सुअवसर का लाभ उठाएं
अवसर को चूकने वाले मनुष्य से बढ़कर मूर्ख और कोई नहीं होता। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मनुष्य अपनी मूर्खता को ढकने के लिए सौ-सौ बहाने बनाता रहता है। और कुछ नहीं तो यह रटा-रटाया वाक्य तो बोल ही सकता है – ‘दुर्भाग्य ही यदि प्रबल हो या भाग्य ही साथ न दे तो वह क्या कर सकता है?’
उन्नति करने के लिए हर मनुष्य को उसके जीवन काल में एक ही स्वर्णिम अवसर मिलता है। समझदार मनुष्य उस अवसर को पहचान लेता है और उसका सदुपयोग कर लेता है। तब जीवन की ऊँचाइयों को छू लेता है। परन्तु यदि वह मौका हाथ से गँवा दिया तो कोई गारंटी नहीं कि वह पल फिर जीवन-काल में दोबारा आएगा।
‘पंचतंत्रम’ पुस्तक का यह श्लोक भी इसी बात को समझाता हुआ हमें कह रहा है –
कालोहि सकृदभ्येति यन्नरं कालाङ्क्षिणम
दुर्लभ: स पुनस्तेन कालकर्माचिकीर्षता
अर्थात् सुअवसर के इच्छुक पुरुष को, वह उसके जीवन में एक ही बार प्राप्त होता है। उस समय जो पुरुष कार्य नहीं करता, पुन: वह उसे वह अवसर प्राप्त नहीं होता।
ईश्वर हमें बारम्बार ऐसे अवसर नहीं देता। हमें स्वयं ही अपने विवेक से उसका उपयोग करना होता है। यदि हम अपने अहं में चूर होकर अथवा आलस्यवश उस समय कोई योजना क्रि यान्वित करके सफलता प्राप्त नहीं कर सकेंगे, तब हमारा भाग्य भी फलदायी नहीं होगा। इसका कारण यही है कि भाग्य से मिले सुअवसर के समय हमने पुरुषार्थ नहीं किया।
‘हरिवंश पुराण‘ भी इसी तथ्य का समर्थन करते हुए कह रहा है-
न मुह्यति प्राप्तकृतां कृती हि अर्थात् कुशल मनुष्य यथा अवसर पर कार्य करने से नहीं चूकते।
हमारे मनीषी हमें जगाते रहते हैं, परन्तु हम हैं जो कान में तेल डालकर बैठे रहते हैं। अपने आराम में खलल हमें जरा भी पसन्द नहीं आता। ‘हमारा मन होगा तो हम जाग जाएँगे नहीं तो सोते रहेंगे, किसी के पेट में दर्द क्यों होता है।‘ हमारा यही रवैया हमें अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के लिए मजबूर करता है।
फिर आजीवन हम उस एक पल के लिए तरसते रहते हैं, जिसे पाकर हम सफल व्यक्ति बनकर वाहवाही लूट सकते और सबकी आँखों का तारा बन पाते। काश, ऐसा हो सकता अथवा हम उस पल को ही वहीं रोककर रख पाते।
हम तो बस सदा उस पल को कोसते रहते हैं, जिसका हम किसी भी कारणवश सदुपयोग नहीं कर सके। उस समय हमारे किन्तु, परन्तु अथवा काश आदि कुछ भी काम नहीं आते।
अवसर को चूकने वाले मनुष्य से बढ़कर मूर्ख और कोई नहीं होता। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मनुष्य अपनी मूर्खता को ढकने के लिए सौ-सौ बहाने बनाता रहता है। और कुछ नहीं तो यह रटा-रटाया वाक्य तो बोल ही सकता है – ‘दुर्भाग्य ही यदि प्रबल हो या भाग्य ही साथ न दे तो वह क्या कर सकता है?’
ऐसे ही व्यक्ति अपने पूरे जीवन में नाकामयाबी का बोझ ढोते रहते हैं। अपने घर-परिवार और समाज में एक असफल व्यक्ति का ढोंग लगाकर घूमते हैं। उन्हें अपनी पत्नी व बच्चों सहित सबसे कदम-कदम पर अपमानित होना पड़ता है। उनके जीवन के ये सबसे अधिक दुखदायी पल होते हैं, जब अपने भी उन्हें कौंचने के बहाने ढूँढते रहते हैं।
यदि उनसे यह पूछा लिया जाए कि ‘क्या तुमने कुछ यत्न किया था, मौके का लाभ उठाने का जिसे तुमने गँवा दिया है?‘ उनके पास इस प्रश्न का कोई सही उत्तर होता ही नहीं है। वे बस इधर-उधर की बातें करके टाल-मटोल करते रहते हैं। इसीलिए वे अपने जीवन से सदा मायूस रहते हैं। अपनी नाकामयाबी का ठीकरा ईश्वर पर फोड़ते हुए उससे शिकवा-शिकायत करते नहीं अघाते।
मनुष्य को जीवन में हर समय सावधान रहना चाहिए, जिससे मिलने वाले सुअवसर का लाभ उठा सके। उसे व्यर्थ गँवाकर पश्चाताप न करना पड़े।