पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत -सत्संगियों के अनुभव
प्रेमी शमशेर इन्सां सुपुत्र सचखंडवासी राम किशन सिंह गांव कौलां तहसील व जिला अम्बाला। प्रेमी जी परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई अपार रहमत का एक करिश्मे के रूप में इस प्रकार वर्णन करता है।
जिक्र है अगस्त 1991 का, उस दिन डेरा सच्चा सौदा सरसा में रूहानी सत्संग था। साध-संगत में पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां व पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन करने तथा सत्संग सुनने का बड़ा उत्साह था। हमारे गांव से भी साध-संगत ने सत्संग पर जाना था। मैंने सत्संग पर जाने के लिए अपनी माता जी को तो मना लिया, उनसे हां करवा ली, पर अपने बापू को नहीं बताया। क्योंकि मुझे डर था
कि कहीं मेरे पिता जी मुझे सत्संग पर जाने से मना न कर दें। क्योंकि उन दिनों मानसून लगभग सूखा ही जा रहा था। उस समय वर्षा की कहीं भी आस-पास बूंद नहीं पड़ी थी और धान को दिन रात ट्यूबवैल चलाकर पानी देना पड़ता था। मेरे पिता जी तीन भाई थे और मोटर हमारी सांझी थी। चार दिन के बाद दो दिन ट्यूवैल का पानी हमारे हिस्से में मिलता था। मेरे पिता जी ने भी नाम लिया हुआ था परंतु फसल (खेती बाड़ी) से भी बहुत लगाव था। खेती का सारा काम मैं ही करता था और साथ में नौकरी भी करता था। हमारे घर एक नौकर भी था परंतु मेरे पिता जी मुझ पर ही ज्यादा भरोसा (विश्वास) करते थे।
सत्संग में अभी कुछ दिन बाकी थे। हमारी पानी की बारी थी। मैं सुबह नौकर का चाय-रोटी (नाश्ता) लेकर ट्यूबवैल पर गया और उसे खाना खिलाने के बाद पानी के बारे में पूछा कि कितने खेतों में पानी भर गया है और कितने अभी बाकी हैं। वह डरते हुए कुछ नहीं बोला। मैंने दोबारा पूछा, क्या बात है लक्ष्मण, बताओ भाई। वह बोला कि रात को अपना खाल टूट गया था और सारा पानी टूट (बह) कर ताऊ के खेत में चला गया। क्योंकि वह नौकर रात-भर सोता रह गया था। उसे खाला टूटने का पता ही नहीं चला था, इसलिए वह डर रहा था कि हम उसे कुछ कहेंगे।
चार दिन के बाद फिर से पानी की हमारी बारी थी। सुबह जब मैं नौकर को खाना देने गया तो उस रात भी वही हुआ जो पहले हुआ था। सारा पानी व्यर्थ गया। मैंने नौकर को बड़े प्यार से समझाया कि पानी का ख्याल रखा करे, ऐसे तो हमारी फसल सूख जाएगी। वह बोला कि आज पूरा ध्यान रखूंगा। रात को सोऊंगा नहीं। मैने अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से काबू किया और अपनी ड्यूटी पर चला गया। दिन-भर तो पानी ठीक-ठाक दिया जाता था, परंतु रात को पानी इसी प्रकार खाला आदि टूटने के कारण बेकार में चला जाता था। मुझे यह चिंता सता रही थी कि फसल का क्या होगा। सत्संग पर भी जरूर जाना है।
अगले दिन सुबह जब मैं अपने नौकर का खाना वगैरह लेकर गया, ट्यूवैल चल रहा था और वह दूर-दूर तक फैले हमारे खेतों के चारों ओर पानी को देख रहा था कि पानी न टूट जाए। मैंने भी अपने प्यारे सतगुरु पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के चरणों में अरदास की थी कि पिता जी, मेरी लाज रखना जी। थोड़ी देर बाद वह खेतों का चक्कर लगाकर बोर पर आ गया। मैंने उसे खाना खिलाकर प्यार से पूछा कि रात को कैसे रहा, पानी ठीक-ठाक लगाया था? उसने हां में जवाब दिया। थोड़ी देर बाद उसने बताया कि रात के लगभग दो-तीन बजे जब मैं गहरी नींद में सोया हुआ था, मुझे एक अलौकिक व मधुरमयी आवाज आई, ‘बेटा लक्ष्मण! आज फिर तेरा पानी तेरे ताऊ के खेतों में टूटने वाला है, उठ और जाकर अपने खेतों का पानी संभाल ले। मैं नींद से हड़बड़ा कर उठा और कमरे से बाहर झांककर देखा।
पानी के होद में, जिसमें टयूब्वैल का पानी गिरता है, उसके पास एक लम्बे-चौड़े कद के बाबा जी हाथ में लम्बी लाठी लिए और सिर पर दस्तार सजाए हुए, जिनकी लम्बी सफेद मुलायम दाढ़ी थी जो कि शीतल हवा से हिल रही थी, पांव में सुंदर जूते पहने थे, सफेद लिबास में कीकर के पेड़ के नीचे खड़े थे। उन्होंने फिर यह वचन फरमाए कि ‘बेटा, जल्दी-जल्दी जाओ। अपने खेतों का पानी संभलो। मैंने कस्सी उठाई और बहते पानी की तरफ जल्दी से भागा। क्या देखा कि पानी की खाल में जो पाईप लगा था, उसके आगे काफी घास-फूस फंस गया था जिससे पानी इक्ट्ठा होकर खाले के ऊपर से बहने ही वाला था। मैंने जल्दी से वहां फंसे घास-फूस को अपने हाथों से हटाया और पानी के आगे जाने का मार्ग खोल दिया। यानि पानी में लगी उस रुकावट को हटा दिया। मेंने राहत की सांस ली और बाबा जी का लाख-लाख शुक्राना किया कि हमें नुक्सान से बचा लिया है।
जब मैंने सोचा कि चल कर देखूं तो सही कि बाबा जी हैं कौन! मैंने अपनी बैटरी और फावड़ा उठाया और जल्दी से टयूबवैल की तरफ भागा। जब मैंने उस जगह जहां कीकर का पेड़ है उस पर बिजली का एक बल्ब (लाईट) जल रहा था, निगाह दौड़ाई तो वहां वो लम्बे चौड़े कद के बाबा जी नहीं थे। मैंने चारों तरफ बैटरी (टार्च) की लाईट घुमा कर देखा, वो बाबा जी मुझे कहीं भी नजर नहीं आए।
उपरान्त लक्ष्मण (हमारा नौकर) मुझसे पूछने लगा, बाई जी, कौन थे वो बाबा जी। उसने मेरी तरफ ध्यान से देखा और फिर बोला, सरदार जी, क्या बात है, आप रो क्यों रहे हो? मुझे उसकी बातें सुनकर अपने खुद-खुदा पूज्य परम पिता जी की याद में वैराग्य आ गया था। मैंने अपने सिर पर लपेटा परना उतारा और उससे अपने आंसू पोंछते हुए, लम्बी सांस लेकर बताया कि वे तो वही सरसे वाले बाबा जी पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज थे। लक्ष्मण, तू बहुत भाग्यशाली है भाई। तुम्हारे पूर्वले अच्छे भाग्य हैं जो तुम्हें कुल मालिक साक्षात परमात्मा के दर्श-दीदार हुए हैं। लोगों को तो बहुत भक्ति-सुमिरन करके भी मुश्किल से दर्शन होते हैं। साध-संगत को दर्शनों के लिए दरबार में जाना पड़ता है। मैंने उसे कहा कि तुम खेतीबाड़ी तथा हमारे पशुओं का पूरा ध्यान रखना, मैंने भी सरसा दरबार में पूज्य परम पिता जी के दर्शन करने जाना है।
मैं अगले दिन चुपचाप गांव की साध-संगत के साथ ट्रक में बैठकर डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में सत्संग पर चला गया। अगले दिन सत्संग के बाद हम सभी गांव वाले पूज्य सतगुर जी की दोनों पवित्र बाडियों के दर्श-दीदार करके खुशियों से झोलियां भरकर नाचते-गाते वापिस लौट रहे थे। घर-बार, काम धंधे की कोई याद और फिक्र नहीं थी। अचानक ख्याल आया कि घर में बापू जी की डांट पड़ेगी क्योंकि उनको तो बिना बताए, बिना उनसे इजाजत लिए मैं सत्संग पर आ गया था। जब ट्रक इस्माइलाबाद पहुंचा तो मैंने देखा वहां पर मानसून की अच्छी बारिश हुई थी और इससे आगे हमारे गांव कौलां तक भी खूब बरसात हो चुकी थी। घर पहुंचे तो पानी से खेत लबालब भरे थे।
मैं अपनी माता जी को नारा लगाकर बापू जी के कमरे में गया तो बापू जी के चेहरे पर अथाह खुशी थी। मैंने उन्हें नारा बोला और खेती-बाड़ी के बारे में कुछ जानना चाहा, तो बापू जी मुस्कुरा कर बोले कि सतगुरु जी की कृपा से सारे खेत पानी से भरे हैं। सतगुरु ने अच्छी बरसात कर दी है। इस प्रकार सतगुरु जी ने मुझे बापू जी की डांट से बचा लिया। उस वर्ष प्रति एकड़ हमारी धान की फसल सबसे अधिक हुई थी। गांव में घर-घर चर्चा हुुई कि शमशेर सिंह ने तो कृषि विभाग वालों को भी पीछे छोड़ दिया है।
यह सच है कि जब हम सतगुरु जी की तरफ एक कदम बढ़ाते हैं तो सतगुरु खुद एक हजार कदम हमारी तरफ बढ़ाते चले आते हैं। वो अपने जीव के सारे काम-काज संवारते हैं। हम कैसे भी उनकी रहमतों का बदला नहीं चुका सकते। हम तो बस धन्य-धन्य ही कह सकते हैं कि हे मालिक, तू धन्य है जो अपने जीव की हर चीज का ख्याल रखता है उसकी हर मुश्किल को आसान कर देता है।
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