रूह-ए-सरताज अज आए धरत ते

रूह-ए-सरताज अज आए धरत ते
परमपिता परमात्मा अपना हर कार्य अपने अवतार संत-महापुरुषों के रूप में करता है। चाहे कोई माने या न माने, भगवान को मिलने का रास्ता जिसने भी बताया, वो भी एक संत ही थे। धर्मों का पता बताया, उन पर हमें चलना सिखाया और जिसने इन्सान को भगवान से मिलाया, वो कोई और नहीं संत ही थे।

अलग-अलग धर्मों की भाषा में उसे गुरु, पीर-फकीर, मुर्शिदे-कामिल कुछ भी कहें, था तो एक इन्सान ही हमारे और आपके जैसा। संतों ने लिखा भी है ‘ब्रहम बोले काया के ओहले’ और आगे भी यही लिखा है:- ‘काया बिन ब्रहम क्या बोले’, अब सार इसका खुद निकाल लीजिए।

जहां तक हमारा सवाल है, हम कह सकते हैं कि पूर्ण संत, गुरु, पीर-फकीर, पूर्ण का अर्थ है कि जो परमपिता परमत्मा में अभेद है, जिसने अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड को अपने अंतर-हृदय में प्रकट कर लिया है, वो सृष्टि पर जब आते हैं, अर्थात् जब-जब भी वो महापुरुष धरत पर आए, वो एक इन्सान ही थे। नाम चाहे कोई भी रखा गया। एक माता की कोख से पैदा हुए पिता के साये में पले-बड़े हुए तथा अन्य भी सारी प्रक्रियाएं उनकी एक आम इन्सान की सी रही है। तो कहने का मतलब यही है कि वो परमपिता परमेश्वर ने दुनिया में भूले-भटकें, अपने धर्म-कर्म व परमेश्वर को भूले हुओं, उसके अस्तित्व से गुमराह हुओं को समझा-बुझा कर सीधे रास्ते पर लाने के लिए हर युग व हर समय-काल में गुरु-संत का चोला धारण किया, इन्सान के रूप में जन्म लिया, अवतार धारण किया।

साधारण भाषा में जन्म लेना और रूहानियत यानि महापुरुषों के प्रति श्रद्धा नमित अवतार लेना कहा जाता है। इस पवित्र रूहानी कड़ी के अंतर्गत परम पूजनीय हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का विस्तारपूर्वक वर्णन डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में मिलता है। आप जी डेरा सच्चा सौदा के बतौर तीसरे गुरु डा. एमएसजी के नाम से डेरा श्रद्धालुओं के दिलों में बसते हैं।

पवित्र जीवन झलक:-

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां राजस्थान के जिला श्री गंगानगर के गांव श्री गुरुसर मोडिया तहसील सूरतगढ़ के रहने वाले हैं। आप जी के पूज्य पिता नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी बहुत बड़े लैण्डलॉर्ड जमीन-जायदाद के मालिक और गांव के परम आदरणीय नम्बरदार थे। धन्य-धन्य अति पूजनीय माता नसीब कौर जी इन्सां जिनकी पवित्र कोख से सतगुरु जी ने अवतार धारण किया। और वो वर्ष 1967 के 15 अगस्त का अति पावन दिवस सुनहरी अक्षरों में इतिहास में अंकित है। जिस दिन परमपिता परमेश्वर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में बंदी छोड़ बन कर आए, स्वयं परमपिता परमेश्वर ने मानवता व सृष्टि-उद्धार के लिए अवतार धारण किया। पूज्य गुरु जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान हैं।

आप जी की महानता को सिद्ध करती अनेकों दिलचस्प घटनाएं हैं, जो आपजी के जन्म के साथ जुड़ी हुई हैं।
संत त्रिवैणी दास जी का गांव में बहुत ज्यादा मान-सम्मान था और पूज्य बापू जी का भी उनके प्रति बहुत ज्यादा स्नेह, बहुत ज्यादा प्यार व सहचार था। लगभग अठारह वर्ष विवाह को बीत गए, परन्तु कोई संतान नहीं हुई थी। कभी-कभी बहुत ज्यादा गमगीन अवस्था में पूज्य बापू जी अपने अंदर की इस पीड़ा को त्रिवैणी दास जी के सामने बता दिया करते कि इतने बड़े खानदान का एक वारिस तो होना चाहिए। संत जी को परमपिता परमेश्वर की भक्ति के बल पर अपने अंतरहृदय में बहुत ज्ञान था। वे पूज्य बापू जी की आंतरिक स्थिति से भली-भांति परिचित थे।

वे मुस्कुराते हुए पूज्य बापू जी को भरपूर हौंसला देते कि नम्बरदार जी, आप धीरज रखिए। आपजी के घर कोई ऐसा-वैसा बच्चा नहीं, साक्षात् ईश्वरीय स्वरूप जन्म लेगा। दिल छोटा मत कीजिए, वो जरूर आएगा।

और इस प्रकार प्रभु की अपार कृपा से पूज्य गुरु जी ने अपने पूज्य माता-पिता जी के यहां 18 वर्ष बाद अवतार धारण किया। पूज्य गुरु जी के अवतार धारण करने पर त्रिवैणी दास जी ने पूज्य बापू जी को ढेर सारी बधाईयां दी और यह भी बताया (अपने अंदर के रूहानी अनुभव के आधार पर) कि परमपिता परमेश्वर ने आप जी के यहां स्वयं अवतार धारण किया है और यह भी बताया कि वे आप जी के यहां मात्र 23 वर्ष तक ही रहेंगे। उसके बाद अपने उदद्ेश्य की पूर्ति (ईश्वरीय कार्य, यानि जीव व समाज उद्धार) के लिए चले जाएंगे उनके पास, जिन्होंने इन्हें आपके यहां आपका लाडला बना कर भेजा है। आपजी पूज्य माता-पिता जी के बहुत ही लाडले हैं, विशेषकर पूज्य बापू जी तो आप जी को अपने से एक पल भी दूर नहीं करना चाहते थे।

अद्भुत निशानियां:-

आपजी के नूरी बचपन की अनेक अद्भुत घटनाएं वर्णनीय हैं, जिससे आपजी को ईश्वरीय अवतार कहने या लिखने में जरा भी संशय नहीं है।

आयु मात्र चार वर्ष, पूज्य बापू जी आपजी को अपने कंधों पर बैठाकर खेत में जा रहे थे। अचानक आपजी ने वहीं पास ही एक खेत की तरफ उंगली का इशारा करके पूज्य बापू जी से कहा कि इधर अपने खलिहान थे! सुनकर पूज्य बापू जी भी एकदम आश्चर्यचकित थे। सांझे खलिहान तो वाकई वहीं हुआ करते थे, लेकिन वो बहुत अरसा पहले की बात है, यानि पूज्य गुरु जी के जन्म से भी कई वर्ष पहले की। फिर तुरंत संत त्रिवैणी दास जी के वचन भी याद आ गए कि आपके घर स्वयं भगवान स्वरूप आए हैं।

पूज्य बापू जी अपनी कुछ जमीन हर वर्ष ठेके पर दिया करते थे। इस बार जब वही ठेकेदार पूज्य बापू जी से अगले साल के लिए ठेके की बात कर रहे थे, तो पूज्य पिता जी (उसी बाल्यावस्था में) ने अपने पूज्य बापू जी से उस जमीन पर खुद काश्त करने को कहा। इस पर ठेकेदार भाईयों ने पूज्य बापू जी से आग्रह किया कि आप जमीन नहीं देंगे तो हम खाएंगे क्या? हम तो भूखे मर जाएंगे! तो पूज्य गुरु जी ने अपनी दूसरी साईड वाली जमीन का ठेका उन्हें देने को पूज्य बापू जी से कहा और पूज्य बापू जी ने स्वयं भी उन्हें कहा कि ‘काका ठीक कहता है।

’ वास्तव में पूज्य बापू जी ने अपने अनुभव में अपने लाडले के अंदर ईश्वरीय झलक को महसूस कर लिया था और इसलिए अपने लाडले की हर बात पर अपनी सहमति जताया करते थे। इस हकीकत का राज भी संत त्रिवेणी दास जी ने उन्हें शुरु में ही बता दिया था। उस वर्ष पूज्य बापू जी ने उस खेत में चने की बिजाई करवाई। कुदरत का भाणा, उस वर्ष बारिश अच्छी हुई और उस बरानी जमीन पर उस वर्ष चने की भरपूर फसल हुई। ईश्वरीय माया को प्रत्यक्ष में निहार कर पूज्य बापू जी का विश्वास अपने लाडले में और भी दृढ़ हो गया।

बचपन की एक घटना और है। यहां जो कुछ भी वर्णन किया जा रहा है ये किसी किस्से या कहानियों का हिस्सा नहीं है, बल्कि सौ प्रतिशत वास्तविक्ता, सच्ची घटनाए हैं और श्री गुरुसर मोडिया में हर समकालीय शख्स इन घटनाओं की ठोक कर हामी भरता है। उन्हीं दिनों गांव में बरसाती पानी को एक बड़े आकार की पक्की डिग्गी में संग्रहित करने की चर्चा चली। बुजुर्गांे का सुझाव सराहनीय था। सभी ने सहमति जताई। अपने इस उद्देश्य की स्वीकृति लेने या यूं कह लीजिए कि संत जी के वचन करवाने के लिए, ताकि इतना बड़ा कार्य निर्विघ्न सफलतापूर्वक पूरा हो, गांव के मुखिया लोग संत त्रिवैणी दास जी से मिले। गांव के समस्त लोगों का संत जी के प्रति दृढ़ विश्वास था, क्योंकि वह जो कुछ भी कहते या करते, सारे गांव के ही हित में होता था।

संत जी भी उनके फैसले से बहुत खुश थे। उन्होंने डिग्गी की खुदाई करने का जहां मुहूर्त (तिथि, वार, समय) बताया, वहीं ये भी कहा कि डिग्गी खुदाई कार्य का शुभारम्भ नम्बरदार साहब के बेटे (पूज्य गुरु जी) से पहला टक लगवा कर करेंगे। वैसे तो सबकी सौ प्रतिशत सहमति थी, सत्वचन कहा, लेकिन हो सकता है 2-4 व्यक्तियों ने शायद अपने मते अनुसार कहा हो कि वह तो अभी बहुत नन्हां बालक है, कसी-फावड़ा कैसे उठा पाएंगे! लेकिन संत जी ने जोर देकर अपने वचनों को दृढ़ता से कहा कि पहला टक तो आपां नम्बरदार के बेटे से ही लगवांएगे।

पूज्य संत जी के मार्गदर्शन में सारी कार्यवाही सफलता पूर्वक पूर्ण हुई। गांव में खुशी का माहौल था। प्रचलित प्रथा अनुसार सारे गांववासियों द्वारा सांझे तौर पर मीठे चावल आदि का यज्ञ किया गया, मीठे चावल सारे गांव में बांटे, यानि खिलाए गए। संत जी ने यह भी वचन गांव वालों को किए कि इस डिग्गी का पानी कभी खत्म नहीं होगा, चाहे कितना भी उपयोग होता रहे, क्योंकि इसका मुहूर्त अपने एक ऐसे महापुरुष, रब्बी शख्सियत से करवाया है, जिनकी महान हस्ती का पता समय आने पर सबको मालूम पड़ेगा।

ये हैं पूज्य गुरु जी के नूरी बचपन की कुछेक सच्चाईयां। और भी अनेक ऐसी अद्भुत व दिलचस्प घटनाएं वर्णनीय हैं, जो आप श्री गुरुसर मोडिया के परम आदरणीय गांववासियों से मिलकर जान सकते हैं।

कर्मठता की मिसाल:

अब थोड़ा पूज्य गुरु जी की कर्मठता पर भी नजरसानी कीजिए। यह बात तो हम पहले ही बता चुके हैं कि पूज्य गुरु जी का जन्म बहुत ही बड़े लैडन्लॉर्ड परिवार में हुआ है। आप जी ने 7-8 वर्ष की आयु में ही पूज्य बापू जी के इतने बड़े जमीदारा कार्य को पूर्ण तौर पर ही संभाल लिया था। राजस्थान के इस एरिया में जब से नहरों का उद्गम हुआ, नहरें आई, तो आप जी ने अपने सख्त परिश्रम से, जहां पहले करीब 20 एकड़ में ही पानी लगता था, अब पूरी की पूरी अपनी सौ एकड़ से भी ज्यादा जमीन में पानी लगता कर दिया है। ट्रैक्टर भी आप जी ने तभी चलाना शुरू कर दिया था। चाहे ड्राइवर सीट पर बैठे आप जी के पांव बे्रक, कलच पर नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन आपजी ने अपनी जमीन पर जितनी सख्त मेहनत की, इस वास्तविकता को सभी गांववासी भी अच्छे से जानते हैं और यह भी सभी जानते हैं कि जब से पूज्य गुरु जी ने कृषि-कार्यांे को अपने हाथ में लिया था, फसल भी दोगुनी-चौगुनी और आमदन दोगुनी-चौगुनी होती है।

क्योंकि खेतीबाड़ी का सारा कार्य पूज्य गुरु जी स्वयं किया करते, भले ही पूज्य बापू जी के कितने ही सीरी, नौकर आदि भी थे। इसी तरह यहां दरबार में भी पूज्य गुरु जी हर तरह का कृषि-कार्य स्वयं करते हैं। आप जी के सख्त परिश्रम व प्रेरणा से ही डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम की जमीनों पर कौन-सा ऐसा फल, सब्जियां या अन्य फसलें हैं, जो पूज्य गुरु जी ने यहां के रेत के टीलों में न उगाई हो। सेब जैसे फल, और अखरोट बादाम जैसे मेवे (ड्राईफ्रूट) भी पूज्य गुरु जी ने खुद की मेहनत से यहां की जमीनों से लिए हैं।

एक ही समय में, एक ही जगह से तरह-तरह के फल, तेरह-तेरह सब्जियों की पैदावार लेना किसी अचम्भे से कम नहीं है। इस प्रकार पूज्य गुरु जी स्वयं कमर्ठता की मिसाल हैं।

जैसे-जैसे गुरु जी उम्र के पड़ाव में आगे बढ़ते गए, मानव व समाज हितैषी कार्यों का दायरा भी विशाल से और विशाल होता गया। विशेषकर डेरा सच्चा सौदा में आने के बाद। ईश्वरीय-मर्यादा के अनुरूप अपने सच्चे मुर्शिदे-कामिल परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-गुरुमंत्र लेकर, जैसा कि जाहिर है, जैसे आप जी ने अपने प्यारे मुर्शिद को परमपिता परमात्मा के रूप में पाया, उसी तरह पूज्य परमपिता जी ने नाम-शब्द, गुरुमंत्र के रूप में अपना ईलाही स्वरूप प्रदान कर आपजी को अपने भावी जानाशीन के रूप में पाया और जब समय आया 23 सितम्बर 1990 का, सच्चे दाता रहबर परमपिता जी ने इस वास्तविकता को सरेआम पूरी दुनिया के सामने जाहिर कर दिया और कोई शंका-भ्रम भी किसी के अंदर नहीं रहने दिया।

कानूनी प्रक्रिया (वसीयत) कई दिन पहले ही पूज्य परमपिता जी ने तैयार करवा ली थी। गुरगद्दी बख्शिश का दिन, तारीख, समय आदि निश्चित कर लिया था। अपनी वसीयत पूज्य परमपिता जी ने जिम्मेवार सेवादार जिनकी भी ड्यूटी थी, उन्हें विशेष तौर पर यह लिखवाने का सख्त आदेश फरमाया कि ‘आज से ही’ डेरा सच्चा सौदा की जमीन-जायदाद, साध-संगत की सेवा-सम्भाल आदि हर जिम्मेवारी और दोबारा फिर जोर देकर फरमाया कि ‘आज से ही इनका (पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का) यह लिखवाया।’ जब स्वयं पूज्य बेपरवाह जी खुद अपनी वसीयत में ये सब लिखवा रहे हैं कि आज से ही डेरा और डेरा का सबकुछ इनका है, तो कोई किन्तु-परन्तु का सवाल ही नहीं हो सकता।
गुरगद्दी पर विराजमान होने के बाद तो मानवता व समाज भलाई कार्यों की मानो यहां बाढ ही आ गई हो।

एक तरफ जहां कुल मालिक परमपिता परमात्मा का रूहानी कारवां दिन रात बढ़ता चला गया, तो वही दूसरी तरह डेरा सच्चा सौदा साध-संगत के उत्साह पूर्वक व पूर्ण सहयोग से विश्व स्तरीय भलाई कार्य करके बच्चे-बच्चे के मन में घर कर गया। दुनिया का कौन-सा शख्स है, जो आज पूज्य गुरु जी द्वारा संचालित 134 मानवता भलाई कार्याे से वाकिफ न हो।

ऐसे बनते गए विश्व रिकार्ड

(प्रेरणा पूज्य गुरु जी की, और हौसला, सहयोग, उत्साह साध-संगत का।):

रक्त्दान करने का आह्वान हुआ, तो तीन विश्व रिकार्ड गिनिज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्ड देखते ही देखते बन गए। पौधारोपण की बात हुई तो चार विश्वकीर्तिमान पौधा रोपण के क्षेत्र में ही बन गए।

रक्तदान में तीन विश्व रिकॉर्ड, जो इस प्रकार हैं। पहला- 7 दिसम्बर 2003 को 15432 यूनिट। दूसरा- 10 अक्तूबर 2004 को 17921 यूनिट। और तीसरा- 8अगस्त 2010 को 43732 यूनिट।

पौधारोपण के क्षेत्र में चार विश्व रिकॉर्ड इस प्रकार हैं। पहला- 15 अगस्त 2009 को 1 घंटे में 938007 पौधे लगाए। दूसरा- 15 अगस्त 2009 को पूरे एक दिन में 8 घंटे में 6873451 पौधे लगाए।

तीसरा- 15 अगस्त 2011 में 1 घंटे में 1945535 पौधे और चौथा- 15 अगस्त 2012 को 1 घंटे में 2039747 पौधे लगाए।

‘हो पृथ्वी साफ, मिटे रोग अभिशाप’ के स्लोगन के तहत सफाई महाअभियान 21-22 सितम्बर 2011 को देश की राजधानी दिल्ली से आरंभ हुए, तो पवित्र तीर्थ स्थान ऋषिकेश व हरिद्वार में पवित्र गंगा जी, तीर्थ धाम श्री जगननाथ पुरी (ओडिशा), अजमेर शरीफ सहित दर्जनों नगरों व महानगरों में पूज्य गुरु जी ने बड़े पैमाने पर सफाई महाअभियान चलाए।

शाह सतनाम जी ग्रीन एस वेल्फेयर फोर्स विंग के सेवादारों सहित लाखों की संख्या में अन्य सेवादारों ने पहुंच कर शहर की हर जगह, चप्पा-चप्पा, यहां तक कि शहर के वर्षों से बंद पड़े सीवरेजों में सफाई करके चकाचक कर दिया।

जोकि दुनियाभर में आज भी याद किये जाते हैं। बल्कि विदेशों में कई हिस्सों में साध-संगत द्वारा आज भी सफाई महाअभियान, पौधारोपण, रक्तदान, आपदा पीड़ितों की मदद जैसे मानवता भलाई के कार्य किए जा रहे हैं। रक्तदान करने की जहां भी कहीं जरूरत पड़ती है, डेरा सच्चा सौदा के श्रद्धालु नि:सकोंच वहीं रक्तदान करने पहुंच जाते हैं। इसीलिए तो पूज्य गुरु जी ने डेरा सच्चा सौदा के रक्तदाताओं को ‘चलते-फिरते ब्लड पंप’ कहकर नवाजा है।

वहीं बात करें समाजोद्दार की, तो किसी के जहन में भी वेश्या और किन्नरोद्दार का कभी ख्याल तक नहीं आया होगा। पूज्य गुरु जी का एक और महान परोपकार है कि कई वेश्याओं को गंदगी भरी जिंदगी से निकाल कर पूज्य गुरु जी ने उन्हें ‘शुभदेवी’ के रूप में अच्छे खानदानों में शादी-विवाह करके उन्हें घर व वर दिया है। और किन्नर भाईचारे को ‘सुखदुआ समाज’ के रूप में पूज्य गुरु जी ने ही देश की सर्वाेच्च अदालत से थर्ड जैंडर के नाम से मान्यता दिलाई है और उन्हें भी देश के नागरिकों की सभी सुविधाएं मुहैया करवाई है।

और भी कई भलाई कार्य (134 कार्य) हैं, जिनका विस्तार से वर्णन करेंगे, तो जुबान, कलम भी पूरी नहीं आ सकेगी। एवं यह भी एक अन्य अति महत्वपूर्ण उपराला (कोशिश) कि अपने पवित्र अवतार दिवस 15 अगस्त को हर वर्ष देश की आजादी की वर्षगांठ के शुभ अवसर पर पूज्य गुरु जी ने पर्यावरण संरक्षण हेतू ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करने का आह्वान कर केवल अपने देश भारत को ही नहीं, बल्कि विदेशी धरती को भी हरियाली की सौगात से महकाने की कोशिश में आज भी साध-संगत लगी हुई है। इस प्रकार पूज्य गुरु के इन जनहित परोपकारों को कभी कोई भुला नहीं सकेगा।

पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र अवतार दिवस एवं स्वतंत्रता दिवस की सारी साध-संगत को लख-लख बधाई।

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