Experiences of the Devotess

पावन वचन पूज्य मौजूदा गुरु जी के रूप में पूरे हुए -सत्संगियों के अनुभव -पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर

प्रेमी रणजीत सिंह इन्सां सुपुत्र सचखंडवासी श्री केहर सिंह जी गांव पक्का कलां जिला भटिंडा (पंजाब) से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के एक अनुपम खेल का इस प्रकार वर्णन करता है:-

सन् 1970 की बात है, हमारे गांव पक्का कलां में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का रात का सत्संग था। उस दिन पूजनीय परमपिता जी का उतारा सरपंच हरि सिंह जी के घर पर था। सरपंच का घर हमारे घर से कुछ दूरी पर था। पूजनीय परमपिता जी शाम को घूमने के लिए बाहर खेतों की तरफ गए और वहाँ से वापसी पर स्कूल में आकर बैठ गए। उन दिनों में मुझे सत्संग में गैस लालटेन जलाने की सेवा मिली हुई थी। मेरे पिता जी तब स्टेज सेक्रेटरी यानि प्रेमी सेवक की सेवा करते थे। वह मुझे कहने लगे कि अंधेरा होने लगा है,

पूजनीय परमपिता जी स्कूल में विराजमान हैं, तू वहाँ पर गैस लालटेन ले जा और मैं यहाँ स्टेज की तैयारी करवाता हूं। उन्होंने मुझे यह भी कहा कि जब पूजनीय परमपिता जी वहाँ से उठकर जाने लगें तो तू अर्ज़ कर देना कि पिता जी हमारे घर भी चरण टिकाओ जी। मैं गैस लालटेन लेकर स्कूल में पहुंच गया। जब पूजनीय परमपिता जी वहां से उठकर जाने लगे तो मैंने अर्ज की कि पिता जी, हमारा घर यहाँ से बहुत नजदीक ही है। मेरे पापा जी ने कहा है कि हमारे घर भी अपने पावन चरण टिकाओ जी, चाहे एक मिनट के लिए ही। पूजनीय परमपिता जी ने मुझे वचन फरमाया, ‘मिट्ठू, अंधेरा हो गया। आठ बजे सत्संग करना है। तेरे बापू जी को कह देना कि तुम्हारे घर फिर कभी जरूर आएंगे।’ उसके बाद पूजनीय परमपिता जी कभी हमारे घर नहीं आए। चाहे गांव में सत्संग तो कई फरमाए थे।

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सन् 1991 में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने अपना पंच-भौतिक चोला बदल लिया और पूजनीय मौजूदा गुरु हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की नौजवान बॉडी में विराजमान हो गए। मैं भटिंडा में नौकरी किया करता था, तो उसी दौरान मेरी बदली रोपड़ में हो गई। एक बार पूज्य हजूर पिता जी ने अपनी जीवोद्धार यात्रा के लिए हिमाचल प्रदेश में जाना था।

जब रोपड़ की संगत को पता चला कि पूज्य हजूर पिता जी हिमाचल प्रदेश आ रहे हैं, तो हम रोपड़ कॉलोनी की साध-संगत के कुछ जिम्मेवारों ने सरसा दरबार जाकर पूज्य गुरु जी की पावन हजूरी में अर्ज़ की कि पिता जी, आप रोपड़ के बीच से ही हिमाचल प्रदेश को जाओगे तो हमारी रोपड़ कालोनी में भी पावन चरण टिकाओ जी, जोकि मेन सड़क के बिल्कुल नजदीक है जी। पूज्य गुरु जी ने हमारी अर्ज़ को स्वीकार करते हुए फरमाया कि आप मोहन लाल को अपना पूरा पता लिखवा दो। उसके बाद जब पूज्य पिता जी पंचकूला से रोपड़ को आने लगे तो जीएसएम भाई मोहन लाल जी ने हमें बता दिया कि पिता जी रोपड़ जाने के लिए पंचकूला चल पड़े हैं।

आप दो प्रेमी भाई मेन सड़क पर आ जाओ ताकि पूज्य पिता जी को अपनी कॉलोनी में ले जाओ। हम दो प्रेमी सड़क पर जाकर खड़े हो गए। जब पूज्य हजूर पिता जी का काफिला आया तो हम मोटर साईकिल लेकर आगे-आगे चल दिए। रोपड़ की संगत ने मेरे क्वार्टर में ही पूज्य पिता जी का उतारा कर दिया था। तो पूज्य पिता जी क्वार्टर में पधारे और सारी संगत को पास बुलाकर हाल-चाल पूछा। पूज्य पिता जी ने सभी को बहुत खुशियां बांटी। काफिले में जो सेवादार आए हुए थे, हमने उन सबके लिए चाय-पानी, लंगर का प्रबंध कर रखा था व सभी सेवादारों को चाय-पानी आदि छकाया।

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पूज्य पिता जी मेरे घर पैंतालीस मिनट रुके। शहनशाह जी ने मुझे फरमाया कि बेटा रणजीत सिंह! तेरे साथ वायदा किया था कि तेरे घर जरूर आएंगे। तू तो एक मिनट ही कह रहा था, हम तो पैंतालीस मिनट बैठ गए और चाय-पानी भी ले लिया। अब हमने हिमाचल जाना है। आगे मिस्त्री सेवादार इंतजार कर रहे हैं और जाकर हिमाचल वाले डेरे का उद्घाटन भी करना है। इतने पावन मुख-वचन फरमाकर पूज्य पिता जी हिमाचल के लिए रवाना हो गए।

पूज्य पिता जी के जाने के बाद मुझे पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के वचन याद आए कि तेरे बापू को कह देना, तेरे घर कभी फिर जरूर आएंगे। उस समय मैंने पूजनीय परमपिता जी से विनती की थी कि चाहे एक मिनट ही लगाना। पूजनीय परमपिता जी के वचनों से मुझे इस बात का पक्का यकीन हो गया कि पूज्य मौजूदा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां खुद ही पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज हैं, स्वयं ही उनका प्रकट स्वरूप हैं। सतगुरु दाता जी ने केवल अपना पंच भौतिक चोला ही बदला है। मेरी पूजनीय परमपिता जी के पावन स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी के पवित्र चरणों में यही अरदास है कि इसी तरह दया-मेहर, रहमत बनाए रखना जी।