सत्संगियों के अनुभव : पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम – जो मांगा वही देता गया मेरा सार्इं
प्रेमी हरीचंद पंज कल्याणा सरसा शहर(हरियाणा) से पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की अपार दया मेहर का वर्णन इस प्रकार करता है:-
सन् 1957 में डेरा सच्चा सौदा नेजिया खेड़ा में बेपरवाह मस्ताना जी महाराज का सत्संग था। मैंने सत्संग सुना और उसी दौरान ही नाम-शब्द ले लिया। बेपरवाह जी ने नाम देते समय वचन फरमाए, ‘ये राम जो तुमको देते हैं ये फंडर राम नहीं है, ये काम करने वाला राम है। आज से तुम्हारा नया जन्म हो गया। सतगुरु तुम्हारे अंदर बैठ गया। काल, महाकाल भी तुमको हाथ नहीं लगा सकता।
अगर तुम इस नाम को जपोगे तो जो मुंह से आवाज करोगे, सतगुरु वो ही पूरी कर देगा।’
उस समय हमारे घर में अत्यंत गरीबी थी। घर में कमाने वाला कोई नहीं था। मैं उस समय चौथी कक्षा में पढ़ता था। मेरी माता ने मुझे चौथी कक्षा पास करवाकर स्कूल से हटा लिया और कहा, बेटा! कोई काम शुरू कर ले। मैं रिक्शा किराए पर लेकर चलाने लगा। इस प्रकार उस मजदूरी से हमारे परिवार का गुजारा चलता था।
मैंने अपने मन अंदर सतगुरु बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के आगे प्रार्थना की, कि सार्इं जी! मुझे पढ़ाई करवाएं। स्कूल तो मैं जा नहीं सकता क्योंकि घर में गरीबी थी। दूसरे-तीसरे दिन शहर में मुनादी करवाई जा रही थी कि मास्टर हुक्मचंद ने भादरा बाजार में एक प्राईवेट स्कूल खोला है जो वर्ष में दो जमातें करवाएगा।
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मैंने मास्टर जी के पास जाकर विनती की,
मास्टर जी! मैं बहुत गरीब हूं तथा रिक्शा चलाता हूं। मैं आपजी के पास पढ़ना चाहता हूं। मैंने चार जमात पास कर रखी हैं। मास्टर जी ने कहा-काका! मैं तुझे रात्रि के समय पढ़ा दिया करूंगा, दिन को तू रिक्शा चला कर अपना रोजगार कमा लेना। मैंने उनके स्कूल में दाखिला ले लिया और रात्रि को पढ़ने के लिए जाने लगा। हमारे घर में उस समय इतनी गरीबी थी कि घर में लालटेन खरीदने की भी समर्था नहीं थी।
मिट्टी के तेल वाले दीए की रोशनी में मैं रात को स्कूल का काम करता और दिन को रिक्शा चलाता। नींद भी मुझे केवल चार पांच घंटे ही बड़ी मुश्किल से नसीब हो पाती थी। इसलिए नाम का जाप कब करता। मैंने परम दयालु दातार जी के आगे विनती की, सार्इं जी! सुमिरन में मेरे साथ उधार कर लेना। फिर कर लिया करूंगा।
उसी वर्ष जब आठवीं कक्षा के लिए दाखिला की प्रक्रिया शुरू होेने लगी तो मैंने मास्टर जी से अर्ज की, मेरा भी आठवीं कक्षा का दाखिला भर देना। मुझे अपने सतगुरु के वचनों पर दृढ़ विश्वास था, कि जो मुंह से आवाज करोगे सतगुर वो ही पूरी कर देगा। सतगुरु जी मुझे अवश्य आठवीं कक्षा पास करवा देंगे। परन्तु मास्टर जी कहने लगे, इस वर्ष आप पांचवीं-छटी जमात करना। अगले वर्ष तुझे सातवीं व आठवीं करवाएंगे। एक वर्ष में चार जमातें नहीं हो सकतीं।
अगर फेल हो गया तो हमारी बदनामी हो जाएगी।
इसलिए तुम्हारा दाखिला अगले वर्ष भरेंगे। मैंने कहा, जी! मैं फेल नहीं होता। पूरी मेहनत करूंगा। उस समय आठवीं का दाखिला जिला शिक्षा अधिकारी के दफ्तर में भरा जाता था। बार-बार विनती करने पर मास्टर जी ने मेरा आठवीं का दाखिला भेज दिया। वार्षिक परीक्षा हुई और सतगुरु जी की मेहर से मैं पास हो गया।
अगले वर्ष सन् 1959 में हमारा दसवीं का दाखिला पंजाब यूनिवर्सिटी चण्डीगढ़ को भेजा गया। सर्व सामर्थ सतगुरु जी की अपार रहमत सदका मैंने दसवीं कक्षा भी अच्छे नम्बरों में पास कर ली। मेरे मास्टर जी व सुनने वाले दंग रह गए कि इसने दो वर्षाें में छह जमातें कैसे पास कर ली हैं, जबकि दिन को तो ये रिक्शा चलाता है। पढ़ता कब है! परन्तु उन्हें क्या मालूम था कि उसे पास सब कुछ करवाने वाले सतगुरु पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज कुल मालिक हैं।
मेरी माता जी ने आस-पड़ोस में बता दिया कि मेरे बेटे ने दस जमातें पास कर ली हैं।
इस बात पर पड़ोसियों ने बिलकुल भी यकीन नहीं किया, क्योंकि दिन को तो ये रिक्शा चलाता है फिर पढ़ा कब? उन्हीं दिनों में मेरी शादी को लेकर रिश्तेवाले आने लगे। माता जी ने बताना ही था कि मेरा बेटा दस जमातें पास है, परन्तु आस-पड़ोस वाले उन लोगों के कानों में चुगली कर देते कि माता व्यर्थ (झूठ) में कहती है। इसीलिए कोई रिश्ते की बात को आगे नहीं बढ़ाता था, ऊपर से घर में गरीबी का आलम था।
फिर चक्कबंदी विभाग के रोड़ी डिवीजन सरसा में चुतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की एक पोस्ट निकली। उन दिनों इस डिवीजन में श्री कपूर साहब एक्सिएन थे। मैंने भी अपनी अर्जी डिवीजन में भेज दी। इस पद के लिए करीब डेढ़ सौ आवेदन पहुंचे हुए थे। उनमें कई तो ऊँची पहुंच वाले भी थे, परन्तु मेरे गरीब की न कोई सिफारिश थी और न ही मुझे कोई वहां जानता था। मेरी सिफारिश करने वाले तो सतगुरु वाली दो जहान बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ही थे।
मैं तो बार-बार अपने सतगुरु के आगे ही विनती कर रहा था कि सार्इं जी! दसवीं भी आपजी ने पास करवाई है और मेरी नौकरी भी आप ही लगवाएंगे।
इंटरव्यू के दौरान अधिकारियों ने मेरे दसवीं के अंक देखकर 150 आवेदकों में से मुझे चुन लिया। यह सब सतगुरु की मेहर ही सदका ही हुआ। जैसे ही मेरी नौकरी लगी तो जो रिश्तेदार पहले मेरे रिश्ते को मना कर गए थे, वही दोबारा घर आए और मेरी शादी पक्की कर गए और शादी भी हो गई।
हरीचंद बताते हैं कि मैं पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज से गुरूमंत्र लेने से पूर्व किसी पाखंडी साधु के पास जाया करता था। नाम दान लेने के बाद उधर जाना छोड़ दिया था। मेरी माता ने बेपरवाह जी से नाम दान ले लिया था। उस पाखंडी साधु को जब पता चला कि हरीचंद ने डेरा सच्चा सौदा से नामदान ले लिया है और इसी कारण वह इधर नहीं आता तो वह आग बबूला होकर गुस्से में बोला कि हरीचंद की तो मैंने जड़ें ही काट दी हैं। अब इसके घर कभी भी बच्चा नहीं हो सकता।
मेरी माता जी जब डेरा सच्चा सौदा दरबार में बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दर्शनों के लिए आ आती तो रास्ते में अपने मन में अर्ज करती की कि हे परम दयालु सतगुरु मस्ताना शाह! उसने तो हमारी जड़ें काट दी हैं, तुम तो उन जड़ों को लगा सकते हो। आप तो सर्व सामर्थ हैं। सतगुरु की दया मेहर से उसी साल मेरे घर लड़का पैदा हुआ, जिसका नाम हमने गरीबू रखा। गरीबू जब दो-तीन वर्ष का होकर बोलने लगा तो उसने सबसे पहले यही बोला कि ‘मैं खेल रहा था बाबा मैंनेूं पेया आंहदे, उरे आ गरीबू! हरीचंद दे घर वग जा बग्गी मुच्छ वाले दे(उस समय मेरी एक मूंछ सफेद थी)।
उपरोक्त शब्द परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जी कई बार मजलिस में गरीबू से सुना करते थे और संगत बड़ी खुश होती थी। इस प्रकार बेपरवाह शहनशाह जी ने मेरी हर इच्छा पूरी की। मुझे कखपति से लखपति बना दिया। जो जीव अपने सतगुरु पर दृढ़ विश्वास करते हैं सतगुरु उनको किसी चीज की कमी नहीं छोड़ता। जीव को मांगना नहीं पड़ता।
इस संबंध में परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के वचन हैं:-
जेहड़ी सोचां उही मन्न लैंदा,
मैं किवें भुल जावां पीर नूं।
मैं ता थोड़ी आखां बहुती मन्न लैंदा,
किवें ना मनावां पीर नूं।
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