Woman dressing is incomplete without Nath - sachi shiksha

नारी के शृंगार और आभूषणों में सबसे प्रमुख व महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है नासिका आभूषण। साधारण से दिखने वाले चेहरे पर नाक का यह आभूषण चार चांद लगा देता है, यदि चेहरे के आकार को ध्यान में रखते हुए इसे पहना जाए। नथ ही एक ऐसा आभूषण है जो अपने रूप में पुरानी परम्पराएं व विभिन्न रूप संजोये हुए है। यहां तक कि पुराने समय में नथ का उपयोग विभिन्न श्रेणियों व वर्ग की पहचान भी करवाता रहा है।

नथ में मोती की चमक, लौंग का लशकारा, नकफूल के फूल, बुलाक की चमक इत्यादि कितने ही रूपों में नासिका आभूषण नारी सौंदर्य में बढोत्तरी कर देते हैं। नाक में पहनने के लिए सबसे पहले नथ का प्रयोग किया गया। सुहाग की निशानी मानी जाने वाली नथ की कीमत स्त्री के पति की हैसियत से जुड़ गईं।

पुराने समय में रानियां सबसे कीमती हीरे-पन्ने की नथ पहनतीं। सेठानियां मोती, नीलम व पुखराज जैसे पत्थरों से जड़ी नथ पहनतीं थी। मंत्री, सेनापति, व्यापारी आदि की पत्नियां खाली सोने की नथ पहनकर खुश होती थीं। निम्न जाति की औरतों को सोने की नथ पहनने की अनुमति नहीं थी इसलिए वे चांदी की नथ पहनकर ही अपना शौक पूरा करती थीं।

नौंवी और दसवीं शताब्दी में नथ का प्रचलन बहुत बढ जाने के बाद भी इसे फैशन नहीं माना गया बल्कि इसको ’सुहाग के गहने’ के साथ जोड़ा गया। विवाह के समय श्रृंगार में नथ को अभिन्न अंग बनाया गया। विवाहित स्त्री के लिए नाक में नथ पहनना उसके पति की दीर्घायु व तरक्की का प्रतीक बन गया।

करीब पांच शताब्दियों तक नथ का प्रचार व प्रसार होता रहा और भारत की सभी धर्मों की स्त्रियों ने इसे शगुन मानकर अपनाया लेकिन 15 वीं शताब्दी के आस-पास नथ पहनने का प्रचलन कम हो गया और तब आई लौंग। लौंग छोटी-सी मगर हीरे, पन्ने, मोती, नीलम जैसे नगों से जुड़ी हुई थी। इसी के साथ नकफूल पहनने का प्रचलन भी बढा।

17 वीं व 18 वीं शताब्दी में नथ-बेसर, कील, कांटा, बुलाक आदि कई गहने विशेष रूप से नाक में पहनने के लिए बनाये गये। 20 वीं शताब्दी में नासिका आभूषण का चलन तब कुछ कम हो गया जब हिंदी फिल्मों की नायिका ने नाक में कुछ पहनना छोड़ दिया। करीब दस पन्द्रह वर्षों तक ऐसे ही रहने के बाद एकाएक फिर से नासिका आभूषण प्रसिद्घ हुए।

इस बार प्रसिद्घ हुई ’नथ’। बिना किसी मोती या नीलम की छोटी-सी नथ कुआंरी लड़कियां भी पहनने लगीं। कालेज और स्कूल की लड़कियों की नाक में नथ पहनना ही फैशन की शुरूआत है। आज नाक में लौंग, नथ आदि पहनकर घूमना फैशन बन गया है।

दादी मां के नुस्खों के अनुसार अगर जन्म से बच्चे की दोनों आंखों में थोड़ा सा फर्क हो तो नथ काफी उपयोगी सिद्घ हो सकती है। नाक की एक नस जिसका ताल्लुक सीधे आंख से होता है, उसे नथ द्वारा बींद दिया जाता है जिसे ’नस बिंदनी’ कहते है । लगभग साल भर में दोनों आंखों की पुतलियां अपने सही स्थान पर आ जाती है।

सारे भारत में नासिका आभूषणों की आकृतियों व उसके पहनने के स्थान में भी विविधता पाई जाती है। नाक के आभूषणों ने आज अनेक रुप ले लिये हैं। उनकी लम्बाई, आकार और फैशन में अंतर आ गया है। अब रत्नों से जड़ी लौंग के अलावा फूल, पत्ती, पंखुड़ियां, बेल-बूटे, तितली जैसे कई डिजाइनों में आज ये आभूषण मिलते हैं। इनमें लाल या सफेद नग भी जड़े होते हैं। अब सोने, चांदी के अतिरिक्त प्लेटिनम व हीरे में भी नासिका आभूषण मिलते हैं।

इसके अलावा भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग आकृतियों में नासिका आभूषण पहने जाते हैं। ओडिशा में मोर-पंखी आकार प्रिय है तो आंध्र्रप्रदेश में तीन-पत्तियों का फैशन है। महाराष्ट्र में जड़ाऊ लौंग और बड़ी सी-नथ प्रसिद्घ है तो ग्रामों में झुलनी।

नथ अर्थात लौंग नारी श्रृंगार का अभिन्न अंग है, जिसके बिना श्रृंगार अधूरा सा प्रतीत होता है।
– अमिता अग्रवाल

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