‘कीड़ाजड़ी’ से करोड़पति बनी ‘मशरूम गर्ल’ Mushroom girl turned millionaire from ‘worm herd’
दिव्या का आइडिया कामयाब हुआ और काफी अच्छी मात्रा में मशरूम का उत्पादन हुआ। इससे उनका हौसला बढ़ा। दिव्या बताती हैं कि वो साल में तीन तरह का मशरूम उगाती हैं। 2018 में दिव्या ने एक टी रेस्टोरेंट खोला है जहां बेशकीमती औषधि ‘कीड़ाजड़ी’ से बनी चाय परोसी जाती है। इस रेस्टोरेंट में दो कप चाय की कीमत 1,000 रुपये है। लेकिन दिव्या के यहां पहुंचने का सफर दिलचस्प है। ( Mushroom girl )
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उत्तराखंड की दिव्या रावत पूरे प्रदेश में मशरूम-गर्ल के नाम से जानी जाती हैं।
वे मशरूम उगाकर अच्छी-खासी नौकरी को मात दे रही हैं और साथ ही पहाड़ के लोगों को मशरूम की खेती की ट्रेनिंग देकर उनकी भी जिंदगी संवार रही हैं। दिव्या ने एक टी रेस्टोरेंट खोला है जहां बेशकीमती औषधि ‘कीड़ाजड़ी’ से बनी चाय परोसी जाती है। इस रेस्टोरेंट में दो कप चाय की कीमत 1,000 रुपये है। लेकिन दिव्या के यहां पहुंचने का सफर दिलचस्प है।
उत्तराखंड राज्य जब उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो यहां आधारभूत ढांचा न होने की वजह से लोगों को रोजगार के लिए इधर उधर भटकना पड़ा। युवाओं की तरह दिव्या ने भी दिल्ली आकर सोशल वर्क की पढ़ाई की। पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने ‘शक्तिवाहिनी’ नाम के एक एनजीओ में नौकरी भी की। लेकिन उनके मन में हमेशा से पहाड़ के लोगों के लिए कुछ करने की सोच थी। उन्होंने गांव के लोगों को काफी आभावों में जिंदगी बिताते हुए देखा था। दिव्या ने स्वरोजगार के अवसर तलाशने शुरू किए।
उन्हें लगा कि वापस उत्तराखंड लौटना चाहिए और वह नौकरी छोड़कर अपने घर वापस आ गईं। उन्होंने गढ़वाल इलाके में कई गांवों का दौरा किया। उन्होंने देखा कि गांव के लोग जो फसल करते हैं उसमें मेहनत तो खूब लगती है, लेकिन मुनाफा कुछ खास नहीं होता है। वह बाजारों में गई तो पता चला कि बाकी सब्जियां और अनाज तो सस्ते दामों में मिल जाते हैं, लेकिन मशरूम की कीमत सबसे ज्यादा है। उन्हें लगा कि मशरूम की खेती इन गांव वालों की जिंदगी सुधारने का जरिया हो सकता है। दिव्या को यह आइडिया रास आया और उन्होंने हरिद्वार व देहरादून में स्थित बागवानी विभाग से ट्रेनिंग ली।
शुरूआत में तीन प्रकार की मशरूम उगाई
यह 2012 का वक्त था। उन्होंने अपने घर की दूसरी मंजिल पर मशरूम प्लांट स्थापित किया। दिव्या का आइडिया कामयाब हुआ और काफी अच्छी मात्रा में मशरूम का उत्पादन हुआ। इससे उनका हौसला बढ़ा। दिव्या बताती हैं कि वो साल में तीन तरह का मशरूम उगाती हैं। सर्दियों में बटन, मिड सीजन में ओएस्टर और गर्मियों में मिल्की मशरूम का उत्पादन किया जाता है। बटन एक माह, ओएस्टर 15 दिन और मिल्की 45 दिन में तैयार होता है। मशरूम के एक बैग को तैयार करने में 50 से 60 रुपये लागत आती है, जो फसल देने पर अपनी कीमत का दो से तीन गुना मुनाफा देता है।
सभी प्रदेशों के युवा ले रहे हैं ट्रेनिंग
दिव्या के पिता स्वर्गीय तेज सिंह सेना में आॅफिसर थे। दिव्या चाहती हैं कि पढ़े-लिखे युवा नौकरी के लिए राज्य से बाहर न जाएं। इसलिए वह तमाम युवाओं को मशरूम उगाने के लिए प्रेरित कर चुकी हैं। उन्होंने ‘सौम्या फूड प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम से एक कंपनी बना ली है। सौम्या समय-समय पर ट्रेनिंग भी देती है, जिसमें दूसरे प्रदेशों से भी युवा ट्रेनिंग लेने आते हैं। दिव्या अपनी क्लास में प्रैक्टिकल के साथ ही थ्योरी भी समझाती है।
अब लाखों में है टर्नओवर
दिव्या को उनके काम के लिए 2016 में राष्ट्रपति के हाथों नारीशक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है। आज दिव्या का टर्नओवर लाखों में पहुंच चुका है। दिव्या ने हाल ही में जडी बूटी कीड़ा-जड़ी से बनने वाली चाय वाले रेस्टोरेंट की शुरूआत की है। यह बेशकीमती जड़ी कैंसर, एचाआईवी, पथरी जैसे रोगों में काफी लाभदायक होती है। उन्होंने पिछले साल अपनी लैब में ही इसका उत्पादन किया था। इस बेशकीमती जड़ी से बनी दो कप चाय की कीमत 1,000 रुपये है। दिव्या ने बताया कि उन्होंने दो महीने में 60 किलोग्राम कीड़ा जड़ी तैयार करवाया जिसकी मार्केट कीमत लगभग 1.20 करोड़ रुपये है।
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