खेल और पढ़ाई यह इम्तिहानों का वक्त था। राहुल का पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लग रहा था। मम्मी कई दफा डांट लगा चुकी थीं। वह कमरे से बाहर निकला। बालकनी में खड़ा, खेल के मैदान को देर तक ताकता रहा। राहुल को फुटबाल खेलने का शौक था। अभी भी वह इसी के बारे में ही सोच रहा था।
अचानक मम्मी रसोई से निकलीं। उन्हें देख, वह तुरंत अपने कमरे में लौट गया। उसे पता था, मम्मी फिर से पढ़ने के लिए कहेंगी। कमरे में आ कर फुटबाल को पैर से ठोकर मारते ही वह चौंका। सामने मम्मी खड़ी थीं। उसे लगा कि अब वह गुस्से में कुछ कहेंगी मगर मम्मी ने उसके नजदीक आ कर सिर पर हाथ रख दिया। वह मुस्कुरा रही थीं। अलमारी खोलते हुए बोलीं, ‘जल्दी से कपड़े बदल लो।‘ उसकी जींस और टी शर्ट उनके हाथ में थी।
‘कहां जाना है?‘ चौंक कर उसने पूछा। उसे पता था कि इम्तिहान के समय उसे कहीं नहीं जाने दिया जाता। मम्मी खुद भी इन दिनों कहीं नहीं जाती थीं। सारा दिन उसके लिए खाने की चीजें बनातीं। दूध देतीं या फिर फल वगैरह काट कर देती रहतीं। फिर जब वह खुद कह रही हैं कहीं जाने के लिए, तो आश्चर्य तो होना ही था।
वैसे ही हंसते हुए वह बोलीं, ‘दरअसल तुझे किसी से मिलवाना है।‘
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राहुल की समझ में कुछ नहीं आया, पर उसने फटाफट कपड़े बदल लिए। किसी ने दरवाजे की घंटी बजाई। राहुल ड्राइंगरूम में पहुंचा, तो एक युवक बैठा हुआ था। मम्मी ने परिचय करवाया, ‘यह मुन्ना चाचा हैं, तुम्हारे पापा के मौसेरे भाई।‘ फिर वह यह कह कर चली गईं, ‘तुम चाचा से बातें करो, तब तक मैं चाय बनाती हूं।‘
उसे अजीब लगा कि उम्र में इतने बड़े शख्स से वह क्या बातें करेगा? कुछ ही मिनट बाद मुन्ना चाचा ने पूछा, ‘तुम्हारे इम्तिहान चल रहे हैं?‘
छोटा सा जवाब ‘हूं‘ दे कर राहुल चुप हो गया। तभी मुन्ना चाचा उठ कर उसके नजदीक आ गए। लाड में भर कर वह बोले, ‘तुम्हारी मम्मी ने बताया कि तुम्हें फुटबाल बहुत पसंद है। मैं भी फुटबाल का चैंपियन रहा हूं।‘
इतना सुनते ही राहुल उनका चेहरा ताकने लगा। मुन्ना चाचा बताते गए कि कैसे वह स्कूल से भाग कर फुटबाल खेलते थे। कैसे पढ़ाई में उनका मन उचटता गया। अंत में उन्होंने दुखी मन से कहा, ‘राहुल, आज भी मैं बेरोजगार हूं। मेरा प्रदेश की टीम में चयन होने के बाद भी नाम वापस हो गया क्योंकि मैं केवल 8वीं फेल था।‘
दुखी स्वर से वह बोले, ‘टीम में चयन होने के लिए 10वीं तो जरूरी है, मगर तब भी मैं नहीं समझा। केवल खेल का मैदान और बॉल मेरी पसंद बने रहे। नतीजा तुम देख रहे हो।‘ तभी मम्मी चाय ले कर आ गईं।
शाम को देर तक राहुल पढ़ता रहा, तो मम्मी कमरे में आईं। बोली, ‘आधा घंटा खेल आ, मन खुश हो जाएगा।‘
राहुल ने सिर उठा कर मम्मी को देखा और बोला, ‘मम्मी, मैं समझ गया कि खेलने के साथ पढ़ना भी जरूरी है। अब मैं पढ़ने के लिए कभी आपको डांटने का मौका नहीं दूंगा। यूं गया और दो गोल कर के आया।‘
सीढ़ियों से कूदते हुए राहुल गया, तो मम्मी मुस्कुरा उठीं।
-नरेंद्र देवांगन