बेटा! हम वो ही हैं जो बचपन में तुझे दिखे थे
-सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
सेवादार जाफर अली इन्सां पुत्र हनीफ खाँ गांव समौली तहसील सरधना जिला मेरठ हाल आबाद गांव शाह सतनाम जी पुरा जिला सरसा से परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई रहमतों का वर्णन करता है:-
जब मैं चार-पांच साल का था। एक रात मुझे स्वप्न में एक दृष्टांत दिखाई दिया। मैंने देखा कि सारी धरती, आसमान सब कुछ हिल रहा है। मुझे एकदम प्रकाश दिखाई दिया। प्रकाश में एक लम्बे कद के सरदार बाबा जी दिखाई दिए। उन बाबा जी के सफेद वस्त्र पहने हुए थे। लम्बा सफेद दाहड़ा था। उनके एक हाथ में लम्बी लाठी तथा दूसरे हाथ में टाहली की टहनी पकड़ी हुई थी। मुझे ज्यों ही बाबा जी के दर्शन हुए, उसी समय धरती स्थिर हो गई थी। उसी समय मेरी आंख खुल गई। बाबा जी के दर्शन करके मुझे इतनी खुशी मिली, जिसका लफजों में ब्यान नहीं हो सकता। सुबह उठ कर मैंने अपनी मां को बताया कि मुझे रात को ऐसे-ऐसे दिखा है। मेरी मां कहने लगी कि कोई पीर आया होगा। मेरा बचपना था, इसलिए मुझे इन बातों की कोई समझ नही ंआई।
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जब मैं छ:-सात वर्ष का था तो हमारे गांव के पास की घटना है। वहां पर मेरे मां-बाप ने गन्ना छीलने का ठेका लिया हुआ था। वहां गन्ने के मालिक का जो मुनीम था, उसने मुझे कहा कि तू मेरा साईकिल ले जा, नहर पर धो कर ला। मैं खुशी-खुशी बड़े चाव से साईकिल लेकर नहर पर चला गया। नहर पर जहां ढलान की वजह से पानी बहुत तेज वेग में था, मैंने वहां पर साईकिल धोने के लिए उसमें आगे कर दिया। पानी का तेज बहाव साईकिल को बहा कर ले गया। मैंने साईकिल को पकड़ने के लिए आगे छलांग लगा दी। आगे पास ही पानी की गहरी झाल थी जिसमें मेरा डूबना तय था। परन्तु मुझे तो पता ही नहीं चला कि मैं पानी से बाहर कैसे आ गया। बाद में मेरी मां ने बताया कि वहां पर एक आदमी आया, जिसने तुझे निकाला है। परन्तु वास्तव में वहां पर कोई नहीं था। न तो पहले वहां पर कोई था और न ही बाद में। वहां पर सतगुरु जी ने ही मुझे बचाया था।
सतगुरु की रहमत से मैंने जुलाई 1983 में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का सत्संग सुना जो कि डेरा सच्चा सौदा आश्रम, बरनावा (उत्तर प्रदेश) में था। जब परमपिता जी सत्संग फरमाने के बाद खड़े होकर साध-संगत का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे तो उस समय परमपिता जी को देखते ही मेरे सीने में करंट-सा लगा। मुझे बचपन वाली बात याद आई, मैं आश्चर्यचकित हो गया कि ये तो वो ही हैं। उसी समय मुझे परमपिता जी की आवाज सुनाई दी, देख बेटा! हम वो ही हैं जो बचपन में तुझे दिखे थे। इस प्रकार सतगुरु जी ने मुझे दृढ़-विश्वास देकर नाम का अनमोल खजाना बख्श दिया। मैं उसी दिन से डेरा सच्चा सौदा की कैंटीन में सेवा करने लगा।
उसके बाद मैं देसी खांड (चीनी) की भट्ठी पर काम करने लगा था। एक बार दोपहर के समय खांड की चाशनी बना रहा था। वहां दीवार के साथ भट्ठी पर चाशनी का बड़ा कड़ाहा उबल रहा था। चुनाव का समय था, इसलिए कुछ गाड़ियां चुनाव का प्रचार करती हुई वहां से गुजर रही थी। मैं उन गाड़ियों को देखने के लिए कड़ाहे के पास वाली 6-7 फीट ऊंची दीवार पर चढ़ गया। दीवार पर खड़े-खड़े अचानक मेरा पैर फिसल गया और ज्यों ही मैं उस कड़ाहे में गिरने वाला था तो मैंने अपने मुर्शिदे कामिल परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को याद किया। उस समय मुझे अहसास हुआ कि परमपिता जी ने मुझे पकड़कर कड़ाहे से दूर कर दिया। परमपिता जी की मेहर से मेरी जान बच गई।
एक बार शहनशाह परम पिता जी ने सेवादारों को दातें देते समय, मुझे दात की बख्शिश करते हुुए फरमाया, ‘जाफर! कभी ना होना काफर’। उसके उपरान्त मैंने डेरा सच्चा सौदा द्वारा चलाए जा रहे मानवता भलाई के कार्याें के लिए अपने आपको सदा के लिए समर्पित कर दिया।
मेरी पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में यही विनती है कि इसी तरह रहमत बनाए रखना जी। मेरा हर पल मानवता की सेवा व सुमिरन में ही गुजरे जी।