देवभूमि पर देवदूत

देवभूमि हिमाचल की वादियां में इन दिनों राम नाम खूब गूंज रहा है। मई के बाद जून महीने का हर रविवार मानो डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत के लिए खुशियों का पैगाम लेकर आया।

नामचर्चा में जोश-ओ-खरोस से उमड़ती संगत का प्रेम देखते ही बन रहा था। धर्मशाला, चचिया नगरी, नालागढ़, सोलन व कांगड़ा सहित कई बड़े शहरों में हुए भव्य आयोजनों ने हिमाचल प्रदेश के डेरा प्रेमियों में एक नया जोश भर दिया है।

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सदैव इन्सानियत के पथ पर चलने वाले इन देवदूतों की चहल-पहल से हसीन वादियां भी खिलखिला उठी हैं। अपने सतगुरू प्यारे के प्रति अडोलता की यह मिसाल लाजवाब है।
वैसे पहाड़ों की इन वादियों में रूहानियत का यह डंका बहुत पहले से ही बज रहा है। करीब 29 साल पहले पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने यहां की धरती को रूहानियत की खुशबू से महका दिया था।

वर्ष 1993 में पूज्य गुरू जी इन वादियों में पधारे थे। अपनी पहली जीवोद्धार यात्रा के दौरान पूज्य गुरु जी ने अलग-अलग स्थानों पर करीब 12 सत्संग लगाए और लोगों को राम नाम से जोड़ा। कुजाबल, जाहू, बाहलियो, हमीरपुर, नादौन सहित कई एरिया में तब प्यारे सतगुरू की अपार रहमत बरसी।

पूज्य गुरू जी की पावन प्रेरणाओं की बदौलत यहां की साध-संगत भी जागृत होकर इन्सानियत की मुहिम में जुड़ने लगी। करीब एक वर्ष बाद ही पूज्य गुरू जी सन् 1994 में फिर से बनदी हट्टी, कांगड़ा, सुजानपुर, पालमपुर में पधारे और यहां खूब सत्संग फरमाए। संगत का प्रेम अब यहां समुंद्र की भांति हिलौरे मारने लगा। कहते हैं कि गुरू अपने शिष्य के प्रेम के वशीभूत होते हैं। साध-संगत की पुरजोर इच्छा का सम्मान करते हुए पूज्य गुरू जी ने कांगड़ा जिले में डेरा सच्चा सौदा का दरबार बनाने की स्वीकृति प्रदान कर दी। 9 मई 1995 को स्वयं अपने पावन कर-कमलों से आश्रम की नींव रखी और 19 जून को हिमाचल प्रदेश की साध-संगत को शाह सतनाम जी सचखंड धाम चचिया नगरी के रूप में एक नायाब तोहफा दे दिया। सतगुरू के प्रति साध-संगत का वह समर्पण आज भी इन वादियों में ज्यों का त्यों बरकार है। जिसकी बानगी इन दिनों नामचर्चाओं में पहुंच रही साध-संगत के प्रेम से प्रत्यक्ष देखी जा सकती है।

जब 6 दशक पुराने रहस्य से उठाया पर्दा

यह तो ऋषि-मुनियों की धरती है, हम यहां पहले भी आए हैं: पूज्य गुरु जी

सन् 1995 की 9 मई का दिन था, उस दिन पूज्य गुरु जी ने चचिया नगरी में दरबार की नींव रखने के लिए निर्धारित जगह का चक्कर लगाया और एक निश्चित जगह पर निशान लगाते हुए डेरा बनाने का हुक्म फरमाया। उस दौरान काफी संख्या में सेवादार और साध-संगत भी पास खड़ी थी। पूज्य पिता जी ने रहस्यानुमा अंदाज में वचन फरमाया- ‘भई! यह धरती ऋषि-मुनियों की धरती है।

इस जगह पर हम पहले भी आए हैं।’ नूरी मुखारबिंद से यह वचन सुनकर सेवादार भी एक बार आवाक् से रह गए। पूज्य पिता जी ने सेवादारों की जिज्ञासा को और बढ़ाते हुए फिर फरमाया- ‘तुम लोग यह पता करो कि हम पहले कब आए थे?’ यह सेवादारों के लिए एक और पहेली के समान था, जिसे सुलझाना इतना आसान नहीं था।
बताते हैं कि करीब 60 वर्ष पूर्व पूजनीय बाबा सावण सिंह जी महाराज इस एरिया में पधारे थे और यहां सत्संग भी लगाया था। दरअसल पूजनीय बाबा जी उन दिनों परौर गांव में डेरा बनवा रहे थे। एक दिन परौर से राख गांव में अपने शिष्य के घर जाते समय इस डेरे वाली जगह से होकर गुजरे थे। उस समय यहां से एक रास्ता हुआ करता था। इतिहास के जानकार यह भी बताते हैं कि पूजनीय बाबा जी उस दौरान कुछ समय के लिए यहां रूके थे और उस जगह पर करीब 35 लोगों को नामदान भी दिया था, जहां वर्तमान में चचियानगरी धाम के तेरा वास के पीछे एक बगीचा बना हुआ है।

संगत के प्रेम से बेहद खुश थे पूजनीय परमपिता जी

‘काका! हुण तां संगत ज्यादा हो गई है’

सन् 1981 की बात है, उन दिनों हिमाचल प्रदेश से थोड़ी संगत ही डेरा सच्चा सौदा से जुड़ी हुई थी। वे लोग सत्संग सुनने के लिए कई बार सरसा दरबार आ जाते। उनमें सूबेदार उत्तमचंद नगरोटा भी अच्छा भक्त था, जो डेरा सच्चा सौदा की प्रेरणाओं का पूरा अनुसरण करता था। वह जब भी सत्संग सुनने के लिए आता तो हर बार पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज से हिमाचल में सत्संग फरमाने और डेरा बनाने की अर्ज करता। उस दिन भी सूबेदार ने वहीं अर्ज की तो पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया- ‘काका! हुण तां संगत ज्यादा हो गई है।

साडे बच्चे सानूं मिलण आउण असीं किते होर होईए, उहना दा की हाल होवेगा।’ उस दिन पूजनीय परमपिता जी ने परोक्ष रूप से यह संकेत दे दिया था कि आने वाले समय में हिमाचल में सत्संग तो होंगे ही, साथ ही यहां डेरा भी अवश्य बनेगा। इसी तरह सूबेदार एक बार फिर अपनी अर्ज लेकर पहुंचा तो पूजनीय परमपिता जी ने अपने खुशमिजाज अंदाज में फरमाया- ‘दस्स भई! केहड़ी जगहां ते डेरा बनाईये?’ जब सूबेदार ने धर्मशाला में डेरा बनाने का सुझाव दिया तो शहनशाह जी ने फरमाया- ‘की पता भई! तेरे नगरोटे कोल उसतों नेड़े बना लईये 12-15 किलोमीटर ते। धर्मशाला तां नगरोटे तों 20-25 किलोमीटर दूर पैंदी है।’ यानि कांगड़ा जिले में डेरा सच्चा सौदा का दरबार बनाने पर रूहानी मोहर तभी लग चुकी थी।

बुजुर्गों के लिए वरदान साबित हो रही अनाथ मातृ-पितृ सेवा मुहिम

देवभूमि पर डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत का एकजुट होकर मानवता भलाई कार्यों को नई गति देने के लिए संकल्प ले रही है। मई व जून महीने में प्रदेशस्तरीय आधा दर्जन कार्यक्रम हुए हैं, जिसमें सैकड़ों जरूरतमंद लोगों को फायदा मिला। खासकर ‘अनाथ मातृ-पितृ सेवा’ मुहिम के अंतर्गत उन वृद्धों को विशेष तौर पर राशन वितरित किया गया, जिन्हें परिवार अनाथ छोड़ दिया या फिर उनकी सार-संभाल से परिवार के सदस्यों ने हाथ पीछे खींच लिए हैं।

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