बड़ा किया कसूर, प्रभु समझा है दूर, मन माया ने तुझे किया मजबूर।
मन देता सब को धोखा, ना बाहर किसी ने देखा।
वो सब के अंदर बैठा नाम ध्याले, वो सब के अंदर बैठा दर्शन पा ले॥
रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा
मालिक की प्यारी साध-संगत जी, सत्संग पंडाल में, रूहानी मजलिस में जो आप चलकर आए हैं और जो साध-संगत अभी भी आ रही है, आप सबका रूहानी मजलिस में, सत्संग में पधारने का तहदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हंै, जी आया नूं, खुशामदीद कहते हंै, मोस्ट वैल्कम। यह जैसा कि आपको पता है कि यह सर्वधर्म संगम है, सभी धर्मो का सांझा सत्संग इन्सानियत, मानवता के ऊपर सत्संग है।
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आज सत्संग के लिए जो भजन है जी, वो भजन है:-
बड़ा किया कसूर, प्रभु समझा है दूर,
मन माया ने तुझे किया मजबूर।
मन देता सब को धोखा, ना बाहर किसी ने देखा।
वो सब के अंदर बैठा नाम ध्याले,
वो सब के अंदर बैठा दर्शन पा ले॥
इन्सान प्रभु को दूर-दराज, उजाड़ोंं में, पहाड़ों में, रुपये से, चढ़ावे से, दिखावे से ढूंढता है, जबकि वो मालिक, ओम, हरि, अल्लाह, वाहिगुरु, गॉड जिसके लाखों नाम हंै, वो एक है वो मालिक कण-कण में, जर्रे-जर्रे में मौजूद है, कोई जगह उससे खाली नहीं है। तो जब मालिक कण-कण में है, जर्रे-जर्रे में है इसका मतलब मालिक इन्सान के अंदर भी है। क्योंकि ये शरीर उसी जर्रे में आ गया। तो अगर मालिक अंदर है तो बाहर प्रार्थना किसके आगे की जाए। हैरानी होती है जब इन्सान शोर मचा के प्रार्थना करता है। क्योंकि प्रार्थना करनी किससे है? भगवान से। और करनी किसने है? आत्मा ने, रूह ने। और दोनों किधर हैं? एक ही शरीर के अंदर।
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- लेते ही जन्म भूल गया जो वायदा किया है। बचपन में खेला खाया, फिर विषयों में फंस गया है। रूहानी सत्संग
तो प्रार्थना करने वाला भी अंदर और सुनने वाला भी अंदर, फिर बाहर शोर क्यों? इसका मकसद तो कुछ और है कि बाहर अगर प्रार्थना, अरदास, दुआ, करेंगे तो लोगों के कानों में आवाज पड़ेगी तो उनका भी भला होगा और वो भी प्रार्थना की तरफ आएंगे। लेकिन आज लोगों का ख्याल कुछ और होता है। जितना जोर-शोर से प्रार्थना, अरदास, दुआ करेंगे, सुनने वाला जल्दी आएगा और चवन्नी, रुपया यानि कुछ न कुछ तो चढ़ाएगा ना! जबकि प्रार्थना करनी है तो दिलो-दिमाग से कीजिए। दिल से मतलब, अन्दर की सच्ची तड़प से और दिमाग से मतलब, विचारों से, ख्यालों से। वो ओ३म, अल्लाह, वो राम आपके अंदर है वो जरूर सुनता है और वो बहरा नहीं है।
वो जरा सी आवाज को भी सुनता है। अजी, वो आपके ख्याल सुनता है, आपकी भावना को सुनता है। इसलिए अगर आप उसे सुनाना चाहते हैं तो भावना से सुनाइए, तड़प के सुनाइए वो जरूर सुनेगा। जैसे एक बच्चा जब तड़प कर रोता है तो माँ दौड़ी चली आती है क्योंकि माँ के तार अपनी औलाद से जुड़े होते हैं कि मेरा बेटा भूखा ना हो, कहीं उसे कोई तकलीफ ना हो, तो वो दौड़ के आती है। सोचने वाली बात है कि अगर बच्चे की तड़प माँ सुन सकती है तो क्या हमारी तड़प भगवान नहीं सुनेगा? क्या वो अल्लाह, राम, वाहिगुरु माँ की ममता देने वाली भावना से खाली है? नहीं! वो सुनता है, जरूर सुनता है लेकिन सुनाने वाला चाहिए।
वास्तव में लोगों का सुनाने का ढंग सही नहीं। कोई उसे बाहरी रूप से सुनाता है, बाहर आवाज देता है लेकिन उनके अन्दर चिन्तन जो है वो कारोबार का चलता रहता है। धर्मो में लिखा है चिन्तन ही भक्ति है। मुख में राम-राम-राम और अन्दर मुझे ये मिल जाए, मुझे वो मिल जाए, ये सामान मिला क्यों नहीं, दफ्तर में तरक्की हुई क्यों नहीं। जुबान पर राम का नाम है और चिंतन कारोबार का चल रहा है। कारोबार की अगर बात चल रही है तो ये भक्ति का दिखावा है। सन्तों का कहना यही है कि आप चिंतन से भक्ति करें, तड़प से भक्ति करें।
कैसी तड़प? मान लीजिए आपका एक बेटा है और वह आपसे सैंकड़े कि0 मी0 दूर बैठा है। अचानक वहाँ कोई घटना घटती है, दुर्घटना होती है और आपको ये पता नहीं चलता कि आपके बेटे का क्या हुआ। आप टेलिफोन से या जो भी संचार-साधन है, उनसे पता करना चाहते हैं लेकिन पता नहीं लग पाता। तो आप फिर जो अपनी औलाद के लिए तड़पते हैं अगर रुपये में सौ पैसा तड़पते हैं और अगर अपने मालिक के लिए आप दस-पन्द्रह पैसा ही तड़प बनाओ तो ये हो नहीं सकता कि मालिक की दया-मेहर आप पर ना बरसे! लेकिन वो तड़प इन्सान बनाता नहीं।
‘लोगन रामु खिलउना जानां।’ खिलौना समझ रखा है भगवान को कि जब जरुरत पड़ी तो खेल लिए और जब जरूरत नहीं तो मालिक कहाँ है कोई पता नहीं। व्यापार में घाटा हो तो मालिक प्यारा लगता है, नौकरी जाने का डर हो तो मालिक प्यारा लगता है। इम्तिहान हो, फसल हो अच्छी और ऊपर से ओले मोटे-मोटे पड़ने शुरू हो जाएं तो, जैसा कि आप जानते ही हंै, कितना राम जी प्यारा लगता है। दु:ख में, मुसीबत में ही लोग भगवान को याद करते हैं लेकिन अगर सुख में करे तो दु:ख कभी आए ही ना। ये धर्मो में लिखा है-
दु:ख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे,तो दु:ख काहे को होय॥
तो साथ-साथ भजन चलेगा और साथ-साथ अजर्Þ करते चलेंगे और इस बारे में जो भी रूहानी सन्तों की लिखी हुई वाणी आएगी साधु पढ़ के सुनाएंगे। इस बारे में लिखा-बताया है:-
‘मोह माया में फंसे हुए जीव उसको दूर जानते हैं। वो तो सदा हाजर-हजूर है, वो अन्दर-बाहर सदा साथ है। वो इतना नजदीक है कि उससे नजदीक कोई और चीज नहीं है। वो घट-घट में समा रहा है’।
मोहि मोहिआ जानै दूरि है॥ कहु नानक सदा हदूरि है।।
मन का ये काम है कि यह किसी को अपने दायरे से बाहर नहीं जाने देता। इसने जीवों को एक तरह का जादू करके फरेब से काबू में रखा हुआ है और हम अपने निजघर को भूले बैठे हैं और दर-ब-दरी हमारे भागों में लिखी गई है। जिस तरह तिलों में तेल ,दही में घी , झरनों में पानी और लकड़ी में आग रहती है इसी तरह परमात्मा सब के अन्दर समा रहा है पर वो नाम जपने से ही आत्मा को दिखाई देता है।
तो मालिक सबके अन्दर है। तिलों में तेल, सरसों के दानों में तेल, फूलों में तेल, पर उनको निकालने के लिए विधि चाहिए। वैसे ही वो ओ३म, वो हरि, वो राम, वो अल्लाह, वो मालिक हमारे अन्दर है लेकिन उसे पाने के लिए, उसे देखने के लिए विधि चाहिए, जिसका नाम आपको बताया अभी-अभी। गुरुमन्त्र, नाम-शब्द, ,कलमा, या मैथ्ड आॅफ मेडिटेशन, वो सही हो। कौन सा नाम सही है? क्या नाम भी गलत हुआ करता है? तो ये सारे सवालों का जवाब, कोशिश करेंगे आपको यही घण्टा-घड़ी में बताएं। आपसे कुछ भी नहीं लेना। बस, आपका घण्टा, डेढ़-घण्टा समय, कोशिश करेंगे कि इतना ही समय, और कोई पाँच दिन, दस दिन, पन्द्रह दिन प्रोग्राम नहीं है जी। इतने में ही आपको पूरा ‘सच’ बताने की कोशिश करेंगे, ये समय आपसे मांगते हैं।
तो साथ-साथ भजन चलेगा, शब्द, नजम चलेगा और साथ-साथ आपकी सेवा में अजर्Þ करते चलेंगे। साधु लोग आपको भजन सुना रहे हैं। भजन है:-
टेक :- बड़ा किया कसूर, प्रभु समझा है दूर,
मन माया ने तुझे किया मजबूर।
मन देता सबको धोखा, ना बाहर किसी ने देखा।
वो सब के अन्दर बैठा नाम ध्याले,
वो सब के अन्दर बैठा दर्शन पा ले।।
1. ये मानस जन्म तुम्हारा, मिलेगा ना दुबारा,
’गर खा पी के गुजÞारा, फिर पड़ेगा बड़ा पछताना।
तूं नाम प्रभु का ध्याले, ये जीवन सफल बना ले,वो सबके…
2. ये जन्म तेरा अनमोल, मिट्टी में रहा रोल,
कुछ पा ले इसका मोल, बार-बार ना हाथ आयेगा।
चौरासी चक्कर मुका ले, रूह को आजÞाद करा ले, वो सबके…
3. ना माया साथ जाए, ना अन्त काम आए,
सब यहां रह जाए, इसका गुमान क्यों करें रे बंदे।
धन नाम इकट्ठा कर ले, जिसे नाश करे ना परले। वो सबके…
4. क्यों फंसा मोह जाल, क्यों करता ना ख्याल,
पूंजी रहा है गाल, कीमत जिसकी बेशुमार है।
कबीर जी बताएं, क्यों हीरे लाल गंवाएं। वो सबके…
भजन के शुरू में आया जी-
ये मानस जन्म तुम्हारा, मिलेगा ना दुबारा,
’गर खा पी के गुजारा, फिर पड़ेगा बड़ा पछताना ।
तू नाम प्रभु का ध्याले, ये जीवन सफल बना ले….
मनुष्य शरीर बारबार नहीं मिलता। एक बार जीव-आत्मा को यह अवसर मिला है आवागमन से मोक्ष-मुक्ति को, प्रभु को पाने का। अगर यह शरीर एक बार हाथ से चला गया तो सदियां गुजर जाती हैं।
कबीर मानस जनमु दुलंभु है होइ न बारैबार।।
जिउं बन फल पाके भुइ गिरहि बहुरि न लागहि डार॥
जैसे वृक्ष की टहनी से फल पक क र नीचे गिर जाए वो फल दुबारा नहीं लग सकता, उस टहनी से नहीं जुड़ सकता। वैसे ही हे जीवात्मा! प्रभु के पाने के लिए मनुष्य शरीर रूपी पका हुआ फल तुझे मिल गया है। इसमें अगर राम-नाम का जाप करे तो आवागमन से मोक्ष-मुक्ति सम्भव है। वरना यह शरीर बार-बार हाथ नहीं आएगा भाई। मनुष्य शरीर में ईश्वर को याद करना था लेकिन खाने-पीने में मस्त है।
आज हमारे समाज में नशे की लहर चली हुई है। अगर ये कहें कि युद्ध की तरह नशा समाज में इन्सानियत से लड़ रहा है तो गलत नहीं होगा। आज गाँव-गाँव में, शहरों में ऐसे-ऐसे नशे, जिनका पहले कोई नाम नहीं जानता था, आम हो चुके हैं। मैडिकल के नशे, चरस, हेरोइन, स्मैक, कोकीन। आम नौजवान-बच्चे आते हैं छोड़ने के लिए तो पता चलता है कि गाँवों में भी ये सब चल रहा है। इतने गंदे नशे हैं ये। इन नशों के बारे में हमारे धर्मों में जड़ से मना किया है।
ये जन्म तेरा अनमोल, मिट्टी में रहा रोल,
कुछ पा ले इसका मोल, बार-बार ना हाथ आएगा।
चौरासी चक्कर मुका ले, रूह को आजाद करा ले…
इस बारे में लिखा है:-
‘‘पूरे सतगुर की करले भाल जल्दी, नाम जपने की सीख ले युक्त बंदे।
खत्म हो जाएंगे चक्कर चौरासियों के, इस जगत में हो जाएं मुक्त बंदे।’’
ना माया साथ जाए, ना अन्त काम आए।
सब यहाँ रह जाए, इनका गुमान क्यों करें रे बंदे।
धन नाम इकट्ठा कर ले, जिसे नाश करे ना परले….
दौलत कभी किसी के साथ नहीं गयी। आप अपने बुजुर्गों की तरफ निगाह मारें, उन्होंने दौलत बनाई, धन बनाया और सब कुछ इस धरती पे बना और यहीं पे छोड़ कर चले गए, कुछ भी साथ नहीं गया। उनके बनाए सामान पर आपने कब्जा कर रखा है। और आपके जाने की देर है, आपकी आने वाली पीढ़ियां कब्जा करने को तैयार बैठी हैं। तो भाई! ये सच्चाई है, वास्तविकता है कि जो कुछ यहाँ बनता है साथ नहीं जाएगा। तो क्या बनाना नहीं चाहिए ? नहीं-नहीं, ये बात नहीं है।
हमारे गुरूओं ने, ऋषि-मुनियों ने रोका ही नहीं धन कमाने से। कमाओ, लेकिन क्या लिखा है, हिंदु धर्म में कड़ा परिश्रम करके कमाओ, मेहनत की कमाई करो। इस्लाम धर्म में-हक हलाल की रोजÞी-रोटी, सिक्ख धर्म में दसां-नहुआं दी किरत-कमाई और इंगलिश रूहानी सेंट हार्ड वरक। बोली तो जरूर अलग है पर मतलब तो एक ही है कि आप मेहनत की कमाई करें, हक-हलाल की कमाई करें। यानि धर्मों के अनुसार आप ठग्गी नहीं मार सकते, आप बेइमानी नहीं कर सकते, आप भ्रष्टाचार नहीं फैला सकते अगर आप सच्चे हिंदू हैं, सच्चे सिक्ख हंै, सच्चे मुस्लमान हंै, सच्चे ईसाई हैं! अगर आप ऐसा करते हैं तो आप क्या हैं ?
किस धर्म में लिखा है कि बेटा! 100 की ठग्गी मार लो, बस पाँच रुपये, सवा पाँच, भगवान को सरका दो सारा काम ठीक हो जाएगा, किधर लिखा है जी! कहीं नहीं लिखा। ये तो एक और गुनाह है कि खुद तो ठग्गी मारी ही मारी भगवान को भी हिस्सेदार बना रहा है कि हे भगवान ! मैंने सौ की ठग्गी मारी है, पांच तू ले ले। पिच्चानवें मेरा एक नम्बर का कर दे। इतना कम प्रसेंटेज तो आदमी नहीं लेता जितना तू भगवान को दे रहा है! करोड़ों की ठग्गी मारेगा और हजार रुपया मालिक को। ये कौन सा हिस्सा बना, कितना प्रसेेंटेज बना, आप निकालिए! तो भाई! इतना प्रसेंटेज तो आदमी ही नहीं लेता। पर भगवान ने कौन-सा बोलना है और उसने कौन-सा लेना है, लेना भी आप जैसों ने ही है। भगवान कुछ नहीं लेता। सवाल पैदा ही नहीं होता वो कुछ लेता हो।
आज नौजवान बच्चे भगवान से इसलिए चलते हैं कि किधर भी जाओ यही चलता है। दिल्ली साइड में, महाराष्टÑ में, मुम्बई में, बैंगलुरु में बच्चों ने हमसे कहा, गुरु जी! क्या यही भगवान है कि जब भी जाओ कुछ ना कुछ दे के आओ रुपया-पैसा, वैसे भगवान की जगह जा ही नहीं सकते हैं। हमने कहा ये किधर भी नहीं लिखा। हमने उनसे कहा, बताइये, क्या आपके घर कभी भगवान मांगने आये? कहते नहीं। तो जो आप अल्लाह, राम, वाहिगुरु को वहां जा के देते हैं क्या आपने भगवान के हाथ में पकड़ाया? कहते नहीं! तो फिर आप भगवान को मंगता कैसे कहते हैं? आपने दिया और आपने पीठ घुमाई तथा वहीं से आप जैसे ने ही ले लिया।
मालिक का तो सिर्फ नाम ही नाम चला। क्या ये सच्चाई नहीं? इस वजह से लोग मालिक से कन्नी कतराने लगे हैं। शायद माया का दूसरा रूप भगवान है। जबकि ये सही नहीं है। मालिक सबका दाता है, सब कुछ देने वाला है। वो कुछ नहीं लेता। अहसान करके भी अहसान नहीं जताता। इसलिए भगवान महान है।
तो भाई! भगवान, ईश्वर, मालिक को पाने के लिए दौलत की जरूरत नहीं। पर जीने के लिए जरूरत आप मानते हैं। तो मेहनत से कमाओ। पाप-जुल्म की कमाई ना करो। क्योंकि ये कमाई कभी किसी को चैन से जीने नहीं देती। अन्दर बेचैनी का आलम हो जाता है, परेशानी-मुश्किलें घेर लेती हैं तो इसलिए इन्सान को कमाते समय ये सोचना चाहिए कि किसी का हक मार के न खाओ। श्री गुरु नानक देव जी से एक बार पूछा, हिन्दू भाई बैठे थे, मुसलमान भाई बैठे थे, कहने लगे गुरु जी, कोई मेहनत की कमाई पर बताओ ताकि हम लोग आगे से बुरे कर्म न करें। तो गुरु जी ने वहां एक पंक्ति कही-
हकु पराइआ नानका उसु सूअर उसु गाइ॥
गुरु पीरु हामा ता भरे जा मुरदारु न खाइ॥
हक पराया खाना मुसलमान के लिए ऐसा है जैसे सुअर का मांस और हिन्दू के लिए ऐसा है जैसे गऊ का मांस। जो ये मुरदार नहीं खायेंगे, गुरु-पीर उन्हीं का हामां भरेंगे, दोनों जहान में उनका साथ देंगे। लेकिन जो ऐसा मुरदार खाते हैं तो वे खुशियां हासिल नहीं कर पाएंगे। तो भाई! धर्मों में तो बहुत लिखा है, पर मानने वालों की दिन-ब-दिन कमी हो रही है।
क्यों फंसा मोह जाल, क्यों करता ना ख्याल,
पूंजी रहा है गाल, कीमत जिसकी बेशुमार है।
कबीर जी बतायें, क्यों हीरे लाल गंवायें…..
इस बारे में लिखा-बताया है:-
बाल-परिवार का मान करने वाले आँखें खोलकर देखें, बाल बच्चों को देखकर उनके मोह में फंस जाएं और उनकी मीठी-मीठी बातों में मस्त होने की क्या कीमत है, वो एक रात के मेहमान की तरह हैं, जिसने प्रभात होते ही चले जाना है। एक रात के लिए आकर यदि कोई युगों की आस बांध ले तो फिजूल है। घर, मन्दिर और सब सम्पत्ति वृक्ष की छाया की तरह बदल जाती है। दुनिया की प्रीतियां कुरीतियां हैं। उनकी तरफ से मुँह मोड़कर हरि से प्रीत लगाओ और हर एक अनमोल स्वास जो लाखों-करोड़ों रुपयों से भी नहीं मिल सकता, एक-एक गिनकर गुरु और हरि को सौंपते जाओ।
‘‘कबीर सोया क्या करे, जागन की कर चौंप।।
इह दम हीरा लाल है, गिन-गिन गुरु को सौंप॥’’
कबीर सोया क्या करे, मन-माया में जो सोया हुआ है, दुनियादारी में सोया हुआ है, भगवान की तरफ से सोया हुआ है और मन-माया दुनियादारी में खोया हुआ है, कबीर जी कहते हैं कि जागने की चौंप कोशिश कर। ‘इह दम हीरा-लाल है’, हीरे-लाल जवाहर से बेशकीमती हैं तेरे स्वास। ‘गिन-गिन गुरु को सौंप’, गुरु कहेगा राम का नाम ले। तो राम का नाम, ओ३म, हरि, अल्लाह, मालिक का नाम लेता जा। चलते, बैठके, काम-धंधा करते, लेटके। काम-धंधा नहीं छोड़ना। काम-धंधा हाथों-पैरों से आप कर्मयोगी हैं और जीभा से आप ज्ञानयोगी बनें।
दोनों काम साथ-साथ चलेंगे तो दोनों जहान की खुशियों के हकदार आप जरूर बन सकते हैं, बस पाखण्डों में ना फंसो। ढोंग, पाखण्डवाद हमेशा मालिक से दूर ले के जाते हैं। बहुत से पाखण्ड हमारे समाज में प्रचलित हैं। जैसे दिनों का पाखण्ड, कि दिन बढ़िया कौन-सा है, ये भी चर्चा चलती है।
एक बार हम सभी लोग बैठे थे, तब हम पढ़ा करते थे जब की बात है जी, बात चली कि दिन बढ़िया कौन-सा है। एक सज्जन कहने लगे सबसे बढ़िया दिन मैं बताऊँ, मंगलवार। मंगलवार को करो तो काम मंगल हो जाएगा। तो दूसरे समाज वाले कहते कि हमारे तो मंगल को गलत कहते हैं, क्या कहते हैं- ‘मंगल लगावे संगल’। मंगल सांकल लगा देता है, काम होने नहीं देता। सांकल वाले से पूछा, अजी! आप बताओ दिन बढ़िया कौन सा है? कहने लगा हमारे तो कहते हैं कि बुधवार को क रो- ‘बुध काम शुद्ध’। अब मंगल वाले को गुस्सा आ गया। कहने लगा हमारे बुध को सही नहीं कहते। क्या कहते हैं- ‘बुध लगावे युद्ध’। बुध के दिन करोगे तो झगड़ा हो जाएगा।
तो वहां बैठे-बैठे सातों दिनोेंका क्रियाकर्म कर दिया। एक बढ़िया बताए तो दूसरा गलत। हमने कहा कि अगर आपकी मान लें तो कपड़ा ऊपर ले के सो जाते हैं, दिन तो कोई अच्छा है ही नहीं। तो सच्चाई क्या है आप ही बताएं ? आपसे कुछ सवाल करते हैं, मान लीजिए! आप शनिवार को बुरा मानते हैं, चाहे कोई भी दिन! यानि अगर शनिवार को आपके घर में बेटा आ जाए तो किसी को दे दोगे? नहीं देते। जो दिन आप बुरा मानते हैं अगर उस दिन आपको लाखों का फायदा हो जाए तो क्या गरीबों में बाँट दोगे? नहीं बाँटते। क्यों ? क्योंकि लक्ष्मी जी घर आई हैं ऐसे थोड़े ही दे देना है। तो दिन बुरा कैसे हो गया अगर लक्ष्मी जी आ गई तो। तो भाई! ये सब फिजूल है, फालतू है।
अपने समाज में मुहूर्त करते हैं, मुहूर्त। हम चैलेंज करते हैं कि उस सैकिंड में आप लाखों रुपयों की दुकान का मुहूर्त कर लो लेकिन एक शर्त है कि आप अगले दिन से ताला लगा के सो जाओ, लाभ तो अपने-आप हो जाएगा! क्या हो जाएगा? होना चाहिए, बढ़िया दिन को मुहूर्त हुआ है। लाभ नहीं होगा। लाभ फिर किस से जुड़ा है- मुहूर्त से या आपसे ? अगर आप मेहनत करेंगे, जा कर दुकान पर बैठेंगे, हिम्मत करेंगे तभी फायदा होगा ना। तो फिर ये अच्छा या बुरा दिन कहाँ से आ गया! क्या लिखा है हिन्दू धर्म में-
हिम्मत करे अगर इन्सान, तो सहायता करे भगवान।
हिम्मते मर्दां, मददे खुदा।
आप हिम्मत कीजिए, भगवान आपकी मदद जरूर करेंगे। नेक-भले कर्म कीजिए तो प्रभु शक्ति देते हैं, ताकत देते हैं। इसलिए भाई! यह कह देना कि मालिक का नाम, प्रभु का नाम अपनी जगह और पाखण्डवाद अपनी जगह। नहीं! यह गलत है। पाखण्ड में कुछ भी नहीं है।
पाखण्ड में कछु नाहीं साधो, पाखण्ड में कछु नाही रे।
पाखण्डिया नर भोगै चौरासी, खोज करो मन माही रे॥
कि पाखण्ड में कुछ भी नहीं। पाखण्ड करने वाला खुद फंस जाता है तो किसी को क्या बचाएगा। इसलिए भाई, अगर खोज करनी है तो वो मालिक आपके अंदर है उसे अंदर खोज करो। तो पाखंडवाद, ढोंग, दिखावे से बचना चाहिए।
बहुत सारे पाखंडवाद हैं हमारे समाज में। छींक आ जाती है तो काम-धंधे में नहीं जाते। बिल्ली रास्ता काट जाए तो काम-धंधे पर नहीं जाते। कई लोग अपना भविष्य पूछते हैं, क्या मैं बादशाह बन जाऊँगा? अरे भाई! जिससे तू पूछने जा रहा है अगर वो तेरे कर्म-चक्कर बदल क र तुझे बादशाह बना सकता है तो वो खुद के कर्म-चक्कर बदल ले और सारी दुनिया का बादशाह बन जाए! क्यों नहीं बनता ? आप को बुद्धू बना रहा है।
कोई किसी के कर्म-चक्कर नहीं बदल सकता। हाँ, राम का नाम बदल सकता है, ओ३म, हरि, अल्लाह, मालिक की भक्ति और आपकी मेहनत दोनों बातें आपके कर्म-चक्कर को बदल सकती हंै। तो भाई पाखंड में नहीं पड़ना चाहिए, दिखावे में कभी भी नहीं आना चाहिए क्योंकि दिखावा, पाखंडवाद मालिक से दूर करते हंै। ‘क्यों फंसा मोह जाल’, मोह-ममता में अंधे मत बनो, भगवान की तरफ से निगाह मत हटाओ।
क्यों फंसा मोह जाल, क्यों करता ना ख्याल, पंूजी रहा है क्यों गाल, कीमत जिसकी बेशुमार है।
कबीर जी बताएं क्यों हीरे लाल गंवाएं।
तो भाई! स्वासों का मोल पाओ। भगवान कैसे मिलता है, कैसे उस तक जा सकते हैं, थोड़ा सा भजन, शब्द रह रहा है तो उसके बाद आपको बताएंगे जी, ज्यादा समय आपका नहीं लेंगे।
5. क्यों काल वगार ढोए, दुर्लभ जन्म क्यों खोए,
जब चला जाए फिर रोए, गया वक्त फिर हाथ आए ना।
तू अपना काम न किया, प्रभु का नाम न लिया, वो सबके…
6. विषयों में हुआ अंधा, जो काम करे सो गंदा,
क्यों भरे काल का चन्दा, सजÞा नरकों में पानी पड़े।
मन काल काम है करता, न प्रीत प्रभु से करता, वो सबके…
7. क्यों ढूंढे मस्जिद-मन्दिर, ये शरीर हरि का मंदिर,
प्रभु बैठा तेरे अंदर, झाती मार के देख जरा।
‘शाह सतनाम जी’ सौदा सस्ता,तेरे अंदर सीधा रास्ता,वो सबके…
भजन के अंत में आया है जी-
क्यों काल वगार ढोए, दुर्लभ जन्म क्यों खोए,
जब चला जाए फिर रोए, गया वक्त फिर हाथ आए ना।
तू अपना काम न किया, प्रभु का नाम न लिया…
वगार उसे कहते हैं जिसके बदले कुछ भी ना मिले कि इन्सान समय लगाता रहे, समय गुजारता रहे, मेहनत करे लेकिन उसका फल ना मिले, उसे कहते हंै वगार ढोना। ऐसा हो ही नहीं सकता कि इन्सान किसी के लिए मेहनत करे और बदले में कुछ ना ले, बड़ा मुश्किल है। लेकिन ऐसा हो रहा है। आप जो कुछ भी करते हैं हमारे धर्मांनुसार भगवान के नाम के सिवाए वगार ढोते हैं। कुछ भी साथ जाने वाला नहीं है, कुछ भी साथ नहीं जाएगा। साथ जाने वाला धन राम-नाम का धन है। जिसे चिता नहीं जला सकती और धरती गला नहीं सकती, सड़ा नहीं सकती पानी डुबो नहीं सकता और चोर-उचक्का चुरा नहीं सकता। तो भाई! मालिक का नाम ,प्रभु का नाम एक ऐसा धन है, ऐसी शक्ति है अगर जरा सा भी इन्सान लगन से प्रभु का नाम ले ले तो दोनों जहाँ की खुशियां हासिल कर सकता है।
आप दुनिया में रहते हुए हर कार्य के लिए टाईम फिक्स किए हुए हंै। समय लगाते हैं, समय फिक्स है आपके पास, लेकिन ईश्वर के लिए, मालिक के लिए समय नहीं लगाते। सुबह उठते हैं, रफा-हाजत जाते हैं, बाहर जाते हैं। वहाँ पर आपका समय निश्चित है। चाय,दूध,नाश्ता लेते हैं वो भी समय निश्चित है। काम-धंधा करने जाते हैं, वो भी समय निश्चित है लेकिन समय निश्चित नहीं है तो भगवान के लिए। आधा घण्टा भी आप देने को तैयार नहीं हैं। जÞरा सोचिए! आधा घण्टा अगर सुबह और आधा घंटा शाम को ईश्वर को दें तो कितना टाईम हुआ, एक घण्टा।
कुल कितना टाईम है एक दिन में 24 घण्टे दिन और रात में। तो अगर घण्टा मालिक को दे दोगे भाई तो 23 घण्टे तो फिर भी काम-धंधे के लिए बकाया हंै। लेकिन ये एक घण्टा यानि आधा घण्टा सुबह-शाम भगवान की भक्ति नहीं करना चाहता, उसकी दया-मेहर रहमत को हासिल नहीं करता।
कई कहते हैं कि लाल, या पीले, या नीले, या हरा या ये, या वो रंग के कपड़े पहनने से ईश्वर मिल जाता है। अगर कपड़ों का रंग बदलने से भगवान मिलता है तो फिर किसी भी रंग का कपड़ा हर कोई पहन लेता और भगवान मिल जाता और वो कपड़ा उतार देता तो वो जा, वो जा। मालिक ऐसे नहीं मिलता। कई सज्जन मालिक को खुश करने के लिए सैंट लगाते हैं या अगरबती लगाते हंै जो कि गलत है। सही नहीं है। अगरबती या सैंट वातावरण को थोड़ा शुद्ध करने के लिए है न कि भगवान जी को खुशबू पहुँच जाएगी। ये ऐसा होते देखा है। कई जगह ये देखा है। लोग ऐसा करते हंै धूप देते हंै, धूआं देते हंै। नहीं, मालिक नहीं मिलता।
घर-बार का त्याग कर देने से, सिर्फ त्याग कर देने से मालिक नहीं मिलता। जब तक सच्चा पीर-फकीर, गुरु नहीं मिलता । ‘गु’ का मतलब होता है अंधकार और ‘रू’ का मतलब प्रकाश। गुरु का मतलब ‘जो अज्ञानता रूपी अंधकार में ज्ञान रूपी दीपक जला दे वो सच्चा गुरु है’। तो ऐसा कोई फकीर मिले, उसके वचनों पे अमल किया जाए, उसपे चला जाए तो आवागमन से मोक्ष-मुक्ति मिलेगी। और यहाँ रहते हुए सुख कैसे मिलता है उसका पता चलेगा। वरना इन्सान इतने पाखण्डों में, नोट दुगुने कर देंगे, लोग झांसे में आ जाते हंै। तेरे को ताबीज देते हंै उससे फायदा होगा, उसके झांसे में आ जाते हंै। अंगूठियां पहनने से कहते तेरे कर्म-चक्र बदल जाएंगे उसके झांसे में आ जाते हंै। ये सब झूठ है, फिजूल है, ऐसा कुछ भी नहीं है।
इस बारे में लिखा-बताया है:-
नाम ना मिलने से मनुष्य जन्म व्यर्थ चला जाता है और इसमें जो काम भी करना था उससे जीव खाली रह जाता है। गुरुवाणी बताती है कि गुरु मंत्र से खाली जो पुरुष हैं, कि जो गुरु मंत्र से खाली हैं उनका जीना आम जीवों की तरह है।
मनुष्य शरीर में तो फिर ही फायदा। जो हिंदू धर्म में लिखा मुखिया जून, अति उत्तम जून और सरदार जून, खुदमुखत्यार जून, सर्वश्रेष्ठ शरीर। सर्वश्रेष्ठ क्यों कहा! खाओ, पीओ, ऐश उड़ाओ ये तो पशु भी करते हैं बल्कि उनका जीते-जी मल-मूत्र और मरणोपरांत हड्डियां, चमड़ा ,मांस सब काम में आता है। इन्सान का कुछ भी काम नहीं है।
फिर सर्वश्रेष्ठ क्यों ? क्योंकि इन्सान के शरीर में ही प्रभु को पाया जा सकता है। आपको कोई दु:ख, परेशानी, चिंता, मुश्किल है अगर आप लगन से सुिमरन करें आधा घंटा सुबह-शाम सिर्फ दो महीने करें रिल्जट पॉजिटिव जरूर आएगा। ना पैसा देना, ना चढ़ावा , ना घर-बार छोड़ना, ना धर्म बदलना है। जो भी आपका धर्म है उसको मानो। चक्कर तो ये है दिखावा हर कोई कर रहा है, धर्म को मानता नहीं। धर्म पर अमल नहीं करते। धर्म का दिखावा क रना धर्म को धोखा देना है। आज के युग में ज्यादा दिखावा करना चल रहा है। धर्म के बाहर चिन्ह पहनो तो अमल भी करो जो धर्मों में लिखा है। किसी धर्म में, आपको जैसे पहले बताया, ठग्गी, बेईमानी, भ्रष्टाचार का नहीं लिखा। तो फिर जो ऐसा करते हंै उनका धर्म कौन सा है ? एक ही धर्म है रुपया-पैसा। ऐसा लिखा था संतों ने आज से सैंकड़ों साल पहले, कि ऐसा टाईम आ जाएगा-
इसु कलिजुग महि करम धरमु न कोई।।
कली का जनमु चंडाल कै घरि होई।।
कि ऐसा भयानक, बुराई का समय, कलियुग आएगा कि धर्मों के कर्म करने वाला कोई-कोई होगा। ज्यादातर लोग बेरहम हो जाएंगे। धर्मों में तो दीनता, नम्रता, बे-गजर्Þ प्यार, मुहब्बत का पाठ पढ़ाया जाता है। लेकिन आज इन्सान को पैसा मिलना चाहिए। भाई-भाई को खत्म कर देता है। तो ये कौन सा धर्म है? कौन सा दीन-ईमान है ये? कोई भी नहीं। माया, रुपया-पैसा इस युग में ये ही प्रधान है जी। इससे बचने के लिए राम का नाम जरूरी है। इन्सान सोचता है कि पैसे से शायद शांति मिल जाए, आत्मिक शांति, आत्मिक चैन। जी नहीं! अरबों-खरबोंपति लोग मिलते हैं, बेचैन मिलते हंै और चेहरा चुगली खा जाता है कि बहुत टेंशन है, परेशानियां हंै, बहुत मुश्किलें हैं। अगर पैसे से मिलता तो दुनिया का सबसे धनाढ्य आदमी बहुत खुश होता। लेकिन ऐसा नहीं है। फिर खुशी किससे आती है? आत्मिक शांति से, और आत्मिक शांति आती है राम-नाम से। जिसके अंदर आत्मिक शांति है, जो अंदर से शांत है, जिसके अंदर बर्दाश्त शक्ति है वो दुनिया का सबसे सुखी इन्सान है। जो बात-बात पर भड़क उठते हैं, बात-बात पर गुस्सा करते हंै वो खुशी हासिल नहीं कर पाते।
विषयों में हुआ अंधा, जो काम करे सो गंदा।,
क्यों भरे काल का चंदा, सजा नरकों में पानी पड़े।
मन काल काम है करता, न प्रीत प्रभु से करता……
इस बारे में बताया है-
विषयों की प्रीत में, जो कि बारम्बार नरकों में ले जाने वाली है ये मन दौड़ कर जाता है और नाम और सतगुरु की प्रीत से, जोकि सदा सुख देने वाली है, ये मन भागता है।।
कि विषय-विकारों में अंधा है। बुरे ख्याल, बुरी बातें, बुरी सोच सोसायटी में आम चलती रहती है। चमत्कार कोई नहीं पूछता। झूठी बात हो, बुरी बात हो कोई चमत्कार नहीं चाहिए। हर कोई मान लेता है, चर्चा होती है, चटकारे ले-ले कर बातें करते हंै पर राम-नाम की बात संत कितना जोर लगाते हैं, आज से पहले कितने ऋषि-मुनि आए हैं हमारे धर्मों में, जिन्होंने धार्मिक-शास्त्र बनाए। उन्होंने सारी उम्र हमारे लिए लगाई।
हमारे समाज के लिए लगाई, सारी उम्र लगााई उन्होंने। आपने पढ़ा होगा उनका जीवन। अपने लिए नहीं, खुद को राजा बनाने के लिए नहीं, सारा टाईम, सारी वाणी लिखी तो समाज के लिए। आज उनके लिखे वचनों पर विश्वास नहीं है और जो झूठी बात, फिजूल की बात, काम-धंधे की या उन बातों पर लोग झट से विश्वास कर लेते हैं। आखिर क्यों? जिन्होंने सारी उम्र लगा दी उनके वचनों पर विश्वास ही नहीं और उसके लिए चमत्कार की इच्छा रखता है कि मुझे चमत्कार चाहिए। क्या ये चमत्कार नहीं कि एक आदमी शरीर में आया है चाहे वो अवतार था और हमारे लिए सारी जिन्दगी कुर्बान कर गया? सोच क र तो देखो! कि क्या ये चमत्कार से कम है ? ना जी, ऐसा कहाँ! कलियुग में किसको अहसास है इस बात का। तो क्यों नहीं हम अपने धर्म, धार्मिक ग्रन्थों की बातों को मानते।
आपको एक गरण्टी देना चाहेंगे कि आप जिस भी धर्म को मानते हैं, नहीं, आप जिस धर्म का दिखावा कर रहें हैं, हम आपको गरण्टी देते हैं अगर अपने-अपने धर्म को मान लो तो आज व अभी मान लो तो अभी ये धरती स्वर्ग-जन्नत से बढ़ कर बन सकती है। क्योंकि धर्मों में मेहनत की कमाई, एक-दूसरे से बे-गर्ज प्यार करना, नफरत नहीं करना, चुगली-निन्दा नहीं करना, ईर्ष्या नहीं करना ये सिखाया है। अगर यही मान लिया जाए तो बताओ झगड़ा किस बात का रहेगा! किसी का हक नहीं खाना, किसी को गलत नहीं कहना, तो ये हमारे धर्मों की शिक्षा है। लेकिन दु:ख इस बात का है कि मानने वाले अगर आप देखोगे अपने नगर में, तो बहुत कम लोग नजर आएंगे। तो अपने धर्म को मानो, दूसरे को बुरा मत कहो। बुरा धर्म नहीं है बुरा वो है जो बुराई पर उतर आता है। एक शेयर आपको सुना रहे हैं, ध्यान से सुनिए। जो लोग कह देते हैं धर्म को देख करकि फलां धर्म बुरा है,पहनावे को देख कर, हम उनको कह रहे हैं-
‘ना हिन्दू बुरा है, ना ही सिक्ख, ईसाई, मुसलमान बुरा है।
अरे! बुराई पे उतर आए वो इन्सान बुरा है॥’
एक और गौर कीजिए-
‘पेड़ फलों से भरा, फल एक गला,
गला फल है, गला पेड़ कहे ना कोय।
अजी बुराई कर इन्सान बुरा होए, सारा धर्म बुरा ना होए॥’
क्या ये सच्चाई नहीं ? क्या ये वास्तविकता नहीं ? कोई बुराई कर सकता है, किसी पहनावे में हो सकता है, आप धर्म को बुरा तो न मानिए, या आप लिखा हुआ दिखाइए, किस संत ने कहा है कि बुरा करो, किस फकीर ने लिखा है कि बुरा करो। तो भाई! सच्चाई यही है कि संत, पीर, पैगम्बर, महापुरुष कभी किसी का बुरा नहीं करते। धर्मों में बुरा नहीं लिखा। अपने धर्म को मानो किसी को बुरा ना कहो। मालिक दया-मेहर, रहमत के काबिल जरूर बना लेंगे।
क्यों ढूÞंढे मस्जिद मंदिर, ये शरीर हरि का मन्दिर,
प्रभु बैठा तेरे अन्दर, झाती मार के देख जÞरा।
‘शाह सतनाम जी’ सौदा सस्ता, तेरे अन्दर सीधा रस्ता…
इस बारे में लिखा-बताया है-
इन्सान का वजूद अजीब शै है। यदि आँखें खुलें तो ये सचमुच प्रभु का घर है। ये सच्ची मस्जिद है जिसके अन्दर प्रभु मिलता है। ये दिल मस्जिद है, उसका जिस्म सजदा करने की जगह है। कुदरती मस्जिदों और मन्दिरों में रहने वाले लोग बाहर क्यों भटकें! बाहर जो कुछ बनाया जाता है क्या वो असलियत है? अगर कोई कहता है, जी! हम तो असलियत बना लेते हैं तो भगवान तो बाद में बनाओ, पहले सूरज जैसा कोई दूसरा सूरज बना दो।
भगवान ने तो लाखों सूरज बनाए हैं, उसको तो अपने बाद में सोचेंगे, पहले एक सूरज ही बना दो। लाईट जाती रहती है रात को निकाल के जगा लिया करेंगे। सबका भला हो जाएगा। क्या कोई वैज्ञानिक बना सकता है सूरज? नहीं बना सकता। तो फिर भगवान कैसे बना सकता है, जरा बताइए तो सही! कैसे उस जैसा स्वरूप कोई बना देगा, जब एक सूरज नहीं बनता? अजी! भगवान वो नहीं है जिसे हम बनाते हैं! भगवान वो है जिसने हम सब को बनाया है। सच्चाई तो ये है, धर्मों में लिखी हुई सच्चाई है ये। मालिक को हम नहीं बना सकते, सवाल ही पैदा नहीं होता। वो हमारे जैसे अरबों को बना देता है और यहां जन्म-मरन में ना होते हुए भी क ण-क ण में, जर्रे-जर्रे में मौजूद है। ये तो एक त्रिलोकी है, ऐसी सैंकड़े त्रिलोकियां हैं।
सार्इंटिस्ट कहते हैं कि और जगह जिन्दगी है ही नहीं। एक जगह नहीं, हजारों जगह जिन्दगी है। एक त्रिलोकी ये तीन लोक, हमारा शरीर अस्थूल शरीर, एक होता है सूक्ष्म शरीर जो दिखने में नहीं आता और एक कारण, तो ये तीन शरीर हैं, त्रिलोकी कहलाती है। तो भाई! ऐसी त्रिलोकियां सैंकड़े, हजारों हैं। लेकिन मनोतरंग द्वारा कब पहुँचेगा, कुछ कह नहीं सकते। पर रूहानियत के द्वारा, आत्मिक तरंगों के द्वारा हमारे गुरु, संत पहुँच चुके हैं। उन्होंने लिखा है बहुत जगह जिन्दगियां हैं। पहले विज्ञान नहीं माना करती थी लेकिन अब विज्ञान रूहानियत की तरफ बहुत आ गई है। क्योंकि हमारा धर्म महाविज्ञान है। हमारे धर्म ने बताया कि सूक्ष्म जीव हैं।
सार्इंसदानों ने, डॉक्टरों ने मजाक उड़ाया लेकिन 1850 में मानना पड़ा कि बैक्टीरिया है, और 1892 में माने कि वायरस है, तो आए कि नहीं वहीं पर! हमारे धर्मों ने लिखा है कि लाखों चन्द्र, सूरज, नक्षत्र ग्रह हैं। सार्इंसदानों ने इसका भी मजाक उड़ाया। लेकिन अभी कुछ साल हुए हैं कि अमेरिका में सात नए खगोल, नए सूरज ढूंढ लिए गए हैं। तो अब सार्इंटिस्ट मानने लगे हैं कि ये जो तारे हैं, ये सूरज ही होंगे। तो बताइए महासार्इंस कौन सी हुई वो जो वैदिक काल से लिखा हुआ है या जो आज कह रहे हैं कि हमने पैदा कर लिया ? तो बहुत बातें हैं ऐसी जो हमारे धर्मों में हजारों साल पहले बताई जा चुकी हैं और अब सार्इंटिस्ट कहते हैं हमने नई खोज की है।
हमारे धर्मों में लिखा है- भगवान ने सबसे पहले प्रकाश के रूप में खुद को पैदा किया और नासा (सार्इंस केन्द्र) में अभी-अभी ये बात आई है कि सबसे पहले विकरण युग था, प्रकाश का युग था। तो बताइए किसने खोज पहले की हमारे धर्म ने या विज्ञान ने ? तो धर्मों में जो सार्इंटिस्ट उनको गुरु, पीर, सन्त, महापुरुष या फकीर कहा जाता है, बस, फर्क यही है। तो रूहानियत में है तो सच लेकिन पैसे की वजह से लोग डरने लगे हैं, गलत रास्ता अपना लिया है, जबकि उसका तो नाम ही कोई खरीद नहीं सकता भगवान तो क्या पैसा लेगा।
‘ईश्वर नाम अमोल है, बिन दाम बिकाए ।
तुलसी ये अश्चर्ज है, ग्राहक कम ही आए॥’
तो ईश्वर का नाम अनमोल है और बिन दाम के फकीर देगा, वही बढ़ेगा, फूलेगा। तो भाई! यही सच्चाई है कि मालिक का नाम, हरि का नाम फकीर बिना दाम के देते हैं, जिनकी ड्यूटी होती है समाज का भला करना। जैसे आपकी ड्यूटी है बच्चों का पालन-पोषण करते हैं, उनके लिए कमाते हैं, समाज के लिए भी ड्यूटी है लोगों की, तो वैसे फकीर जो होते हैं उनकी सारी सृष्टि के लिए ड्यूटी होती है उनका भला करने के लिए, सबको प्रेरित करें, सबके लिए बात कहें।
क्यों ढूंढे मस्जिद मंदिर, ये शरीर हरि का मन्दिर।
प्रभु बैठा तेरे अन्दर, झाती मार के देख जरा।
गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता। मालिक की अगर भक्ति पानी चाहो तो गुरु जरूरी है। वो ही गुरुमंत्र बताएगा, उससे ही आप पार हो सकते हैं। इस बारे ये आपको एक सच्ची बात, हकीकत सुनाते हैं-
वेद व्यास जी बहुत अच्छे ऋषि, महापुरुष हुए। उनके बेटे थे सुखदेव मुनि। कहते हैं कि उनको माता के गर्भ में ज्ञान हो गया था। चौदह कला सम्पूर्ण कहलाते थे। तो रूहानियत में तरक्की करना चाहते थे। वो भक्ति किया करते, अभ्यास किया करते थे, तपस्या जिसे कहते हैं। तपस्या करके ऊपर जाते और नीचे चले आते। एक दिन ख्याल आया कि मैं जिसकी तपस्या करता हूँ क्यों ना उन पुरियों में जाऊँ, विष्णपुरी में जाऊँ।
ये सहंसदल कमल जो रूहानियत में होता है तो उस तक ही रह जाती हैं सारी पुरियाँ। आगे मालिक की बात कुछ और है। तो वो भक्ति करता और जब वहाँ पहुँचा तो द्वारपाल जो थे उन्होंने रोक लिया, कि रुको! अन्दर जाने नहीं दिया। अन्दर विष्णु जी से पूछा, जी! ऐसे-ऐसे सुखदेव मुनि जी आए हैं, क्या उन्हें अन्दर बुलाया जा सकता है? विष्णु जी ने कहा-नहीं! वो अन्दर नहीें आ सकता क्योंकि वो निगुरा है, उसका कोई गुरु नहीं। अब वो अभ्यास के द्वारा नीचे आया। अपने पिताजी के पास गया। वो पहुँचे हुए महात्मा थे।
कहने लगा, पिताजी! मैं एक ऋषि का पुत्र, चौदह क ला सम्पूर्ण मैं ऊपर गया पर विष्णुपुरी में मुझे धक्के पड़े, ये क्या हुआ? कहने लगे बेटा! वाकई तू गुरु वाला नहीं है ना। कहने लगा फिर गुरु कौन है? कहने लगे भई, इस जमाने में तो राजा जनक जी हैं, वो पूरा गुरु है। तो सुखदेव मुनि पहले तो कुछ नहीं बोले लेकिन साइड पर जाकर कहने लगे कि पिताजी के दिमाग में फर्क आ गया है। मैं ऋषि-मुनि, वो राजा, वो भोगी, मैं त्यागी और वो राज-पाठ करने वाला, मंै राम का नाम जपने वाला, उसको गुरु कैसे बना सकता हूँ? तो भाई! गुरु शब्द की जब चर्चा हुई, बात आई कि गुरु कैसे बना सकता हूँ तो हंकार आ गया।
वेद व्यास जी फिर समझाएं, समझाकर उनको भेजें कि आप जाओ पूरा गुरु तो राजा जनक है। वो जाएं और कोई ना कोई अवगुण लेकर वापिस आ जाएं। बार-बार ऐसा हुआ और जितने बार गया, ये सच है कि कोई पूर्ण फकीर आया हो और उसकी जितनी कोई निन्दा-चुगली करता हो उसकी भक्ति खत्म होने लगती है। तो उसकी बारह कला जो थी वो खत्म हो गर्इं। नारद जी को तरस आया कि ये बारह बार गया और कला तो चली गयी इसकी, अब इसे रोकना चाहिए। जब 13वीं बार वेद व्यास जी ने कहा कि आप जाइए गुरु धारण कर लो।
तो नारद जी ने क्या किया कि एक बुजुर्ग का भेष धारण कर लिया। एक नाला बह रहा था पानी का और उसमें एक तसला लाए मिट्टी डाल दे और उसे पानी बहा के ले जाए। सुखदेव मुनि कहने लगा, हे बुजुर्ग! ये तू क्या कर रहा है? ऐसे थोड़े बन्द लगेगा! पहले तिनके लगाओ, लकड़ियाँ लगाओ, फिर माटी डालो फिर इसे आप बन्द कर पाएंगे। वरना तो आप जितना डालते हैं पानी बहा कर ले जाता है। वो कहने लगा, रहने दे समझ देने को! नारद जी कहने लगे, अरे! मेरा तो माटी बहाकर ले जाता है पानी और वेद व्यास जी के लड़के ने अहंकार में अपनी बारह कला बहा दी, उससे मूर्ख तो नहीं मैं। जब ये बात सुनी, सुखदेव मुनि जी आखिर कमाई वाले थे, ठोकर लगी, बेहोश हो गए और जब होश आई तो न बुजुर्ग! क्यों, क्योंकि नारद जी ने अपना काम कर दिया और चले गए, कोई भी नहीं, लेकिन ठोकर लग गई कि जाना चाहिए। चला गया राजा जनक के पास।
और राजा-महाराजों का आपको पता है, राज महल लगा हुआ था और खूब ठाट-बाट। अहंकार फिर भी कहता मुझे तो बुलाएंगे ना, उठ के खुद आएंगे लेने! अन्दर संदेश भेज दिया द्वारपालों के हाथ, कहो जी वेद व्यास जी के पुत्र सुखदेव मुनि जी आए हैं। राजा जनक को बताया, वो कहता अभी मुझे काम बहुत है, मैं लगा हुआ हूँ, उन्हें वहीं रोक दो, जहाँ खड़े हैं। और जहाँ वो खड़े थे वहाँ घोड़ों की लीद फैंकी (डाली) जाती थी। सारी सफाई करके वहाँ फैंका करते थे और वो ही टाइम आ गया घोड़ों की लीद फैंकने का। इतने घोड़े, तो वो सारी लीद वगैरह वहाँ फैंकी तो कंधे तक आ गई, दब गए लेकिन हिले नहीं, क्योंकि कमाई वाले तो आखिर थे। अचानक जनक जी कहने लगे, अरे भाई! वो खड़े हैं सुखदेव जी! आपने बताया था, उसे बुलाओ। तो नौकरों ने कहा कि अब क्या बुलाएं वो तो लीद से भरे हुए हंै। कहने लगे नहीं, आप नहला-धुला कर ले के आएं। ले आए। राजा जनक ने उनको एक कौतुक दिखाया।
जैसे ही वो राज महल में दाखिल हुए तो एक पैर दासियां-रानियां दबा रही हैं और एक पैर चुल्हे में लगा हुआ है, आग में, जैसे लकड़ियाँ लगती हैं। तो सुखदेव मुनि की आँखें खुल गईं कि मैं इन्हें भोगी समझता था ये तो राजपाट में रहते हुए भी योगी हैं। कमाल का योग है इनका! ये क्या हो रहा है सामने! अभी और मन्जूर था। सफाई करनी थी। तो राजा जनक ने एक और कौतुक दिखाया। अब बैठे थे तो एक नौकर आया दौड़ा-दौड़ा, कहने लगा, जी, शहर को आग लग गई। राजा जनक जी कहने लगे ‘हरि इच्छा’। पास में सुखदेव मुनि बैठे हैं। थोड़ी देर बाद एक नौकर और आया कहने लगा, जी, अपनी छावनी जल गई। राजा जनक जी कहने लगे- ‘हरि इच्छा’। तीसरा नौकर दौड़ा आया, कहने लगा, जी! आग तो महलों तक पहँुच गई। जनक जी कहने लगे- ‘हरि इच्छा’।
चौथा नौकर आया, कहने लगा जी महल जला डाले। तो जनक जी कहने लगे- ‘हरि इच्छा’। आग बिल्कुल राजा जनक के सामने आ गई और जैसे ही आग सामने आई सुखदेव मुनि जी ने अपना थैला उठाया, डंडा-डोरी उठाया और दौड़ने लगे। जनक जी ने बाँह पकड़ ली। कहने लगे, रुक! तूं अपने-आप क ो त्यागी समझता था! अरे! ये लकड़ी की खड़ाऊं और ये थैला तेरा आधी अशर्फी का नहीं है। अपने-आप को बड़ा त्यागी समझता था। मेरा सब कुछ जल गया, मैं फिर भी नहीं बोला और तू एक डंडी-डोरी के लिए दौड़ रहा है कि कहीं मेरे जल ना जाएं! बता! त्यागी कौन है बड़ा। तो दंग रह गया। सब पर्दे खुल गए। माटी साफ हो गई।
गुरुमन्त्र लिया, भक्ति इबादत की, जो नजारे मिले, वापिस लौट कर आया। वेद व्यास जी कहने लगे, सुना बेटा! कैसा गुरु है तेरा? आँखों से पानी बह रहा है, आँसू बह रहे हैं। कहने लगा-बता नहीं सकता। कहने लगे, सूरज जैसा होगा। कहने लगा, जी! तेजÞ तो ऐसा ही है, इससे भी बढ़ कर लेकिन इसमें तो गर्मी है मेरे गुरु में ये चीज नहीं है। कहने लगे- फिर चन्द्रमा जैसा होगा शीतल! शीतल, शीतलता तो उससे भी ज्यादा है लेकिन चन्द्रमा में दिखने में दाग नजर आते हैं, मेरा गुरु ऐसा नहीं है। फिर वेद व्यास जी कहने लगे, भई कहाँ तो तूं गुरु नहीं धारण करता था, अब तू बताता नहीं वो कैसा है। कहने लगा, पिताजी क्षमा कीजिए! मेरा गुरु गुरु जैसा है। उसकी तुलना के लायक दूसरे कोई शब्द नहीं।
तो सच्चा फकीर अगर मिल जाए जो किसी को लूटे ना, कोई धर्म-मजहब में दखल-अन्दाजी ना हो, जो राम के नाम से जोड़े वो सच्चा गुरु मिले तो पल में पर्दे खोल देता है, अज्ञानता दूर हो जाती है और ज्ञान जाग उठता है तथा इन्सान निजधाम-सतलोक के नजारे यहाँ रहता हुआ जरूर ले सकता है। तो भाई! यही बताया कि तेरा भगवान तेरे अन्दर बैठा है। वो किस तरीके से मिलेगा, हिन्दू धर्म में आया-
कलियुग में केवल नाम आधारा॥ सिमर सिमर नर उतरो पारा।।
कि कलियुग में आत्मा का उद्धार करने वाला या आत्मा का आधार कोई है वो है प्रभु का नाम। ना घर छोड़Þो, ना परिवार छोड़ो, ना कहीं जाने की जरूरत। क्या करो-‘‘सुमर-सुमर नर उतरो पारा,’’ ईश्वर के नाम का घर-परिवार में, काम-धंधे में रहते हुए सुमिरन करो। हे प्राणी! तेरा पार-उतारा जरूर हो जाएगा। तो भाई! यही बात हर धर्म में बताई हुई है। वो तरीका, गुरुमन्त्र जिसके बदले में कुछ देना नहीं, आप इसका जाप करें, सुमिरन करें तो मालिक की दया-मेहर, रहमत को जरूर पा सकते हंै।
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