‘तू डायरी में लिख, 2 दिसंबर 1992, सवेरे 8 बजे…!’ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी हरी चंद इन्सां पुत्र श्री भगवान दास गांव बप्पां जिला सरसा से अपने पर पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की हुई रहमतों का वर्णन करता है:-
सन् 1980 की बात है कि हमारे गांव में जो नामचर्चा चलती थी, वह बंद हो गई। मेरे गांव के सत्संगियों ने आपस में विचार-विमर्श किया कि अपने किसी को भंगीदास बनाएं ताकि नामचर्चा चल सके। उन दिनों में हमारे गांव की साध-संगत ट्रैक्टर ट्रॉली भरकर स्पेशल डेरा सच्चा सौदा सरसा में आई। साध-संगत ने मजलिस में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन किए।
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गांव के मौहतबर आदमियों ने परम पिता जी के चरणों में अरदास कर दी कि पिता जी, हमारे गांव का भंगीदास बनाओ और यह भी अर्ज की कि हमारे गांव का भंगीदास हरीचंद था, उसने सेवा छोड़ दी है। पूजनीय परमपिता जी ने वचन किए, ‘तुहाडे कोल होर हरी चंद हैनी।’ तो प्रेमियों ने कहा कि हैगा, पिता जी। प्रेमी मुझे जबरदस्ती पकड़ कर परमपिता जी के पास ले गए और कहने लगे कि यह हरी चंद है, इसको भंगीदास बनाते हैं, पर यह बनता नहीं। फिर परम पिता जी ने हमारे गांव की साध-संगत को वचन किए कि भाई, जो इसे बनाने पर सहमत हैं, हाथ खड़े करो। तो सारी संगत खड़ी हो गई।
तो परम पिता जी ने मुझे वचन किए कि ‘भाई, सारी संगत खड़ी है, तू बण जा।’ मैंने मन के धक्के चढ़कर फिर भी जवाब दे दिया। फिर परम पिता जी ने मुझे मुखातिब होकर फरमाया, ‘जे असीं बणाइए तां बणजेंगा।’ तो मैंने कहा कि मैं तैयार हूं पिता जी। परम पिता जी ने मेरे सिर पर हाथ रखा तथा वचन किए कि तेरी तरफ कोई उंगली नहीं करेगा। मैंने 2012 तक लगातार 32 साल भंगीदास की सेवा निभाई। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के वचनानुसार कि जो भंगीदास पचास वर्ष से ऊपर या बुजुर्ग हो गए हैं वो दूसरों को सेवा का मौका दें, मैंने भंगीदास की सेवा छोड़ दी तथा शाही कैंटीन में पक्की सेवा ले ली।
वे बताते हैं कि सन् 1981 की बात है जब मेरा विवाह हो गया था। उसके बाद 1983 में मेरे घर लड़की ने जन्म लिया। इसके उपरान्त सन् 1988 तक मेरे घर चार लड़कों ने जन्म लिया परन्तु उनमें से कोई भी नहीं बचा। इसके बाद सन् 1988 में मेरे सारे परिवार ने पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज के चरणों में अरदास की कि पिता जी चार लड़के हुए हैं, पर कोई भी नहीं बचा। तो पूजनीय परमपिता जी ने सेवादार लछमन सिंह से दो किन्नू मंगवाए। उन किन्नुओं पर अपनी दया-दृष्टि डाल कर एक मेरी झोली में तथा एक मेरी पत्नी की झोली में डाल दिया और वचन फरमाए, ‘इह जो चार लड़के होए सन, इह तां तैथों कर्जा लैण वाले ते तैनूं दाग लाउण वाले सन।
हुण असीं तैनंू लड़का देवांगे। इह तैनूं कमाई करके देण वाला होवेगा। इसदा नां जगजीत रखदे हां। इह दो दिसंबर 1992 सवेरे 8 बजे होवेगा। उस समय तूं सेवा विच होंवेंगा।’ जब हम उठकर जाने लगे तो परम पिता जी ने हमें फिर से बुलाया तथा मुझे मुखातिब होकर वचन किए कि तुझे तो विश्वास है, पर तेरे परिवार का मन डावां डोले खाता है। पूजनीय परमपिता जी ने लछमन सिंह सेवादार से मुझे दात रूप में देने के लिए सीनरी मंगवाई तथा मुझे पूछा कि तेरे पास डायरी है? तो मैंने कहा हां जी पिता जी है जी। तो परम पिता जी ने वचन फरमाए कि ‘तू डायरी में लिख, 2 दिसंबर 1992, सवेरे 8 बजे।’ मुझे उक्त वचन डायरी में लिखवाया तथा सीनरी की दात दी। सभी को प्रशाद दिया। उसके बाद मैं तो सेवा में ही रहता था। परन्तु घर में काम न करने की वजह से मेरे भाई मुझसे नाराज रहने लगे। उन्होंने मुझे अलग कर दिया। परन्तु मालिक सतगुरु की हमेशा ही मुझ पर रहमत रही। मुझे कभी भी किसी चीज की कमी नहीं आई।
2 दिसम्बर 1992 का दिन भी आ गया। मैं उस दिन ब्लॉक के गांवों में दरबार की सेवा का संदेश देने के लिए गया हुआ था। उस दिन मेरे भाई के घर सुबह आठ बजे लड़का हुआ। उस समय मेरा भाई मुझसे नाराज था। परन्तु जब लड़का हुआ तो उस समय मेरे भाई को मालिक सतगुरु ने ख्याल दिया तथा उसी दिन उसी समय पर उसने वह लड़का मेरी पत्नी की झोली में डाल दिया तथा कहा कि ये तेरा है। उस समय उन्होंने लड्डू बांटे तथा खुशी मनाई और यह कहा कि हमारे पास तो लड़का पहले ही है। पर यह तुम्हारा ही है। इस तरह मालिक सतगुरु के वचन पूरे हुए तथा भाई भी बोलने लग गया अर्थात् नाराजगी दूर हो गई।
21 दिनों बाद जब हम सारा परिवार पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को लड़के की बधाई देने के लिए डेरा सच्चा सौदा सरसा तेरा वास में गए तो हमने हजूर पिता जी को बधाई देते हुए अर्ज की कि पिता जी इसका नाम रख दो तो पिता जी मुस्कराए तथा वचन फरमाया, ‘इसका नाम तो पहले ही रख दिया था, जगजीत।’ फिर हमें अपनी गल्ती का पछतावा हुआ तथा हमने पिताजी से माफी मांगी।
पूज्य पिता जी ने फरमाया, ‘तुहानूं भाई डायरी विच लिखवाया सी। तुसीं भुल्ल गए?’ हजूर पिता जी ने वो ही वचन फरमा दिए जो परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने 1988 में फरमाए थे। पूज्य पिता जी ने हमें अत्यन्त खुशियां बख्शी। अब उस लड़के ने मेरा कारोबार सम्भाल लिया है तथा लायक लड़का है। मुझ पर जो सतगुरु ने परोपकार किए हैं, मैं उनका बदला नहीं चुका सकता। बस धन्य-धन्य ही कर सकता हूं। मैं तन-मन से डेरा सच्चा सौदा में सेवा करता हूं तथा मेरी पूजनीय परमपिता जी के स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी के चरणों में यही अरदास है कि मेरी सेवा करते-करते ही ओड़ निभ जाए जी।