आत्मा मानव राषी और अन्य जीवों की आध्यात्मिक, अमर और आकांषीय इकाई है। यह प्रेरणा, उत्साह भावनाओं जनून, अति जीवन शक्ति, भावना प्रतिबद्धता और अलग पसंदीदा पहलुओं से जुड़ी हुई है।
आत्मा अति ईष्वरीय शक्ति का हिस्सा है। यह परिवर्तनषील और अमर है, भोतिकवाीद वस्तुओं स्थितियों से क्षतिग्रस्त नहीं है।
‘‘ दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय।। ‘‘
यह हमेषा पवित्र रचनाकर (सही रास्ते की खोज) के साथ जुड़ने की आग्रह करता है।
- आत्मा ब्रहमांड के सर्वषक्तिमान या निर्माता का महान सिद्धांत है।
- शुद्ध और सदाचारी विचारों की जननी है। इसलिए आत्मा हमेषा महान भगवाल की उच्चतम श्रेणी में बढ़ाई प्राप्त करने की कोषिष करती है।
- मानव जाति पूरी शक्तिमान इष्वर को सबसे बड़ी रचना है और आत्मा पर शासन करने वाली शक्ति है।
- आत्मा शब्द ग्रीक, साड़के से लिया गया है, जिनका अर्थ है साँस लेने के लिए, जीवित प्राणीयों की मानसिक शक्तियों को शामिल करना।
- यह कई कारणों- चरित्र, भावनाओं, चेतना, यादास्त और सोच की व्याख्या करता है। यह जीवाणुओं तक सभी जीवित प्राणीयों के लिए आत्मा और जीव का प्रतिनिधित्व करता है।
- आत्मा सभी धर्मो जैसे बौद्ध, ईसाई धर्म, हिन्दु धर्म, श्रमवाद, सिख धर्म, ताओवाद, यांग, यिन, पारसी धर्म आदि में नैतिक धार्मिक और दर्षन शास्त्र शब्दों के लिए लागू है।
- आत्मा का विकास हमेषा ईष्वर की ओर राधिकार और भौतिक दुनिया से दूर होता है।
- दूर की बुद्धि से मानना है कि आत्मा अति सुन्दर सूर्य की किरण है, महान, महासागर, आननद और जीवन की एक बूंद जिसमें से यह बहुत पहले चला गया था।
‘‘ संगति कीजे संत की, जिनका पूरा मन ।
ऊनतोले ही देत है, नाम सरीखा धन।। ‘‘
हमारे महान भगवान-
ईष्वर सभी जीवों के एकमात्र निर्माता हैं। वे एकमात्र उमंग, पूर्ण सुख और आंनद है। षिक्षकों का कहना है कि जीवन ईष्वर का मंदिर है और ईष्वर का समाज्य हमारे अन्दर है। उनका बिना त्याग के सेवक मानवता के महान उदाहरण है। हमारा दिमाग, हमें बताता है एक बिना मापने इकाई है जिसकी शुरूआत और अंत होता है। ईष्वर सभी महान धार्मिक और असीम गुरू हैं उनकी सीमाएंे नहीं है।
इसलिए ईष्वर सबसे ऊँचा शास्वत हैं संसार प्रेरक हैं आस्था का प्रमुख उदेष्य है।
- भगवान को अकेले सर्व-षक्तिमान और दयालू के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।
- वह सर्वव्यापी, सर्वज, सर्वप्रथमष् महान प्रेम, आवष्यक, अस्तित्व के साथ आनन्त और सभी उदार दिव्य षक्ति के रूप में समझौता किया जाता है।
- सर्वक्ष का अर्थ है ज्ञान के निर्माता (अज्ञात कुछ भी नहीं)। मानव सृष्टी के निर्माण पर हैं।
- श्रेष्ष्ता, अलग गुणों और चेतना की मात्रा को जानने के लिए हम अच्छे प्राणी हैं। उनकी कृपा अपरंपार, शाह रहित, असीम और अल्कपनीय हैं।
- र्स्वव्यापी का अर्थ है कि ईष्वर प्रत्येक शान और सृष्टि के रूप में मौजूद हैं, यदि ईष्वर हर जगह है तो वे हम में से हर एक भीतर रहते हैं। ईष्वर प्रगति के लिए किसी भी गाँव तक को बाहर नहीं देखना चाहिए।
- ईष्वर ही सभी मामलों में प्रचलित, परम, शक्ति होनी चाहिए। भगवान हिंदू, सिख, मुस्लिम, जैन, ईसाई, बौद्ध, पारसी तथा पूरी मानव जाति के लिए ‘एक‘ हैं।
- देवीय सब में पूर्ण शक्तिषाली और बिना लड़ाई कर रहे हैं, एक आदमी को वास्तव में मजबूत, स्थिर और मन में प्रसनन कर सकता है।
- ईष्वर ही आनंद और आनंद के एकमात्र स्त्रोत है। स्वामी कहते है कि हमारा शरीर जीवित ईष्वर का मंदिर है और ईष्वर का राज्य हमारे भीतर है।
- ईष्वर की प्राप्ति को धार्मिक कामों और शुभ आयोजना, पवित्र स्थानों, पूजा के मंदिरों, त्योहारो, उपवासों, निययित प्रार्थना, मंत्रों वर्ग और पहचाने गये पोषाक के तरीके से प्राप्त किया जा सकता है।
‘‘ गुरू गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पांव।
बलहारी गुरू आपने, जिन गोविंद दिये मिलाए।। ‘‘
बुद्धिमान धार्मिक संत-
संत एक ऐसा व्यक्ति है जो पूरे धर्मो को समझााने के लिए ईष्वर प्राप्ति की स्थिति में जुड़ा हुआ है। ऊपर स्तर की चेतना संचालन लाती है। दिव्य प्रेम में स्वार्थी के बारे में सब भूल गया। पूर्ण प्यार के संत यीषु, बुद्ध और कृष्ण रहे हैं। उन्होंने प्रत्येक पार्णी में सुन्दरता देखी और जाति, पथं, रंग और धर्म के रूप में कोई भेद नहीं किया। संत ने स्ंवय आनन्द की सबसे ऊंची अवस्था में मिला दिया है और भगवान के साथ मिलन किया है। उन्होंने पीड़ित मानवता को मन और दोषों से बचाने के लिए वापिस तथा दया का मिषन हासिल किया। संत स्वंय भगवान के समान हो जाते हैं।
वे भावना और सच्चाई में पूजा की बढ़ाई करते है।
- भगवान महान उंनत कें दाता हैं, इसलिए मनुष्य द्वारा सीधे से नहीं माने जा सकते है।
- मनुष्य आध्यात्मिक संतों से सीख सकते हैं।
- सभी धर्म ईष्वर के प्रति गहरा प्रेम रखने की जरूरत को सिखाते हैं।
- जीवित संत हमारे लिए अंदर से ही चरित्र के लिए नमूना बन जाता है।
- हमें अपने नये युग रास्ता दिखाने के लिए जीवित षिक्षक की आवष्यकता होगी।
- अलग-2 संत एक ही विधि देने की कोषिष करते हैं और लोगों को घटना के पार ले जाने के लिए आध्यात्मिक षिक्षक के महत्व पर जोर देते हैं।
- सभी षिक्षक सिखाते हैं कि वे मोक्ष प्राप्त करने का एकतात्र तरीका प्रदान करते हैं। सभी दावे उनके षिष्यों द्वारा किये जाते हैं।
- अलग-2 संतों ने खुद को ‘‘ प्रभु से सबसे कम‘‘ सेवक के रूप में दर्षाना किया है।
धार्मिक कर्म तथा पुनः अवतार-
‘‘कर्म‘‘ नैतिक नियम और प्रभाव है जब किसी व्यक्ति को वही दिया जाता है जो उसने अर्जित किया है, इसका मतलब है कि इस दुनिया में हमारी वर्तमान स्थिति (जैसे स्वास्थ्य, लाभ स्थिति, निवास स्थान, माता-पिता और रिष्तेदार, खुषी की डिग्री, उदासी वगैरह)। जीवन के षिष्यों के तरीके और कुछ अच्छे नियमों के पालन करना चाहिए अगर दीक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए सही शुरूआत, जैसे- शाकाहारी भोजन, नषीले पदार्थो का उपयोग, सबसे ऊँची शुद्धता के साथ जीवित और दैनिक ध्यान।
साधना पर ध्यान दें-
साधना ईष्वर शब्दों के माध्यम से विचारों को एक ही रूप पर करने की अनूठी विधि है जो आत्मा को ईष्वरीय शक्ति से जोड़ने का काम करती है। ध्यान, ईष्वर के साथ आत्मा का विष्वास योग्य, भावनाम्तक और भक्तिपूर्ण समर्पण है। भक्ति के लिए हमें अपनी और व्यक्तिगत आदतों में सच्चाई, ईमानदारी, विनीम और सुषील, सहनषीलता, भेंट करना, संतोष आदि को संषोधित करना होगा, इसलिए साधना के तरीके से आध्यात्मिक सफलता लेने का प्रयास करें।
चेतना प्राप्त करने के समय (षोर और बुराई से मुक्त) से ध्यान का अभ्यास सही है।
- ध्यान से सादगी, त्याग, विचारों में पवित्रता और अध्यात्मिक अनुभव को शुरू करने में मदद मिलती है।
- शान्ति और आन्नद के लगाव के लिए ध्यान सबसे सरल है।
- यह जीवन को सभी समस्याओं के समाधान का सबसे बचाव तरीका है।
- यह मनुष्य को शांत, रचना और साहसी बनाता है।
- यह मन के सभी विकारों और शरीर पर बुरे असर के लिए सबसे तेज आसार है।
- साधना परम दिव्य के साथ एक व्यक्ति को आमने सामने ला सकता है।
- आत्मा आदरणीय परमात्मा पर प्रभावित रहती है तथा उनका अवसर ढूंढती रहती है। सदा उनकी कोषिष करती रहती है।
- मन सदा सुख, लाभ तथा विकास की दषा में बढ़ता रहता है क्यांेकिं आत्मा ही हमेषा सत्य है।
- आत्मा का सही रिष्ता परमात्मा से होता है तथा आत्माान से परमात्मा की प्राप्ति की जा सकती है।
- मन जीते, जग जीत है।
मुक्ति तथा आजादी की बड़ी शुरूआत-
पूरी दुनिया के लिए ईष्वर एकमात्र निर्माता, कार्यवाहक, नाविक तथा रक्षक है वह पूरे ब्रहमांड को बनाने वाले है। ईष्वर हमें चमत्कार करने में मदद कर ‘‘प्रेषित‘‘ हैं। हालांकि प्रत्येक व्यक्ति एक बार रहता है लेकिन उसका सदाचारी जीवन दयावान बन सकता है। आषावादी दृष्टिकोण प्रमुख उदेष्य तथा अभिनव कदम पूरे आंनद की तलाष में मदद कर सकते हैं और अनंत काल तक प्राप्त कर सकते हैं। साधना प्रार्थनाओं का चरम षिखर हैं।
सच्ची मुक्ति के लिए प्रत्येक व्यक्ति को क्रोध, ईष्या, दुख, खेद, लोभ, अहंकार, गलानि, झूठ अक्रोष, अहंकार और अलग-2 बुरी आदतों की बुराईयों से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त आनंद, शांति, प्रेम, विनम्रता, परोपकार, सहानुभूति, सच्चाई, उदारता, विष्वास, भलाई तथा अन्य बेहतर गुणों को अपनाने की कोषिष करें।
साधना का पूर्ण एहसास करने के लिए प्रार्थना चरम षिखर है। इस प्रकार आत्मा पूरी चमक और कंपन की कल्पना सक्षम हो जाती है। यह धार्मिक आदतें, मज़बूत चरित्र, मिलनसार व्यवहार और मानवता के गुणों का विकास होता है लेकिन प्रलोभन से बच कर रहें।
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