25 जनवरी को जन्म दाता लीना : 25 January
पावन अवतार दिवस भण्डारा 25 जनवरी 25 January 2016 शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा, सरसा
मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! जो भी साध-संगत आसपास से, दूर-दराज से यहां पधारी है, आप सबका भण्डारे पे, रूहानी सत्संग में पधारने पे तहेदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं!
जी आया नूं! खुशामदीद कहते हैं! मोस्टवेल्कम! यह दिन ‘25 जनवरी’ हमारे लिए बहुत-बहुत महत्ता रखता है। इस दिन सतगुरु-मौला शाह सतनाम जी दाता-रहबर आए, जिन्होंने लाखों लोगों के भाग्य जगाए, करोड़ों के जगा रहे हैं और जगाते रहेंगे। ऐसे मुर्शिद-ए-कामिल, सतगुरु-मौला का जितना धन्यवाद, शुक्राना किया जाए, उतना कम है। साध-संगत खुशियां मना रही है, नाच-गा रही है, दूर-दराज तक जाम लगे हैं, फिर भी मालिक के आशिक चले आ रहे हैं!
तो जो भी साध-संगत घर से चली है, यहां पहुंची या नहीं पहुंची, आप सबको सच्चे मुर्शिदे-कामिल, दाता-रहबर शाह सतनाम जी का पाक-पवित्र अवतार महीना बहुत-बहुत मुबारक हो! और आज का यह अवतार दिन, आपके घरों में नई खुशियां लाए, खुशियों के चिराग जलाए, बुराइयों का अंधेरा हमेशा के लिए गायब हो जाए ये मालिक से प्रार्थना, विनती करते हैं! और आप सबको बहुत-बहुत आशीर्वाद! मुबारकबाद!!
‘25 जनवरी’ वो दिन, जिस दिन हरियाणा के एक गांव श्री जलालआणा साहिब में एक नन्हा-सा बालक, एक नन्हीं-सी रब्बी-जोत धरती पर चलकर आई। वो मां-बाप, जिनके पास दुनियावी हिसाब से सबकुछ था, जैलदार वरियाम सिंह जी, जिनके पास किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी, सबकुछ था उनके पास! लेकिन एक कमी बाकी सब खुशियों को कम कर देती है, और वह कमी थी ‘औलाद का ना होना’!
इतना बड़ा घराना, जमीन-जायदाद सब कुछ था, लेकिन औलाद नहीं थी। एक दिन एक संत आए। माता जी बहुत ही रूहानियत के ख्याल में डूबी रहती थी, साधु-संतों की बहुत सेवा करती थी। वो संत आए और माता जी ने उनकी खूब सेवा की! खाना भेजते रहे, वो आते रहे! उनको दूध, खाना जो भी चाहिए होता है, वो देती रहीं। एक दिन वो संत हंसकर कहने लगे कि ‘माता, तुझे कोई तकलीफ है! लेकिन घबराओ मत! आपके घर में रब्बी-जोत आने वाली है।
लेकिन वो आपके पास रहेगा, पर जो कार्य करने वो आया है, आपके पास से उस कार्य के लिए चला भी जाएगा। आप को ये मंजूर है तो आप बोलो।’ माता जी ने कहा कि ‘मंजूर है।’ …फिर परमपिता जी ने 25 जनवरी को जीवनसिंहवाला (पंजाब) में जन्म लिया।
जब माता जी जलालआणा साहिब में उस नन्हे लाल, नूरी-जलाल को लेकर आई, तो उनके दर्श-दीदार करने वाले आने लगे। वो संत भी आए। संतों ने नन्हें-से बालक को देखा और कहा, ‘भक्तो, आपके घर में तो रब्बी-जोत आई है। इसे संभाल कर रखना, इसे डांटना मत। जितना हो सके इनकी सेवा करना! जितना हो सके इनका साथ देना!’ और ये कहकर वो चले गए।
एक दिन परमपिता जी झूले में झूला ले रहे थे नन्हे-से बाल स्वरूप। एक झींवर आए, जो पानी भरते हैं! उस समय जलालआणा साहिब में पानी नहीं था, दूर से पानी लेकर आते थे। और वो झीवर पानी डालने के बाद शाह सतनाम जी दाता के पालने के पास खड़े हो गए। एक टक निहारने लगे!
टकटकी लगाकर देखने लगे! माता जी ने देखा, तो वो दूर से दौड़ती हुई आई और परमपिता जी को अपनी गोद में उठा लिया और छुपाने के अंदाज में एक साईड में करते हुए बोली, ‘भाई, तू क्या देख रहा है! कभी बच्चा नहीं देखा क्या?’ तो झींवर मुस्कुराकर कहने लगा कि मां, मां ही होती है! हे मां, मुझे आपके इस बच्चे के रूप में किसी महापुरुष के दर्श-दीदार हो रहे थे। किसी अवतार के दर्शन हो रहे थे! मेरी नीयत इनको नजर लगाने की नहीं थी! मेरी नीयत इनके दर्श-दीदार करने की थी!
पर मां का दिल तो मां का होता है! ये कहकर वो झींवर चले गए।
बेपरवाह जी ऐसे ही अलौकिक नजारे दिखाते हुए थोड़े से बड़े हुए। पढ़ने लगे, तो साथ वाले बच्चों को अपने बुक्स देना, साईकिल पे छोड़कर आना, बीमार को साईकिल पर बिठाकर उसके घर पर छोड़कर आना…! उस समय में साईकिल भी नहीं होते थे। और एक दिन परमपिता जी छोटी-सी उम्र में माता जी के पास बैठे रोटी खा रहे थे। उसी समय एक गरीब परिवार आया। चार-पांच साल के रहे होंगे शाह सतनाम जी दाता।
वो गरीब परिवार माता जी को अपनी व्यथा सुनाने लगा कि माता जी, हम फलां आदमी के नौकर (सीरी) हैं, लेकिन उसने हमें पैसा नहीं दिया! बेटी की शादी है, बारात आने वाली है। दो दिन रह गए! जार-जार वो आदमी रोए जा रहा था, अपने दु:ख में, दर्द भरी कहानी कह रहा था।
माता जी कहने लगी, ‘भाई, क्या चाहिए?’ तो उसने कहा कि जी, सौ रुपए दे दो। मैं जल्द ही वापिस कर दूंगा। माता जी कुछ कहने वाली थी कि नन्हे-से बाल स्वरूप दाता जी कहने लगे, ‘मां, इनको सौ की जगह दो सौ रूपए दे दो! मैं एक फुलका कम खा लिया करुंगा… और आप ये सोच लेना कि आपने मेरी बहन की शादी की है!
इनसे कभी रुपए वापिस मत लेना।’ अब जरा सोचिए, कोई चार-पांच साल का बच्चा क्या ऐसी बात कह सकता है? क्या इस तरह की कोई चर्चा कर सकता है? जी नहीं, बड़ा ही मुश्किल होता है इस तरह कह पाना।
तो तभी से कहते हैं कि ‘पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं।’ शाह सतनाम जी दाता ने रूहानियत, इन्सानियत का पाठ पढ़ाया और सबको समझाने लगे, सबको बताने लगे।
एक बार जब सतगुरु जी बड़े हुए उस समय की बात। माता जी कहने लगे, गांव के बिल्कुल पास परिवार का एक खेत था, वहां आवारा पशु चले जाते हैं। झोटे हैं, सांड हैं, निगरानी करना! कुछ दिन गुजरे, माता जी ने, शाह सतनाम जी महाराज के साथ जो लोग काम करते थे, उनसे पूछा कि क्यों भाई, अब तो उजाड़ा नहीं होता, अब तो ये रखवाली करने जाते हैं? तो नौकर ने हंसकर कहा कि माता जी, अब जब झोटे, सांड आते हैं, तो ये (‘हरबंस सिंह’ नाम था शाह सतनाम जी दाता का) पास खड़े होकर कहते हैं कि खा लो भाई, खा लो, ये आपका ही है! तो जब ये बात माता जी ने सुनी तो शाह सतनाम जी महाराज को माता जी कहने लगी कि आपको भेजते हैं कि आप निगरानी करो, आप तो फसल चरवा देते हो! ये गलत बात है! बेपरवाह जी कहने लगे कि जी, ठीक है। अगले दिन जब गुरु जी वहां गए तो, वो झोटा बहुत पावरफुल था, गांव वाले डरते थे उससे, उसको थापी देकर कहने लगे कि भक्ता!
घर में माता जी के पास शिकायत हो गई, अब तू हिस्सेनुसार सब जगह मुंह मार लिया कर। एक ही जगह मुंह मत मारा कर! और गांव वाले गवाह हैं वो बुजुर्ग बताया करते कि उस दिन के बाद हमने उस झोटे को कभी एक जगह खाते नहीं देखा। यहां थोड़ा सा मुंह मारा, थोड़ा सा वहां मुंह मारा, दस-पंद्रह लोगों के खेतों में खाता खाता निकल जाता। तो पशु, यानि झोटा, ‘पशु होकर करे पहचान जी।’, पहचान हो जाती है कई बार जानवरों को भी, लेकिन इन्सान ना समझ रह जाता है। …तो शाह सतनाम जी दाता रहबर का ये नजारा जिन्होंने देखा, वो इन्कार कैसे कर सकते हैं, जो उनके साथ बीती, जो उन्होंने महसूस किया कि हां, वाकई सतगुरु-मौला परमपिता परमात्मा के रूप में उनके दूत, उनके संत, उनके फकीर बनकर आए और लोगों को राम-नाम का सौदा बताया और उन्हें ईश्वर से जोड़ा।
और आज छ: करोड़ से भी ज्यादा लोग राम-नाम का जाप करते हैं, ओम, हरि, अल्लाह की भक्ति करते हैं और उनके अन्त:करण में तमाम खुशियां हैं, जिनकी लोग कल्पना किया करते हैं।
हर इन्सान चाहता है कि उसे आत्मिक शांति मिले, उसे तंदरुस्ती मिले, घर-परिवार में खुशियां हो! और ये देखा गया है कि सिर्फ चाहत कर लेने से हर चाहत पूरी नहीं होती। इच्छा पूरी होती है जब प्रभु कृपा करता है। हमारे वेदों में लिखा है कि ‘हिम्मत करे अगर इन्सान, तो सहायता करे भगवान।’ आप ईश्वर की भक्ति करते हो, राम-नाम का जाप करते हो और भगवान से मांगते हो कि वो आपको खुशियां दे, दया-मेहर, रहमत करे, तो ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ मेहनत आपको करनी होगी! कर्मयोगी आप बनो, ज्ञानयोगी भी बनो तो प्रभु की कृपा आप पर जरूर होती है।
आप लेटे हुए हो, नींद नहीं आ रही, तो ईश्वर की भक्ति कीजिए! इससे दिलो-दिमाग फे्रश होता है और नींद भी आ जाती है, तो उसमें राम-नाम के ख्याल आते रहते हैं, बुरे ख्याल नहीं आते। लेकिन अगर ईश्वर से आप चाहते हो कि वो आपको तरक्की दे, तो मेहनत करना जरूरी है। क्योंकि आप लेटे हुए ईश्वर से कृपा मांगते हो, आप खुर्राटे मारे जा रहे हो, तब वो आपको पांच खुर्राटे और दे देंगे कि चलो भाई, बच्चे को थोड़ी नींद और बख्श देते हैं! आप मेहनत करो, जमींदार किसान हो, तो अच्छी बुवाई, निराई, गुड़ाई, बिजाई करें, फिर परमात्मा, राम का नाम जपो, तो मालिक जरूर फसल में बरकत डाल देंगे!
आप दुकानदार हो, अच्छी क्वालिटी रखो, सुबह-सवेरे जल्दी दुकान खोलो, मेहनत करो, लगन से लगे रहो, बिजनेस-व्यापार करो, तो ईश्वर जरूर बरकत डाल देंगे। आप पढ़ने-लिखने वाले विद्यार्थी हो, आप पूरा लगन से पढ़ो, ईश्वर का नाम जपो, अगर 70-75% अंक आपकी पढ़ाई करने से आते हैं, तो मालिक आपकी मेरिट ला देंगे, ये तो हो सकता है। भगवान ऐसा करेंगे, लेकिन कर्मयोगी और ज्ञानयोगी बनना अति जरूरी है। जब तक इन्सान कर्मयोगी और ज्ञानयोगी नहीं बनता, तब तक वो खाली रहता है।
हर किसी को मेहनत, कड़ा परिश्रम करना चाहिए। हम आपको उदाहरण देना चाहेंगे! सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों में, सभी धर्मों के अवतारों ने साफ-साफ लिखा है। हमारे हिंदू धर्म में श्री राम जी, श्री कृष्ण जी अवतार ही नहीं थे, वो भगवान भी थे और राजा-महाराजा भी थे! लेकिन जब वो गुरुकुल में पढ़ा करते थे, तो पशुओं को चराना, खेती-बाड़ी करना, वन से लकड़ी बीन कर लाना, खाना बनाना, गुरु और गुरु-मां के सोने के बाद सोना और उनके जागने से पहले जागना। इसलिए उन्होंने हमें ज्ञान बख्शा, जिसे पूरा वर्ल्ड फॉलो करता, तो पता नहीं कहां से कहां पहुंचता। पर ये लाईनें पूरी दुनिया में गूंजती हैं कि ‘कर्मयोगी बनो और ज्ञानयोगी बनो’।
आप ठग्गी बेईमानी भ्रष्टाचार मत करो! क्योंकि ये सब करने से, दूसरे का हक मारकर खाने से आपके पास दौलत तो आती है, लेकिन घर से खुशियां, तंदुरुस्ती, प्यार-मोहब्बत सब चला जाता है। और ये हमने भी आजमाया है। जिस घर में जन्म हुआ भगवान की कृपा से, उस परिवार में कड़ा परिश्रम, मेहनत की कमाई पर जोर दिया जाता था। हमने देखा कि उस पैसे को कोई दबा भी लेता, तो वो कई गुना होकर निकलता था। इसलिए धर्मों में जो लिखा है कि मेहनत, कड़ा परिश्रम, हक-हलाल, दसां नहुआं दी किरत कमाई जो किया करते हैं, वो आनंद में रहते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं।
वो वचन सौ प्रसेंट सत्य है।
बिन अमलां दे आलमा,
इल्म निकम्मे सारे।
कोई अमल कमा लै तूं,
जे जस लैणा सतगुरु द्वारे।।
अमल कीजिए। अमल के बिना बेड़ा पार नहीं होता। बातें करने से कुछ नहीं होता। आप बातें करते रहो कि हलवा बहुत मीठा होता है, चीनी डलती है, अच्छा बनाने वाला हो, अच्छा घी डाले तो कमाल हो जाए! कोई स्वाद आया बातें करने से? क्या पेट भरा? नहीं। इसलिए अमल करो, रीयल में ऐसा करो, आटा डाला, घी डाला, रवा तैयार किया, उसको बनाया और उसको खाओगे तो स्वाद भी आएगा, ताकत भी आएगी। उसी तरह सिर्फ बातें करना हलवे की बातें करने के बराबर हैं कि हां भाई, भगवान बड़े अच्छे हैं, ऐसा करना तो सिर्फ बातें करना है।
उसको पाना चाहते हो, उसको देखना चाहते हो, तो भक्ति करनी होगी। वो दिखावे में नहीं आता, भक्ति से पल में मिल जाया करता है। इसलिए भक्तजनो! ठग्गी, बेईमानी, भ्रष्टाचार ना करो। कभी किसी का दिल न दुखाओ! किसी का हक मारकर न खाया करो! हमेशा मेहनत कर के खाओ, ये सिखाया हमें शाह सतनाम जी दाता ने।
…तो एक भजन आपकी सेवा में अर्ज करते हैं, जो अभी-अभी बना है, इसके बाद फिर से आपकी सेवा में अर्ज़ करेंगे।
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तो अभी एक भजन:-
शेयर:-
हो…ओ…ओ…ओ…
शाह सतनाम… शाह मस्तान…
तेरी दया, रहमत ऐसी हुई,
गिरे हुओं को छाती से लगाया तूने।
पांव में रुलते थे जो कंकर-पत्थर,
कोहिनूर बनाया तूने।
ऐसी कृपा उस परमपिता परमात्मा की,
बिना दाम लिए उससे हमें मिलाया तूने।
हर पल हमारे लिए जीते रहे आप, और कभी अपना कोई गम, दु:ख हमें सुनाया न तूने।
सबके बोझ उठाकर हल्का कर दिया मौला,
कभी एहसान न जताया तूने।
सारी जिंदगी गुणगान गाओ उस रब्ब के, राम के, अल्लाह-पिया के मेरे दाता कहां…
और अपने लिए कोई बड़ा शब्द ना कभी कहलाया तूने।।
टेक:- 25 January
25 जनवरी को जन्म दाता लीना, जन्म दाता लीना-2
शाह सतनाम जी ने जगत तार दीना, जगत तार दीना-2
1. धन माता-पिता यहां जन्म लिया, मेरे सोहणे दातार ने-2
कण-कण खुशियां छाई हैं, आए वाली दो जहान में-2
25 जनवरी को …
2. नूर दो जहां से है भरा हुआ, चेहरा मेरे सतगुरु का -2
देखे जो देखता ही रह जाए, बोले धन-धन वो सतगुरु का-2
25 जनवरी को …
3. गांव-शहर जाके सत्संग किए, रूहों के वणजारे ने -2
तड़पती रूहों को सुकून बख्शा, सच्चे जी तारणहारे ने -2
25 जनवरी को …
4. पाखंडियों से करवाया छुटकारा, सच्चा नाम दे के पीया ने -2
खुशियों की फिर कोई कमी न रहे, जिसने भी सुमिरन किया रे -2
25 जनवरी को …
5. धन-धन ‘शाह सतनाम जी’ पिया, मैं गुण गाऊं दिन-रात -2
खाक ‘मीत’ में तू जी समा के, खाक को कर दिया सौगात -2
25 जनवरी को …।।
भजन में आया-
25 जनवरी को जन्म दाता लीना,
जन्म दाता लीना,
शाह सतनाम जी ने जगत तार दीना, जगत तार दीना।
धन माता-पिता यहां जन्म लिया,
मेरे सोहणे दातार ने,
कण-कण खुशियां छाई हैं,
आए वाली दो जहान में।
पिता वरियाम सिंह जी, माता आस कौर जी निवासी गांव श्री जलालआणा साहिब, जिला सरसा में दाता जी आए। उन्होंने रूहानियत, इन्सानियत का सच्चा पाठ पढ़ाया। उन्होंने बताया कि हर धर्म, मजहब में उस मालिक से मिलने का तरीका बताया जाता है। रास्ता अलग हो सकता है, लेकिन जाया वहीं जाता है, जहां आपने जाना है। ‘अलग’ का मतलब है भाषा, यानि भाषा अलग-अलग होती है। … और जैसे गुरु जी ने हमें बोला कि आप सभी धर्मों की रिसर्च कीजिए, तो हमने सभी धर्मों को पढ़कर देखा। वाकई, भाषा जरूर अलग है, लेकिन सभी एक ही तरफ जाने वाले हैं।
दाता जी ने, ‘हम सब एक हैं’ का पाठ पढ़ाया। हर धर्म में भी यही लिखा है।
हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में साफ लिखा है कि ब्रह्मा जी के पुत्र-पुत्री ‘समभ्यमनु’ और ‘सत्रूपा’ हुए, और उनकी हम औलाद हैं, इसलिए ‘मनुष्यता’ हमारी जात है। सिख धर्म में लिखा है, ‘माणस की जात सभै एको पहचानबो’। ईसाई धर्म में लिखा है, ‘गॉड इज वन। ह्यूमिनिटी इस अवर कास्ट।’ इस्लाम धर्म में लिखा है, ‘आदम और हव्वा की हम औलाद हैं और आदमीयत हमारी जात है।’ कहने का मतलब है कि भाषा जरूर अलग-अलग है, लेकिन बात सबकी एक ही है कि हमारा पिता, हमारा भगवान एक है और उसी की हम औलाद हैं।
पवित्र वेदों में लिखा है कि भगवान से मांगो अच्छी धरती, अच्छा पानी, अच्छी हवा, अच्छी संतान, अच्छा स्वास्थ्य और भगवान से मांगना है, तो भगवान से भगवान को मांगो। सिख धर्म में लिखा है, ‘जो मागहि ठाकुर अपुने ते सोई-सोई देवै।’ कि आप जो अपने ठाकुर, भगवान, ईश्वर, वाहेगुरु, राम से मांगोगे, वो आपकी झोलियां भरता जाएगा, कमी छोड़ेगा ही नहीं! बस, मांगने का तरीका आना चाहिए। ईसाई धर्म में लिखा है कि गॉड देता है, लेता नहीं।
यही इस्लाम धर्म में लिखा है कि ‘अल्लाह रहमो-करम का दाता है। वो इतना रहमो-करम बरसाता है कि लोगों के दामन छोटे पड़ जाते हैं, लेकिन उसका रहमो-करम मूसलाधार बरसता चला जाता है।’ कहने का मतलब है कि सभी धर्मों में एक ही बात लिखी हुई है और सब सच था, सच है और सच ही रहेगा। आदमी की सोच बदल सकती है, लेकिन हमारे ऋषि-मुनि, अवतारों ने जो कुछ हमारे लिए लिखा, चाहे युग कितने भी बदलते रहें, वो सच था, सच है! और चाहे प्रलय-महाप्रलय भी आ जाए, तो भी वो सच ही रहेगा।
नूर दो जहां से है भरा हुआ,
चेहरा मेरे सतगुरु का,
देखे जो देखता ही रह जाए,
बोले धन-धन वो सतगुरु का।
सतगुरु, मुर्शिदे-कामिल का नूर-नूरानी चेहरा जिसने भी देखा, वो बस देखता ही रह गया। आपको बताएं कि गुरु बिना ज्ञान नहीं होता। ‘गु’ का मतलब है ‘अंधकार’ और ‘रु’ का मतलब है ‘प्रकाश’, यानि ‘जो अज्ञानता रूपी अंधकार में, ज्ञान रूपी दीपक जला दे, वो ‘सच्चा गुरु’ होता है।’ गुरु कभी किसी से कुछ मांगता नहीं।
गुरु कभी किसी को दु:खी नहीं करता। उसके दिलो-दिमाग में सबके लिए प्रार्थनाएं होती हैं। उसके कर्मों में सबका भला करने की प्रेरणा होती है।
वेदों में लिखा है कि सुबह दो से पांच बजे का समय सर्वश्रेष्ठ होता है भक्ति के लिए। इस समय को ‘ब्रह्ममुहूर्त’ कहा गया है। सिख धर्म में इस समय को ‘अमृतवेला’, इस्लाम धर्म में इस समय को ‘बांगे वक्त’ कहा गया और इंग्लिश फकीरों ने कहा, ‘द् गॉडस प्रेयर टाईम’। नासा सार्इंस केन्द्र भी अब मानने लगा है कि सुबह दो से पांच बजे आॅक्सीजन की मात्रा अधिक और शुद्ध होती है। इसमें अगर मेडिटेशन किया जाए, तो विल-पावर, आत्मविश्वास बढ़ेगा और सफलता आपके कदम चूमेगी।
बात पे बात ख्याल में आई। एक साहुकार के बेटे को कपड़े पहनने का बड़ा जुनून था और वो विदेशी कपड़े ज्यादा पहनता था। उसका बाप बहुत तंग हो गया, हालांकि वो बहुत अमीर था, लेकिन उसका बेटा नए-नए डिजाइन के, महंगे कपड़े ही पहनता। एक दिन वो बाप अपने गुरु के पास गया और अपनी समस्या बताई। गुरु जी ने कहा कि इसका तो बड़ा आसान तरीका है। और गुरु जी ने उसके कान में सब समझा दिया।
अगले दिन वो लड़का कपड़े की दुकान में गया, तो वहां एक बड़ा खूबसूरत कपड़ा था। उसने पूछा कि ये कपड़ा कहां का है? तो दुकानदार कहने लगा कि ये तेरे बस का नहीं। उसने पूछा कि क्यों? तो वो बोला कि ये बहुत महंगा है। ये है तो मेड इन इटली, लेकिन किसी बड़ी कंपनी ने बनाया है और गर्मियों में पहनने वाला कपड़ा है!
उसने देखा, वो जालीदार बड़ा ही खूबसूरत कपड़ा था। तो जितना भी पैसा उसने मांगा, उसने उतना पैसा देकर वो कपड़ा लेकर घर आ गया। बाप ने पूछा कि बेटा, कपड़ा ले आया? वो कहता कि जी हां, देखो! बाप हंसने लगा कि बेटा, ये कपड़ा मेरे यहां से ही गया है। उसने पूछा कि आपने कब फैक्ट्री खोल ली! उसने कहा कि फैक्ट्री नहीं खोली।
जिन कट्टों में मैं मिर्ची लेकर आया हूं, ये वही कट्टे हैं। मैंने इनमें अबरक लगा दिया, मैटिरियल तैयार हो गया और तुझे बड़ा अच्छा लगा। उसने वो फैंक दिया और बोला कि मैं नहीं पहनता। बाप ने पूछा कि क्यों बेटा, मेड इन इटली था, तो पहन लिया! अब मेड इन बाप हो गया, तो फैंक दिया!
कहने का मतलब कि कई बार ऐसा भी हो जाता है! हमने तो ऐसा बहुत जगह देखा है। महानगरों में मैथड आफ मेडिटेशन के नाम पर भागे आते हैं और गुरुमंत्र के नाम पे कहते हैं कि रहने दो। मुंबई में एक बार ऐसा हुआ कि सेवादारों ने किसी के घर का दरवाजा खटखटाया। उनसे कहा कि आओ, राम-नाम सुन लो।
तो उन्होंने पांच रुपए दिए और कहा कि ये लो, और पीछा छोड़ो! कहने का मतलब है कि सब कुछ लिखा हुआ पुरातन से हमारा ही है। पूरी दुनिया नालंदा यूनिवर्सिटी में कभी आया करती थी। पूरी दुनिया कभी वेदों का राग गाया करती थी। आज हम मानने वाले ही ढंग से नहीं मानते, पूरी दुनिया के लोग आकर क्या सुनेंगे! फॉलो नहीं करते उस तरह से, जिस तरह से करना चाहिए! बल्कि दिखावे पर जोर ज्यादा है। कर्म वैसे नहीं करते, जैसा धर्म कहते हैं।
धर्मों में लिखा है कि राम-नाम का नशा, ऐसा नशा है जिसके सामने शहद, घी, दूध, शक्कर, गुड़ मीठे तो हैं, लेकिन राम-नाम के सामने तुच्छ हैं! इतना राम-नाम मीठा है! दुनिया में नशे बहुत हैं, जैसे शराब, अफीम, पोस्त, भांग। ये बड़े ही ऊंचे नशे हैं, लेकिन राम-नाम के सामने ये सारे नशे गंदगी हैं।
यही बात सभी धर्मों में लिखी है। इस्लाम धर्म में लिखा है कि मजाजी शराब के मटके भरे हों और अल्लाह की इबादत का एक पल, इनकी आपस में तुलना करें, तो वो एक पल अरबों-खरबों दर्जे ज्यादा नशा देने वाला है। सिख धर्म के वचन आपने सुन ही लिए कि राम-नाम की खुमारी एक बार पी लो, तो दोनों जहान में चढ़ी रहेगी और कभी उतरेगी नहीं। ऐसा नशा चढ़ेगा कि अंदर सरूर होगा, चेहरे पे नूर होगा और खुशियों से आप मालामाल हो जाएंगे। लेकिन आज के नौजवानों को हमारी संस्कृति छोटी लगती है।
फिल्मों का जिक्र आया। फिल्म के सिलसिले में हम कई जगह गए। पत्रकारों ने हमसे सवाल किए। एक बच्ची ने पूछा कि आप कहते हो कि छोटे-छोटे कपड़े नहीं पहनने चाहिए। ये गलत है। हमने कहा कि हां बेटा! हमारे धर्मों में तो बेटी को ‘माई’ का रूप दिया है। वो कहने लगी कि गुरु जी, ये कोई बात थोड़े ही न है। हम तो बहुत आगे की सोचते हैं, हम तो बहुत फ्रैंक हैं। हमने कहा कि बेटा, हमसे एक गलती हो गई।
हमने तो फिर आदिवासियों को ऐसे ही बदल दिया, उनको कपड़े पहनवा दिए! वो तो टोटल नंगे रहते थे, वो तो महाफ्रैंक थे! उसने पूछा कि गुरु जी, फिर आप बताओ कि फ्रैंक क्या होता है। हमने कहा कि हमारे अनुसार, आप अपने धर्म, देश, मां-बाप का नाम इतना ऊंचा कर दो कि दुनिया उससे शिक्षा लेने आए, इसी का नाम फ्रैंक होता है।
रही बात कि वेदों में बेटी को माई क्यों कहा गया, या मां का दर्जा क्यों दिया गया! छोटी सी बच्ची को भी ऋषि-मुनि ‘माई’ कहते थे। क्यों? जिनके यहां बेटियां हैं, जब बेटी छोटी सी होती है, वो अपने मां-बाप की मां बन जाती है। वो हमेशा कहती है कि पापा, ये नहीं खाना! पापा, वो नहीं पहनना! आपको ऐसे ढंग से पहनना चाहिए!
आपको ये करना चाहिए!
फिर बेटियां बड़ी होती हैं, शादी हो जाती है, उनका आपस में प्रेम है, तो पत्नी सिर्फ पत्नी नहीं होती, वो पति की मां की तरह संभाल भी करती है कि आप ये कपड़ा पहनो सर्दी है! ये खाना खाओ! वो खाओ! …तो क्या वेदों ने गलत कहा कि बच्ची मां की तरह होती है? इसलिए लोगों को समझना चाहिए कि हमारी संस्कृति बहुत ऊंची है।
हम किसी देश का नाम नहीं लेंगे। हम विदेशों में गए। हर किसी की गोद में कुत्ता, बिल्ली इत्यादि था। जैसे हम अपने यहां बच्चे को प्यार करते हैं, वो उनसे करते हैं। वहां के लोग कहने लगे कि गुरु जी, इनको कुछ मत कहना। हमने पूछा कि क्यों? वो कहते कि जी, ये इनके बेटे-बेटियां हैं। हमने कहा कि अच्छा!
कितने फ्रैंक हैं ये लोग…! एक बार एक स्टेशन पर बैठे थे। एक कुत्ते ने भौं…! भौं…! किया, तो वो उसको समझा रहा है इंग्लिश में… हम आपको हिंदी में बताते हैं। वो उसे समझा रहा था कि ना…ना…ना…! ऐसा नहीं करते…! शायद इसीलिए वहां शादियां होती नहीं। जो होती हैं, उनमें से दो-चार ही बचती हैं, बाकी टूट जाती हैं। और जो बच्चे हो रहे हैं, उनका ये नहीं पता कि बाप कौन है और मां कौन है। बुरा न मानना, आप फ्रैंक बनना चाहते हो न, तो क्या आप ऐसा बनना चाहते हैं!
एक बार काफी देशों के लोग बैठे थे। चर्चा कर रहे थे कि हमारी संस्कृति बहुत पुरातन है। वो कहने लगे कि इसमें ऐसा क्या खास है? हमने कहा कि ‘ए’ से लेकर ‘जेड’ तक आपको सुना सकते हैं, लेकिन आपके लिए ‘ए’ ही काफी है। हम सब जब बच्चे थे, सर्दी के मौसम में बिस्तर गीला कर देते थे, तो मां उठाती थी, हमें सूखी जगह सुलाती थी और खुद गीली जगह पर सारी रात खुद लेटी रहती थी।
फिर समय आया, मां बूढ़ी हो गई, उठ नहीं पाती थी, चारपाई से चल नहीं पाती थी, उनकी संभाल हम बने, हम उनको उठाते हैं, उनको लेकर जाते हैं, बेटी-बेटियां को नहलाते हैं, खिलाते हैं। इसलिए हम एक-दूसरे के पूरक हैं। बचपन में वो संभालते हैं और लास्ट में हम ऋण उतारते हैं। हमने उनसे पूछा कि क्या आपके किसी देश में ऐसा होता है? वो कहने लगे कि गुरु जी, ऐसा तो होता ही नहीं!
…तो, हम किसी देश को अच्छा-बुरा नहीं कहते। हर देश में अच्छे-भले लोग भी हैं, लेकिन हम तो यहां अपने देश के नौजवानों को कह रहे हैं, नौजवानो! आपको पता नहीं क्यों लगता है कि हमारी सभ्यता, संस्कृति दोयम दर्जे की है! जबकि यह टॉप क्लास है! हम आपको गारंटी देते हैं कि ऐसी संस्कृति कहीं और मिलना बड़ा मुश्किल है। लेकिन आप लोग तो अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते हो। ऊपर से कहते हो कि जाओ वृद्धाश्रम! यहां आपका दिल नहीं लगता, वहां आपकी उम्र के यार-दोस्त होंगे, उनसे बातें करना!
आपको क्या पता, उनके पोते-नाती उनको कितने प्यारे होते हैं! कितनी मोहब्बत होती है उनको अपने खून से! हमें भी लोगों ने कहा कि गुरु जी, वृद्धाश्रम बनाओ। हमने कहा कि जरूर बनाएंगे। लेकिन उस पर लिखेंगे ‘अनाथ वृद्धाश्रम’, कि जिनके बच्चे मर गए, वो बुजुर्ग यहां रहें। फिर बच्चे छोड़कर जाएं उस आश्रम में अपने मां-बाप को, जब वो पढ़ेंगे ‘अनाथ वृद्धाश्रम’, तो कम से कम उनको अकल आएगी कि हम तो जिंदा हैं।
… तो धर्म, मजहब गलत नहीं सिखाते, लेकिन लोग अपनी सभ्यता, संस्कृति को छोड़कर गलत होते जा रहे हैं। धर्मों में ये जरूरी लिखा है कि जीव-जंतुओं की रक्षा अपने बच्चों की तरह करो, लेकिन यह नहीं लिखा कि अपने बच्चे पैदा ही न करो और उन जीव-जंतुओं को ही अपने बच्चे बना लो! यही हकीकत है।
धन-धन ‘शाह सतनाम जी’ पिया, मैं गुण गाऊं दिन-रात, -2
खाक ‘मीत’ में तू जी समा के, खाक को कर दिया सौगात। -2
…तो ये सब शिक्षा दी मुर्शिदे-कामिल, दाता, सतगुरु शाह सतनाम जी महाराज ने। ऐसे सतगुरु, मुर्शिद को अरबों बार नमन करते हैं! और आप सबको बहुत-बहुत आशीर्वाद! आशीर्वाद!!
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