पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का रहमो-करम
मैं कमलजीत कौर इन्सां (सुजान बहन) पत्नी दवेन्द्र सिंह ब्लाक मोहाली, जिला साहिबजादा अजीत सिंह नगर, मोहाली (पंजाब) सतगुरु द्वारा किए हुए वचनों का वर्णन कर रही हूं:
बात 28 सितम्बर 2008 दिन रविवार की है, जिस दिन मेरे मम्मी जी बहुत बीमार थे, उनका शायद यह अन्तिम समय था। मैंने शाम के करीब तीन बजे पूज्य हजूर पिता जी(संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को अरदास की कि पिता जी, मम्मी जी पिछले दो दिनों से गुम पड़े हुए हैं या तो इन्हें ठीक कर दो, अगर इनका अंतिम समय है तो भी बता दो। क्योंकि मेरे मम्मी जब से मैंने सुरत संभाली है, बीमार ही रहते थे। कई बार खून की उल्टियां भी लग जाती, पर मालिक फिर ठीक कर देता था।
सुमिरन के दौरान ही मुझे पिता जी ने दिखाया कि पिता जी ट्रेन लेकर आए, पिता जी ने अपना हाथ आगे किया व मम्मी जी को कहा, बेटा! आओ चलें। मेरी मम्मी ने अपना हाथ पिता जी को पकड़ा दिया व ट्रेन पर पिता जी के साथ चले गए। मैं बहुत रोई। पिता जी को कहा, मेरा क्या होगा! मेरे पापा अकेले रह जाएंगे, पिता जी ने कहा, बेटा! तुझे संभालने के लिए तेरे पापा तेरे पास दस साल के लिए हैं। उसी शाम मेरे मम्मी पूरे हो गए तकरीबन शाम 7.30 बजे। मां की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता। पर मेरे पापा ने भी मुझे बहुत प्यार दिया। हर दो महीने बाद मुझे मिलने मेरे पास आ जाते या फोन करके मुझे अपने पास बुला लेते।
इसी तरह टाइम पास होता रहा। पापा जी बहुत बार बीमार हुए, पिता जी की रहमत से ठीक हो जाते। इस दौरान बी.पी. का अटैक भी हुआ। सेहत काफी कमजोर हो गई थी। परन्तु फिर भी अपना आप सही सलामत लिए फिरते थे।
बात वर्ष 2018 की है। मैंने अपनी भाभी को वैसे ही फोन करके कहा कि आज मम्मी को पूरे हुए दस साल हो गए हैं, परन्तु अन्दर जो डर था, मैंने उसे नहीं बताया। मेरे भाई का फोन आया कि पापा जी अस्पताल में दाखिल हैं, ज्यादा ढीले हैं। मैंने अपने सतगुरु परम पूजनीय हजूर पिता जी (संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को सुमिरन के दौरान कहा कि हे मेरे सतगुरु जी, हमारे परिवार में जो भी मृत्यु होती है, दिवाली के आस पास ही होती है। कृपा करके पिता जी इस बार ऐसा न हो, थोड़ा टाइम पापा को और दे दो। पिता जी ने कहा, ठीक है! बेटा।
पापा जी हस्पताल से छुट्टी लेकर घर आ गए। तबीयत ज्यादा ठीक तो नहीं थी। फिर दिवाली से अगले दिन मैं व मेरा परिवार पापा जी के पास (मोगा) गए। पापा जी बड़े खुश हुए। मैं पापा के पास चार दिन रही। फिर सोमवार यह कह कर वापिस आई कि मैं वीरवार को आऊँगी। पता नहीं पिता जी ने क्यों मेरे मुँह से वीरवार ही निकलवाया। जब वीरवार सुबह उठी तो अन्दर से एक अजीब सी बेचैनी लगी हुई थी। न कुछ खाने को दिल करे, ना पीने को। बस यही था कि पापा के पास जल्दी से पहुंच जाऊँ। पिता जी को सब पता था, मालिक ने अन्दर से अहसास तो करवा दिया था कि आज पापा नहीं रहेंगे। वही हुआ, मेरे घर पहुंचने से पहले ही पापा शरीर छोड़ गए। परन्तु मुझे किसी ने नहीं बताया।
शुक्रवार को पापा जी का शरीरदान (अमृतसर) किया गया। पिता जी को सुमिरन करके फिर अरदास की कि सच्चे पातशाह! एक बार दिखा दो पापा जी कहां हैं! तो रात को स्वप्न में पिता जी ने दिखाया कि पापा जी बड़ी तेजी से ऊपर जा रहे हैं। पिता जी ने कहा, बेटा! इसका(मेरे पापा) सुमिरन पूरा है। इसलिए सीधा अनामी देश ले के जा रहे हैं। मैं बचपन से ही देखा करती थी कि पापा जी दो या तीन बजे ब्रह्म-मुहूर्त में उठ कर सुमिरन करते थे। जब बीमार रहने लगे तो थोड़ा रुटीन खराब हो गया था। मेरे सतगुरु हर पल जीव की संभाल करते हैं। बस, पिता जी मुझे तो एक बात ही कहते हैं, बेटा! सुमिरन करो तो ही काल-चक्र से बच सकते हो