Frustration could not do justice to success

असफलता बड़ी बात नहीं है। कभी-कभी तो सिक्के के टास की तरह मामूली अंतर के कारण भी आ जाती है, लेकिन हर असफलता एक अनुभव देकर जाती है। जो उस अनुभव से कुछ ग्रहण करने का अभ्यास बनाता हैं, वह सफलता- असफलता के बावजूद निराशा से बचा रहता है।

निराशा से बचना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि निराशा की निरंतर उपस्थिति हमारे प्रयासों को भी शिथिल बनाकर सफलता की संभावना को न्यून करती है।

एक कटु सत्य यह कि असफलता का भय भी अक्सर हमारे मन-मस्तिष्क को भयभीत करता है। इसी कारण हम पूरे मन से प्रयास तक नहीं करते। दूसरों को सफल होते देख मन ही मन आहें भरते हैं परंतु अपने उस आत्मविश्वास को कटघरे में खड़ा नहीं करते जो सर्वथा सक्षम होते हुए भी हमें उस दौड़ में शामिल होने से रोकता है जहां हम सहज विजेता हो सकते हैं। सहज विजेता नहीं होते तो थोड़े संघर्ष के बाद आपकी सफलता तय थी। मजेदार बात यह कि हम जानकर भी अनजान है।

दूसरों को मोती ले जाते देख दुखी हो बार-बार गुनगुनाते भी हैं

जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ।।

किनारे बैठे रहने से चमकदार मोती तो क्या, सड़ी मछली भी मिलने वाली नहीं। असफलता का भय पैरों की बेड़ी नहीं बनना चाहिए। डरने से जीवन नहीं चलता। डूबने वालों में डरने वालों की संख्या विश्वास के साथ आगे बढ़ने वाले अनाड़ियों से भी अधिक होती है। सजगता और विश्वास के साथ आगे बढ़ने वाला प्रथम प्रयास में आज मोती नहीं भी ला सका तो मछली जरूर पायेगा लेकिन कल मोती स्वयं उसके साथ आना चाहेगा। और जो डर कर किनारे बैठा रहा वह आज बेशक डूबने से बच गया। लेकिन उसका व्यवहार आशा और उत्साह के अनंत आकाश में अपनी संभावनाओं को लगभग समाप्त कर देगा।

भविष्य की समस्त संभावनाओं का हत्यारा वह अज्ञात भय ही तो है जिसने प्रयास ही नहीं करने दिया। जब प्रयास ही नहीं करना, तब पक्षी के पंख हों न हों, क्या फर्क पड़ता है? हमारी भुजाओं में शक्ति हो न हो, क्या फर्क पड़ता है? समुद्र पास है या दूर, कितना गहरा है, उसकी लहरें किस वेग से आती-जाती हैं, यह जानकर भी क्या होगा जब प्रयास ही नहीं करना है। हिमालय को एक दिन बौना तो वही साबित करेगा जो प्रयास करेगा।

अपने मन के विश्वास को जीवित रखते हुए सजगता से अभ्यास और फिर प्रयास करने वाले के लिए समुद्र की गहराई और हिमालय की ऊंचाई मात्र एक संख्या है। उससे वह विचलित नहीं होता। मन से भय तिरोहित कर प्रयास जारी रखने वाले को गर्व अनुभव होगा कि उसे कुछ विशेष करने की चुनौती मिली ही इसलिए है क्योंकि वह विशेष है।

अगर आत्मविश्वास जिंदा रहा तो सपने जिंदा रहेंगे।

सपने जिंदा रहे तो संसार का कुछ अर्थ होगा। समुद्र की लहरों से पार पाने के सपने अपने हो सकते हैं। सागर तल में पड़े मोती अपने हो सकते हैं। आत्मविश्वास का निष्प्राण होना सपनों की हत्या है। सपने मरने का मतलब है पंगु होकर जीना। हर सांस के बाद अगली सांस के लिए दूसरों की कृपा पर सौ या हजार वर्ष जीवित रहने से जवानी की वह कहानी लाख दर्जे अच्छी है जो अपने प्राण देकर हजारों, लाखों को जीने का अर्थ बताये। उनके मन में उत्साह और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करे।

असफलता से डरो मत। निराश मत हो। एक या कुछ असफलताओं का अर्थ सभी संभावनाएं समाप्त होना नहीं बल्कि यह है कि फिलहाल सफल न होना है। अत: धैर्य बरकरार रखते हुए कुछ और अभ्यास, कुछ और सजगता से प्रयास करने होंगे। असफलता क्षणिक निराशा जरूर देती है। निराशा पर काबू पाकर हम अपने परों में आशाओं के अनंत आकाश में उड़ान जिंदा रख सकते हैं।

प्रयास करके असफल होने पर उमड़ी क्षणिक निराशा क्षम्य है लेकिन प्रयास ही न करने का अपराध अक्षम्य है।
जीतते वहीं हैं जो हार नहीं मानते और जो एक असफलता से डरकर स्वयं को सिकोड़ लेते हैं वे कभी जीत नहीं सकते। हारना बुरा नहीं है लेकिन हार को गले का हार बनाये रखना पाप है। अपराध है। उससे मुक्ति की युक्ति तलाशो, लेकिन उससे पहले स्वयं को स्वयं की अनन्त शक्ति और सामर्थ्य बताओ। सफलता का विश्वास जगाओ!
-विनोद बब्बर

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