जिस दिन तेरे लंगर खत्म हो जाएंगे, असीं तुझे ले जाएंगे – सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की दया-रहमत
प्रेमी हरदेव सिंह हैरी इन्सां पुत्र श्री पाला सिंह गांव गिदड़ांवाली तहसील अबोहर जिला फाजिल्का(पंजाब) से पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-
29 दिसंबर 2014 की बात है, मैं अपने गांव के नजदीक कस्बा खुईयां सरवर में लकड़ी वाले आरे पर बतौर मजदूर काम कर रहा था। घटना के वक्त मैं लकड़ियों की चिराई कर रहा था। अचानक से आरे का ब्लेड (आरे पर चलते समय चक्र पर चलने वाली व कटाई करने वाली ब्लेड) बीच में से करीब 9-10 इंच का टुकड़ा टूटकर मेरे सिर में दार्इं तरफ आकर लगा और मांस को चीरता हुआ पार निकल गया।
Also Read :-
- सतगुरु जी ने अपने शिष्य की लाज रखी – सत्संगियों के अनुभव
- सतगुरु जो करता है ठीक ही करता है -सत्संगियों के अनुभव
- ये सब तो सरसा वाले बाबा जी का कमाल है! -सत्संगियों के अनुभव
- जो नाम तुम्हें दिया है, इसका भजन करो …सत्संगियों के अनुभव
- सतगुरु जी की रहमत से बिना आॅप्रेशन गुर्दे की पत्थरी निकल गई – सत्संगियों के अनुभव
उस समय सिर पर कोई कपड़ा इत्यादि भी नहीं बांधा हुआ था। आरा मालिक ने तुरंत डॉक्टर को बुलाया, जब डाक्टर आया तो मेरी हालत देखकर वह सहम सा गया, क्योंकि सिर से लगातार खून बह रहा था जिससे कपड़े पूरी तरह से खून से सन्न चुके थे। उस डाक्टर ने कहा कि जल्दी से इसे किसी बड़े अस्पताल ले जाओ। आरा मालिक मेरे सगे-संबंधियों को साथ लेकर श्री गंगानगर में गंगाराम बांसल हस्पताल में ले गया। मेरी हालत ऐसी हो चुकी थी कि रिश्तेदार भी उम्मीद छोड़ चुके थे कि मैं जिंदा बच पाऊंगा। सुबह 10 बजे यह घटना हुई और 12 बजे हस्पताल में आॅप्रेशन शुरू हो गया। लेकिन उससे पहले वहां के डाक्टर ने रिश्तेदारों से हस्ताक्षर करवाए और कहा कि अगर दो दिन में यह बोल पड़ा तो ठीक हो जाएगा, अन्यथा कुछ कहा नहीं जा सकता। रिश्तेदारों के अनुसार, आप्रेशन के दौरान ही मेरी मृत्यु हो गई थी।
डाक्टरों ने भी मुझे मृतक घोषित करते हुए मेरे ऊपर कपड़ा डाल दिया था। उसी दरमियान पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मुझे दर्शन दिए। पूज्य पिता जी उसी मोटरसाइकिल पर सवार होकर आए जिस पर फिल्म जट्टू इंजीनियर में आए थे। पांव में बूट और बहुत ही सुंदर पोशाक पहनी हुई थी। पूज्य पिता जी के पवित्र कर-कमलों में लंगर से भरा थैला था। मुझे ख्याल आया कि अंतिम समय में पिताजी गुरु रूप में लेने आए हैं। मैंने धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा लगाया और विनती की कि पिता जी! मैं आने के लिए तैयार हूं। आप मुझे लेने आए हो। पिता जी ने मुस्कुराते हुए फरमाया, ‘नहीं बेटा! आज नहीं। आज हम तेरा हाल-चाल पूछने आए हैं।’
मैंने कहा, पिता जी, थैले में क्या है? तो पिताजी ने फरमाया- ‘जब कोई बाप अपने बीमार बेटे को मिलने आता है तो खाली हाथ नहीं आता। असीं तेरे लिए लंगर लेकर आए हैं। अभी तेरे लंगर बाकी है, यह लंगर खाओ। जिस दिन तेरे लंगर खत्म हो जाएंगे, असीं तुझे ले जाएंगे, वो भी दो सीटों वाली कार पर।’ मुझे उस समय इस बात की समझ आ गई थी कि पूज्य पिताजी हर गाड़ी में दो सीटें ही क्यों बनवाते हैं। एक अपने लिए और दूसरी अपने बच्चे के लिए, जिसे निजधाम ले जाना होता है।
पूज्य पिताजी की दया-रहमत से जब मैं जिंदा हुआ तो डॉक्टर भी हैरान हो उठे। उन्होंने कहा कि यह जीवित तो हो गया, परंतु उम्रभर के लिए चारपाई पर ही रहेगा। न तो यह चल सकेगा, ना खा सकेगा और ना ही सुन सकेगा। पूरे बारह घंटे के बाद मुझे होश आई। होश आते ही मैंने अपनी बेटी को आवाज लगाई। यह सुनकर सभी डॉक्टर मेरे बैड की ओर दौड़ पड़े और यह देखकर हैरान रह गए कि ऐसा चमत्कार कैसे हो गया। करीब दो महीने तक फिजियोथैरेपी से मेरा इलाज चला, क्योंकि मेरी बाई टांग काम नहीं करती थी। सतगुरु जी की रहमत से मेरे सभी अंग बिलकुल सही तरीके से कार्य कर रहे हैं। मैं एक आम इन्सान की तरह जीवन जी रहा हूं।
पूज्य हजूर पिता जी के उपकारों का मैं ऋण कभी नहीं उतार पाऊंगा, जिन्होंने मुझ जैसे मुर्दे में जान डालकर नया जीवनदान दे दिया।