‘बेटा! घबरौणा नहीं, मालिक तेरियां हवेलियां पा देवेगा…’ – सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी जगराज सिंह इन्सां टेलर मास्टर पुत्र श्री मैंगल सिंह गुरुनानक पुरा बठिंडा से अपने पर हुई सतगुरु जी की रहमत का वर्णन करता है::-
करीब 1968 की बात है। उस समय मैं व मेरा भाई एक कपड़े की दुकान में कपड़ा बेचने व कपड़े सिलने का सांझा काम करते थे। हमारा कपड़े की दुकान का व सिलाई का बहुत बढ़िया काम चलता था। हम दोनों भाईयों का किसी बात से आपस में झगड़ा हो गया और हम दोनों ने अपनी दुकानें अलग-अलग कर ली। मेरा कपड़े का व सिलाई का काम बिल्कुल ठप्प हो गया। कई दिनों तक मेरी दुकान पर कोई ग्राहक न आया तो मैं उदास हो गया।
एक दिन शाम को जब मैं दुकान से घर आया तो मुझे उदास देखकर मेरी पत्नी ने मुझे पूछा कि दुकान पर काम नहीं आया? तो मैं रोने लग गया। उस समय मेरी सास मिलने के लिए हमारे घर आई हुई थी। तो उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा कि रोता क्यों है? तेरा गुरु पूरा है। उनके पास जाकर अपने मसले की अर्ज कर। वह तुझे इसका हल बताएंगे।
उनकी बात मानकर मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुंच गया। जब मैं सरसा आश्रम में दाखिल हुआ तो आगे से मेरे परम पूजनीय सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज तेरा वास से बाहर संगत को दर्शन देने के लिए आ रहे थे। मैंने अपने प्यारे सतगुरु जी को सजदा किया व ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’, नारा लगाया। पूजनीय परम पिता जी ने मुझे अशीर्वाद दिया और पूछा, जगराज सिंह, कैसे आए थे? आगे से मुझसे बोला नहीं गया तथा मैं फूट-फूट कर रोने लगा। कुछ समय के उपरान्त मैंने खड़ा होकर विनती की, ‘पिता जी! मेरा सिलाई का काम ठप्प हो गया है।
बताओ मैं अब क्या करूं?’ तो पूजनीय परम पिता जी हंस पड़े तथा अपने कर-कमलों को घुमा कर फरमाया, ‘बेटा! घबरौणा नहीं, हत्थ हिलाई जाया कर। मालिक तेरियां हवेलियां पा देवेगा।’
मैंने अगले दिन बठिंडा पहुंच कर दुकान खोल ली। मेरे मन ने अवगुण उठाया कि पूर्ण संत-सतगुरु आप तो बेपरवाह होते ही हैं व हमें भी बेपरवाह ही समझते हैं। पिता जी, भला हाथ किस के साथ हिलाऊं, जब सिलाई का काम ही नहीं मिल रहा! बैठे-बैठे मुझे सतगुरु ने ख्याल दिया कि मेरे पास सात मीटर खद्दर का थान पड़ा था। उसके मैंने सात कच्छे बना दिए। मैंने कहा, देखो सतगुरु! मैंने तो अपना हाथ हिला दिया है, आगे तू जाणे तेरा काम जाणे।
में इतना कह कर दुकान में लेट गया। अगले ही पल गऊओं को चराने वाले राजस्थानी ग्वाले मेरे पास दुकान पर पर आ गए। वह मुझे कहने लगे, सरदार जी! कोई सीले-सलाए कछड़ो सै? पहले तो मुझे उनकी बोली की समझ नहीं आई। फिर मुझे पता चला कि ये कच्छे मांगते हैं। मैंने उनको वह सिले हुए कच्छे निकाल कर पकड़ा दिए। तो वह सात के सात कच्छे ले गए और मुंह मांगे जायज पैसे दे गए। फिर मैं कच्छे सिल देता तथा वह बिक जाते। तो फिर मेरा काम चल पड़ा और इतना काम चला कि सतगुरु की रहमत से मुझे कोई कमी न रही।
सन् 1978 में जब मेरे तीसरा लड़का हुआ तो हम परम पिता जी को बधाई देने के लिए डेरा सच्चा सौदा मलोट सत्संग पर जा रहे थे। जब मलोट में रेल गाड़ी से उतर कर डेरे की तरफ जाने लगे तो मेरी पत्नी मुझे कहने लगी कि आम ले लो, रोटी के साथ खा लेंगे। तो मैंने हंस कर कहा कि आम तो सतगुरु जी दे देंगे। कहीं पिता जी अंदर तेरावास में न चले जाएं, तुम जल्दी-जल्दी आ जाओ। जब हम डेरे में पहुंचे तो परम पिता जी मजलिस की समाप्ति करके तेरावास की सीढियां चढ़ने ही लगे थे। हमने धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा नारा ऊंची आवाज में लगाया, तो परम पिता जी रुक गए। पिता जी ने हमें अशीर्वाद दिया और वचन फरमाया, ‘ फेर काका हो गया भाई?’ मैंने उत्तर दिया, हां जी।
लछमन दास सेवादार हमें प्रशाद देने के लिए शकरपारे, पकौड़ियां तथा लड्डुओं का बुक भर लाया तो अंतर्यामी सतगुरु परम पिता जी ने लछमन दास सेवादार की तरफ इशारा करते हुए फरमाया, ‘इह रख आ ते अम्बां दा बुक भर के लैआ, इन्हां ने रोटी नाल खाणे हन।’ सतगुरु जी के वचन सुनते ही मुझे वैराग्य आ गया तथा मैं रोने लगा। मैंने अपने मन में सोचा कि पिता जी, आप तो हर समय मेरे साथ ही हो। मैं आप जी का बहुत ही शुक्रगुजार हूं।
सतगुरु जी की मेहर तथा उनके वचनानुसार मेरी तीन हवेलियां बन गई। मेरे तीन लड़के हैं, उनको एक-एक आ गई। अब मेरी परम पिता जी के स्वरूप हजूर पिता जी के चरणों में यही बिनती है कि मेरे सारे परिवार को सेवा, सुमिरन तथा परमार्थ का बल बख्शो जी। सारे परिवार की आप जी के साथ ओड़ निभ जाए जी।