परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज की अपार रहमत
बेटा। तूं उहनां अफसरां नूं मिलके आऊणा सी। Son.. You are an unhappy officer..
उहनां तैनूं इहों आखणा सी कि तू अपने आप नूं सलैक्ट समझीं।
बहन हाकमा देवी इन्सां पत्नी श्री सतपाल अहूजा मकान न. 183 विशाल नगर पक्खोवाल रोड लुधियाना, जिला लुधियाना(पंजाब) अपने सतगुरु की रहमत का बखान कुछ इस तरह करती हैं
सन् 1974 की बात है उस समय मैं अपने माता-पिता के घर श्री मुक्तसर साहिब में रहती थी। मैंने दसवीं पास करके नौकरी के लिए अपना नाम रोजगार दफ्तर में दर्ज करवाया हुआ था। उस समय भूमि सुरक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरियाँ निकली। मुझे रोजगार दफ्तर से इन्ट्रव्यूह के लिए कार्ड प्राप्त हुआ। उस समय चौदह सौ बेरोजगारों को नौकरी के लिए फरीदकोट बुलाया गया। लिखित टैस्ट लेने से पहले उन्होंने दसवीं पास का सर्टीफिकेट देखा और सभी को बोल दिया कि जिसके पास दसवीं पास का सर्टीफिकेट नहीं है, उसका टैस्ट नहीं लिया जाएगा।
यह बात सुन कर मेरे होश उड़ गए, क्योंकि मैं दसवीं पास का सर्टीफिकेट अपने घर श्री मुक्तसर साहिब ही छोड़ गई थी। जिस अफसर ने इंटरव्यूह लेनी थी, उसने कहा कि बीबा तेरे पास सर्टीफिकेट नहीं है, इसलिए तेरी इंटरव्यूह नहीं ली जा सकती। मैं बहुत परेशान हो गई। इस परेशानी में मुझे अपने सतगुरू परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की याद आई। मैंने मन ही मन में ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया और परम पिता जी के चरणों का ध्यान धर कर अर्ज की कि पिता जी अगर मेरी इंटरव्यूह नहीं होती तो किसी की भी न हो।
उसी समय वह अफसर अपनी जगह से उठकर बाहर चला गया। बाद में पता चला कि वह अफसर किसी काम के लिए चला गया है और वापिस आकर इंटरव्यूह लेगा। उस समय मुझे मेरे सतगुरु परमपिता जी ने ख्याल दिया कि तू अपने सर्टीफिकेट अपने घर से मंगवा ले। मेरा भाई तो मेरे साथ था, मैंने उसे अपने घर से सर्टीफिकेट लाने के लिए भेज दिया, जो दो-अढाई घण्टों के बाद सर्टीफिकेट ले आया। जब मेरे सर्टीफिकेट आ गए तो उसके बाद वह अफसर भी आ गया। करीब तीन घण्टे तक इंटरव्यूह का कार्य रूका रहा।
मैंने अपने सतगुरु का लाख-लाख धन्यवाद किया जिसने मेरी फरियाद सुन ली। पहले मेरा लिखित टैस्ट हुआ और उसके बाद जब वह अफसर इंटरव्यूह लेने लगा तो उसने मुझे कहा कि बीबा, मुझे मिल कर जाना। सुपरीडैण्ट ने भी कहा कि बीबा, मिल कर जाना है। फिर स्टैनों ने भी कहा कि अफसर को मिल कर जाना। मैंने अपने मन में सोचा कि ये तो निगुरे हैं, मुझे तो मेरे सतगुरु परमपिता जी ने पास करना है। मैं अपने सतगुरु पर डोरी छोड़ कर उस अफसर को बिना मिले ही अपने घर चली गई।
उसी रात को सपने में मुझे परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन हुए। परमपिता जी ने फरमाया, ‘बेटा तूँ उहना अफ्सरां नूँ मिल के आउणा सी। उहना तैनूँ इहो आखणा सी कि तूँ आपणे आप नूँ नौकरी विच सलैक्ट समझीं, ते तूँ केहड़ा स्टेशन चाहुणी हैं।’ मैंने कहा कि पिता जी, आप लुधियाने बहुत जाते हो। मुझे लुधियाना स्टेशन दिला दो। पिता जी आप ने ही पास करना है।
एक सप्ताह के उपरान्त नौकरी के लिए सलैक्ट ग्यारह उम्मीदवारों की लिस्ट आ गई, जिनमें मेरा नाम सबसे ऊपर था और सामने स्टेशन लुधियाना लिखा हुआ था। पाँच दिसम्बर को मैंने लुधियाना में नौकरी ज्वाईन कर ली। मैं अपने सतगुरु के उपकारों का बदला सारी जिन्दगी नहीं चुका सकती। बस! धन्य-धन्य ही कह सकती हूँ। मेरी परमपिता जी के स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी के चरणों में यही विनती है कि मेरी ओड़ निभा देना जी।
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