Satguru comes to take his soul by himself

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
सतगुरु अपनी रूह को स्वयं लेने आता है Satguru comes to take his soul by himself

सत्संगियों के अनुभव

बहन बलजीत कौर इन्सां पुत्री सचखण्डवासी नायब सिंह गाँव नटार जिला सरसा (हरियाणा) ने अपने अनुभव सांझा करते हुए बताया:-
5 दिसम्बर 1987 की बात है। उस दिन शनिवार का दिन था।

पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज डेरा सच्चा सौदा बरनावा (उत्तर प्रदेश) में सत्संग करने के लिए गए हुए थे। मेरे बीजी (माता जी) कहने लगे कि जीत, (मेरा छोटा नाम) पिता जी यू.पी. दरबार से वापिस आ गए हैं या नहीं। मैंने कहा, ‘बीजी! पिता जी अभी नहीं आए। तो फिर कहने लगे, आह देख, ‘परम पिता जी खडेÞ हैं।

कह रहे हैं, असीं परसों लैण आवांगे, परसों ग्यारां वजे।’ हम ने सोचा कि बीमारी का दिमाग पर असर है तो कह रहे हैं। परन्तु ठीक परसों सोमवार को दस बज कर पचास मिनट पर मेरे बीजी कहने लगे कि ‘पम्मे! पिता जी आ गए।’ मेरी बहन ने घबरा कर मुझे आवाज दी।

मैं बीजी के पास आई तो बीजी मुझे कहने लगे कि ‘जीत! पिता जी आ गए, अब तो जाना है।’ मैं दौड़ कर चाय ले आई। मैंने बीजी के मुँह में एक चम्मच चाय डाली तो कहने लगे कि ‘अब तो पिता जी लेने आ गए हैं।’ उसने उसी समय आँखें मूँद ली। उस समय ठीक ग्यारह बजे थे।

जब हमारा परिवार परम पिता जी को मिला तो मेरे भाई प्रगट सिंह ने परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के चरणों में सारी बात बताई तो परम पिता जी ने फरमाया, ‘बेटा! तुम्हें तो भूल कर भी आँख गीली नहीं करनी चाहिए। तुम्हें तो प्रत्यक्ष यकीन हो गया कि सतगुरु अपनी रूह को स्वयं लेने आता है व अगले सफर की मुश्किलों का वह खुद जिम्मेवार होता है। वह रूह को उसके निजघर सचखण्ड पहुँचा कर अपना कारज पूरा करता है।’ पूजनीय परम पिता जी के वचन स्वीकार करके परिवार खुशियाँ लेकर वापिस घर लौटा।

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