दृढ़ विश्वासी जीव वचनों का फल जरूर पाता है… सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
प्रेमी सिरीराम इन्सां उर्फ सूबेदार पुत्र स. कृपाल सिंह गांव घूकांवाली (सरसा) पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमतों का वर्णन इस तरह करता है:-
मैंने जब से पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज से नाम की दीक्षा ली, तब से ही उनके द्वारा फरमाए गए वचनानुसार ही सभी काम करने लगा। मैं बहुत कम बोलता, बहुत थोड़ा खाता, बहुत कम सोता और दिन-रात मालिक के नाम का सुमिरन करता रहता। मालिक-सतगुरु ने मुझे इतनी खुशियां दी, जिनका मैं लिख-बोल कर वर्णन नहीं कर सकता।
सन् 1954 की बात है कि मैं एक बार डेरा सच्चा सौदा सरसा के माहवारी सत्संग पर जाने के लिए डबवाली-सरसा रोड पर गांव पन्नी वाला मोटा के बस स्टैंड पर खड़ा था। वहां पर और भी कई लोग पहले से ही बस की इन्तजार में खड़े थे। उस समय करीब घण्टा-डेढ़ घण्टा के बाद बस आया करती थी। दो बसें आई, जो बिना रुके ही सरसा की तरफ चली गई। मैं वहां से पच्चीस किलोमीटर पैदल चल कर डेरा सच्चा सौदा सरसा में पहुंच गया। जब मैंने शाह मस्ताना जी धाम में प्रवेश किया तो मुझे सामने ही पूजनीय शहनशाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन हुए। मैंने अपना शीश झुकाते हुए नारा बोल कर पूजनीय शहनशाह जी को सजदा किया।
पूजनीय सार्इं जी ने अपनी पावन दया-दृष्टि का आशीर्वाद देते हुए वचन फरमाया, ‘पुट्टर! आ गया। पैदल आया?’ मैंने पूजनीय शहनशाह जी के चरणों में विनती की कि सार्इं जी! बस ने नहीं चढ़ाया। इस पर सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने वचन फरमाया, ‘पुट्टर! आगे से बस पर आना। तेरे अंदर पाप नहीं है। बस और किसी को चढ़ाए या ना चढ़ाए पर तेरे को बस वाला जरूर चढ़ाएगा।’ मैं फिर अगले माहवारी सत्संग पर पहुंचने के लिए पन्नी वाला मोटा गांव के बस स्टैंड पर पहुंचा। उस समय वहां करीब 30-40 सवारियां बस के इंतजार में बैठी हुई थी। उनमें कुछ सत्संगी भाई भी थे, जिन्होंने डेरा सच्चा सौदा सरसा आना था। मेरे द्वारा पूछने पर उन लोगों ने बताया कि दो बसें सरसा की तरफ चली गई हैं, परन्तु उन्होंने यहां नहीं रोकी। मुझे अपने सतगुरु द्वारा फरमाए वचनों पर पूर्ण दृढ़ विश्वास था।
मैंने मन ही मन में कहा कि बस मुझे जरूर चढ़ायेगी। इतने में बस आ गई। मैं बस के आगे हो गया। बस रुक गई। बस के कंडक्टर ने मुझे बाजु से पकड़ कर बस में चढ़ा लिया और चलने की विसल मारते हुए तुरन्त खिड़की बंद कर ली। खुले शीशे में से बाहर को देखते हुए बस कंडक्टर बोला, इस अकेले को ही चढ़ाना था, तुम लोग दूसरी बस पर आ जाना। मेरे गांव के कई सत्संगी जो डेरे जाने वाले थे, काफी समय के बाद डेरे में पहुंचे। उन्होंने मुझ से पूछा कि तुझे बस वाला कैसे ले आया? क्या वह तुम्हें जानता था?
मैंने अपने सत्संगी भाईयों को बताया कि मुझे पूजनीय सार्इं मस्ताना जी का वचन है कि तेरे को बस जरूर चढ़ाएगी और किसी को चढ़ाए या ना चढ़ाए। उस के पश्चात बस ने मुझे कभी नहीं छोड़ा।
जो इन्सान अपने सतगुरु पर दृढ़ विश्वास करता है, सतगुरु उसकी कदम-कदम पर संभाल करता है। उसको कोई तकलीफ नहीं आने देता।