Experiences of Satsangis

बदल दी हैवानी जिंदगी -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की अपार रहमत

प्रेमी हरबंस सिंह इन्सां उर्फ भोला सिंह सुपुत्र सचखंडवासी श्री अमर सिंह जी गांव मूम जिला बरनाला (पंजाब) से अपने सतगुरु दाता पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-

सन् 1977 की बात है, गांव बसियां जिला लुधियाना में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज दाता रहबर का सत्संग था। मैं ट्रैक्टर-ट्राली पर इंटें ढो रहा था। उस समय सत्संग का कार्यक्रम चल रहा था। हम लोग सत्संग के उसी पंडाल के पास से गुजरते थे, क्योंकि वहीं से ही रास्ता था। मेरे मन में ख्याल आया कि ये कोई महापुरुष हैं, जो सफेद कपड़ों (पहरावे) में स्टेज पर बैठे हुए (विराजमान) हैं और इतनी बड़ी संख्या में लोग बिल्कुल चुपचाप और बिना किसी हिलजुल के बैठे हैं, ध्यानपूर्वक सत्संग सुन रहे हैं।

कोई बात तो है इन महापुरूषों मेंं! मेरे दिल में इच्छा जागृत हुई कि देखना चाहिए कि क्या बात है! जब हम दूसरा चक्कर लेकर आए तो वहाँ सत्संग कार्यक्रम की समाप्ति हो गई थी और जहां से हमने गुजरना था वहाँ पर साध-संगत की काफी भीड़ हो गई थी। मैंने ट्रैक्टर को एक तरफ लगा दिया। मैं ट्रैक्टर से नीचे उतरा और सत्संग पंडाल की तरफ जाने लगा कि देखें तो सही, क्या बात है? सत्संग पंडाल में मेरे कुछ जानकार आदमी मुझे मिल गए। वह मुझे बहुत प्रेम करने लगे कि तूं मूम वालेया, ऐन मौके पर आया है। तूं संतों से नाम शब्द ले ले।

मेरे जानकार वह सेवादार भाई प्रेम सहित मेरा हाथ पकड़कर मुझे पूजनीय सतगुरु परम पिता जी की पावन हुजूरी में ले गए। मैंने पूजनीय परमपिता जी को अदब से सजदा किया। उस समय मेरे ट्रैक्टर की ट्राली के टूल बॉक्स में पांच बोतलें शराब की रखी हुई थी। पूजनीय परमपिता जी ने मुझ पर अपनी पावन दया-दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘आ जा बेटा! तेरा टाइम आ गया है चौरासी से निकलने का।’ मैं पूजनीय सतगुरु जी के सामने कुछ न बोल सका। मेरा शरीर पूरे का पूरा एक तरह से सुन्न-सा हो गया था। कुछ पलों के बाद मुझे अंदर से ख्याल आया और वह मैंने ज्यों की त्यों अर्ज़ कर दी। मैंने प्रार्थना की कि पिता जी, मुझे एक साल और दे दो जी।

उन दिनों मैं हर रोज़ अपने घर पर निकाली देशी शराब (रूड़ी मार्का) पिया करता था, बल्कि हमारा पूरा परिवार ही पीता था। पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया कि ‘अच्छा बेटा! काल का कर्ज़ा तेरे पर कुछ ज्यादा ही है, एक साल और खा-पी ले!’ उसके बाद मैं रोज़ना पूरे दिन में तीन-तीन, चार-चार बोतलें शराब पी जाया करता था। मेरे मन में आता कि अब तो यही एक साल है, रजकर पी लूूं।

लगभग एक साल के बाद की बात है। उन दिनों हमारे गांव में रात को नामचर्चा हुआ करती थी। उस दिन भी नामचर्चा चल रही थी। स्पीकर भी लगा हुआ था। स्पीकर की आवाज हमारे घर पर भी सुनाई दे रही थी। तब भी मैंने खूब शराब पी रखी थी। मैंने अपने दादाजी से कहा कि मैं नामचर्चा सुनकर आता हूँ। वह कहने लगा कि तूने पी रखी है, तू आराम से सो जा। परंतु मेरे अंदर, मन में लगन थी और मैं नामचर्चा में चला गया।

नामचर्चा में जो साज (बाजा-ढोलक आदि) बज रहे थे, उसकी (साज की) समझ तो आती थी परंतु और कुछ (शब्द, भजन जो बोले जा रहे थे या जो ग्रंथ में वचन पढ़े गए थे) मेरी समझ में नहीं आया था। नामचर्चा में प्रेमी सेवक ने संगत में स्पीकर पर बोल कर बताया कि 12 दिनों के बाद शनिवार-रविवार को डेरा सच्चा सौदा सरसा में पूजनीय परमपिता जी का सत्संग है, तो सत्संग में आप सब ने भी जाकर अपने जीवन को सफल बनाना है, मनुष्य जन्म का लाभ उठाना है। उस दिन नामचर्चा का मुझ पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा और मुझे अंदर से ख्याल आया कि घर में जो शराब का ड्रम पड़ा है, वह बिखेर दूं, क्योंकि मैंने तो नाम-शब्द लेना है। परंतु मेरा मन मुझे कहने लगा कि अभी तो 12 दिन पड़े हैं! तो उस दिन से मैं और भी रज कर शराब पीने लगा।

वह दिवाली का दिन था और मैं अपने खेत से ट्रैक्टर पर आ रहा था। मैं ट्रैक्टर को अपने घर से करीब 70-80 कदम दूर खड़ा करके घर पर गया और दो बोतलें (वह देशी शराब की) उठाकर अपने नेफे (डब) में फंसा ली। ज्यों ही मैं घर से बाहर निकला तो पुलिस के दो सिपाही मेरे सामने आ कर खड़े हो गए। मैं उन्हें देखकर डर-सा गया। परंतु उसी समय पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज खुद मेरे बराबर (साथ-साथ) चलने लगे। एक सिपाही मेरे दार्इं तरफ और दूसरा बार्इं तरफ हो गया। शराब की बोतलें भी बिल्कुल साफ दिखाई पड़ रही थी, क्योंकि कुर्ता जो मैंने उस समय पहन रखा था, वह बहुत पतला-सा ही था। वो पुलिस वाले जितनी देर तक बीस-पच्चीस करम मेरे से आगे नहीं चले गए, पूजनीय परमपिता जी बिल्कुल मेरे साथ-साथ ही चलते रहे।

इससे पहले मुझे यह कभी अहसास भी नहीं हुआ था कि पूज्य परमपिता जी इतनी बड़ी हस्ती, इतनी बड़ी ताकत, रूहानी-ताकत वाले हैं। उस समय मैं मान गया कि ये तो सच्चे रूहानी फकीर हैं। मैंने सत्संगियों के पास अपनी इस आपबीती घटना का जिक्र भी किया था कि पूजनीय परम पिता जी बहुत बड़ी ताकत हैं, एक बहुत ही महान हस्ती के मालिक हैं, उन्होंने ही मुझे उस दिन अपनी अपार रहमत से स्वयं बचाया और मेरी लाज रखी। उन सिपाहियों की आंखों पर ऐसे खोपे चढ़ गए कि उन्हें कुछ भी नज़र नहीं आया था, क्योंकि अगर घर पर निकाली वह नाजायज शराब उनकी निगाह में चढ़ जाती तो बड़ी सजा भुगतनी पड़ती और खूब बेइज्जती भी समाज में होती, लेकिन पूजनीय परमपिता जी ने अपनी दया-मेहर से खुद ही मुझे उस भारी संकट से बचाया है। इस प्रकार पूजनीय परमपिता जी ने नाम-शब्द लेने से पहले ही मेरी लाज रख ली थी।

12 वें दिन मैं अपने गांव के प्रेमियों से मिला और डेरा सच्चा सौदा चलने की अपनी दिली इच्छा बताई कि मुझे भी जरूर अपने साथ लेकर जाना। क्योंकि उससे पहले मैं कभी सरसा गया ही नहीं था। प्रेमी कहने लगे कि तू इतनी शराब पीता है, नाम कैसे रख पाएगा। लेकिन निश्चित दिन यानि 12वें दिन मैं गांव के प्रेमियों के साथ डेरा सच्चा सौदा दरबार में पहुंच गया। मैंने सच्चे दाता सतगुरु प्यारे का सत्संग सुना और नाम-शब्द की अनमोल दात प्राप्त कर ली।

प्यारे सतगुरु सच्चे रहबर दाता जी की रहमत से नाम-शब्द व वचनों के प्रति मैं आज भी बिल्कुल पूरी तरह से कायम हूं। पिता जी ने मुझ बदनसीब के नसीब बनाकर अपार रहमत की है कि जिसका लिख-बोलकर वर्णन नहीं किया जा सकता।
पूजनीय परमपिता जी के पूज्य मौजूदा स्वरूप हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (पूज्य संत डॉ. एमएसजी) के प्रति मेरी वही सच्ची निष्ठा है, मैं पूज्य पिता जी को पूजनीय परमपिता जी के प्रकट स्वरूप में ही निहारता व पूरा सत्कार करता हूं। पूज्य सतगुरु सच्चे रहबर हजूर पिता जी (संत डॉ. एमएसजी) के पावन चरणों में मेरी अरदास है कि मुझे अपना दृढ़-विश्वास बख्शना जी और डेरा सच्चा सौदा व आपजी के प्रति मेरी श्रद्धा-निष्ठा ज्यों की त्यों उम्रभर बनी रहे जी।

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