Dera Sacha Sauda Maujpur Dham Budharwali (Rajasthan)

देखो वरी! सतगुरु ने कैसा खेल खेला है! गाड़ी को किसी न किसी बहाने रोक रखा है, बल्ले-बल्ले! सावणशाह दाता जी ने मस्ताना गरीब की अर्ज आज ही स्वीकार कर ली। डेरे में रेत जमाने के लिए वर्षा भेज दी और संगत के लिए आज ही स्टेशन भी बना दिया। काल का मत्था मुन्नेआ गया। जो निंदा करते थे, अब वे भी खुश हो जाएंगे।
-पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज

सार्इं जी, रहमत करो जी! संगत को बहुत मुश्किल हो रही है। उधर मटीली का स्टेशन है, और इधर बनवाली का, दोनों ही यहां से बहुत दूर हैं। संगत वहां से पैदल चलकर यहां पहुंचती है। उसमें बुजुर्ग लोग भी हैं और बच्चे भी, उन्हें इन कच्चे, रेतीले रास्तों से चलकर आना पड़ता है, बहुत कठिनाई होती है और टाईम भी बहुत खर्च हो जाता है जो सेवा में लगना चाहिए। दातार जी, अगर आप चाहें तो सब कुछ संभव है जी। ‘अच्छा वरी! ऐसी बात है!!’ सार्इं मस्ताना जी महाराज ने यह फरमाते हुए अपनी डंगोरी उठाई और कुछ कदम दक्षिण दिशा की ओर चलते हुए एकाएक थम गए। अपनी डंगोरी से रेलवे लाईन के पास एक दायरा खींचते हुए वचन फरमाया- ‘वरी! दाता सावण शाह के हुक्म से यहां स्टेशन बनेगा।

यहां पर गाड़ी रुका करेगी।’ यह कहते हुए सार्इं जी फिर से दरबार में आ पधारे। यह दिलचस्प नजारा बुधरवाली (जिला श्रीगंगानगर) के मौजपुर धाम का था। सन् 1957-58 के आस-पास की यह बात रही होगी। उन दिनों आंधियों का बहुत जोर रहता था। हालांकि उस दिन भी आंधी चली, लेकिन कुछ मंद हवाओं के साथ। लेकिन उस रात को फिर से आंधी ने तुफान का रूप धारण कर लिया। बताते हैं कि पेड़ ही नहीं, आस-पास के टिल्लों को भी तेज हवाओं ने हिलाकर रख दिया और बाद में बारिश ने मौसम को खुशग्वार बना दिया। अगली भौर, चिड़ियों की चहचहाट में सूर्य निकलने को ही था, कि सार्इं दातार जी अपने विश्राम स्थल से बाहर निकल आए।

और घूमने के बहाने दक्षिण दिशा की ओर चल पड़े। अभी रेल लाइन के पास ही पहुंचे थे, कि इतने में मटीली की साइड से रेल आती हुई दिखाई दी। देखते ही देखते रेल उसी स्थान पर आकर अपने आप थम गई, जहां पर सार्इं जी ने डंगोरी से निशान लगाया था और वचन फरमाया था कि यहां गाड़ी रुका करेगी। यह देखकर सार्इं जी बहुत प्रसन्न हुए और फरमाया- ‘देखो वरी! सतगुरु ने कैसा खेल खेला है! गाड़ी को किसी न किसी बहाने रोक रखा है, बल्ले-बल्ले! सावणशाह दाता जी ने मस्ताना गरीब की अर्ज आज ही स्वीकार कर ली। डेरे में रेत जमाने के लिए वर्षा भेज दी और संगत के लिए आज ही स्टेशन भी बना दिया। काल का मत्था मुन्नेआ गया। जो निंदा करते थे, अब वे भी खुश हो जाएंगे।’ यह सब खुली आंखों से देखकर सेवादार भी प्रसन्नचित हो उठे। वर्तमान में यहां पर फतेह सिंह वाला के नाम से रेलवे स्टेशन बना है, जो मौजपुर धाम के द्वार के बिलकुल सामने है।

मौजपुर धाम बुधरवाली ‘तेरावास’ के अंदर का मनोरम दृश्य।

कहते हैं कि रूहानियत की गहराई का कोई छोर नहीं है, इसमें जितना उतरते जाओगे उतने ही इसमें रमते चले जाओगे। रूहानियत के बादशाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने जहां-जहां अपनी चरण पादुकाएं टिकाई वो जगह दुनिया के लिए स्वर्णिम इतिहास बन गई। सार्इं जी के ऐसे ही दिव्य रहमोकरम का आज भी अनूठा नमूना बना हुआ है डेरा सच्चा सौदा बुधरवाली मौजपुर धाम। यह दरबार अपने आप में अनूठा है। रंग-रंगीले राजस्थान की शान में शुुमार यह दरबार अपने अतीत के साथ बहुत से सुनहरे पन्नों को समेटे हुए है। सार्इं जी का इस क्षेत्र से विशेष लगाव रहा है, शायद यही वजह थी कि सार्इं जी ने श्रीगंगानगर के आस-पास के एरिया में बहुत सत्संगें लगाई, यहां के लोगों को जीवन की असलीयत का अहसास करवाया। सार्इं जी की मुधरवाणी को सुनने के लिए लोग दौड़े चले आते। 20वीं सदी के 60 के दशक की शुरूआत में ही मस्तानी मौज से यह क्षेत्र मालामाल होने लगा था। 1954-55 में सार्इं जी ने बुधरवाली गांव में भी कई सत्संगें लगाई।

उन दिनों सत्संग को राम-कथा के नाम से जाना जाता था। उस समय में सार्इं जी की रहमतों को पाने वाले 80 वर्षीय गुरचरण सिंह इन्सां बताते हैं कि बेशक उस समय मेरी उम्र 15 साल के करीब थी, लेकिन उन दिनों सार्इं जी को यहां के लोग महान संत के रूप में देखते थे। सार्इं जी जब भी बुधरवाली गांव में आते तो कई दिनों तक यहां ठहरते। सत्संगें लगाते, लोगों को आपसी प्रेम-भाईचारे से रहना सिखाते। लेकिन उस दौर में गांव में जात-पात का बड़ा बोलबाला था। सार्इं जी अकसर बांवरी समुदाय के जुड़े किशना राम के घर पर ही रुका करते थे। मुंशी के घर पर भी कई बार ठहरे। लेकिन रामनाम की कथा में धीरे-धीरे सभी समुदायों के लोग शामिल होने लगे। एक बार सार्इं जी ने गांव बुधरवाली में लगातार 7 दिन तक कथा की। इस दौरान सार्इं जी के विचित्र खेलों को देखकर गांव के लोग बड़े अचंभित हुए। लोगों को अब यह समझ आने लगा था कि यह चीज (मौज मस्तानी) ही कुछ और है।

मौज का ऐसे काम नहीं चलता, अब अपना डेरा बनाएंगे

धीरे-धीरे गांव में ऐसा समय आया कि पूरा गांव ही सार्इं जी की रहमतों को महसूस करने लगा। सार्इं जी ने भी कदम-कदम पर ऐसी रहमतें लुटाई कि लोग धन्य-धन्य करते हुए नहीं थक रहे थे। सार्इं जी ने मुर्दों को फिर से जिंदा कर दिखाया, बहुतों को फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया, हर कोई उनकी रहमतों के नजारे लूट रहा था। गुरचरण सिंह बताते हैं कि एक बार सार्इं जी ने गांव के सभी समुदायों के लोगों को एक साथ बिठाकर फरमाया-‘मौज का ऐसे काम नहीं चलता, अब अपना डेरा बनाएंगे, जहां राम नाम की कथा किया करेंगे।’ इस पर सार्इं जी ने मौजिज व्यक्तियों से पूरी चर्चा की। डेरा बनाने को लेकर उन व्यक्तियों ने हामी भरते हुए बेहद खुशी जताई।

जैसे ही यह बात गांव की गलियों से होते हुए घर-घर पहुंची तो लोगों में खुशी की लहर सी दौड़ गई। लेकिन यह डेरा कहां और गांव की किस दिशा में बनेगा इसको लेकर बड़ी उत्सुकता बनी हुई थी। बुजुर्ग सत्संगी बताते हैं कि डेरा निर्माण को लेकर गांव के कई गणमान्य लोगों ने सार्इं जी से मिलकर अर्ज की, और अपनी जमीन देने की पेशकश भी की। गुरचरण सिंह बताते हैं कि सार्इं मस्ताना जी महाराज ने फरमाया-‘चलो वरी! जगह दिखाओ।’ इस दौरान काफी संख्या में लोग सार्इं जी के साथ चल दिए, जिसमें कई जमीदार भाई भी शामिल थे, जिन्होंने अपनी जमीन में डेरा बनाने की बात कही थी। सार्इं जी अपनी डंगोरी हाथ में थामे, गांव के आस-पास के एरिया में घूमते रहे। किसी जमींदार भाई ने अपनी 2 बीघा जमीन दिखाई, तो किसी ने 5 बीघा जमीन दिखाई, लेकिन सार्इं जी ने फरमाया यह जमीन मौज को पास (पसंद) नहीं है। इस दौरान बिशन नंबरदार ने भी अपनी एक बीघा जमीन देने की बात कही, जो जोहड़ के बराबर का एरिया था।

मौजपुर धाम बुधरवाली ‘तेरावास’ का मुख्य द्वार।

सार्इं जी ने इस भूमि पर भी असहमति जताई। आखिरकार गांव के चानणमल और उसके भतीजे रणजीत ने एक-एक बीघा जमीन पर डेरा बनाने की अर्ज की। इस एरिया को देखकर सार्इं जी ने फरमाया- ‘हां भई! यह जगह डेरा बनाने के लिए उपयुक्त है। यहां पर डेरा बनाएंगे।’ सार्इं जी ने उन जमींदारों को जमीन की कागजी कार्रवाई पूरी करने के वचन फरमाए। इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण वहां पहुंचे हुए थे। सार्इं जी ने फिर वचन फरमाया- ‘वरी! आपकी जमीन दरगाह में हरी हो गई, धुर-दरगाह में डंका बज गया।’

सार्इं जी ने सेवादारों को डेरा के निर्माण कार्य को शुरू करने का हुक्म फरमाया और स्वयं अपनी डंगोरी से डेरा के बाहरी क्षेत्र को चिन्हित किया। डेरा निर्माण कार्य शुरू करने से पहले सार्इं जी ने चयनित एरिया के चारों ओर बाड़ बनाने का हुक्म फरमाया। गुरचरण सिंह बताते हैं कि मौजूदा तेरा वास की जगह के करीब सार्इं मस्ताना जी महाराज ने सबसे पहले अपनी एक झोपड़ी बनाई, जिसमें सार्इं जी ने उतारा किया। इसके बाद सेवादारों ने डेरा की परिधि के चारों ओर कंटीली झाड़ियों की करीब 6 फुट चौड़ी बाड़ बनाई। खास बात कि इतनी चौड़ी बाड़ में सिर्फ एक जगह पर कच्ची पौड़ी बनाई गई थी, जिसके ऊपर से होकर ही डेरा में प्रवेश किया जा सकता था। इसी पौड़ी से आना-जाना होता था।

उन दिनों सार्इं जी गांव में कई दिनों तक रुके रहे। डेरा के निर्माण कार्य से पूर्व सेवादारों को अपने पास बुलाकर सार्इं जी ने उन्हें शाही दातों से लाद दिया। किसी को चादर, किसी को कंबल, बहुमूल्य चीजें बांटी गई। सार्इं जी के इस निराले खेल से आस-पास के क्षेत्र में डेरा सच्चा सौदा की खूब चर्चा हुई। सेवा कार्य में संगत बड़े उत्साह से लगी हुई थी। सार्इं जी ने अपनी देखरेख में ही कच्चा तेरा वास व उसके चारों और मजबूत दीवारों का निर्माण करवाया। उस दौरान कच्ची ईंटों का ही चलन था। उन दिनों में शाही नजरसानी में बना तेरा वास का मुख्य गेट आज भी कच्ची र्इंटों की मजबूती से ज्यों का त्यों खड़ा है। दोनों ओर हाथियों की आकृतियां बनाई गई हैं। अद्भुत प्रकार की मीनाकारी से दरबार को सजाया गया। समय के साथ तेरा वास की सुंदरता और निखरती चली गई।

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने तेरा वास के मुख्य दरवाजे के सामने की दीवार को पक्का करवाया। साथ ही पश्चिम दिशा में कई कमरों का भी निर्माण करवाया। पूजनीय परमपिता जी ने इस विशालकाय दीवार पर ऐसी अद्भुत आकृतियां बनवाई जो इन्सान के जीवन के असल रहस्य को उजागर करती प्रतीत होती हैं। हर आकृति में कोई ना कोई संदेश छुपा है। जिज्ञासु लोग आज भी जब आश्रम में सजदा करने पहुंचते हैं तो उन आकृतियों को निहारना नहीं भूलते। बताते हैं कि वर्ष 1985 के शुरूआत में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज यहां आश्रम में पधारे तो मुख्य द्वार के आगे खड़े होकर वचन फरमाया- भई! गेट तां बहुत सोहणा लगदा है, इंज लगदा है जिवें पिच्छे डेरा बहुत बड़ा है।

13 फरवरी 1989 में पूजनीय परमपिता जी ने यहां तेरावास का दोबारा निर्माण करवाया, वहीं साइड में कई कमरे भी बनवाए। 20वीं सदी के आखिरी दशक में पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने तेरा वास को और नवीनतम आयाम प्रदान किया। संगत की सुविधा के लिए कंटीनें बनवाई। सत्संग के लिए बड़ा शैड तैयार करवाया। दरबार का शानदार लुक राजस्थान-पंजाब प्रांत को जोड़ने वाले राज्यीय मार्ग व सामने से गुजरती रेल से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। दिनभर इस मार्ग से गुजरने वाले सैकड़ों वाहनों से हजारों खुली आंखें इस आश्रम की भव्यता को निहारती हैं और भीगी पलकों से सजदा करके खुद को धन्य पाती हैं।

‘वरी! उस समय तुझमें काल बोल रहा था’

Satsangi Gurcharan Singh Insaan - Sachi Shikshaगांव के व्योवृद्ध सत्संगी गुरचरण सिंह इन्सां बताते हैं कि एक बार सार्इं जी यहां दरबार में सत्संग लगा रहे थे। उन दिनों में गांव में एक ऐसा व्यक्ति भी रहता था, जो अच्छे सुरताल में गीत गाता था। कुछ सत्संगी भाइयों ने सोचा कि इसको भी सत्संग में ले चलते हैं और सार्इं जी के सामने भजन बुलवाएंगे। वे सत्संगी उस व्यक्ति के पास पहुंचे और कहा कि चलो सार्इं मस्ताना जी सत्संग कर रहे हैं, वे लोगों को सोना-चांदी बांटते हैं। आप भी भजन सुना देना, अगर सार्इं जी खुश हुए तो तुम्हें धन से लाद देंगे। वह उन लोगों के साथ सत्संग में आ गया।

उसने कई भजन सुनाए, जिसे सुनकर सार्इं जी बहुत खुश हुए। सत्संग के बाद सार्इं जी रोज की तरह लोगों को रहमतों से नवाजने लगे। उस दिन सार्इं जी कंबल, चादर इत्यादि की दातें प्रदान कर रहे थे। जब उस अदने से गायक की बारी आई तो उसने कहा कि मुझे यह कंबल नहीं चाहिए, मुझे तो सोना, चांदी चाहिए। इस पर सार्इं जी ने सेवादारों की ओर देखते हुए कड़क आवाज में फरमाया- ‘वरी! इसको यहां से भगाओ, इसमें काल बोल रहा है।’

सेवादारों ने उसको वहां से भगा दिया। अगली सुबह सार्इं जी ने एक सुनार भाई को अपने पास बुलाया और पूछा कि एक सोने का कड़ा बनाना हो तो कितने तोले का बनेगा। उसने बताया कि अच्छा कड़ा बनाने के लिए दो तोले लगेंगे जी। सार्इं जी ने फरमाया- ऐसा करो, तुम चार तोले का कड़ा बनाकर लाओ। वह भाई दोपहर बाद कड़ा बनाकर ले आया। सार्इं जी ने सेवादारों को हुक्म दिया, ‘वरी! उस गायक को बुलाकर लाओ।’ हुक्म के अनुसार, सेवादार भाई उस व्यक्ति के घर पहुंचे तो उसने गुस्से में उनको वहां से वापिस भेज दिया। सेवादारों ने दरबार में आकर यह बात सार्इं जी को बतलाई। सार्इं जी ने फिर से हुक्म फरमाया- ‘वरी उसको लेके आओ, चाहे कैसे भी लेकर आओ।’ सेवादार फिर से उसके पास पहुंचे और कहने लगे कि भई, तुझे चलना ही होगा, यदि तू प्यार से चलता है, तो ठीक, अन्यथा तुझे उठाकर ले जाएंगे।

आखिरकार वह मान गया और सार्इं जी की हजूरी में पेश हो गया। सार्इं जी ने उसको वह सोने का कड़ा दात के रूप में दिया। यह दात पाकर उससे रहा नहीं गया और कहने लगा- दातार जी, यह कैसा खेल है आपका! जब मैंने यह मांगा था तो आपने मुझे यहां से भगा दिया और आज खुद बुलाकर यह दात दे रहे हो! इस पर सार्इं दातार जी ने फरमाया- ‘वरी! उस समय तुझमें काल बोल रहा था, आज तेरे अंदर की आत्मा साफ हो चुकी है।’ यह देखकर वहां मौजूद सेवादार व साध-संगत भी हैरान रह गई और सार्इं जी के निराले खेल पर धन्य-धन्य कहने लगी।

सार्इं जी की रहमत से जिंदा हुआ माडूराम का बेटा

सन् 1957 की बात है, पूज्य बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज बुधवाली में सत्संग करने पधारे थे। उस दिन उतारा गांव में किशनाराम बौरिया के घर पर था। बेपरवाह जी ने रात को वहीं सत्संग लगाया। सत्संग में लोगों को इतना रस आ रहा था कि मानो सार्इं जी ने रूहानी मयखाने के दरवाजे खोल दिए हों। उस सत्संग में गांव का माडूराम भी आया हुआ था, जो बेहद ही गरीब था। उसके परिवार में कुछ दिन पहले ही एक बेटा पैदा हुआ था। माडू राम भी संगत के बीच पूरी तरह से रमा हुआ था और हरिरस का जमकर पान कर रहा था। सत्संग को चलते हुए अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ था कि माडूराम के घर से किसी के मार्फत संदेश आया कि आपका लड़का बीमार है और घर बुलाया है। माडूराम ने उस व्यक्ति को यह कहते हुए वापिस भेज दिया कि मैं अभी आ रहा हूं। दरअसल सत्संग में मौज मस्तानी की मस्ती को वह एक पलभर के लिए भी छोड़ना नहीं चाह रहा था।

थोड़ी देर बाद फिर से एक संदेश आया कि उसका बेटे की मौत हो चुकी है और तुम्हें जल्द घर बुलाया है। इस पर माडूराम ने कहा कि जब बेटा मर ही चुका है तो अब जाने से क्या होगा? मैं पूरी सत्संग सुनकर ही आऊंगा। यह बात सुनने में थोड़ी अटपटी सी अवश्य लग रही होगी, लेकिन प्रभु-परमात्मा के प्रति ऐसी दीवानगी की मिसाल शायद ही सुनने को मिले। अपने इकलौते बेटे की मौत की खबर सुनकर भी उसका अपने आराध्य के प्रति प्रेम निर्विघ्न कायम था। सत्संग खत्म हुआ तो लोग उठकर घरों की और जाने लगे। उसी दौरान किसी सेवादार ने पूज्य सार्इं जी को माडूराम के बेटे की मृत्यु की बात बता दी। पूज्य सार्इं जी ने माडूराम को अपने पास बुलाया, फरमाया- ‘माडू राम! सुना है तेरा लड़का गुजर गया है। तू उठकर, अपने घर पर क्यों नहीं गया?’ सच्चे दातार जी, आपके सत्संग में इतना आनन्द आ रहा था कि मैं यह सब छोड़ कर कैसे चला जाता! बाकि जब लड़का मर ही गया तो मैं कर भी क्या सकता था! दातार जी ने फरमाया-‘पुट्टर! घबराना नहीं।

धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा बोलकर बच्चे को हिला-डुलाकर देख लेना। क्या पता, उसके स्वास कहीं रुके हों! कहीं जल्दबाजी में ही जाकर दफना ना देना। ’ माडूराम घर पहुंचा तो वहां औरतों के रोने-चिल्लाने की आवाजें गूंज रही थी। उसे देखकर वहां मौजूद लोग भी ताने कसने लगे। उधर बच्चा अपनी मां की गोद में सोया हुआ था। माडूराम अपनी गर्दन को झुकाए उसके पास पहुंचा। आंखों में आंसू बहने लगे, वैराग्य फूट पड़ा। इसी दरमियान उसको पूज्य सार्इं जी के इलाही वचन याद आए। माडृूराम ने अरदास करते हुए कहा- ऐ मेहरबान दातार जी, आप हमारे इस इलाके में जीवों का उद्धार करने पधारे हैं। मेरा यह अभागा बेटा आप जी के दर्शन भी नहीं कर पाया। माडूराम ने अभी इतना ही बोला कि अचानक बच्चे के शरीर में थोड़ी हरकत-सी महसूस हुई। मरे हुए बच्चे ने फिर टांग हिलाई।

देखते ही देखते बच्चे के शरीर की रंगत ही बदलने लगी और थोड़ी देर बाद उसने आंखें भी खोल ली। यह सारा दृश्य वहां मौजूद लोगों ने प्रत्यक्ष रूप में देखा। मस्तानी मौज के इस करिश्मे को देखकर हर एक के चेहरे की मायूसी खुशी में बदल उठी। वहां ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा गूंज उठा। सुबह होने से पहले ही यह बात पूरे गांव में फैल गई और हर किसी की जुबान धन्य-धन्य बेपरवाह सार्इं दातार जी कह उठी।

हम ही यहां आ जाया करेंगे’

संगत की खुशी ही संतों का असल मनोरथ है। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज हमेशा यह ख्याल करते कि संगत को कभी भी, कहीं भी असुविधा ना हो। जैसे-जैसे डेरा सच्चा सौदा रूपी सच का प्रकाश दुनिया में फैला, जनमानस का रूझान डेरा सच्चा सौदा की ओर बढ़ने लगा। शाह मस्ताना जी आश्रम सरसा अब पावन भंडारे के अवसर पर संगत से लबालब होने लगा। संगत के भारी इक्टठ को देखते हुए पूजनीय परमपिता जी ने ख्याल किया कि इतनी बड़ी संख्या में संगत यहां पहुंचती है, खासकर गरीब तबके के लोगों को यहां पहुंचने में काफी पैसा पाई भी खर्चना पड़ता है। इसलिए अब हम स्वयं संगत के पास जाया करेंगे, ताकि उनको कोई परेशानी ना उठानी पड़े। पूजनीय परमपिता जी ने एक नई परम्परा शुरू करते हुए वचन फरमाया कि अब हर रविवार को अलग-अलग राज्य में सत्संगें लगाया करेंगे, ताकि वहां की संगत को सैकड़ों किलोमीटर चलकर यहां सरसा दरबार में आने की परेशानी ना उठानी पडे।

मास्टर सुच्चा सिंह इन्सां बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी 19 मार्च 1985 को मलोट से यहां सत्संग करने के लिए पधारे थे। उस दिन दोपहर 11 बजे से 2 बजे तक सत्संग चला। यह राजस्थान प्रांत के लिए बहुत बड़ा परोपकार था, जो उन्हें अपने घर में ही सत्संग सुनने का मौका मिला। उसके बाद नियमित रूप से महीने के हर तीसरे रविवार को यहां सत्संग होने लगा। मौजपुर धाम में नियमित सत्संगें होने से राजस्थान के साथ-साथ सीमावर्ती पंजाब व हरियाणा की संगत की मौज हो गई। पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां भी इसी तरह संगत को उन्हीं के क्षेत्र में जाकर अपने पावन वचनों से निहाल करते रहे हैं।

इसकी तो बड़ी वेटिंग चल रही है!

hair dresser Vinod Handa - Sachi Shikshaप्यारे सतगुरु का एक नजरे-करम ही इन्सान की कुलों का उद्धार कर देता है। कुछ ऐसा ही वाक्या 49 वर्षीय हेयर ड्रेसर विनोद हांडा ने सुनाया, जो नियमित रूप से हर मंगलवार को संगरिया से बुधरवाली दरबार में सेवा के लिए पहुंचता है। वह बताता है कि पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की रहमतों का कर्ज इस जन्म तो क्या, हजारों जन्म लेकर भी नहीं उतार सकता। कोलायत दरबार बनाने की सेवा चल रही थी। उन दिनों वहां बड़ी संख्या में सेवादार पहुंचे हुए थे। पूज्य हजूर पिता जी अपने पावन सानिध्य में सेवा कार्य चला रहे थे। एक दिन पूज्य हजूर पिता जी घूमते हुए वहां आ पहुंचे, जहां पर मैं कटिंग की अपनी सेवाएं दे रहा था।

उस समय काफी सेवादार भाई वेटिंग में बैठे थे। पूज्य हजूर पिता जी अचानक पास आ पहुंचे और वहां की व्यवस्था देखकर एकाएक मुस्कुराने लगे। पूज्य पिता जी ने फरमाया- ‘अच्छा भई! बड़ी वेटिंग चल रही है।’ विनोद हांडा बताते हैं कि एक वो समय था जब मेरा बिजनस न के बराबर था और पूज्य पिता जी के वचनों के बाद मेरे कार्य में इतनी प्रगति हुई कि मैं बयान नहीं कर पा रहा हूं। दातार जी के वचनानुसार आज भी मेरे कार्य में इतने ग्राहक उमड़ते हैं कि काफी लोग वेटिंग में ही बैठे रहते हैं।

जब हाथों-हाथ बिकी मौजपुर धाम की मुंगफली

Middha Insaan - Sachi Shikshaतीनों पातशाहियों का सान्निध्य पाने वाले 76 वर्षीय केवल मिढा इन्सां (श्रीगंगानगर) बताते हैं कि बुधरवाली दरबार में कंटीन पर उनकी नियमित सेवा थी, जो आज भी है। उन्होंने 1957 में सार्इं मस्ताना जी महाराज से गुरुमंत्र की दात हासिल की। उसके बाद से धीरे-धीरे दरबार से इतना जुड़ाव हो गया कि नियमित सेवा पर आने लगा। उन्होंने पूजनीय परमपिता जी की रहमत का एक दिलचस्प वाक्या सुनाते हुए बताया कि उन दिनों बुधरवाली दरबार में मुंगफली बहुत हुआ करती थी। सेवादारों ने मुंगफली की छंटाई के दौरान अपने मन में विचार बनाया कि क्यों ना यह मुंगफली पूजनीय परमपिता जी के लिए सरसा दरबार में भेजी जाए।

सेवादारों ने मुंगफली के ढेर से मोटी-मोटी व अच्छी-अच्छी मुंगफली छांट कर अलग थैलों में पैक कर ली। केवल मिढा इन्सां ने अतीत के सुनहरी घटनाक्रम को याद करते हुए बताया कि उस दौरान शायद हम तीन या चार लोग थे, जो सरसा दरबार पहुंचे थे। हमें पूजनीय परमपिता जी से मिलने का अवसर मिला। जिम्मेवारों ने बताया कि ये सेवादार बुधरवाली दरबार से आए हैं और साथ में मुंगफली भी लाए हैं। पूजनीय परमपिता जी मोटी-मोटी मुंगफली देखकर बहुत खुश हुए और वचन फरमाया- ‘भई! इन्हां नूं बाजार रेट तो एक रुपया घट करके संगत नूं ही बेच देयो।’ हम सत्वचन मानकर जिम्मेवार सेवादारों से आकर मिले, जो कंटीन पर अलग-अलग स्टॉल लगवा रहे थे।

अगले दिन बड़ा सत्संग होना था। जब जिम्मेवारों से रेट को लेकर बात की तो उन्होंने बताया कि यहां दरबार में मुंगफली तो 12 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है। आप बाजार में जाकर भाव का पता कर लो। बेपरवाह जी के वचनों को मानते हुए हम लोग बाजार में चले गए और पता किया तो वहां भी मुंगफली का भाव 10 से 12 रुपये के बीच ही था। वापिस आकर जिम्मेवारों को इस बारे में फिर से बताया तो उन्होंने कहा कि आप इस मुंगफली को 9 रुपये के हिसाब से बेच दो। अभी स्टॉल लगाने की तैयारी चल ही रही थी कि अचानक पूजनीय परमपिता जी वहां आ पधारे और फरमाया- ‘हां भई, किन्ना रेट रखेया है मुंगफली दा?’ हमने बताया कि पिता जी 9 रुपये का रेट रखा है। इस पर पूजनीय परमपिता जी बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद देकर चले गए। जब संगत को इस मुंगफली के बारे में पता चला तो सारी की सारी मुंगफली हाथों-हाथ बिक गई।

फर्श से अर्श पर पहुंचाया

Avtar Kamra Insan - Sachi Shikshaयह भक्ति की ही पराकाष्ठा है कि श्रीराम जी अपनी अन्यन भक्त सबरी के जूठे बेर खाकर भी प्रसन्न हो उठे थे। श्रीगंगानगर निवासी अवतार कामरा इन्सां भी ऐसे सौभाग्यशाली इन्सान हैं, जिन्हें पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपने हाथों से तैयार की गई रबड़ी फालूदा व मिल्क बादाम खिलाने का सुअवसर मिला है। यह मौका एक बार नहीं, बल्कि दर्जनों बार आया, जब भी हजूर पिता जी का किसी भी कार्य से श्रीगंगानगर शहर जाना होता तो अवतार कामरा के हाथों के बने इन लजीज व्यंजनों का जमकर लुत्फ उठाते। बुधरवाली कंटीन पर नियमित सेवा करने वाले अवतार कामरा इन्सां बताते हैं कि पूज्य हजूर पिता जी की दयादृष्टि से आज उसके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं है।

लेकिन एक समय था जब वह बाजार में एक छोटे से स्टॉल के द्वारा लोगों को रबड़ी फालूदा व मिल्क बादाम जैसे शेक बनाकर पिलाता था और अपनी आजीविका चलाता था। उन्हीं दिनों एक बार पूज्य हजूर पिता जी ने (यह गुरगद्दी पर आने से पहले का जिक्र है) मेरी रेहड़ीनुमा स्टॉल से रबड़ी फालूदा खाया तो मेरी खूब तारीफ की। उसके बाद पूज्य पिता जी जब भी श्रीगंगानगर आते तो मेरी स्टॉल पर आना नहीं चूकते थे। मैं भी बड़ी रीझ से पूज्य पिता जी के लिए रबड़ी फालूदा तैयार करता था। कई बार पूज्य पिता जी मिल्क बादाम भी पीते थे। रूहानियत के बादशाह का यह एक गरीब पर परोपकार ही है, जो एक अदने से व्यक्ति को इतना बड़ा मान-सम्मान बख्शा है। मेरा रोम-रोम पूज्य हजूर पिता का हमेशा ऋणी रहेगा।

संतों का काम तो शांति व भाईचारा बनाना है

Master Sucha Singh Insan Maudan - Sachi Shikshaजीवन के 62 बंसत देख चुके मास्टर सुच्चा सिंह इन्सां मौड़ां (श्री गंगानगर) बताते हैं कि सार्इं मस्ताना जी ने यहां की संगत पर बड़ी रहमतें लुटाई हैं। मौजपुर धाम के तेरा वास की जगह पर पहले एक थड़ा हुआ करता था, जहां विराजमान होकर सार्इं जी सत्संग फरमाते थे। हालांकि 1989 के आस-पास पूजनीय परमपिता जी ने दरबार के विस्तार कार्य के समय उस थड़े को हटवा दिया था।

मा. इन्सां बताते हैं कि उसे नामदान लेने से पहले कालूआना चक्क में सन् 1976 में पूजनीय परमपिता जी से मिलने का अवसर मिला। जब मैं मिला तो एक ही बात रखी कि लोग जिसे सतनाम वाहेगुरु कहते हैं, क्या मैं उनसे बात कर सकता हूं? यह बात सुनकर पूजनीय परमपिता जी बहुत हंसे और फरमाया-‘तुम बात करने की बात कहते हो, वह तो तुम्हारे काम भी किया करेगा।’ उसके बाद वह सेवा में आने लगा। पूजनीय परमपिता जी बताते कि सार्इं मस्ताना जी महाराज सेवादारों से 3 घंटे सुमिरन करवाया करते थे। हमें भी यह हुक्म था कि सुबह तीन बजे उठकर सुमिरन में बैठना है और 6 बजे के बाद ही अन्य सेवा कार्य शुरू करने हैं। उन दिनों में पहरे की सेवा बड़ी कठिन होती थी। पहरे पर 18 घंटे की ड्यूटी होती थी। बाकि के बचे 6 घंटों में ही खाना-पीना, सोना व रफाहाजत आदि कार्य निपटाने होते थे।

वे बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी मजलिस में संगत को बहुत हंसाते थे, लेकिन कभी-कभी बड़ी विचित्र बात कह जाते जो शायद ही किसी के समझ आती। वर्ष 1981 की बात है, मलोट आश्रम में पूजनीय परमपिता जी ने अपनी मौज में आकर सेवादारों को पास बुलाकर वचन फरमाया-‘भई, अजेहा समां भी आऊगा, जदों तुसीं तरसोंगे।’ समय का फेर चलता रहा। डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में पूर्व में भी ऐसे बहुत से दौर आए जब प्रेमियों को कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है। बुधरवाली आश्रम को लेकर उन्होंने बताया कि यहां भी एक समय ऐसा आया था जब काल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, बहुत हथकंडे अपनाए, लेकिन दयाल ने सेवादारों पर इतनी रहमत बनाए रखी कि काल उनका बाल भी बांका नहीं कर पाया। पूजनीय परमपिता जी ने उस समय फरमाया था कि संतों का काम लड़ाई-झगड़ा करना नहीं होता, संतों का काम शांति-भाईचारा बनाना है।

मा. सिंह बताते हैं कि मौजपुर धाम बुधरवाली में एक समय ऐसा भी आया कि यहां दोनों पातशाहियों (पूजनीय परमपिता जी और पूज्य हजूर पिता जी) ने साथ बैठकर सत्संग किया। यह भी संगत के लिए अनोखी बात थी, जो दोनों रूहानी बॉडियों के एक साथ दर्शन हुए। उन्होंने बताया कि जब पूज्य हजूर पिता जी गुरगद्दी पर विराजमान नहीं हुए थे, उससे पहले जब भी पूज्य पिता जी बुधरवाली आश्रम में जाते तो हमेशा मुझे साथ लेकर जाते।

‘रब्ब थोड़ेयां नाल वी नहीं रहिंदा…’

मा. सुच्चा सिंह इन्सां बताते हैं कि एक बार मलोट डेरा में पूजनीय परमपिता जी ने अपने मुखारबिंद से सार्इं मस्ताना जी के बारे में एक दिलचस्प वाक्या सुनाया। उन दिनों सार्इं जी रात को भी सत्संग लगाया करते थे। मलोट में ही सत्संग था, और पूजनीय परमपिता जी भी वहां सत्संग सुनने के लिए आए हुए थे। रात का समय था, कव्वालियां चल रही थी कि अचानक सार्इं जी मौज में आए और फरमाने लगे- ‘वरी! इन सबको (सारी संगत) डेरा से बाहर निकालो।’ सेवादारों ने हुक्म मानते हुए संगत को बाहर निकाल दिया। पूजनीय परमपिता जी ने बताया कि हम भी बाहर आ गए। (यह जिक्र पूजनीय परमपिता जी के गुरगद्दी पर आने से पहले का है।)

लेकिन मन में ख्याल आया कि यह आखिर क्या माजरा है, आज देखकर ही जाएंगे। हम दीवार के पास खड़े हो गए। कद ऊंचा होने के कारण दीवार के ऊपर से दरबार में सब कुछ दिख रहा था। थोड़ी देर बाद ही सार्इं जी ने भजनमंडली वालों को फिर फरमाया- बजाओ वरी! भजन चलाओ। तब कव्वाली लगवाई कि ‘रब्ब थोडेÞयां नाल वी नहीं रहिंदा, लोकां नूं कहिदां के चंगी गल नी।’ यह शब्दवाणी चल ही रही थी कि इतने में फरमाया- ‘सारी संगत को अंदर बुला लाओ।’ सेवादार दौड़ते हुए आए और संगत को अंदर चलने को कहा। हम भी अंदर चले गए।

उस दिन सार्इं जी अपनी मौज में थे। फरमाने लगे- ‘लओ भई! मक्खियां-मक्खियां उड़ गइयां, आशिक-आशिक रह गए।’ सुच्चा सिंह बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी ने यह भी बताया कि सार्इं जी उस रात सत्संग करने के बाद जब अगली रोज दूसरे स्थान के लिए चले तो रास्ते में चलते-चलते कहने लगे-‘कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि खुदा धरती पर घूम रहा है।’

जब बिन तेल ही दौड़ती रही जीप

Malkit Singh Insan - Sachi Shikshaबुधरवाली दरबार में पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के साथ दोस्त के रूप में सेवा करने वाले 72 वर्षीय पूर्व सरपंच मलकीत सिंह इन्सां बताते हैं कि डेरा सच्चा सौदा में रूहानियत का समुंद्र आज भी ज्यों का त्यों ठाठें मार रहा है। वह बताते हैं कि उस समय बहुत बार ऐसा मौका आया जब हजूर पिता जी के साथ उन्हीं की जीप में राजस्थान के दूरवर्ती क्षेत्रों में जाने का अवसर मिला।

जमीन के मसले को लेकर एक दिन घड़साणा जाने का कार्यक्रम बना। उस दिन पूज्य हजूर पिता जी स्वयं जीप चला रहे थे। जीप में 6 लोग सवार थे। जैसे ही जीप पीलीबंगा के नजदीक हम्प (ब्रैकर) पर थोड़ी उछली तो एकाएक उसकी डीजल पाइप लीक हो गई और तेल नीचे गिरने लगा, लेकिन किसी का इस ओर ध्यान नहीं गया। सूरतगढ़ से 5 किलोमीटर पहले ही जीप रुक गई, देखा कि पाइप लीक हो रही थी, फिर पाइप बदलकर नई चढ़ा दी। जब डीजल की टैंकी में गेज लगाकर देखा तो थोड़ा सा तेल दिख रहा था। पूज्य हजूर पिता जी ने कहा कि इतने तेल से सूरतगढ़ तो पहुंच ही जाएगी।

जीप स्टार्ट की ओर चल पड़े। कुदरती रास्ते में कोई तेल पंप नहीं मिला और सूरतगढ़ आकर फिर से तेल चैक किया तो पूज्य हजूर पिता जी फिर कहने लगे कि कोई ना, जैतसर तक तो पहुंच ही जाएंगे, वहीं तेल डलवा लेंगे। ऐसे करते-करते हम विजयनगर पहुंच गए। वहां एक पैट्रोल पंप था, जिस पर जीप रोकी। जब तेल डलवाने लगे तो तेल डालने वाला भी हैरान रह गया। उसने पूछा कि आप इस जीप को यहां तक कैसे लेकर आए हो? जब हमने पूछा कि क्यों, क्या हुआ? तो उसने बताया कि इस जीप की टंकी की जितनी क्षमता है, मैंने उसमें उतना तेल डाल दिया है। उसके कहने का भाव था कि तेल डालने से पहले टंकी पूरी तरह से खाली थी और फिर भी आप जीप को चलाकर यहां ले आए। यह सुनकर हम भी हैरान थे, लेकिन पूज्य हजूर पिता जी मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे।

कलाकृतियां समझाती हैं जीवन का असल रहस्य

Dera Sacha Sauda Maujpur Dham Budharwali (Rajasthan)कभी बुधरवाली दरबार में आने का सौभाग्य मिले तो यहां के तेरा वास के मुख्य द्वार को जिज्ञासु निगाहों से अवश्य निहारें, क्योंकि यहां की विशालकाय दीवारें आपको अपने जीवन के असल रहस्य से रूबरू करवाती नजर आएगी। इस गलैफीदार दीवार (एक साइड पक्की व एक साइड कच्ची दीवार) पर ऐसी कलाकृतियां बनी हुई हैं जो चौरासी लाख जोनियों में भटके इन्सान को भक्ति मार्ग के द्वारा निजधाम जाने का मार्ग दर्शाती हैं। 60 वर्षीय रामकुमार (किशनपुरा) बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी ने वर्ष 1985 के करीब इन कलाकृतियों को तैयार करवाया था।

Ram Kumar Kishanpura - Sachi Shikshaवे बताते हैं कि पूजनीय परमपिता जी के हुक्म से संगरिया के मिस्त्री दर्शन सिंह ने इन कलाकृत्रियों को दीवार पर उकेरा था। खास बात यह भी है कि इन कलाकृत्रियों को बनाने में शीशे व चीनी के टूटे हुए हिस्सों का प्रयोग इतनी सुंदरता से किया गया है कि किसी को भी यह अहसास नहीं होता कि इनको इस प्र्रकार से तैयार किया गया है। तेरा वास के मुख्य द्वार के दोनों ओर करीब सौ-सौ फुट लंबी दीवार है।

एक साइड में हिंदू धर्म के अनुसार इन कलाकृतियों का निर्माण किया गया है, जिसमें यह समझाने का प्रयास है कि किस प्रकार एक इन्सान चौरासी लाख जोनियों में भटकता फिर रहा है। उसको जब सच्चे गुरु की प्राप्ति होती है तो वह रामनाम के सहारे अपने निजधाम पहुंच जाता है। उसी तरह ही दूसरी ओर की दीवार पर मुस्लिम भाई-बहनों को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है। यहां आने वाला हर आगंतुक भी इन कलाकृत्रियों के बारे में जानने को उत्सुक रहता है।

दूर तलक फैली है यहां के बाग की मिठास

Dera Sacha Sauda Maujpur Dham Budharwali (Rajasthan)सेवादार गुरजंट सिंह इन्सां बताते हैं कि मौजपुर धाम मौजूदा समय में करीब 25 बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है। जिसमें तेरावास के अलावा एक बड़ा सत्संग पंडाल बनाया गया है, जिसमें शैड भी लगाया गया है। यहां सत्संग के अलावा नामचर्चा का आयोजन होता है। पंडाल के बगल में ही बड़ा सा लंगर घर है। दरबार के सेवाकार्याें को गतिमान रखने के लिए यहां करीब 18 बीघा भूमि पर किन्नू का बाग लगाया गया है, जिसकी आमदनी से यहां रख-रखाव की व्यवस्था की जाती है।

Sevadar Gurjant Singh Insan - Sachi Shikshaसेवादार ने बाग का जिक्र करते हुए बताया कि यहां के किन्नू बहुत मिट्ठे एवं रसभरे हैं, यही कारण है कि क्षेत्र ही नहीं, पास लगते पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी इसकी बहुत मांग रहती है। उन्होंने बताया कि बाग के अलावा खाली भूमि पर साध-संगत के सहयोग से मौसमानुसार सब्जियां उगाई जाती हैं।

इस समय यहां मिर्च, गोभी के अलावा कई अन्य सब्जियां तैयार की गई हैं। इन सब्जियों को लेकर भी साध-संगत में खासी डिमांड रहती है। लोग बड़े चाव से इन सब्जियों को खरीदते व खाते हैं।

सौर पैनल सिस्टम पर चलता है फव्वारा, लहलहा रहे बाग

Dera Sacha Sauda Maujpur Dham Budharwali (Rajasthan)सेवादार नागौर सिंह इन्सां बताते हैं कि दरबार में कृषि कार्यों के दौरान अत्याधुनिक तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि बाग में पौधों को सिंचित करने के लिए दरबार में सौर पैनल से चलित फव्वारा सिस्टम लगाया गया है। दिन में धूप से चलने वाले इस पैनल से बाग को पानी सप्लाई पहुंचाई जाती है।

Sevadar Gurjunt Singh Insan - Sachi Shikshaइससे दोहरा फायदा होता है, जहां बिजली की बचत होती है, वहीं रात को मेहनत करने की बजाय दिन में ही सिंचाई की पूरी व्यवस्था हो जाती है।

यहां का ग्वार भी क्षेत्र में बना चर्चा का विषय

इन दिनों बुधरवाली दरबार में तैयार ग्वार का बीज क्षेत्र में खासा चर्चा का विषय बना हुआ है। सेवादारों का दावा है कि यदि मौसम अनुकूल रहे तो इस बीज से प्रति बीघा 9 क्विंटल तक का उत्पादन लिया जा सकता है। इस बारे मेें सेवादार गुरजंट सिंह इन्सां बताते हैं कि करीब 5 वर्ष पूर्व एक सेवादार भाई यहां ग्वार का बीज लेकर आया था। यहां के सेवादारों ने उस बीज को उपचारित कर बोया और उसकी भरपूर देखभाल की तो उसका रिकार्ड तोड़ उत्पादन हुआ। जैसे-जैसे यह बात साध-संगत में पहुंची तो इस ग्वार का बीज लेने के लिए लोग यहां दरबार में पहुंचने लगे। गत वर्ष एक किसान ने यही ग्वार बोया तो उसके प्रति बीघा 9 क्विंटल तक का उत्पादन हुआ। मौजूदा समय में भी कई प्रगतिशील किसानों ने यह बीज बोया है, जिनके अनुमान से ज्यादा उत्पादन हुआ है।


अद्भुत: यहां के लंगर घर में एक साथ चलती हैं 22 तवियां

बुधरवाली मौजपुर धाम में साध-संगत की सुविधा के लिए तमाम तरह की व्यवस्था इतने पुख्ता तरीके से की गई है कि यहां एक साथ लाखों लोगों को लंगर छकाया जा सकता है। सार्इं मस्ताना जी महाराज के समय में आस-पास के गांवों से संगत पहुंचती थी। हालांकि उस समय केवल रेल यातायात की ही सुविधा थी, इसलिए दूर-दराज से कम ही संगत आ पाती थी। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने जब यहां सत्संगें लगानी शुरू की तो संगत का इकट्ठ बढ़ने लगा। संगत की गिनती अब हजारों में होने लगी।

Dera Sacha Sauda Maujpur Dham Budharwali (Rajasthan)
लंगरघर का बाहरी दृश्य।

1985 के बाद पूजनीय परमपिता जी बुधरवाली आश्रम में ही महीने के हर तीसरे रविवार को सत्संग करने के लिए पधारते, जिसका बड़ा फायदा यहां की स्थानीय संगत को होने लगा। यानि हर महीने एक बड़ा सत्संग होने लगा जिससे संगत के लिए लंगर इत्यादि की व्यवस्था बनाना सेवादारों के लिए एक चुनौती बनने लगी। सन् 1990-91 के उपरांत पूज्य हजूर पिता जी भी हर महीने सत्संग लगाते, उस समय तक संगत लाखों तक पहुंच गई। संगत के प्रेम के आगे सारे इंतजामात बौने साबित होने लगे तो पूज्य हजूर पिता जी ने लंगर घर का विस्तार करते हुए उसकी कार्यक्षमता में सुधार किया। करीब 60 फुट चौड़े व 90 फुट लम्बाई के दो बड़े-बड़े हाल बनाए गए, जिनमें अलग-अलग लंगर व दाला तैयार किया जाने लगा।

सेवादार हैप्पी सिंह इन्सां बताते हैं कि लंगर हाल में रोटी बनाने वाली 22 तवियां एक साथ चल सकती हैं। हर तवी का आकार 4 फुट चौड़ा व 6 फुट लंबा है। यानि एक तवी पर 6 से 8 बहनें एक समय में 25 से 30 लंगर तैयार कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि इस व्यवस्था के बाद संगत के लिए लंगर तैयार करने में बहुत सुविधा रहने लगी है। मासिक सत्संग के अलावा भंडारे जैसे विशेष दिवसों पर यहां सत्संग में संगत का बहुत इक्ट्ठ हो रहा है। लेकिन संगत को कुछ ही समय में लंगर छकाने में यहां का लंगर घर सामर्थ्य रखता है।

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के वचनों से मौजपुर धाम बुधरवाली के ठीक सामने बने रेलवे स्टेशन का दृश्य।

पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के वचनों से मौजपुर धाम बुधरवाली के ठीक सामने बने रेलवे स्टेशन का दृश्य।
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