सेल्फी वाला पागलपन : डेंगू, चिकनगुनिया, माइग्रेन, र्केसर जैसी घातक बीमारियों के बीच आज युवा वर्ग में एक और बीमारी वायरल हो रही है। हालांकि यह बीमारी सिर्फ युवा वर्ग तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि बड़े-बूढ़े व बच्चे भी इसके शिकार हो रहे हैं।
इस बीमारी का नाम है ‘सेल्फी’।
जी हां, इस बीमारी को ‘सेल्फी’ कहते हैं, जो किसी शारीरिक रोग से संबंधित न होकर मानसिक रोग के लक्षण से उत्प्रेरित होती है।
मोबाइल से लिया गया स्वचित्र सेल्फी कहलाता है।
सेल्फी का क्रेज व इससे होने वाली दुर्घटनाओं का ग्राफ काफी बढ़ा है। सेल्फी का क्रेज दरअसल एक जानलेवा एडवेंचर साबित हो रहा है जहां मौज-मस्ती की चाह और कुछ नया करने की ख्वाहिश के फेर में, जान से हाथ धोने की नौबत सामने आ जाती है। आश्चर्य की बात यह है कि सेल्फी से होने वाली दुर्घटनाओं से अवगत होने के बावजूद भी युवा वर्ग इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है।
महज एक सेल्फी का क्रेज युवाओं की जिंदगी को लील रहा है। उस पर सेल्फी स्टिक का प्रयोग तमाम दुर्घटनाओं को आमंत्रित कर रहा है। 94 मिलियन सेल्फी प्रतिदिन दुनिया में क्लिक होती हैं।
वर्ष 2013 में ‘सेल्फी’ ‘आॅक्सफोर्ड वर्ड आफ द इयर’ बना, जो इसके क्रेज की दास्तां बयां करता है। स्मार्ट फोन के प्रचलन से सेल्फी वाले पागलपन को सबसे ज्यादा बढ़ावा मिला। आलम यह है कि भारत अब भी ‘सेल्फी डेथ कंट्री’ में शुमार होता है, जहां रिपोर्ट के मुताबिक सेल्फी के चलते सबसे ज्यादा जानें जाती हैं।
पिकनिक स्पाट, समंदर की लहरों, ऊं ची चट्टानों, नदी की जलधारा आदि रिस्क भरे स्पॉट युवाओं को सेल्फी लेने के लिए आकर्षित करते है और यही आकर्षण जानलेवा साबित हो जाता है। हद तो यह है कि सेल्फी की दीवानगी हर उम्र के लोगों को है, लेकिन नई पीढ़ी इस दीवानगी की चपेट में सबसे ज्यादा है।
इसके अलावा सेल्फी लोगों को आत्मकेन्द्रित व एकाकी बना रहा है। डाक्टर्स का कहना है कि सेल्फी के कारण लोग अपने तक सीमित हो रहे हैं। खूबसूरत दिखने की चाह हर वक्त एक सच्ची दुनिया से बाहर रखती है। काम केन्द्रण क्षमता में गिरावट आ रही है जिससे चिंता व तनाव की स्थिति का सामना करना पड़ता है।
एकाकी होने के कारण सामाजिक व्यवहार्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सेल्फीकी लत मनोरोग की ओर धकेल रही है जिस पर समय रहते नियंत्रण न किया गया तो यह बड़ी तादाद में लोगों अपनी को जकड़ में ले लेगी।
– बीना पाण्डेय