकर आप की खुशी मंजूर है।’ फिर आप उतारे वाली जगह पर आकर विराजमान हो गए।

गांव में रात को सत्संग हुआ। सत्संग करने के बाद बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने पूछा, ‘भाई! कोई सवाल करना है तो कर सकते हो। आज तुम्हारे गांव पर मालिक बहुत खुश है। जो भी सवाल करोगे, वो मालिक पूरा करेगा।’ गांव की साध-संगत ने अर्ज की, उन्हें वर्षा की जरूरत है। तीन साल से फसल नहीं हो रही। हरा चारा कहीं भी नहीं है। हम पेड़ काट उनके पत्ते पशुओं को खिला रहे हैं। कई लोग अनाज न होने के कारण भूखे सोते हैं। जीव-जन्तु भूखे मर रहे हैं।

बेपरवाह जी ने वचन फरमाए,

‘कल को सोचेंगे।’ अगले दिन सर्व-सामर्थ सतगुरु जी ने सारी संगत को हुक्म फरमाया, ‘कच्ची र्इंटें निकालो जिससे असीं गोल गुफा बनाएंगे और नाम जपाएंगे।’ शहनशाह जी का हुक्म मिलते ही सारी संगत ने तालाब के किनारे पर कच्ची र्इंटें बनानी शुरू कर दीं। वह जगह अब डेरा सच्चा सौदा अमरपुरा धाम के सामने है। दोपहर के बारह बजे बेपरवाह शहनशाह जी ने वचन फरमाए, ‘सारी संगत लंगर खाओ और दो घंटे आराम करो।’

दो घंटे के बाद जब साध-संगत र्इंटें निकालने लगी तो आसमान में बादल गरजने लगे। बारिश की संभावना बन गई। बेपरवाह मस्ताना जी महाराज बादल से बातें करने लगे, ‘हे काल की ताकत! अगर बरसेगा तो हमारे प्रेमियों की फसल की बुआई होगी अगर न बरसेगा तो हमारी र्इंटे सूख जाएंगी, असीं गुफा बनाएंगे और मालिक का नाम जपाएंगे। बरस गया तो भी तेरा मुँह काला, न बरसा तो भी तेरा मुँह काला। असीं तो दोनों तरफ से जीत में हैं। सच्चे सौदे की तो बल्ले-बल्ले होगी।’पलों में ही जोरों से बारिश होने लगी। र्इंटों का गारा बन कर वापिस जौहड़ में चला गया।

दो घंटे खूब वर्षा हुई।

सारी प्रकृति पर बहार आ गई। कुल जीव-जन्तु मालिक का गुण-गान करने लगे। सारी साध-संगत खुशी में नाचने लगी और अपने सतगुरु का धन-धन करने लगी। बेपरवाह मस्ताना जी ने फरमाया, ‘र्इंटें कार्तिक में निकालेंगे। अब खेती का काम करो। तुम्हारे अन्दर वाले राम ने तुम्हारी अरदास सुनकर तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी है। खूब बारिश हुई है।’ वहां हाजिर साध-संगत जोर-जोर से धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा के नारे लगाने लगी।

संगत ने सारे गांव में खूब नारे लगाए।

सच्चे सौदे की खूब बल्ले बल्ले हुई। बड़ी खुशी मनाई गई।
पूर्ण सन्त-महात्मा खुद-खुदा, कुल मालिक सर्व-सामर्थ होते हैं। वे जो चाहें कर सकते हैं। वे अपने आप को कभी जाहिर नहीं करते। जैसे कि उपरोक्त करिश्में से स्पष्ट है।

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