ईश्वरीय वरदान थे पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी 5 अक्तूबर: परमार्थी दिवस पर विशेष
दुनिया में पता नहीं कितने लोग आते हैं और अपना समय पूरा करके यहां से चले जाते हैं। उनमें से बहुत लोग ऐसे भी हैं जिनका कोई नाम तक नहीं जानता और कुछ ऐसे भी हैं, चाहे सदियां गुजर गई यहां से विदा लिए, परन्तु उनका नाम आज भी लोगों के दिलो-जिगर पर छाया हुआ है। वे या तो योद्धा, शूरवीर, बहादुर हुए हैं या बहुत बड़े समाज सुधारक या फिर संत, पीर-पैगम्बर, महापुरुष और या वे महापुरुष जो रूहानी संतों, पीर-फकीरों के जन्म दाता हैं।
जब वे मालिक की याद में समय लगाकर इस संसार को छोड़कर जाते हैं, जोकि इन्सानियत की मिसाल होते हैं, उनका नाम हमेशा अमर रहता है। वैसे ही पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पूज्य पिता नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी थे। रूहानियत में उन्हें बहुत ऊंचा रुतबा हासिल था। वे इन्सानियत की भी जिंदा मिसाल थे। ऐसी महान हस्तियां जब इस संसार से विदायगी लेती हैं तो वे अकेले नहीं जाती, बल्कि रूहानी मंडलों पर अटकी हुई बहुत सी रूहों को भी अपने साथ ले जाया करती हैं। वो माता-पिता भी धन्य-धन्य कहने योग्य हैं जो ऐसे लाल को जन्म देते हैं। ऐसी महान व पाक-पवित्र रूहें मालिक की याद में समय लगाकर उस कुल मालिक के श्रीचरणों में सचखण्ड में समा जाती हैं और उनका नाम दोनों जहानों में अमर हो जाता है।
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पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी इन्सानियत की चरम सीमा को छूता हुआ मालिक का वरदान थे। वे पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के जन्मदाता थे। वे पर्वतों से ऊंचे तथा समुद्र से भी गहरे सभी गुणों से सम्पन्न स्वयं एक महान अद्वितीय व्यक्तित्व थे। वे समाज तथा अपने इलाके के हर दिल अजीज थे। नि:संदेह वे त्याग की मूर्ति व उच्च आदर्शाें के धनी थे। पूज्य बापू जी एक महान हस्ती के मालिक थे, जिनके घर स्वयं खुद-खुदा ने पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के स्वरूप में अवतार धारण किया।
इससे बड़ी कुर्बानी व महान त्याग कोई और हो नहीं सकता कि उन्होंने 18 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद जन्मे अपने इकलौते व अति लाडले वारिस (अपनी इकलौती संतान) को अपने परम पूजनीय मुर्शिद-ए-कामिल परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के मात्र एक इशारे पर हँसते-हँसते उनको अर्पित कर दिया और मन में जरा भी कोई ख्याल नहीं आने दिया। आप जी का समूचा जीवन मानवीय चेतना का प्रकाश स्तम्भ है जिससे ज्ञान, आत्म-चिंतन, सर्वधर्म संगम के रूहानी प्रकाश से सराबोर नूरी किरणें परमार्थ के चाहवान जिज्ञासुओं को ही नहीं, कुल दुनिया को अपना नूरी प्रकाश प्रदान कर उनका मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी।
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जन्म व माता-पिता:-
पूज्य बापू जी का जन्म सन् 1929 को राजस्थान के जिला श्री गंगानगर के पवित्र गांव श्री गुरुसर मोडिया में पूज्य पिता स. चित्ता सिंह जी के घर पूजनीय माता संत कौर जी की कोख से हुआ। क्योंकि पूजनीय पिता स. संता सिंह जी व पूज्य माता चंद कौर जी ने आपजी को बचपन में ही गोद ले लिया था, इसलिए आप जी इन्हें ही (स. संता सिंह जी व माता चंद कौर जी) को अपने जन्मदाता मानते थे। आपजी का जन्म देसी माह मग्घर (मार्गशीर्ष) को हुआ था, इसलिए आप जी के बड़े बुजुर्गाें ने आप जी का नाम सरदार मग्घर सिंह जी रख दिया था।
धार्मिक संस्कार:-
पूजनीय बापू जी के पूज्य माता-पिता व पूज्य दादा सरदार हरी सिंह जी धार्मिक प्रवृति के बहुत ही नेक इन्सान थे। आप जी बचपन में ही पंजाबी पढ़ना-लिखना सीख गए थे। श्री गुरुनानक देव जी की पवित्र जन्मसाखी और गुरुसाहिबानों व महापुरुषों के पवित्र ग्रन्थ आप जी बड़े ही अदब से रखते व पढ़ा करते थे। आप जी रूहानियत से जुड़ी एक अति पवित्र आत्मा थे। आपकी हर अदा आम लोगों से निराली थी। सतगुरु जी की आप पर विशेष अनुकंपा (रहमत) थी। आप जी ने अपने लाडले के साथ, जब वे पांच-छह वर्ष के थे, परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-दीक्षा (नाम-शब्द) प्राप्त कर ली थी। अपने सतगुरु जी पर आपको दृढ़ विश्वास था।
आदर्श जीवन शैली:-
पूज्य बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी सादगी की बेमिसाल मिसाल थे। आप जी बहुत बड़ी जमीन-जायदाद के मालिक थे और गांव के नम्बरदार भी थे, लेकिन आपजी ने अपने अंदर अहंकार की भावना कभी भी नहीं आने दी थी। हमेशा सबसे हमदर्दी रखते थे। आपजी की दृष्टि में छोटा-बड़ा सब एक समान थे। गांव में ऐसे कई उदाहरण लोग बताते हैं कि आप जी बिना कहे ही गरीब व जरूरतमंद परिवारों की बेटियों के शादी-विवाह के समय आर्थिक सहयोग देकर उनके उस पवित्र कार्य को पूरा करवाते। आप जी ने अपने घर-द्वार पर आए किसी भी जरूरतमंद को कभी खाली नहीं लौटाया था। आप जी अपने बंटाईदार, नौकरों-चाकरों को अपनी संतान के समान मानते थे, कभी किसी से भेदभाव नहीं किया था। आप जी ने उन्हें जरूरत का सामान, राशन-सामग्री, उनके भूखे-प्यासे पशुओं के लिए नीरा-चारा जितना भी कोई ले जाता, उन्हें कभी मना नहीं किया था। बल्कि फसल आने पर खुद उन्हें कहते कि आप जितना चाहो ले जाओ, हम अपना काम चला लेंगे।
लासानी पिता प्यार:-
पूजनीय बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी एक निरोल पाक-पवित्र आत्मा थे। उनका भक्ति भाव, मालिक, परम पिता परमेश्वर के प्रति बेइंतहा था, यही कारण है कि पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने ईश्वरीय ताकत के रूप में 18 वर्ष के लम्बे इंतजार के बाद 15 अगस्त 1967 को पूज्य बापू नम्बरदार मग्घर सिंह जी के घर पूज्य माता नसीब कौर जी इन्सां की पवित्र कोख से अवतार धारण किया। पूज्य गुरु जी अपने पूज्य माता-पिता जी की इकलौती संतान हैं। गांव के संत बाबा त्रिवेणी दास जी ने पूजनीय बापू जी को पूज्य गुरु जी की असल हस्ती के बारे में पहले ही बता दिया था कि ये (आपका बेटा) ईश्वरीय अवतार हैं और आपके पास केवल 23 वर्ष तक ही रहेंगे और 23 वर्ष की आयु में सृष्टि व समाज उद्धार के कार्य के लिए उन्हीं के पास चले जाएंगे जिन्होंने इन्हें आपकी संतान के रूप में भेजा है।
पूजनीय बापू जी का अपने लॉडले के साथ बेहद प्यार था। आप जी अपने दिल के टुकड़े को हर समय अपनी आंखों के सामने रखते और कहीं दूर जाते तो बिन पानी की मछली की तरह तड़प जाते। जब तक लाडला घर नहीं आ जाता था तो निगाहें घर के बाहरी दरवाजे पर ही टिकी रहती। पिता-पुत्र के इस लासानी प्यार के चर्चे गांव में हर जुबां पर रहते। इकलौती संतान के अलावा भी पूजनीय बापू जी ने अपने लाडले की ईश्वरीय झलक को महसूस कर लिया था। पूजनीय बापू जी ने जब भी खेत में या पंचायत में जाना होता तो अपने लाडले को कंधे पर बिठा कर अपने साथ ले जाते। पूज्य हजूर पिता जी जब 13-14 वर्ष के हुए, दूर-दूर तक टूर्नामेंट भी खेल आते लेकिन जब खेत जाना होता तो कंधों पर बिठा कर ही ले जाते। दरअसल पूज्य बापू जी अपने लाडले को जरा भी तकलीफ नहीं देना चाहते थे।
हालांकि पूज्य गुरु जी बहुत मना भी करते कि अब हम बड़े हो गए हैं, कंधों पर बैठे हुए हमें शर्म आती है, पर नहीं, पूज्य बापू जी अपने कंधों पर ही बिठा कर ले जाते। कंधों पर बैठे पूज्य गुरु जी के पांव पूजनीय बापू जी के घुटनों तक पहुंच जाते। लोग पिता-पुत्र के इस प्यार भरे नजारे को देखते ही रह जाते। पिता-पुत्र में प्यार का यह अद्भुत दृश्य पूज्य बापू जी की पहचान बन गया था। जब भी कोई बाहर का व्यक्ति नंबरदार के बारे में पूछता तो लोग यही पहचान बताते कि एक हाथ में ऊंटनी की मुहार (रस्सी) और उनका बेटा उनके कंधों पर बैठा होगा तो जान लेना कि यही गांव श्री गुरुसर मोडिया के नम्बरदार मग्घर सिंह जी हैं। वाकई ऐसा महान लासानी प्यार पूज्य बापू जी का अपने लाडले के प्रति था। पूजनीय बापू जी अपने लाडले पर पूरी तरह से कुर्बान थे।
त्याग की मूर्ति :
एक पिता को अपने बेटे के साथ इस कदर हद से ज्यादा प्यार हो कि जो उसकी एक पल की भी जुदाई सहन न कर सके, जिसके अंदर उसकी जान, उसकी आत्मा, उसके प्राण हों, जब उससे वही उसकी प्यारी वस्तु मांग ली जाए तो सोचिए उस पर क्या गुजरेगी। ऐसा ही समय पूजनीय बापू जी पर भी आया, जो शायद उनकी परीक्षा की घड़ी ही कहा जा सकता है। परंतु धन्य-धन्य कहें पूजनीय बापू जी को, जिन्होंने इस सख्त परीक्षा की घड़ी में अपना सब कुछ कुर्बान करने में भी देरी नहीं की। यह समय था 23 सितंबर 1990 समय सुबह 9 बजे का जब पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने पूजनीय बापू जी व माता जी से उनके अति लाडले इकलौते लाल को डेरा सच्चा सौदा को समर्पित करने को कहा।
पूजनीय माता-पिता जी ने अपने सतगुरु मुर्शिद-ए-कामिल पूजनीय परमपिता जी के वचनों पर उसी पल हंसते-हंसते फूल चढ़ाए, अपने हृदय के टुकड़े, अपने इकलौते लाल को भरी जवानी की 23 साल की अवस्था में सत्य वचन कहते हुए अपने सतगुरु को अर्पण कर दिया। जुबां से उफ तक नहीं निकली, बल्कि पूजनीय माता-पिता जी ने यह विनती की, हे सतगुरु जी! हमारा सब कुछ ही ले लो जी, सब कुछ आपजी का ही है जमीन-जायदाद, हमें तो बस यहां आश्रम (डेरे) में एक कमरा दे देना ताकि यहां पर रहकर भजन-बंदगी करते रहें, आपजी के दर्शन कर लिया करेंगे और इन्हें (पूज्य गुरु जी) भी देख लिया करेंगे। वाकई पूज्य माता-पिता जी के इतने महान त्याग की यह एक लासानी घटना है।
कोई मोल नहीं दिया जा सकता। इन्सान की कल्पना से परे है। अपने सतगुरु जी के हुक्म को सिर-माथे (सत्य वचन कहकर) मानते हुए पूजनीय बापू जी ने अपनी बेशकीमती वस्तु, अपनी जान व प्राण, अपने इकलौते लाडले को अपने पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के पवित्र चरण-कमलों में समाज, मानवता की भलाई के लिए अर्पित कर दिया। पूजनीय बापू जी व पूजनीय माता जी का यह बलिदान सुनहरी इतिहास बना, जिन्होंने अपना 23 वर्ष का नौजवान पुत्र जिनके तीन छोटे-छोटे साहिबजादे, साहिबजादियां हैं, हमेशा के लिए अपने सतगुरु रहबर को अर्पण कर दिया। ऐसी महान हस्तियों का ऋण चुकाया नहीं जा सकता।
हर पल परमार्थ में:-
गरीबों, जरूरतमंदों, दीन-हीनों की मदद में पूजनीय बापू जी अपने अंतिम सांस तक प्रबल रहे। उनकी सेवा व उनके मददगार बन कर आप जी को असीम सुख व सुकून मिलता। आप जी ने आखिर तक अपने इस कर्म को निभाए जाने का अनूठा उदाहरण दुनिया के सामने रखा। अपने चोला छोड़ने से 6-7 दिन पहले भी आप जी ने अपने लाडले (पूज्य गुरु जी) से श्री गुरुसर मोडिया में जाकर एक गरीब परिवार की बेटी की शादी में सहयोग करने की बात कही। आप जी ने पूज्य गुरु जी से कहा कि मैं चाहता हूं कि उस गरीब परिवार के इस कार्य को सिरे चढ़ा दूं।
इस पर पूज्य गुरु जी ने अपने पूज्य जन्मदाता, अपने पूज्य बापू जी से वायदा किया कि आप इसका फिक्र न करें। उसे हम अवश्य पूरा करवा देंगे। पूज्य बापू जी अपनी हार्दिक इच्छा को इस प्रकार पूरा होते देख अति प्रसन्न हुए कि अब मैं निश्चित हूं। पूज्य बापू जी 5 अक्तूबर 2004 को अपने परमार्थी कार्याें की अमिट छाप छोड़ते हुए इस फानी संसार को अलविदा कह कर पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पवित्र गोद में जा समाए। ऐसी महान हस्ती को बारम्बार शत-शत नमन् है।
पूजनीय बापू जी का जीवन परमार्थ की एक अमिट गाथा है। उनके दिल में परहित की भावना हमेशा तरो-ताजा रहती थी। गरीबों, असहायों के वे सच्चे हितैषी थे। वे उनके सच्चे हमदर्द, सच्चे मसीहा थे। उनके पास आया कोई भी गरीब जरूरतमंद कभी खाली नहीं गया, बल्कि उनको पता होता कि गांव में फलां गरीब व्यक्ति के घर उसकी बेटी शादी के योग्य हो गई है, तो आपजी उसकी शादी करवाते और हर तरह से पूरी मदद करते।
5 अक्तूबर पूजनीय बापू नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी की पुण्यतिथि का यह दिन पूजनीय गुरु जी के वचनानुसार डेरा सच्चा सौदा में हर साल ‘परमार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जहां डेरा सच्चा सौदा में साध-संगत व शाह सतनाम जी ग्रीन एस वैल्फेयर फोर्स विंग के सेवादार जरूरतमंदों, गरीबों की सहायतार्थ परमार्थी कार्य करते हैं, वहीं रक्तदान शिविर का आयोजन कर उसमें बढ़-चढ़कर रक्तदान भी करते हैं।