स्ट्राबेरी मिसाल बनी पिता-पुत्र की जोड़ी
स्ट्राबेरी के लिए एक एकड़ खेत में पौधे लगाने पर छह लाख रुपये का खर्च आता है। सात महीने की इस फसल पर सभी खर्च निकालकर प्रति एकड़ करीब साढ़े तीन से चार लाख रुपये आमदन हो जाती है।
पंजाब में एक तरफ युवाओं में विदेश जाने की होड़ मची हुई है तो दूसरी तरफ ऐसे भी परिवार हैं जो अपने देश में रहकर अपनी जमीन से जुड़कर धरती मां के प्रति अपने कर्तव्य निभाते हुए दूसरे किसानों के लिए प्रेरणादायक बन रहे हैं। पंजाब के जिला श्री मुक्तसर साहिब के गांव काउनी के किसान जसकरन सिंह भी ऐसे किसानों में शुमार हैं। उनका अपने खेत से इतना लगाव है कि वह अपने बेटे करनप्रीत सिंह को विदेश जाने से रोकने में सफल हुए और उसका भी ध्यान खेती की तरफ आकर्षित किया।
Also Read :-
- स्ट्रॉबेरी की खेती से राजस्थान में मिसाल बने गंगाराम सेपट
- बेर सेब-सी मिठास, उत्पादन बेशुमार
- लेमन ग्रास की खेती कर बनाई अलग पहचान
- बिजनेस छोड़ इंटिग्रेटिड फार्मिंग से कमाया नाम
- वर्षों की रिसर्च के बाद तैयार की बैंगन की बेहतर प्रजाति
जसकरण सिंह ने अपने बेटी को विदेशी मोह त्याग पारंपरिक खेती छोड़ स्ट्राबेरी की खेती करने की सलाह दी। यही नहीं जसकरन सिंह के मॉडल को अपनाते हुए क्षेत्र के सात और युवाओं ने भी कृषि विविधता की राह पकड़ ली। करनप्रीत अब गांव में ही रहकर सारा खर्च निकालने के बाद हर साल स्ट्राबेरी से सालाना करीब तीस से 35 लाख रुपये तक मुनाफा कमा रहे हैं। जसकरन ने अपने बेटे करनप्रीत को शिमला के एक स्कूल से बारहवीं तक की पढ़ाई करवाई, जिसके बाद वह विदेश जाने की तैयारी में जुट गया। शिमला से लौटकर वह विदेश जाने के लिए जरूरी परीक्षा की तैयारी कर रहा था।
पिता ने करनप्रीत को समझाया कि वह पंजाब में ही रहकर कुछ नए प्रयोग से यहां रहकर भी खूब कमाई कर सकते हैं। आखिर करनप्रीत ने अपने पिता के कहने पर मेहनत शुरू की और स्ट्राबेरी की खेती करने का सुझाव दिया। पहले तो करनप्रीत ने आनाकानी की, लेकिन पिता ने खेती शुरू कर दी तो करनप्रीत पढ़ाई के साथ-साथ पिता का हाथ बंटाने लगा। विदेश जाने के लिए अनिवार्य परीक्षा (आइलेट्स) पास करने बाद भी उसने यहीं ग्रेजुएशन में दाखिला ले लिया। अब करनप्रीत नवीनतम तकनीक अपना कर खेती को विस्तार दे रहा है। आज दोनों पिता-पुत्र आठ एकड़ में स्ट्राबेरी की सफलतापूर्वक खेती कर रहे हैं।
करनप्रीत के पिता जसकरन कहते हैं, किसानों के बच्चों को विदेश जाने की जरूरत नहीं है। हमें पारंपरिक खेती (गेहूं, धान) छोड़ नई तरह की खेती को अपनाना होगा। वे बताते हैं कि स्ट्राबेरी की इन्वेस्टमेंट भी ज्यादा है, लेकिन मेहनत के बाद पूरा फल मिलता है। उनके मॉडल को देखकर क्षेत्र के सात युवकों ने भी कृषि विविधीकरण की राह को अपनाया है। गांव बूड़ा गुज्जर के गुरमीत सिंह व गुरप्रीत सिंह और लुधियाना के नवजोत सिंह भी बड़े स्तर पर स्ट्राबेरी की खेती करने लगे हैं। कुछ युवक ड्रैगन फ्रूट और खरबूजे की खेती भी कर रहे हैं।
Table of Contents
प्रति एकड़ साढ़े तीन से चार लाख तक मुनाफा
स्ट्राबेरी की खेती पर श्रम बहुत होता है। वह स्ट्राबेरी के पौधों को पुणे से लेकर आए हैं। एक एकड़ खेती में पौधे लगाने पर छह लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें ट्रांसपोर्टरों, लेबर, पैकिंग सहित कई अन्य खर्च शामिल हैं। सात महीने की इस फसल पर सभी खर्च निकालकर प्रति एकड़ करीब साढ़े तीन से चार लाख रुपये आमदन हो जाती है। करनप्रीत पंजाब में भटिंडा, लुधियाना, फरीदकोट, श्री मुक्तसर साहिब के अलावा दिल्ली और गंगानगर की मंडियों में स्ट्राबेरी को बेचने के लिए भेजते हैं। स्ट्राबेरी की कीमत 25 से 65 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है। करनप्रीत का कहना है कि शुरू में मेरी दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन जब धीरे-धीरे काम करना शुरू किया तो इसमें अपना भविष्य दिखाई दिया। अब स्ट्राबेरी की खेती को बड़े स्तर पर ले जाकर बिजनेस को विस्तार देना चाहता हूं।
पहले समझें और फिर करें खेती
जसकरण सिंह का कहना है कि दूसरे किसान भी इसे छोटे स्तर पर शुरू कर सकते हैं, क्योंकि यह एक महंगी खेती है। उनका कहना है सितंबर के आखिरी सप्ताह से अक्टूबर का पूरा माह में इसकी बिजाई की जाती है। उस वक्त थोड़ी दिक्कत आती हैं क्योंकि तापमान बहुत ज्यादा होता है लेकिन आप स्प्रिंकलर लगाकर इसे ठंडा रख सकते हैं। फिर नवंबर से मार्च माह तक का मौसम स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए बहुत लाभदायक होता है। नवंबर से अप्रैल तक फ्रूट की तुड़ाई चलती है। उनका यह भी कहना है कि स्टॉबेरी को पानी कम चाहिए होता है, इसीलिए आवश्यकता के अनुसार अच्छा पानी चाहिए होता है। साथ ही जसकरण का कहना है कि स्ट्राबेरी फार्म की बच्चों की तरह संभाल करनी पड़ती है। उनका स्पष्ट कहना है कि इससे वे किसान ही मुनाफा कमा सकते हैं जो रोजाना अपने खेत में जाकर इसकी संभाल करेंगे। इसके अलावा उन्होंने अपने खेत में एक स्पैशल बोर किया है, जिसमें बारिश का पानी या नहर का फालतू पानी स्टोर किया जाता है। फिर उसी पानी को खेत में प्रयोग करते हैं। यही नहीं स्ट्राबेरी की खेती के लिए आर्गेनिक खाद का ही प्रयोग करते हैं।
दूसरे किसानों को सलाह
जसकरण सिंह दूसरे किसानों यही सलाह देते हैं कि यदि कोई भी किसान इसे अपनाना चाहता है तो पहले वह उनके गांव में पहुंचकर फार्म हाउस को विजिट करे और पूरी तकनीक को समझें। उनका कहना है कि इसकी खेती करने के लिए सबसे पहले खेत को ड्रिप इरीगेशन करवाना जरूरी है, फिर वहां स्प्रिंकलर लगे होने चाहिए। ऐसी परिस्थिति में नुक्सान की गुंजाइश नहीं रहेगी। जसकरण का कहना है कि स्टॉबेरी की खेती करने से पहले जमीन की निकासी होना बहुत जरूरी है, बारिश का पानी अच्छी तरह से निकाला जाना चाहिए। साथ ही किसान जसकरण सिंह युवाओं को भी अपने देश में रहकर ही काम करने और अपने माता-पिता के साथ समय व्यतीत करने की सलाह देते हैं। उनका कहना है कि किसान परिवार से जुड़े युवक नई तकनीक से खेती की नुहार बदल सकते हैं। मैं अपील करता हूँ कि वे उनके खेत में सारी तकनीक समझकर कृषि विविधता को अपनाकर खेती को फायदे का सौदा बनाएं।