जीवन-सुख पाने के लिए आशावादी बनें Be optimistic about life
कई लोग बहुत जल्दी दूसरों की बातों से प्रभावित हो जाते हैं। उन्होंने जरा सी तारीफ कर दी तो आसमान में उड़ने लगे, कमियां गिना दी तो एकदम से हीनभावना पाल बैठे, डिप्रेस रहने लगे।
अपने को भला आप से बढ़कर कौन जज कर सकता है। आप अपने सबसे सच्चे और अच्छे दोस्त हैं इसलिए अपनी मानिए, दूसरों की छोड़िए। उनकी राय निष्पक्ष होगी, इसकी संभावना कम ही है।
अपने को तौल पाने की समझ आपको थोड़ी मेहनत करने पर आ सकती है। उसके लिए इंटलेक्चुएल रूमिंग की जरूरत है जो पढ़ने लिखने व ज्ञानी लोगों की सोहबत में रहने आत्मचिंतन, विश्लेषणात्मक पावर बढ़ाने से हो सकती है। आप वैसे ही होते हैं जैसा आप सोचते हैं। इस कथन में गहरी सच्चाई है। समय-समय पर आपको जितने भी कांप्लीमेंट मिले हैं, उन्हें कभी-कभी मन ही मन दोहराते रहा करें।
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मनोबल बनाये रखें
दूसरों का मनोबल बढ़ाने वाले लोग बहुत कम होते हैं। कई बार तो स्वयं अभिभावक ही अनजाने में संतान का मनोबल तोड़ के रख देते हैं। हर समय की डांट फटकार और कठोर आलोचना बच्चे में कमतरी का अहसास भर देती है।
अक्सर हमारे सोचने का तरीका हमारे माहौल से प्रभावित होता है। हमारे विकास की प्रक्रि या हमारी सोच को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है पर इसके नकारात्मक प्रभाव से व्यक्तित्व को मुक्त कर पाना इतना मुश्किल नहीं है।
हर व्यक्ति को आत्मनिरीक्षण करना आना चाहिए। कितने भी व्यस्त क्यों न रहते हों, आत्मनिरीक्षण के लिए वक्त ठीक उसी तरह निकालें जैसे पूजा के लिये निकालते हैं। यह भी पूजा का ही हिस्सा है। अपने को बेहतर इसी तरह बनाया जा सकता है।
आज की एक बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या है बहुत ऊंचे ख़्वाब व महत्त्वाकांक्षाएं पालना। उन्नति के लिए यह जरूरी है मगर तब नहीं जब आपको लगे कि इस मरीचिका के पीछे आपका सुख चैन खत्म हो रहा है। लोग पैसे को लेकर मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं।
पैसे के अलावा नाम प्रसिद्धि व शोहरत की उत्कृष्ट लालसा लोगों को दीवाना बना देती है। क्या जीवन में यही बातें मायने रखती हैं? टॉप पर आदमी निहायत अकेला पड़ जाता है। वह सुखी ही हो, यह जरूरी नहीं। छोटी-छोटी सफलताओं को गहराई से महसूस कर पाना आना चाहिए बस। ऐसे व्यक्ति के जीवन में खुशियों का अंबार लग जाता है। निराशा उसके पास तक नहीं फटकती।
जीवन प्रतियोगिता नहीं
यहां न कोई जज है, न नंबर 1,2,3. आप जीने का मजा लेने योग्य हैं यही क्या कम है?
रही बात कैरियर की, कैरियर को लेकर इतना भी टैंस न हो जाएं कि यही जीवन का अंत समझ बैठें। किसी भी बात को लेकर उसे जीवन मरण का प्रश्न न बना डालें। यहां निकम्मेपन की वकालत नहीं की जा रही है। मेहनत जरूर करें। मेहनत रंग लाती ही है, देर-सवेर सही। लक्ष्य ही जीवन को सार्थक बनाता है।
अपने पर विश्वास रखें। अपने गुणों को पहचानें। महान विभूतियों से प्रेरणा लें। परिपक्व सोच हो तो बुराई से भी प्रभावित न होकर सकारात्मक रूप से प्रेरणा ली जा सकती है। जो व्यवहार आहत करने वाला है उससे आपको बचना है क्योंकि तभी सच्ची खुशी मिल सकती है। संसार में ज्यादातर महान विभूतियों को अपने जीवन में विषम परिस्थितियों से लड़ना पड़ा है। उन्होंने निराशा को पास फटकने नहीं दिया। कर्मठ होकर आगे बढ़ते रहे और जो चाहा, वो पाया।
अंत में
आशावादिता का सकारात्मक असर तन और मन दोनों पर पड़ता है। मनोवैज्ञानिक क्रि स्टोफर पीटरसन ने एक अध्ययन से मालूम किया कि जो लोग (दूसरे शतक) अर्ली ट्वंटीज में निराशा से घिरे थे, वे चौथे पांचवें शतक तक पहुंचते गंभीर रोगों से घिर गए। मेथाडिस्ट यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक जेम्स पीटर्सन के मुताबिक यह भी संभव है कि निराशावादी अपनी बीमारियों के प्रति उदासीन हो जाते हों और सब कुछ भाग्य के भरोसे छोड़ इलाज ही न कराते हों।
यह जिंदगी से बेवफाई होगी। जीवन में सुख पाने की चाह है तो आशावादी तो बनना ही होगा क्योंकि आशा में ही सुख निहित है। आशा में ही जीवन तरंगें हैं, जीवन को तरंगित करने के लिये। -उषा जैन ‘शीरीं’
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