पांचवीं पास ‘मशीनमैन’ गुरमेल सिंह धौंसी -कृषि वैज्ञानिक
रााजस्थान राज्य के श्रीगंगानगर जिले के किसान वैज्ञानिक गुरमेल सिंह धौंसी, खेती में यांत्रिक समस्या का पता लगते ही, मशीन बनाने में जुट जाते हैं। दो दर्जन से अधिक मशीनें बनाने वाले पांचवीं कक्षा पास इस ‘मशीनमैन’ को 2014 में राष्ट्रपति भवन ने 20 दिन के लिए मेहमान बनाया।
गुरमेल सिंह धौंसी का जन्म श्रीकरणपुर तहसील के गांव 6 एफ-ए (रड़ेवाला) में 15 सितम्बर-1958 को साधारण किसान परिवार में हुआ। पिता बलबीर सिंह खेती के साथ छोटे मोटे औजार बनाते थे। पांचवीं के बाद 1974 में श्रीकरणपुर में मोटर वर्कशॉप में औजार बनाने शुरू किए। 1983-84 में पदमपुर में धौंसी मैकेनाइजेशन्स की शुरूआत की।
कम समय में सस्ता कम्पोस्ट खाद:
कम्पोस्ट खाद जल्दी बने, सस्ती बने। कृषि कचरे से कम्पोस्ट खाद बनाने की मशीन ‘ट्रैक्टर माउंट कम्पोस्ट एराटोरज’ 2006 में तैयार की। कम्पोस्ट खाद बनाने पर पहले छह माह लगते थे। ट्रैक्टर चालित इस मशीन से करीब एक महीना लगता है। ट्रॉली के साथ ट्रॉली जोड़कर लाइन बनाई जाती है। उस लाइन पर मशीन चलती है। सामग्री एकत्र करके दाने-दाने में पानी का मिश्रण करती है। उसे उठाकर बुरादा बनाते हुए उपयुक्त लाइन में बिछा देती है। ऐसा करने से कूड़ा करकट, गोबर आदि गलकर खाद के रूप में अपने आप तैयार होते हैं। यह पार्श्व से माल एकत्र करती है। कम्पोस्ट बनाने में तापमान 55 डिग्री से अधिक न बढ़ने से, कृषि उपयोगी जीवाणु नष्ट नहीं होते।
1200 टन यानी 300 ट्रॉली को बनाने में एक घंटे का समय लगता है। कुल खर्च दस रुपए प्रति टन से भी कम आता है। मशीन 4.35 लाख रुपए में उपलब्ध है। 2019 में खेत और बगीचे में कम्पोस्ट खाद बिखेरने की ट्रॉली बनाई। यह 30 फुट चौड़ी और पांच बीघा लम्बी लाइन में आठ मिनट में कम्पोस्ट बिखेर देती है। ट्रैक्टर और डीजल खर्च 50 रुपए। एमएस स्टील मॉडल ढाई लाख और एसएस स्टील 304 ग्रेड 4.80 लाख रुपए की है। कोविड-19 के दिनों में हरी सब्जियों और रसोई के कचरे से खाद बनाने की सस्ती मशीन बनाई। गुणवता अच्छी है, बदबू से रहित है। विद्युत संचालित 5 फुट ऊंची और 1 मीटर लंबी व 1 मीटर चौड़ी मशीन एसएस स्टील 304 ग्रेड से बनी है। 5 एचपी की 3.75 लाख और 8 एचपी की 4.90 लाख रुपए की है।
दो दर्जन से अधिक कृषि उपकरण:
1983 से खुद की वर्कशॉप धौंसी मैकेनाइजेशन्स में दो दर्जन से अधिक मशीनें बनाई। सबसे पहले एक फुट से 18 फुट ऊंचे तक पानी लिफ्ट करने का बरमा बनाया। ट्रैक्टर के पीटीओ के आरपीएम 1030 से रिडक्शन कर 540 आरपीएम करने का गियर बॉक्स और गेहूं, सरसों, ग्वार, बाजरा, चना निकालने का थ्रेसर बनाया। बड़ी सेल्फ कम्बाइन में रूपांतरण करके सरसों निकालने की प्रणाली बनाई। तूड़ी, स्ट्रारीपर का रूपांतरण करके, सरसों, जौ, गेहूं आदि फसलें निकालने के लिए, थ्रेसर का काम स्ट्रारीपर से करवाया। 2001 में टैंकर वाली कम्बाइन तैयार की। सख्त मृदा खोदकर ट्रॉली में भरने और मिट्टी पत्थर ट्रॉली में भरने के लिए उपकरण बनाए। लकड़ी की चिपिंग और चिप्स का उपकरण बनाने के साथ ही, बनछिटियां कुतरने का औजार भी बनाया। बाग की टहनियों की कटिंग करने का उपकरण पसन्द किया गया।
कुछ और उपकरण बनाए:
बाग में खड्ढे खोदने लिए, बीज को दवाई लगाने के लिए, बाग के पौधे के नीचे खाद बिखेरने के लिए, पशुओं के लिए खेत में खड़ा चारा काटने और चिपिंग करके ट्रॉली में भरने के लिए हाइड्रोलिक चीपर भी बनाया। लोहे के बुरादे को शहतूत की जड़ों में डालना लाभकारी रहा।
सम्मान:
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2014 में किसान वैज्ञानिकों को राष्ट्रपति भवन में मेहमान बनाना शुरू किया तो पहले साल 1 से 20 जुलाई तक जीवन का यह सर्वोत्कृष्ट अनुभव लिया। यूं पहला बड़ा सम्मान ‘सिटा’ द्वारा 2010 में दिल्ली में ‘खेतों के वैज्ञानिक’ रहा। 2012 में राष्ट्रपति भवन में एनआईएफ का 5 लाख रुपए सम्मान राशि का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ‘खेतों के वैज्ञानिक’ सम्मान 2017 में बीकानेर के राजुवास और जोधपुर के मौलाना आजाद विश्वविद्यालय, 2018 में उदयपुर के पेसिफिक विश्वविद्यालय व भाकिसं और 2019 में जयपुर में भारतीय संस्था और ओसीपी फाउंडेशन, मोरक्को ने प्रदान किए।
सिर्फ 25 से 35 दिनों में बन जाती है खाद
रैपिड कॉम्पोस्ट एरिएटर ट्रैक्टर में लगाई जा सकने वाली वो मशीन है, जो कचरे को खाद बनाने का काम करती है। जिस बायोमास को कुदरती तरीके से खाद बनने में 90 से 120 दिन लगते हैं, वो काम ये मशीन 25 से 35 दिनों में कर देती है। इस मशीन से एक घंटे में 400 टन तक खाद बनाई जा सकती है। यही वजह है कि गुरमेल सिंह धोंसी को राष्ट्रपति ने सम्मानित किया है। उन्हें 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सम्मानित किया।
कहां से आया मशीन बनाने का आइडिया
गुरमेल के मशीन बनाने की कहानी काफी रोचक है। इस आइडिया की शुरूआत उस समय हुई, जब उनके यहां विदेशों से लाए ट्रैक्टर को ठीक करने के लिए पार्ट्स नहीं मिल रहे थे। उन्होंने पांच एचपी का देशी इंजन लगाकर ट्रैक्टर को काम में लेना शुरू कर दिया। इस आइडिया ने उन्होंने न केवल खेती की बल्कि हार्वेस्टिंग के काम करना भी शुरू किया। उनके उपकरण राजस्थान के साथ पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर के किसान काम में ले रहे हैं। लेकिन अब इनकी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी मांग आने लगी है।
क्या-क्या काम करती हैं ये मशीनें:
- वुड चिपर: यह मशीन लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े करने के काम आती है।
- लोडर: 35 एचपी के ट्रैक्टर पर ही बड़ी लोडर बना दिया जो 25 फुट तक ऊंचा है। इसकी बकेट भी 8 से 10 फुट तक बनाई गई है।
- ट्री परुनिंग मशीन: बाग या खेतों में फलों वाले पेड़ों के ऊपरी तनों को काटने के लिए ट्री परुनिंग मशीन तैयार की। यह खासतौर से जैतून के पेड़ की छंटाई में काम आता है।
- रोड स्वीपर: ट्रैक्टर से अटैच यह उपकरण सड़क की सफाई के लिए काम में लाया जाता है।
- होल डिगर: खेत में या अन्य ठोस स्थानों पर सीधे जमीन में छेद करने के लिए होल ड्रिगर मशीन ट्रैक्टर से अटैच करके तैयार की गई है।