सतगुरु जी का अपार रहमोकरम -सम्पादकीय
सतगुरु अपने शिष्य की दोनों जहान में रक्षा करता है। जब तक शिष्य मातलोक में रहता है, यहां भी उसकी अपने रहमोकरम से पल-पल संभाल करता है और जब वह (शिष्य) इस संसार को छोड़कर अगले जहान में जाता है, वहां पर भी स्वयं उसके साथ रहकर काल-कर्मों के लेखे-पतों से उसे बचाता है। सतगुरु के अपने शिष्य व मानवता के प्रति उपकारों का वर्णन हो ही नहीं सकता।
सभी समुद्रों की स्याही बना ली जाए, सारी वनस्पति की कलमें और सारी धरतियों को कागज मानकर हवा की तेजगति से लिखते जाएं, तो भी सच्चे सतगुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते। सतगुरु जी के परोपकारों की गणना हो ही नहीं सकती। जो सतगुरु जान ही बख्श दे, जो सतगुरु मुर्दों को जिंदा कर दे, जो सतगुरु चौरासी के बंदीखाने में बंदी रूहों को अपने रहमोकरम से मुक्त कर दे, जन्म-मरण के चक्कर से निकालकर निजघर पहुंचा दे इससे बड़ा कोई उपकार हो ही नहीं सकता। ऐसे परोपकारी सतगुरु जी के परोपकारों का कोई क्या और कैसे वर्णन कर सकता है!
किया ही नहीं जा सकता।बेशक दुनिया में अनेक परोपकारी इन्सान हैं और वो अपनी-अपनी सामर्थ्य व बुद्धि के अनुसार परोपकार करते भी हैं। जैसे एक कैदखाने में बंद कैदियों को कोई गर्मी के मौसम में ठंडा शर्बत पिला देता है, कैदियों की प्यास कुछ समय के लिए मिट जाती है और वे ठंडक महसूस करते हैं। कोई परोपकारी सर्दी के मौसम में अच्छे गर्म कपड़े पहना देता है, कुछ समय के लिए ठंड से कुछ हद तक उनका बचाव हो जाता है, कोई और आकर उन्हें अच्छे-अच्छे पकवान खिला देता है, जिससे कैदियों की कुछ समय के लिए भूख से संतुष्टि मिल जाती है।
परंतु इतने परोपकारों के होते हुए भी कैदी तो कैदखाने में ही रहे। एक और परोपकारी सज्जन आता है, उसके पास कैदखाने की चाबी है और वह जेलखाने का दरवाजा खोलकर सभी को आजाद कर देता है। परोपकार तो पहले परोपकारी सज्जनों ने भी किए, परंतु इतने परोपकारों के होते हुए भी कैदी कैदखाने में ही बंद रहे। सबसे महान परोपकार पिछली हस्ती ने किया जिसने सभी को आजाद कर अपने-अपने घर पहुंचा दिया। सतगुरु के परोपकार परे से परे हैं, जो अधिकारी रूहों को चौरासी लाख जन्म-मरण की कैद से आजाद करके निजधाम, सचखंड पहुंचा देता है।
बच्चा बड़ा हो जाता है तो मां-बाप काफी हद तक बेफिक्र हो जाते हैं, परंतु सतगुरु अपने शिष्य की अंगुली हर पल थामे रखता है, क्योंकि सतगुरु के लिए जीव हमेशा एक नन्हा बच्चा है। सतगुरु पीरो मुर्शिदे-कामिल अपने शिष्य को हर पल गाइड करता, समझाता व संवारता रहता है।
रूहानियत के सच्चे रहबर पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने श्री जलालआणा साहिब के परम आदरणीय पिता सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू व पूजनीय माता आस कौर जी के घर 25 जनवरी 1919 को पावन अवतार धारण किया। जब समय आया, यानि 28 फरवरी 1960 को पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने इस ईलाही जोत को अपने पवित्र कर-कमलों से डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान करके अपने सभी अधिकार व डेरा सच्चा सौदा की तमाम जिम्मेदारियां भी उसी दिन से ही आप जी को सौंप दी।
आप जी ने 30-31 वर्षों के दौरान लाखों लोगों की मांस-अण्डा व नशे आदि बुराइयां छुड़वाकर उनके उजड़े जीवन व उनके घरों को आबाद कर दिया। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज दाता-रहबर ने जीव-समाज पर जो अपना परोपकार किया है, इसकी मिसाल जग-जाहिर है। सतगुरु-प्यारे का जीवों के प्रति परोपकार डेरा सच्चा सौदा में जर्रे-जर्रे में देखा जा सकता है। सतगुरु-प्यारे के पूजनीय मौजूदा स्वरूप गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन दिशा-निर्देशन में डेरा सच्चा सौदा के आज देश-विदेश में करोड़ों (साढे 6 करोड़ से ज्यादा) अनुयायी अपने सतगुरु-प्यारे के अपार रहमोकरम को अनुभव कर रहे हैं।
आपजी ने 23 सितंबर 1990 को पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को डेरा सच्चा सौदा में गुरगद्दी पर विराजमान किया। पूजनीय परमपिता जी का साध-संगत पर यह बहुत ही महान परोपकार है। पूजनीय सतगुरु जी के ऐसे अनगिनत परोपकार हैं, जिनका बदला साध-संगत कभी चुका नहीं सकती। पूज्य गुरु जी के पावन निर्देशन पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का यह पाक-पवित्र गुरगद्दीनशीनी दिवस हर साल साध-संगत के लिए खुशियों की सौगात लेकर आता है। पूजनीय परमपिता जी के इस पावन गुरगद्दीनशीनी दिवस (28 फरवरी) को देश-विदेश की साध-संगत हर साल पावन एमएसजी महा रहमोकरम दिवस के रूप में डेरा सच्चा सौदा में पावन भंडारे के रूप में मनाती है। आज के इस पावन दिवस की ढेरों मुबारकें हों जी।