Use rain water properly

Use rain water properlyवर्षा-जल का करें सदुपयोग! रेन वाटर हार्वेस्टिंग Use rain water properly
कल्पना कीजिए कि झमाझम वर्षा हो रही है, इतनी कि पांच मिनट में ही पानी किसी को भी अच्छी तरह से सराबोर कर डाले। आप घर में बैठे इस बारिश का आनन्द ले रहे हैं और यह भी देख रहे हैं कि छत पर बने पनारे से पानी की मोटी धार नीचे गिरकर बाहर बहते नाले में जाकर सड़क को लबालब भर रही है।

सड़कें मानो तालाब बन गयी हैं। कोई एक घंटे की बारिश के बाद जब आकाश स्वच्छ होता है, उसके कई घंटों बाद भी सड़कों पर जल भराव के कारण जाम लगा रहता है। तब आपके मन में शायद यह ख्याल आता होगा कि काश इतना पानी यहां जमा न होता तो इतनी परेशानी न हो रही होती। लेकिन इसके साथ ही आपको यह ख्याल भी आता होगा कि पानी की प्रवृत्ति है बहना, सो बह गया है, हम कर ही क्या सकते हैं! लेकिन आपकी यह सोच सही नहीं है, क्योंकि हम चाहें तो इस पानी को व्यर्थ में बहने के स्थान पर, जमा कर इसे और कई तरह से सदुपयोग में ला सकते हैं।

जी हां, अब वर्षा के जल को संचयित करके उसको कई तरह से अपने उपयोग के लिये इस्तेमाल करने के साधन हमारे पास उपलब्ध हैं। बल्कि यह कहना चाहिए कि अब तो बड़े पैमाने पर वर्षा के जल का संचयन करके उसको कई तरह से उपयोग में लाया जा रहा है।

अगर आप चन्द मिनट बैठकर गणना करें तो आप पायेंगे कि एक 10 बाई 10 फुट की छत पर यदि 1 सेमी- पानी जमा हो तो उसकी कुल मात्रा कितनी होगी? उत्तर है 370 लीटर। अब अगर ऐसे सौ छतों का पानी एकत्रित किया जाए तो? अगर जल संचयित करने में घरों की संख्या बढ़ती जाए तो आप स्वयं ही कल्पना कर सकते हैं कि इस तरह से कितना पानी बचाया जा सकता है। यदि इसको सही तरीके से टैंक और हौजों में जमा करके रखें तो पानी की किल्लत का सामना करने जैसी समस्याएं भी नहीं उठेंगी।

जल-वर्षा के संचयन की सामान्य तकनीक में छतों से बहने वाले वर्षा-जल को पाइपों के जरिये एक शुद्धीकरण टैंक में लाया जाता है। इसमें बालू व मिट्टी का सम्मिश्रण रहता है। जहां से पानी साफ होकर स्टोरेज टैंकों में जमा किया जाता है। यह किसी भी प्रकार के रासायनिक प्रदूषण तथा धूल इत्यादि से मुक्त एकदम शुद्ध पानी होता है। छोटे घरों में तो इसे किसी साफ-सुथरी जगह पर रखी ढकी हुई टंकी में रखा जा सकता है। बड़ी इमारतों और बहुमंजिलीय कालोनियों में जमीन के नीचे बड़े हौज बनते हैं। छोटे घरों में, एक मंजिला या दो मंजिले निजी घरों में वर्षा-जल संचयन के लिये छोटे टैंकों को घर में ही बनाया जा सकता है। ऐसी ही एक किफायती विधि है ‘फेरो सीमेंट टैंक की’।

वर्षाजल संचयन या रेनवाटर हार्वेस्टिंग के लिये सबसे जरूरी है ऐसे उपकरण की जिनमें संचयित जल स्वच्छ तथा प्रदूषण रहित रूप में स्टोर किया जा सके। उन क्षेत्रों में जहां वर्षा का आधिक्य होता है वहां ऐसे टैंक बनाना लाभदायक रहता है। ताकि रोजमर्रा के कार्यों में इस जल का उपयोग किया जा सके। इसके लिये आरसीसी या सीमेन्ट के टैंक बनाना काफी महंगा होता है और विकल्प के तौर पर फेरो सीमेंट की टंकी बनाना काफी सस्ता बैठता है।

पूर्वी एशिया के कुछ देशों में इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। मजबूत होने के साथ-साथ इसे मनचाही क्षमता के अनुरूप भी ढाला जा सकता है और आसानी से कहीं भी लादकर ले जाया जा सकता है। इसे बनाना कोई कठिन कार्य नहीं है। एक अच्छा मिस्त्री इसे चन्द घंटों की मेहनत से तैयार कर सकता है।

मोटे तौर पर इसे ऐसे समझा जा सकता है- जिस आकार की टंकी बनानी हो उस आकार का एक बोरा लेकर उसमें पैरा या पत्तियां इत्यादि ठसाठस भर दी जाती है। फिर इसको अच्छी तरह से ठोंक पीटकर चौखटा या बैरल अथवा सिलेंडर का आकार दिया जाता है। एक बार जब यह सही रूप में ढल जाती है तब इसके चारों ओर स्टील की मजबूत जाली को अच्छी तरह से बंद कर दिया जाता है। जाली में पानी की आवाजाही, निकासी तथा ओवरफ्लो के लिये उचित छिद्र बने रहते हैं। एक बार जाली की फिटिंग हो जाने के बाद उसके चारों ओर लगभग 3 सूत के लोहे के सरिया लेकर उन्हें आड़ा और खड़ा इस जाली में चारों ओर तारों से बांधकर इसे मजबूती प्रदान की जाती है।

जल व सरिया की आकृति बनकर तैयार हो जाने के बाद इस पर बाहर से टंकी की क्षमता के अनुसार सीमेंट व बालू का प्लास्टर कर दिया जाता है। प्लास्टर की मोटाई आधी इंच से लेकर लगभग पौन इंच होती है ताकि अन्दर भरे जाने वाले पानी के वजन से प्लास्टर चिटके अथवा टूटे नहीं। एक बार प्लास्टर हो जाने के बाद उसे चौबीस घंटों के लिये खुला छोड़ दिया जाता है। बीस घंटों के बाद इस पर दोबारा सीमेंट का प्लास्टर किया जाता है। इस दौरान इस पर बराबर पानी से तराई की जाती है ताकि सूखते समय सीमेंट में किसी प्रकार की दरारें न पड़ने पायें। ऐसा तभी होता है जब सीमेंट सूखते समय उसके भीतरी भागों में हवा के बुलबुले जमा हो जाते हैं।

जब सीमेंट पूरी तरह से सूख जाता है तो अन्दर भरा बोरा तथा पैरा और पत्तियां वगैरह निकाल दिये जाते हैं और भीतरी दीवारों पर भी प्लास्टर कर दिया जाता है। इस तरह से पानी का टैंक तैयार हो जाता है। इसे सुविधानुसार कहीं भी रखा जा सकता है। बस, इसमें बने हुए निकासी स्त्रोंतों पर सही आकार के पाइप फिट करने होते हैं। इनमें रखा पानी दूषित न होने पाए, इसके लिये इस पर इसी मैटीरियल का ढक्कन लगा देना उचित रहता है।

प्राय:

ही घरों की छतों पर से नीचे बहकर आ रहा वर्षा का जल पाइपों के जरिये एक फिल्टर टैंक में आता है जहां से वह इन फेरो सीमेन्ट की टंकियों में जमा होता है। फिल्टर टैंक में बालू तथा छोटी-छोटी ईंटों का चूरा भरा रहता है जो पानी के साथ बहकर आई गन्दगी को सोख लेता है। इसके बाद पानी इन फेरो टैंकों में आता है और इसे अपनी सुविधानुसार उपयोग में लाया जा सकता है।

यदि इस पानी का पीने और खाना बनाने वगैरह के लिये उपयोग करना हो तो इस पानी को पहले एक ऐसे वाटर प्यूरीफायर, जिसमें आरओ सिस्टम लगा हो, के द्वारा साफ करने के बाद इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे जहां स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है वहीं पानी की भी भरपूर बचत होती है। वर्षा ऋतु का जल सबसे शुद्ध माना जाता है। इसमें किसी प्रकार के रसायनों का सर्वथा अभाव रहता है। इसे जमा करना आसान भी है और फायदेमन्द भी, हमारे लिये भी और प्रकृति के लिये भी।
-असित कुमार

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