Experience of Satsangis

बेटा! जो हो गया सो हो गया, आगे सब ठीक होगा! -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की दया-मेहर

बहन निर्मल इन्सां पत्नी प्रेमी श्री रिछपाल सिंह इन्सां निवासी पंचकूला (हरियाणा) से परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करती है:-

बहन लिखती हैं कि मेरी शादी 16 नवंबर 1984 को हुई थी। एक साल बाद हमारे घर एक बच्ची ने जन्म लिया। परंतु वह 48 घंटों के अंदर ही अंदर वहां जनरल अस्पताल चंडीगढ़ में ही दम तोड़ गई। इस घटना से मेरे ससुर परिवार व मायका परिवार में अत्याधिक दु:ख हुआ। परंतु एक माँ होने के नाते मुझे भारी ठेस लगी। इसके बाद बच्चा होने की आशा बंधी, परंतु मई 1986 में गर्भपात होने से वह उम्मीद भी खत्म हो गई। इस बात से मुझे बहुत बड़ा आघात पहुंचा। एक बार तो मुझे और भी ऐसा लगा कि दुनिया में कुछ भी नहीं है। हालांकि डॉक्टरों ने मुझे काफी हौंसला दिया कि घबराने वाली कोई बात नहीं है, समय-समय पर चैकअप करवाते रहो, सब ठीक हो जाएगा।

उक्त घटना के कुछ समय बाद हम, मेरे पति के पैतृक गांव वजीदपुर जिला कुरुक्षेत्र में गए हुए थे। वहाँ हमारी किसी रिश्तेदार ने मुझे ताना मारा कि इसके (निर्मल के) बच्चा ही नहीं बचता। इसके क्या होना है? मुझे वह ताना शूल की मानिंद चुभ गया। उस ताने की वजह से मैं अंदर ही अंदर दु:खी रहने लगी। अब अपने सतगुरु के आगे रोने के सिवा मेरा और कोई चारा नहीं था। मैंने सुमिरन के दौरान अपने सतगुरु परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के पवित्र चरणों में रोते हुए अरदास कर दी कि हे पिता जी, आप मुझे कब तक लोगों से ताने सुनवाओगे! आप कुल मालिक सर्व सामर्थ हो, आप जी क्या नहीं कर सकते।

इसी समय के दौरान दिसंबर 1986 में मुझे स्वप्न में पूजनीय परमपिता जी के दर्शन हुए। परमपिता जी ने मुझसे पूछा, ‘बेटा! तू रोती क्यों है? तुझे क्या तकलीफ है?’ तो मैंने परमपिता जी के पवित्र चरणों में अरदास की कि पिता जी, दु:ख तो कोई नहीं है। जब मैं किसी को गलत नहीं बोलती तो मुझे ऐसी बातें क्यों सुननी पड़ती है। तो दयालु दातार परमपिता जी ने फरमाया, ‘बेटा! जो हो गया, सो हो गया। आगे सब ठीक होगा।’ परमपिता जी ने मुझे एक फूल दिया। मालिक सतगुरु परमपिता जी के दर्शनों व वचनों से मुझे इतनी खुशी हुई कि जिसका वर्णन ही नहीं हो सकता।

उसके बाद मालिक सतगुरु जी की मुझ पर इतनी रहमत हुई कि मैं दिन-रात सुमिरन करने लगी अर्थात् मेरा सुमिरन निरंतर चलने लगा। परमपिता जी ने दूसरी रात मुझे चने व हल्वे का प्रशाद दिया। फिर तीसरी रात सूरजमुखी के दो फूल दिए। इस तरह समय-समय पर पूजनीय परमपिता जी मुझे दर्शन देने लगे। मेरे जीवन में बहारें आ गई। इन खुशियों के चलते 11 सितंबर 1987 को हमारे घर बेटे ने जन्म लिया और फिर 27 मई 1991 को दूसरे बेटे ने जन्म लिया। इस तरह सतगुरु सच्चे रहबर जी ने मुझे खुशियों से मालामाल कर दिया।

हम अपने सतगुरु-दाता रहबर के अपने पर हुए परोपकारों को कैसे भूल सकते हैं! अब मेरी परम पूजनीय परमपिता जी के मौजूदा स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरणों में यही विनती है कि हमारे परिवार पर इसी तरह अपनी अपार दया-मेहर, रहमत बनाए रखना और अपने पवित्र चरणों में सदा हमें लगाए रखना जी और सेवा-सुमिरन का बल बख्शना जी।