Destroying Nature लिविंग प्लैनेट की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि मानवीय गतिविधियां अस्वीकार्य दर से प्रकृति को नष्ट कर रही हैं, जिससे मानव की वर्तमान और भावी पीढ़ियों के अस्तित्व को खतरा है।
वन्य जीवों के विनाश को मानव सभ्यता के लिए खतरा बताते हुए इंसानी क्रियाकलापों पर चिंता जता रहे हैं कीटविज्ञानी प्रो. राम सिंह
यह हम सबको मानना होगा कि मानव ने प्रकृति से खूब छेड़छाड़ की है। कंक्रीट के जंगल खड़े करने को हरे-भरे जंगलों की बलि ले ली। वन्य जीवों, कीटों का सफाया करने में जुटा इंसान यह भूल चुका है कि प्राकृतिक चीजों से ही उसका अस्तित्व है। जैसे-जैसे प्रकृति की इन चीजों को मानव रोंदता जाएगा, वैसे-वैसे वह अपने अस्तित्व को समाप्ति की ओर ले जाएगा। हालांकि अब तक मानव इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है।
Destroying Nature मानवीय आदतों में सुधार की नसीहत देते हुए चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय हिसार में कीट विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं रॉयल एंटोमॉलोजिकल सोसायटी लंदन के फेलो प्रो. राम सिंह कहते हैं कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए इंसान को प्रकृति संग सद्भाव बनाए रखना जरूरी है। उनका मानना है कि वन्यजीवों का विनाश अब एक आपातकाल में परिवर्तित हो चुका है, जो मानव सभ्यता के लिए बड़ा खतरा है। विशेषज्ञों ने भी यह चेतावनी दे दी है।
पृथ्वी ग्रह पर 7.8 बिलियन मानव सभी जीव प्रजातियों का सिर्फ 0.01 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं। मानव ने 1970 के बाद से यानी पिछले 50 साल में 60 प्रतिशत स्तनधारियों, पक्षियों, मछलियों और सरीसृपों का सफाया कर दिया है। इसलिए आपातकाल की स्थिति बनना स्वाभाविक है।
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी ग्रह पर छठे बड़े पैमाने पर वर्तमान मानव (होमो सेपियन्स) के कारण जीवित प्राणियों के विलुप्त होने की शुरुआत हो चुकी है। हाल के विश्लेषणों से पता चला है कि मानव जाति ने सभ्यता की शुरूआत के बाद 83 प्रतिशत स्तनधारियों और पौधों को नष्ट कर दिया है। भले ही अब यह विनाश तुरंत रुके, फिर भी प्राकृतिक दुनिया को सामान्य होने में 5-7 मिलियन वर्ष लगेंगे।
प्रकृति, मानव भलाई के लिए सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भोजन, स्वच्छ पानी और ऊर्जा के महत्वपूर्ण उत्पादन के माध्यम से और पृथ्वी की जलवायु, प्रदूषण, परागण और बाढ़ को विनियमित करती है। लिविंग प्लैनेट की रिपोर्ट स्पष्ट रूप से बताती है कि मानवीय गतिविधियां अस्वीकार्य दर से प्रकृति को नष्ट कर रही हैं, जिससे मानव की वर्तमान और भावी पीढ़ियों के अस्तित्व को खतरा है।
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करीब 350 मिलियन वर्षों से पृथ्वी पर हैं कीट:
मनुष्यों का अस्तित्व 2 मिलियन वर्षों से भी कम की तुलना में कीट लगभग 350 मिलियन वर्षों से पृथ्वी पर रहते हैं। वे पृथ्वी पर विविधता और परिमाण दोनों में अन्य सभी जानवरों पर उत्कृष्ट हैं। संयुक्त अन्य सभी जानवरों की तुलना में कीट प्रजातियां कम से कम तीन गुना अधिक हैं। प्रो. राम सिंह के मुताबिक आज कीड़े न केवल पशु साम्राज्य के सबसे बड़े वर्ग हैं, बल्कि पूरे जीवित दुनिया में वर्णित सभी 1.72 मिलियन प्रजातियों में से लगभग 63,861 कशेरुक हैं, 3,07,674 पौधे हैं और 1,000,000 (57.86 प्रतिशत) कीट हैं। हाल के अनुमानों के अनुसार, कीट प्रजातियों की कुल संख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ी है। यह 4 से 10 मिलियन तक हो सकती है।
आदमी की तुलना में कीट प्रभुत्व के कारण: Destroying Nature
Destroying Nature आदमी की तुलना में कीट प्रभुत्व के कारणों में पंखों की उपस्थिति, 6 पैर, विविध खाद्य आदतें और मुंह के अंग, विभिन्न जीवन चक्र (अंडा, लार्वा, प्यूपा और वयस्क), कई आंखें, खुले रक्त परिसंचरण, कई तंत्रिका अंग, विभिन्न तापमानों में समायोजित करने की क्षमता, ठंडा खून, विविध पानी और पोषण सम्बंधी समायोजन, हाइबरनेट और डायपॉज करने की क्षमता, जनसंख्या संतुलन बनाए रखने की क्षमता, सभी प्रकार की प्रजनन प्रणाली, परिवर्तनीय शरीर का आकार, आकस्मिक प्रवास करने की क्षमता, एक्सोस्केलेटन (मानव की तरह एंडोस्केलेटन नहीं),
कई सहजीवी जीवों की उपस्थिति, लकड़ी, बाल और पंख जैसे असामान्य खाद्य पदार्थों को पचाने की क्षमता, कीटनाशकों को सहन और प्रभावहीन कर सकना, भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं, चिटिन की उपस्थिति, पानी के संरक्षण के लिए यूरिया के बजाय यूरिक एसिड का उत्सर्जन, पौधों के अंदर, पानी के ऊपर, जमीन के नीचे, जमीन के ऊपर पौधों पर आश्रय, मनुष्यों की तरह ग्लूकोज के बजाय रक्त में ट्रेहलोस शुगर की उपस्थिति, अवायवीय श्वसन को अपना सकना, अच्छी तरह से विकसित मिमिक्री अपनाना, छलावरण तंत्र की उपस्थिति शामिल है। पृथ्वी पर देर से प्रकट होने के कारण आदमी में कीट की तरह सभी विविधताओं की कमी है। इसलिये मनुष्य को पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली जीव (कीट) के उन्मूलन के बारे में सोचने की बजाय उनसे सीखना चाहिए।
ढाई साल पहले तक 290 कीटनाशक हुए पंजीकृत:
6 जून 2018 यानी ढाई साल पहले तक भारत में 290 कीटनाशकों, कवकनाशकों, खरपतवार नाशकों, जैव कीटनाशकों को उपयोग के लिए पंजीकृत किया गया है। विभिन्न कीटों के प्रबंधन के लिए कुल 556 कीटनाशकों की सिफारिश की गई हैं। सभी प्रयासों के बावजूद मनुष्य कीड़ों को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं है। हाल ही में देश के कई क्षेत्रों में टिड्डी का विभिन्न फसलों पर हमला एक यादगार उदाहरण है।
भारतीय स्थिति के लिए राय:
भारतीय स्थिति के लिए अपनी राय में प्रो. राम सिंह कहते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करें और उन्हें संरक्षण के माध्यम से फिर से भरें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रकृति और मानव के अनुकूल कीड़े जैसे कि मधुमक्खी, रेशमकीट, लाख कीट, परभक्षी और परागणक की सुरक्षा सुनिश्चित करें। प्रकृति को बिना प्रभावित किए आधुनिक उपयुक्त उपकरणों के साथ उचित संयोजन में पारिस्थितिक तरीकों का पालन कर कीटों का प्रबंधन करके स्थायी कृषि को अपनाएं।
दूसरी और महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार पिछले 100 वर्षों में बढ़ी हुई जनसंख्या के पोषण और खाद्य सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक योजना के साथ बढ़ते अनाज/ खाद्य उत्पादन पर दबाव कम करने के लिए नीति तैयार करे। सभी प्रयासों के बावजूद कीटों को तर्कसंगत रूप से प्रबंधित करने की आवश्यकता है, न कि उनका विनाश या उन्मूलन, जो कि असंभव है। संजय कुमार मेहरा, गुरुग्राम