सतगुरु जी की रहमत से बिना आॅप्रेशन गुर्दे की पत्थरी निकल गई – सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का रहमो-करम
माता लाजवंती इन्सां पत्नी सचखण्ड वासी प्रकाश राम, कल्याण नगर-सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत का वर्णन करती है:-
सन् 2003 की बात है कि मेरे गुर्दे में 15 एम.एम. की पत्थरी बन गई। कभी दर्द होता तथा कभी हट जाता। शाह सतनाम जी सार्वजनिक हस्पताल श्री गुरुसर मोडिया जिला श्री गंगानगर से मेरी दवाई चलती थी। मुझे बहुत दर्द हुआ तो मैं श्री गुरुसर मोडिया हस्पताल में चली गई। डाक्टरों ने कहा कि दवाईसे तो पत्थरी निकली नहीं, माता, तेरा आॅपरेशन होगा, आॅपरेशन करके पत्थरी निकालेंगे। उन्होंने सारी लिखित-पढ़त कर ली और मेरे हस्ताक्षर भी करवा लिए। उन दिनों में दरबार में सेवा खूब चल रही थी।
मैंने डॉक्टरों को कहा कि सेवा जरूरी है, आॅपरेशन जरूरी नहीं, फिर देखा जाएगा। मैं इतना कह कर डाक्टरों से छुट्टी लेकर साध-संगत की सेवा मेें लग गई। मैं साध-संगत के साथ श्री गुरुसर मोडिया से डेरा सच्चा सौदा सरसा आ गई। अगले दिन पूज्य हजूर पिता जी ने तेरा वास में सभी सेवादारों को बुलाकर प्रसाद दिया। उसके बाद मैं अपने घर कल्याण नगर आ गई तथा रात को सोने के बाद अगले दिन जब मैं सुबह उठी, रफा हाजत के लिए गर्ई, तो पत्थरी अपने आप निकल गई। मैंने पत्थरी को धोकर व सुखा कर एक पुड़िया में बांध कर रख लिया।
मैं महीने तक हस्पताल नहीं गई। महीने के उपरान्त जब मैं हस्पताल गई तो वहां लंच समय के दौरान कुछ डॉक्टर इकट्ठे बैठे बातें कर रहे थे। जब मैं डाक्टरों के पास से जाने लगी तो एक डाक्टर मुझे सम्बोधित करके बोला कि माता जी, आपने अभी आॅपरेशन नहीं करवाया? तू वैसे ही चल फिर रही है? इतनी बात सुनकर मेरी हंसी निकल गई। मैंने पत्थरी की पुड़िया उनके आगे रख दी। सभी डॉक्टर हैरान थे कि इतनी बड़ी पत्थरी ऐसे कैसे निकल गई? वहीं पर एक नर्स खड़ी थी। वह कहने लगी कि माता जी कहती थी कि सेवा जरूरी है, आॅपरेशन जरूरी नहीं, आॅपरेशन फिर करवा लेंगे। इस तरह पूज्य हजूर पिता जी ने मेरा रोग काट दिया।
करीब डेढ़ साल बाद फिर मेरे गुर्दे में 18 एम.एम. की पत्थरी बन गई। मैंने जब शाह सतनाम जी सार्वजनिक हस्पताल श्री गुरुसर मोडिया के डॉक्टरों से राय ली तो वह कहने लगे कि माता इतनी बड़ी पत्थरी बिना आॅपरेशन के नहीं निकलेगी। मैंने डॉक्टर साहिब से आॅपरेशन का खर्चा पूछा तो वह कहने लगे कि अठारह हजार रुपये खर्चा आएगा। मैं चुप कर गई, कुछ न बोली। डॉक्टर कहने लगे कि माता जी, क्या गुंजाइश नहीं है? तो मैं फिर भी कुछ न बोली। मैं वहां से बिना कोई दवाई लिए घर वापिस लौट आई। मैं अगले दिन डेरा सच्चा सौदा सरसा सुबह की मजलिस में पहुंच गई।
मैंने मजलिस के दौरान पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में बैठे-बैठे अरदास कर दी कि पिता जी, मैंने आॅपरेशन नहीं करवाना, जो खर्चा आॅपरेशन पर होता है, मैं वह परमार्थ कर दूंगी जो किसी गरीब के काम आ जाएगा, परन्तु मैंने आॅपरेशन नहीं करवाना। पिता जी, अगर पत्थरी नहीं निकलती तो गायब कर दो। पिता जी, आप क्या नहीं कर सकते। उस समय पूज्य हजूर पिता जी ने मुझे आशीर्वाद दिया। पिता जी ने मेरी अरदास मंजूर कर ली। उसके बाद वह पत्थरी गायब हो गई। मुझे पता ही नहीं चला कि वह पत्थरी किधर गई। मैंने वायदे के मुताबिक गरीबों के भले के लिए वह पैसा खर्च कर दिया। उसके बाद मुझे आज तक गुर्दे की पत्थरी की तकलीफ नहीं हुई। मेरी हजूर पिता जी के चरणों में यही अर्ज है कि मेरी ओड़ निभा देना जी।