Digital teaching - Sachi Shiksha

डिजिटल अध्यापन

देशभर की राज्य सरकारों ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए स्कूलों और कॉलेजों को अस्थाई रूप से बंद करना शुरू कर दिया था। अभी भी कोई निश्चितता नहीं है कि स्कूल फिर से कब खुलेंगे। आज अध्ययन एवं अध्यापन के डिजिटल स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई है।

कक्षा में आमने-सामने के संप्रेषण का स्थान इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि पर आभासी कक्षाओं ने ले ली है। जूम, सिसको वेब एक्स, गूगल क्लासरूम, टीसीएस आयन डिजिटल क्लासरूम आदि ने लोकप्रियता के आधार पर शिक्षा जगत में अपना-अपना स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया है। शिक्षा क्षेत्र के लिए यह महत्वपूर्ण समय है। स्कूल बंद होने से न केवल सीखने की निरंतरता पर अल्पकालिक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम भी होंगे। शिक्षण और मूल्यांकन के तरीकों सहित स्कूली शिक्षा की संरचना पहले से ही ऐसी रही है कि कुछ ही निजी स्कूल आॅनलाइन शिक्षण विधियों को अपना सकते थे।

दूसरी ओर, कम आय वाले निजी और सरकारी स्कूलों ने ई-लर्निंग तक पहुंच नहीं होने के लिए पूरी तरह से बंद कर दिया है। स्कूल और विश्वविद्यालय बंद होने से न केवल भारत में 285 मिलियन से अधिक युवा शिक्षार्थियों के लिए सीखने की निरंतरता पर अल्पकालिक प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि इसके दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम भी सामने आएंगे। महामारी ने उच्च शिक्षा क्षेत्र को भी बाधित किया है, जो देश के आर्थिक भविष्य का महत्वपूर्ण निर्धारक है। शिक्षा पर प्रभाव से ड्रॉपआउट दरों और सीखने के परिणामों के संदर्भ में नुकसान होने की संभावना है।

बच्चों को घर से सीखने के अवसर कम मिलते हैं। इसके अलावा, स्कूलों को बंद करने से माता-पिता के लिए अलग जिम्मेवारी बढ़ेगी कि वो घर पर रह सकें और बच्चों की देखभाल कर सकें। बड़ी संख्या में स्वास्थ्य देखभाल करने वाली पेशेवर महिलाएं हैं। स्कूल के बंद होने के कारण घर पर उनके बच्चों की उपस्थिति से उनका काम बाधित हो सकता है, जिससे स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित प्रणालियों पर अनायास तनाव पैदा हो सकता है।

आॅनलाइन शिक्षा के लिए गुणवत्ता तंत्र और गुणवत्ता बेंचमार्क स्थापित करना भी महत्वपूर्ण है। कई ई-लर्निंग मंच एक ही विषय पर कई पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। इसलिए, विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफार्मों में पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता भिन्न हो सकती है।

तकनीक का असमय फेल होना जैसे इंटरनेट की स्पीड, कनेक्टिविटी की समस्या, लॉक डाउन के समय में कोई साथ उपस्थित होकर सिखाने एवं बताने वाला नहीं होने से भी आॅनलाइन ट्यूटोरियल की सहायता से ही सीखने की मजबूरी, घर में जो साधन है उन्हीं की सहायता से लेक्चर तैयार करना, उसे रिकॉर्ड करना, नोट्स बनाना, उनकी डिजिटल कॉपी तैयार करना, स्टडी मटेरियल खोजना एवं पाठ्यक्रम के अनुरूप उसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर अपलोड करना, छात्र-छात्राओं से संवाद करना आदि अनेकों नई प्रकार की चुनौतियां शिक्षा समुदाय के समक्ष हैं।

प्रौद्योगिकी का डेमोक्रेटाइजेशन अब एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसमें इंटरनेट कनेक्टिविटी, टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर, आॅनलाइन सिस्टम की क्षमता, लैपटॉप / डेस्कटॉप की उपलब्धता, सॉफ्टवेयर, शैक्षिक उपकरण, आॅनलाइन मूल्यांकन उपकरण आदि शामिल हैं। इस क्षेत्र की क्षति दुनिया भर में हर क्षेत्र की क्षति के समान है, यह संभव है कि कुछ सावधानीपूर्वक योजना के साथ, हम इस लंबे समय तक बंद के दीर्घकालिक परिणामों को सीमित करने में सक्षम हो सकते हैं। इन सबके वास्तविकता होने के लिए, नीति निमार्ताओं, अधिकारियों, छात्रों और विशेष रूप से शिक्षाविदों के दिमाग में विचार प्रक्रिया में भारी बदलाव की आवश्यकता है।

डिजिटल शिक्षा को पारंपरिक शिक्षा व्यवस्था के पूरक के रूप में अपनाने का मॉडल तो स्वीकार्य रूप में हमारे समक्ष आ चुका है किंतु समग्र शिक्षा व्यवस्था जैसे प्रवेश, पढ़ाई, परीक्षा एवं मूल्यांकन डिजिटल माध्यम से पूरा करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। वास्तव में यही वह तत्व है जो पारंपरिक शिक्षा मॉडल को दूरस्थ शिक्षा मॉडल एवं पत्राचार शिक्षा मॉडल से पृथक करती है।

डिजिटल शिक्षा के संभावित दोषों से बचने की आवश्यकता

डिजिटल शिक्षा के संभावित दोषों से बचने की भी आवश्यकता है। पाठ्यक्रमों का प्रयोगात्मक एवं अनुप्रयुक्त ज्ञान का हिस्सा पूर्णत: छोड़ना उचित नहीं है जो डिजिटल किचन के माध्यम से प्रभावी ढंग से कराया जाना संभव नहीं है। सिर्फ कंटेंट डिलीवरी, प्रश्न बैंक एवं नोट्स का प्रेषण करना मात्र ही अध्यापन की इति श्री समझ लेना ठीक नहीं होगा। बेशक इंटरनेट का इस्तेमाल आज की जरूरत बन गया है, लेकिन इसका अत्याधिक प्रयोग फायदे से कई गुणा ज्यादा नुकसान भी कर सकता है। आजकल कुछ ऐसे ही कठिन दौर से गुजर रहे हैं टीऐज बच्चे। ये बच्चे कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के समय से ही घरों तक सिमट कर रह गए हैं।

आॅनलाइन स्टडी के नाम पर बच्चे पूरा दिन मोबाइल का प्रयोग करते हैं। देर रात तक भी बच्चों के हाथ से मोबाइल नहीं छृूट पा रहा। परिजनों के बार-बार कहने पर भी बच्चे पढ़ाई की बात कहकर उनकी बात को अनसुना कर देते हैं। बेशक शिक्षा की यह आॅनलाइन पद्धति काफी कामयाब हुई है, लेकिन मोबाइल का बढ़ता इस्तेमाल बच्चों के भविष्य की तस्वीर को धुंधला कर सकता है। मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों की जहां याद्दास्त पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है, वहीं उनके स्वभाव में भी अजीब सा बदलाव देखने को मिल रहा है।

बच्चों में जिद्द के अलावा उनके स्वभाव में चिड़चिड़ापन भी बढ़ने लगा है। बात-बात पर रूठना, अन्य कामों को तवज्जो न देना, अकेलेपन की आदत, खेलों से दूरी बनाना जैसे कई लक्षण सामने आए हैं। इसके अलावा बच्चों में मोबाइल की बढ़ती अनिवार्यता की आदत उनको अंधता की ओर भी धकेल रही है।

क्या कहते हैं मनोरोग विशेषज्ञ

इस बारे में प्रो. रविंद्र पुरी, मनोविज्ञान विशेषज्ञ ने बताया कि आॅनलाइन पढ़ाई के कई दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। पहला दुष्प्रभाव तो यह है कि जो बच्चे हैं उनके हाथ में ऐसा उपकरण आ गया जिसका वो करना चाहें तो मिसयूज भी कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि उन्हें आफिसियल इजाजत दी जाए कि आपको दो घंटे फोन यूज करना है। हर समय तो मां-बाप उनकी रखवाली नहीं कर सकते। दूसरी समस्या यह है कि बच्चे फोन की स्क्रीन पर जो भी मैटर देखते हैं उस पर लगातार नजर गढ़ाए रखने से बच्चों की आंखों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

तीसरी समस्या है बच्चों के लगातार बैठने की आदत। अमूमन बच्चे स्कूल में जाते हैं तो घूमते-फिरते एक्सरसाइज भी होती थी, लेकिन अब बच्चे फोन के चलते दिनभर बैठे ही रहते हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर छोड़ता है। इन दोषों के अलावा बहुत सारा दोष मां-बाप का भी है। उनकी यह जिम्मेवारी बनती है कि वे बच्चे का ख्याल रखें। जैसे घर में चाकू, तेजधार कटर आदि होते हैं,लेकिन जरूरी तो नहीं कि बच्चे उनसे अपना हाथ ही कटवाएं। ठीक इसी तरह मोबाइल का इस्तेमाल भी सावधानी से होना चाहिए।

फोन का बिना वजह इस्तेमाल सामाजिक व मानसिक आघात भी पहुंचाता है। सोशल मीडिया पर बहुत सी मनगढ़ंत व झूठी बातें फैलती रहती हैं, जो बच्चों के दिमाग पर बुरा असर करती हैं। जहां बच्चे को अपने नजरीये से समाज को महसूस करना होता है, वह मोबाइल के नजरीये से देखने लगता है, जो समाज के लिए घातक साबित हो सकता है।

आंखें मूंद कर विश्वास करने से बचें अभिभावक

आॅनलाइन स्टडी के नाम पर बच्चों को आंखें मूंद कर मोबाइल थमाना उसके भविष्य के लिए संकट का कारण बन सकता है। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों पर बराबर नजर बनाए रखें, कि वह पढ़ाई के नाम पर कहीं मोबाइल का दुरूपयोग तो नहीं कर रहा।

क्योंकि मोबाइल पर इंटरनेट की कनैक्टिविटी बच्चों के लिए कई ऐसे रास्ते स्व0त: खोल देती है, जो उसको गलत दिशा में ले जा सकती है। बच्चों द्वारा इंटरनेट जैसी सुविधा का धड़ल्ले से इस्तेमाल करने से इसके साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं। नेट आॅन होते ही बहुत से ऐसे लिंक स्वयं ही सामने आने लगते हैं जो मासूम बचपन पर गलत असर डालते हैं।

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