पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार कृपा
सत्संगियों के अनुभव
प्रेमी प्रगट सिंह पुत्र सचखण्ड वासी नायब सिंह गांव नटार जिला सरसा(हरियाणा)।
अक्तूबर 1991 की बात है। मैं दिल्ली में मार्किट में से सामान खरीद कर रिक्शा पर बस स्टैण्ड की तरफ आ रहा था। मेरे पास एक बैग था जिस में अन्य सामान के अलावा पंद्रह हजार रुपए कैश भी था। मोटर साईकिल पर सवार तीन व्यक्तियों ने मोटर साईकिल आगे करके मेरे रिक्शा को रोक लिया। एक व्यक्ति ने मुझे गलावें से पकड़ लिया और दूसरे ने मुझसे बैग छीनने की कोशिश की। मैंने एक के पांव का ठुड्डा मारा और दूसरे के घूंसा।
वह दोनों पीछे हट गए। अभी मैं संभला ही था कि एक ने मेरी तरफ पिस्तौल सीधा करके ट्राईगर पर उंगली रख ली। दूसरे ने चाकू तान लिया तथा तीसरे ने बैग पकड़ लिया। उस संकट की घड़ी में मुझे अपने सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की याद आई। मैंने अपनी मदद के लिए अपने सतगुरु परम पिता जी को ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ नारा लगा दिया। जब मैंने कुल मालिक का नारा लगाया तो परम पिता जी की मीठी-मीठी आवाज आई, ‘प्रगट सिंह! तकड़ा हो, असीं आए।
’उसी वक्त मुसलमान भेष में एक भाई जिसके हाथ में लोहे की राड पकड़ी हुई थी, मेरी तरफ भागा आ रहा था। उसने आते ही ऊंची आवाज में ललकारा मारा। पिस्तौल वाले ने टÞÑाईगर दबा दिया। परंतु छ: की छ; गोलियां मिस हो गई। मैंने राड पकड़ कर पिस्तौल वाले के सिर में दे मारी। उसके सिर में से खून की धारा बहने लगी। उसके साथी उसको लेकर भाग निकले। मुसलमान भेषधारी उस भाई की बात सुनकर मेरी हैरानी की कोई सीमा न रही। उस भाई ने बताया कि मेरी वर्कशॉप यहां से आधा किलोमीटर दूर है। जीप सवार एक बुजुर्ग बाबा जी ने मुझे आदेश दिया कि हमारा बच्चा प्रगट सिंह पुल पर बदमाशों ने घेर लिया है। हमारी जीप भीड़ के कारण उधर नहीं जा सकती। आप इस तरह करो, राड ले के भागो, उस की रक्षा करो। मैं अपना फर्ज समझता हुआ वहां से भागा आया हूं।
इस तरह घट-घट व पट-पट की जानने वाले मेरे प्यारे दयालु सतगुरु परम पिता जी ने जहां उन बदमाशों से मेरी जान की रक्षा की, वहीं सामान और पैसे भी बचाए। मैं अपने सतगुरु के उपकारों और अहसानों का बदला करोड़ों जन्म ले कर भी नहीं उतार सकता। मैं अपने सतगुरु के चरण-कमलों में माथा टेक कर उनका कोटि-कोटि शुक्राना करता हूं।