… हुण तू तक्कड़ी हो जा! -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर
बहन बलजीत कौर इन्सां सुपुत्री सचखंडवासी नायब सिंह अरनियांवाली रोड रहमत कॉलोनी सरसा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपनी माता पर हुई रहमत का वर्णन करते हुए बताती हैं कि यह सन् 1976 की बात है, उस समय हम श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब) में रहते थे।
एक दिन मेरी माता जी को दिल का दौरा पड़ गया। हालत इतनी गंभीर हो गई कि श्री मुक्तसर साहिब के सभी डॉक्टरों ने जवाब दे दिया। हम माता जी को श्री अमृतसर साहिब के एक बड़े अस्पताल मेें ले गए। वहां के एक हार्ट स्पैशलिस्ट डॉक्टर साहिब ने माता जी का चैकअप करने के बाद कहा कि इसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है। दिल 95 प्रतिशत खराब (ब्लॉक) हो चुका है और केवल 5 प्रसेंट ही काम कर रहा है। डॉक्टर ने कहा कि मैं फिर भी अपनी पूरी कोशिश करता हूं और तुम लोग भगवान के आगे अरदास करो। वास्तव में इन्हें दवा नहीं, अब दुआ ही बचा सकती है।
मैंने उसी वक्त आंखें बंद करके अपने मालिक सतगुरु पूजनीय परमपिता जी के आगे अरदास की कि हे पिता जी, आप ही हमारे भगवान हो, आप ही हमारे रब्ब हो। आप जी मेरे बीजी (माता जी) को ठीक कर दो जी और मैं सुमिरन करने लग गई। सुमिरन के दौरान पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने मुझे दर्शन दिए तथा फरमाया, ‘बेटा, घबरा ना। तेरी माता कल तक बोल पड़ेगी (बात करने लगेगी)।’ उसी वक्त मैंने अपनी आंखों के आँसू पोंछे तथा डॉक्टर से कहा कि आप दवाई दो, मेरी माँजी को कुछ नहीं होगा। डॉक्टर कहने लगा कि अगर सुबह तक बोल पड़ी तो बचने की कुछ उम्मीद जगेगी और अगर बेहोशी ना टूटी तो…, यह कहते हुए डॉक्टर चुप कर गया। वह डॉक्टर साहब मेरे पिता जी के दोस्त के दोस्त थे। मैंने उन्हें कहा, अंकल जी, मुझे अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास है। मेरे बीजी सुबह तक अवश्य बोल पड़ेंगे।
जब सुबह डॉक्टर साहब राउंड पर आए, तो वह यह देखकर हैरान रह गए कि माता जी तो ठीक-ठाक हैं और बातें कर रहे हैं। वे मुझे बधाई देते हुए कहने लगे कि वाकई तेरे गुरु में बहुत शक्ति है। तुम लोग किस बाबा जी को मानते हो? मैंने उन्हें डेरा सच्चा सौदा व अपने पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के बारे में सब कुछ बता दिया। वह कहने लगे कि बड़े करणी वाले बाबा जी हैं! तुम्हारी माता जी के बचने का बिल्कुल भी कोई चांस नहीं था। अब एक साल और कट जाएगा और वह भी अगर कोई सदमा न लगे तो अन्यथा सदमे में फिर दौरा पड़ सकता है।
अस्पताल से छुट्टी मिलने पर हम घर आ गए। मेरे बीजी ज्यादा कमजोरी के कारण सरसा दरबार में नहीं जा सकते थे। उन्होंने मेरे से पूजनीय परमपिता जी के नाम एक चिट्ठी लिखवाई कि पिता जी, अगर आप जी मुझे घर पर ही दर्शन दे दो तो मैं ठीक हो जाऊंगी। उसी दौरान पूजनीय परमपिता जी ने श्री मुक्तसर साहिब का सत्संग रख दिया। इससे दस दिन पहले अचानक मेरे फूफा जी की मृत्यु हो गई थी और इसीलिए हम पूजनीय परमपिता जी का उतारा अपने घर पर नहीं रख पाए।
उस दिन सत्संग की समाप्ति के बाद पूजनीय परमपिता जी ने मेरे डैडी को अपने पास बुलाया और फरमाया, ‘नायब सिंह, आप घर पहुंचो, हम आ रहे हैं। ’ थोड़े समय बाद ही परमपिता जी घर पहुंच गए और मेरी बीमार बीजी की चारपाई के पास आकर खड़े होकर फरमाने लगे, ‘बेटा अंग्रेज कौर! हम तो घर आ गए, अब तू तकड़ी हो जा।’ मेरे बीजी के मुंह से ‘पिता जी’ शब्द ही निकला और वैराग्य में आकर रोने लगी। पूजनीय सतगुरु परमपिता जी के पावन वचनों व दर्शनों से मेरे बीजी उसी दिन से ही तंदुरुस्त होने लगे। डॉक्टर साहिब ने तो कहा था
कि ज्यादा से ज्यादा दस साल ही निकाल पाएंगे और वह भी अगर कोई गहरा सदमा इन्हें न पहुंचे। परंतु हमारे सतगुरु तो खुद-खुदा, कुल-मालिक हैं। उनके वचन कि ‘तकड़ी हो जा’ के अनुसार मेरे बीजी 1976 से लेकर अब तक 40-50 साल हो गए हैं और पूरी तरह से स्वस्थ हैं, तंदुरुस्त हैं। जीवन में उन्होंने परेशानियां भी बहुत देखी, किंतु सतगुरु पिता जी के वचनों से उनका बाल भी बांका नहीं हुआ, ज्यों के त्यों स्वस्थ बिल्कुल तंदुरुस्त हैं। परम पूजनीय परमपिता जी के प्रत्यक्ष स्वरूप पूजनीय मौजूदा गुरु पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरण कमलों में मेरी यही अरदास है कि पिता जी, सेवा-सुमिरन करते-करते ही मेरी ओड़ निभा देना जी।