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जिंदाराम के लीडर सज आए रूह परवर पिता |पावन महा रहमो-करम दिवस विशेष
डेरा सच्चा सौदा के लिए 28 फरवरी का दिन माननीय शोहरतों से भरपूर अति रमणीक दिन है। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने इस दिन पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को डेरा सच्चा सौदा में अपने उत्तराधिकारी के रूप में दुनिया के सामने जाहिर किया तथा ‘सतनाम’ रूपी महान ताकत का भेद दुनिया को बताया।

हालांकि बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने उस दिन 14 मार्च 1954 को वचन फरमाए थे कि ‘आज आपको नाम लेने का स्पैशल हुक्म हुआ है। (आपको स्पैशल नाम देंगे) आपको इसलिए पास बिठा कर नाम देते हैं कि आप से कोई काम लेना है।

आपको जिंदाराम का लीडर बनाएंगे। जो दुनिया को नाम जपाएगा।’

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परन्तु उस समय सुनने वालों को इस बात (असल सच्चाई) का भेद नहीं लगा था और वही हुआ जैसा पूजनीय बेपरवाह जी ने फरमाया था। अर्थात् सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को जो वचन फरमाए थे, 28 फरवरी 1960 को हू-ब-हू सच हुए। जब पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को पूरे शानो-शौकत से जिंदाराम का लीडर ऐलान किया, आप जी को डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान किया। असीम जश्न व शाही जलसे किए गए, जिसकी भरपूर तैयारियां पहले से ही की गई थी।

दूर-दराज से भी साध-संगत को संदेश भेजकर बुलाया गया। नए-नए नोटों के हार बनवाए गए। एक जीप को बहुत सुंदर सजाया गया। गाजे-बाजे, ढोल-नगाड़ों वालों को स्पैशल बुलाया गया। आश्रम के सत ब्रह्मचारी सेवादारों को उस दिन नए-नए कपड़े पहनाए गए, जबकि आम तौर पर टाकियां लगे कपड़े ही पहने जाते थे। पूजनीय परम पिता जी के लिए शाही वस्त्र वनवाए गए थे। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज इस शुभ दिन की तैयारियों में तल्लीन थे। किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। जैसा भी समय व साधन के अनुसार हो सकता था, सब कुछ बढ़िया किया। आखिर तैयारियां करते-करते यह खूबसूरत दिन भी आ गया।

पूजनीय शहनशाह जी अपनी इलाही मौज में थे। उनका रब्बी जलाल हर किसी को नूरो-नूर कर रहा था। सभी सेवादारों व आश्रम में मौजूद साध-संगत को एक विशाल जलूस का ईलाही फरमान हुआ। चहुं ओर खुुशियां ही खुशियां बरस रही थी। शहनशाह मस्ताना जी महाराज सभी को अपने पवित्र वचनों तथा अपने नूरी दर्शनों से निहाल कर रहे थे। उनका जोशीला रोबदार अक्श मस्ती की लहरें छोड़ रहा था। शाही जलूस को अपनी पवित्र हजूरी में अंतिम रूप दिया गया। सभी को शाही जलूस में शिरकत करने के लिए हुक्म फरमाया। आश्रम के सतब्रह्मचारी सेवादार आज नए-नए बूट-सूटों में थे। उन्हें भी इस शाही जलूस में शामिल होने के लिए स्पैशल हुक्म हुआ।

दूर-दराज से तो संगत आई ही थी, परन्तु जब इस शाही जलसे का पैगाम आस-पास के लोगों तक पहुंचा, तो वह भी इस शुभ अवसर पर बहुत बड़ी गिनती में साध-संगत इक्ट्ठी हो चुकी थी। शहनशाह मस्ताना जी महाराज के इस अलौकिक खेल का शायद क इयों को पता भी नहीं चला होगा। बस! कुछ के लिए यही था कि बेपरवाह जी आज कोई अनोखा खेल रचा रहे हैं। उनके लिए तो अनोखा खेल था, परन्तु वास्तव में पूजनीय बेपरवाह जी आज अपने वारिस अर्थात् पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को डंके की चोट पर लोगों के सामने प्रकट कर रहे थे। पूजनीय बेपरवाह जी ने सारी साध-संगत को इकट्ठा किया। खुली छत्त वाली सुन्दर सजाई गई जीप में एक सुंदर कुर्सी सजाई गई। सारी संगत इस बेपरवाही नजारे को निहार रही थी। उनमें एक कशिश थी, बेकरारी थी। उनमें एक खिंचाव था, कौतूहल अपने शिखर पर था कि पूजनीय बेपरवाह जी जरूर आज कोई अनोखा कौतुक करने वाले हैं। जो इस वास्तविकता से अनजान थे, उनकी अंदरूनी अवस्था इस तरह की बनी हुई थी।

कुर्सी सज जाने के उपरान्त बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को बुलाया, नए-नए नोटों के सिर से पांवों तक लम्बे-लम्बे हार पहनाए गए और जीप में सजी कुर्सी पर विराजमान किया। उपरान्त पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने शाही जलसे के साथ जाने वाली समस्त साध-संगत में फरमाया कि ‘सरदार सतनाम सिंह (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) बहुत बहादुर हैं। इन्होंने गरीब मस्ताने के हर हुक्म को माना है। इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है।

इन्होंने हमारे लिए जबरदस्त कुर्बानी की है। इनको हमने अपना वारिस, खुद-खुदा मालिक बना दिया है। जाओ, शहर में गली-गली हर मोहल्ले में ये ढंढोरा पिटवा दो कि इन्होंने गरीब मस्ताने के लिए बहुत भारी कुर्बानी की है और ये डेरा सच्चा सौदा के वारिस बन गए हैं। बच्चे-बच्चे को पता चल जाए कि सरदार हरबंस सिंह (श्री जलालआणा साहिब के जैलदार) आज से सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) हो गए हैं और कुल मालिक बन गए हैं।

बेपरवाही मौज का अद्भुत नजारा:-

पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने अपने इन मुबारिक वचनों से शाही जलसे (जुलूस) को खूब ढोल-नगाड़ों व बैण्ड-बाजों की मीठी ध्वनियों के चलते सरसा शहर की तरफ विदा किया। पूरा जलसा शहर के लिए कूच कर गया। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जीप में सजाई कुर्सी पर विराजमान थे। शाही लिबास में सजे हुए और गले में सिर से पैरों तक नोटों के लम्बे-लम्बे हार सुन्दरता को चार चांद लगा रहे थे।

यह शाही जलसा पूरा दिन शहर सरसा के हर गली-मौहल्ले व चौंक से गुजरा। बड़ी तादाद में साध-संगत पूजनीय परम पिता जी के साथ-साथ चल रही थी और ऊंची-ऊंची नारे (धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा) लगाती हुई शहर के बच्चे-बच्चे को इस बेपरवाही खेल से रू-ब-रू करवा रही थी। पूजनीय परम पिता जी के इस अलौकिक रब्बी रूप की झलक से हर कोई खिल गया। जहां-जहां से भी यह शाही जुलूस गुजरता, लोग देखने के लिए उत्सुक हो जाते। जोश-ओ-जशन का ऐसा नजारा शहर निवासियों ने पहले कभी नहीं देखा था।

गद्दीनशीनी के ऐतिहासिक पल:-

वास्तव में यह बेमिसाल शाही जुलूस रूहानियत में नए रंग भर रहा था। इतनी शान-ओ-शौकत के साथ रूहानी गद्दीनशीनी की इस रस्म को पहली बार लोग अपनी आंखों से निहार रहे थे। पूरा शहर इस नजारे को देखने के लिए आया। बच्चे-बच्चे की जुबान पर इस शाही रस्म की चर्चा थी। शहर का हर गली-मौहल्ला इसके नजारों से भर गया। इन अद्भुत नजारोें को देखने के लिए लोग दूर-दूर तक भौरों की तरह मंडरा रहे (मस्ती में घूम रहे) थे। पूरे शहर को अपनी रूहानी आकर्षण से लबरेज करता हुआ यह शाही जलसा शाम को लगभग चार बजे आश्रम शाह मस्ताना जी धाम में वापिस लौटा। इस अलौकिक खेल के सृजनहार शहनशाह मस्ताना जी महाराज भी इंतजार में ही थे। पूजनीय बेपरवाह जी ने पूजनीय परमपिता जी के साथ गई साध-संगत पर अपनी बेइन्तहा खुशियां लुटाई।

इस इलाही जलसे को देखकर पूजनीय सार्इं जी बहुत खुश थे। अपने जानाशीन को दुनिया के सामने प्रकट करके सार्इं जी का हृदय खुशी से फूला नहीं समा रहा था। उनके प्रसन्नचित चेहरे का तेज हर किसी को उल्लास व जोश से भर रहा था। छ: वर्ष पहले यानि 1954 में पूजनीय सार्इं मस्ताना जी महाराज ने अपने इलाही वचनों से जिस महान शख्सियत को जिंदाराम का लीडर बनाने का उच्चारण किया था, आज अपने उस मुकाम (उद्देश्य) को मुकम्मल करके अपार गद्गद् नजर आ रहे थे। उनका हर अंदाज मस्ती की फुव्वारें बरसा रहा था। अपने जानाशीन के शाही जलसे की शानदार सम्पन्नता से गद्गद् पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज खुश व बेफिक्र नजर आ रहे थे, जैसे एक बाप अपनी बेटी के हाथ पीले करके बेफिक्र तथा संतुष्ट नजर आता है। यह खुशकिस्मत समय ऐतिहासिक मिसाल साबित हुआ।

ऐसे सम्पन्न हुई गद्दीनशीनी की पवित्र रस्म:-

इस शुभ अवसर के साक्षी रहे कई पुराने सत्संगी आज भी इस नजारे को अपने दिल में समोए हुए हैं। रूहानियत के पलों में दर्ज यह ऐसा नजारा है कि गद्दीनशीनी के पवित्र अवसर पर खुशियों में शरीक होने के लिए पूरा शहर ही इकट्ठा होकर आया था। जब शाही जुलूस अपनी मंजिल तय करता हुआ आश्रम में आ गया तो पूजनीय परम पिता जी को पूजनीय बेपरवाह जी गुुफा (तेरावास) में ले गए। यह अनामी गुफा पूजनीय बेपरवाह जी ने पूजनीय परमपिता जी के लिए विशेष तौर पर बनवाई है। उपरान्त पूजनीय बेपरवाह जी ने रूहानी, मजलिस लगाई। पूजनीय बेपरवाह जी ने शाही स्टेज पर विराजमान होते ही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को स्टेज पर लाने का हुक्म फरमाया कि ‘जाओ भाई, सरदार सतनाम सिंह जी(पूजनीय परम पिता जी) को गुफा में से लेकर आओ।’

यह सुनकर दो सेवादार भाई तेरावास की ओर चल पड़े। पूजनीय सार्इं जी ने उनको रोका कि ‘ऐसे नहीं भाई, दस सेवादार इक्ट्ठे होकर जाओ और उन्हें पूरे सत्कार से हमारे पास लेकर आओ।’ पूजनीय परम पिता जी के तेरा वास में से आने पर पूजनीय बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता जी को अपने पास ही शाही स्टेज पर विराजमान किया। नए-नए नोटों का एक चमकदार लम्बा हार पूजनीय परम पिता जी के गले में डाल कर संगत को पक्का कर दिया कि ‘अब हमारे वारिस सरदार सतनाम सिंह जी ही हैं।’ सत्संग पंडाल संगत से खचा-खच भरा हुआ था। साध-संगत इस दुर्लभ अलौकिक नजारे को अपनी याद में सजा रही थी। सतगुरु के दो नूरी स्वरूपों को इक्ट्ठे निहारने का यह रब्बी सबब था। पूजनीय बेपरवाह जी अपनी सभी ताकतें व डेरा सच्चा सौदा की तमाम जिम्मेवारियां पूजनीय परम पिता जी को सौंप रहे थे।

इलाही ताकत है सतनाम:-

खुशकिस्मत लोग इस शुभ घड़ी की नूरानी झलक से अन्नत खुशियां पा रहे थे। पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज पूर्ण जोश व हर्षाेंल्लास में थे। बेपरवाह जी अपने इलाही वचनों से साध-संगत को मालोमाल कर रहे थे। साध-संगत को सम्बोधित करते हुए पूजनीय सार्इं जी ने वचन फरमाए, ‘भाई! जिस सतनाम को दुनिया जपती-जपती मर गई, पर वो नहीं मिला। ये वो ही सतनाम है। इनके सहारे सब खण्ड ब्रह्मण्ड खड़े हैं। असीं इन्हें दाता सावण शाह सार्इं के हुक्म से भगवान ईश्वर से मंजूर करवा कर, अर्शाें से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है।’

इस तरह अपने इन अटल वचनों से पूजनीय बेपरवाह जी ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को जिंदाराम का लीडर बना कर डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह विराजमान करके अपने व डेरा सच्चा सौदा के सभी अधिकार उनके सुपुर्द कर दिए। इस तरह 28 फरवरी 1960 को पूजनीय परम पिता जी को गुरुगद्दी सौंपने के बाद पूजनीय सार्इं जी ने साध-संगत को सचेत करते हुए यह वचन भी फरमाए, ‘हमारे बाद यहां सैंकड़े गुरु बनना चाहते हैं। हर कोई पुख्ता रहे और मौज के हाथ चढे, नहीं तो नरकों में जाएगा। कोई इतबार करे या ना करे। असीं सतनाम जी को कुल मालिक परमात्मा बना दिया है। जो इनके हुक्म में रहेगा, मेवा खाएगा, नहीं तो नरकों में जाएगा।’

महा रहमो-करम दिवस की शानो-शौकत:-

अपने सच्चे, मीठे उपरोक्त वचनों से पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को 28 फरवरी 1960 को डेरा सच्चा सौदा गुरुगदद्ी पर दूसरे पातशाह के रूप में विराजमान किया। यह पवित्र दिवस डेरा सच्चा सौदा के इतिहास क ी एक अस्मरणीय छाप है। डेरा सच्चा सौदा के करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए यह दिन सम्मान से भरपूर है। साध-संगत इस शुभ दिहाड़े को कभी भी भ्ुाला नहीं सकती। पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने इस शुभ दिवस की पवित्रता को यादगार बनाते हुए इस दिवस को डेरा सच्चा सौदा में ‘महा रहमो-करम दिवस’ के रूप में मनाने का आदेश फरमाया है। यह पवित्र दिवस हर साल भण्डारे की तरह ही खुशियां लेकर आने वाला दिन है।

पवित्र जीवन की संक्षेप झलक:-

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गांव श्री जलालआणा साहिब तहसील डबवाली जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी ने पूजनीय पिता जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी के घर पूजनीय माता आस कौर जी की पवित्र कोख से उनके विवाह से लगभग अठारह वर्ष बाद 25 जनवरी 1919 को अवतार धारण किया। आप जी सिद्धू वंश के बहुत बड़े जमीन-जायदाद के मालिक थे। आप जी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे।

पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह जी रखा था, परन्तु पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने सतगुरु जी के प्रति बहुत बड़ी कुर्बानी पर खुश होकर आप जी का नाम बदलकर सरदार सतनाम सिंह जी महाराज रख दिया। पूजनीय माता-पिता के शुभ संस्कारों से बचपन से आप जी को परम पिता परमात्मा की भक्ति का शौक था।

सार्इं मस्ताना जी का मिलाप:-

परमपिता परमात्मा की खोज में आप जी अनेक साधु-संतों को मिले, परन्तु कहीं से भी सच्ची तसल्ली नहीं हुई। एक बार जब आप जी डेरा सच्चा सौदा में पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग में आए, बेपरवाह जी के पवित्र मुख से ईलाही सच्ची वाणी सुनी, नूरानी दर्शन किए तो अपने आप को उनके सुपुर्द करके अपना गुरु, मुर्शिद-ए-कामिल मान लिया।

नाम शब्द की प्राप्ति:-

आप जी ने पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के लगभग तीन साल तक सत्संग सुने। इस दौरान कई बार नाम-शब्द लेने की भी कोशिश की, परन्तु पूजनीय बेपरवाह जी हर बार आप जी को यह कह कर नाम लेने वालों में से उठा देते कि ‘अभी आप को नाम लेने का हुक्म नहीं है। जब हुक्म होगा तो खुुद आवाज देकर, बुला कर आप को नाम देंगे। आप सत्संग करते रहो। काल आप का कुछ नहीं बिगाड़ेगा।

’ 14 मार्च 1954 में अनामी धाम घूकां वाली जिला सरसा में पूजनीय बेपरवाह जी ने सत्संग के उपरान्त आप जी को खुद बुला कर तथा आवाज देकर नाम-शब्द की दात बख्शी कि आज आप को नाम लेने का हुक्म हुआ है। आप अंदर जा कर हमारे मूहड़े के पास बैठो। सार्इं जी ने आप जी को अपने मूहड़े के पास बिठा कर वचन फरमाया कि ‘आप को इसलिए पास बिठा कर नाम देते हैं कि आप से कोई काम लेना है। आप को जिंदाराम का लीडर बनाएंगे। जो दुनिया को नाम जपाएगा। ’इस बहाने पूजनीय सार्इं जी ने आप जी को एक तरह से अपना उत्तराधिकारी जाहिर किया, परन्तु इस सच्चाई की समझ किसी को भी नहीं लगी।

गुरगद्दी बख्शिश:-

पूजनीय बेपरवाह जी ने आप जी की सख्त से सख्त परीक्षा ली। आप जी का घर (हवेली) तुड़वाया। आप जी ने अपने मुर्शिद के हर हुक्म को खुशी-खुशी माना। इस तरह आप जी को अपनी हर परीक्षा में सफल पाकर पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह जी से बदलकर सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रखा। पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने आप जी को 28 फरवरी 1960 को डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर बतौर दूसरे पातशाह विराजमान किया।

गुरमंत्र देना:-

आप जी ने लगभग तीन साल बाद यानि 18 अप्रैल 1963 को पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के तीसरे भण्डारे पर अधिकारी जीवों को नाम-शब्द देने की शुरुआत की। आप जी ने 18 अप्रैल 1963 से 26 अगस्त 1990 तक 11 लाख 8 हजार 429 जीवों को नाम-शब्द की अनमोल बख्शिश करके मोक्ष प्रदान किया।

पूज्य संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां उत्तराधिकारी के रूप में:-

आप जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपना उत्तराधिकारी बना कर डेरा सच्चा सौदा गुरुगद्दी पर बतौर तीसरे पातशाह विराजमान किया। आप जी लगभग 15 महीने पूजनीय गुरु जी के साथ साध-संगत में मौजूद रहे। उपरान्त 13 दिसम्बर 1991 को आप जी ज्योति ज्योत समा गए।

साहित्य रचना:-

आप जी पंजाबी तथा हिन्दी भाषा के विद्वान होने के अलावा उर्दू भाषा के भी अच्छे जानकार थे। आप जी ने अपनी महान रचनाओं में कई पवित्र ग्रन्थोेंं की रचना की, जो हिन्दी तथा पंजाबी भाषा में उपलब्ध हैं। आप जी की महान रचनाओं में ‘बन्दे से रब्ब’ हिन्दी व पंजाबी भाषा में प्रकाशित पहला तथा दूसरा भाग बढ़िया रचनाएं हैं। इसके अलावा ‘सचखण्ड की सड़क’ पहला तथा दूसरा भाग हिन्दी तथा पंजाबी भाषा में आप जी की एक और अनमोल रचना है। इसके अलावा ‘सतनोक का संदेश’ हिन्दी और ‘सचखण्ड दा संदेशा’ (पंजाबी) आठ-आठ भागों में सैकड़े (लगभग 1400) भजनों-शब्दों के ग्रन्थ हैं तथा और भी कई रचानाएं मौजूद हैं जो इन्सान को धर्म तथा सच्चाई के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देती हैं।

आश्रम निर्माण:-

आप जी ने अपने जीवन काल में जहां अपने मुर्शिद सतगुरु पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी द्वारा पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यों में स्थापित तेईस अलग-अलग आश्रमों की संभाल की तथा उनके विस्तार कार्य करवाए, वहीं अपनी पवित्र रहनुमाई में उत्तर प्रदेश (यू.पी.) राज्य में डेरा सच्चा सौदा आश्रम बरनावा जिला बागपत स्थापित किया, जिसका नाम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ‘शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा’ रखा है। इस आश्रम की स्थापना से पूजनीय परम पिता जी ने वहां की साध-संगत पर अपना एक और महान उपकार किया है।

डेरा सच्चा सौदा दुनिया में मिसाल:-

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने दुनिया के उद्धार के लिए 29 अप्रैल 1948 को डेरा सच्चा सौदा की स्थापना की है, जो एक सर्व धर्म सांझा सच का पौधा लगाया था, पूजनीय परम पिता जी ने उसको प्रफुल्लित कि या जो कि आज पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के मार्ग दर्शन में बहुत बड़े रूहानी बाग के रूप में कुल दुनिया को रूहानियत तथा इन्सानियत की शिक्षा दे रहा है और दुनिया के लिए सच का रास्ता दिखाने वाला साबित हो रहा है।

इस पाक-पवित्र ‘महा रहमो-करम दिवस’ की सभी को हार्दिक बधाई, मुबारिकबाद। प्यारे सतगुरु जी को चरण-वंदाना, कोटि-कोटि नमन्।

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