पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
प्रेमी फरियाद सिंह इन्सां प्रीत नगर सरसा से बताता है कि सन् 1967 की बात है। उस समय आश्रम (डेरा सच्चा सौदा दरबार) में बालण की बहुत कमी रहती थी। जो सेवादार आश्रम में रहते थे वह सारा महीना अपने सिरों पे बाहर से झाड़ियां, बुईयां आदि काट-काट कर लाते और बालण इक्ट्ठा करते। सत्संग के दिन सारा बालण खत्म हो जाता व फिर से वही क्रम चलता तथा अगले महीने के सत्संग के लिए बालण लाना शुरू हो जाता। एक दिन परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने गुफा (तेरावास) की खिड़की से एक जिम्मेवार सेवादार को बुलाया, मैं (फरियाद सिंह) भी उसके साथ था।
जब हम पूज्य परम पिता जी (डेरा सच्चा सौदा में दूसरी पातशाही परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) के पास आए तो परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘भाई सोहन सिंह से लंगर वास्ते छिटियां ले आओ।’ हम दोनों ने डेरे के पडोसी स. सोहन सिंह के खेत से लंगर वास्ते छिट्टियां काट ली। हम छिट्टियों की भरियां बांध कर व अपने सिरों पे लाकर, मस्ताना जी धाम में जहां नया लंगर घर है, वहां उस समय जगह खाली थी, यहां लाकर छोटा सा छौर लगा कर रख दी।
इससे तीन दिन बाद की बात है कि गांव प्रेम कोटली जिला बठिंडा से एक प्रेमी लाभ सिंह छिट्टियों की भरी लगभग 80 किलोमीटर पैदल सिर पर उठा लाया। उसको रास्ते में रोका भी गया, उससे भरी छीनने की कोशिश भी की गई, उसने किसी की परवाह न करते हुए भरी लाकर अपने मुर्शिद के दर पे रख दी और अपने आप को मानवता की सेवा हित समर्पित कर दिया। इस प्रेमी के पीछे इसी गांव के कुछ और प्रेमी भी छिट्टियों की दो भरियां सिर पे उठा लाए। यह छिट्टियां भी पहले रखी छिट्टियों के पास ही रखी गई थी।
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पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जब शाम के वक्त तेरावास से बाहर आए तो डेरे के प्रबंधक सेवादार भाई ने पूज्य परम पिता जी के पास छिट्टियां लाने वाले सेवादारों का जिक्र किया और यह भी बताया कि पिता जी, इतनी दूर से सिरों पर भरियां उठा कर लाने का क्या फायदा। अगर इन्होंने लंगर में ही बालण डालना था तो यहां से मोल लेकर डाल देते! उस समय पूज्य परम पिता जी कुछ नहीं बोले। परम पिता जी स्पैशल चलकर उन छिट्टियों के पास आए। उस समय डेरे में रह रहे कुछ सेवादार व मैं भी पूज्य परम पिता जी के साथ थे। जब परम पिता जी उन छिट्टियों के पास खड़े थे तो वो जिम्मेवार भाई परम पिता जी से कहने लगा कि संत-महात्मा वैसे तो सब कासे वास्ते सामर्थ होते हैं, परन्तु पिता जी, संत-महात्मा को शुरू से ही बालण की तंगी रही है।
पूज्य परम पिता जी बोले, वो किस तरह! तो उसने कहा कि भाई मंझ भी बालण वास्ते ही कुएं में गिरा था। सतगुरु जी ने वहां जाकर तथा सीढ़ी लगा कर कुएं में से निकाला था। इस तरह संत-महात्मा को शुरू से ही बालण की तंगी-तुष्टी रही है। यह बात सुनकर सर्व सामर्थ सतगुरु परम पिता जी मुस्कुराए व वचन फरमाया, ‘छिट्टियों की ये तीनों भरियां पहले पड़ी छिट्टियों के ऊपर रख दो। पूज्य परम पिता जी के आदेशानुसार हमने वे तीनों भरियां उठा कर छिट्टियों के ऊपर रख दिया। तो त्रिकालदर्शी सतगुरु परम पिता जी ने हंसते हुए वचन फरमाया, ‘भाई, अपने हुण बालण दा कोई तोड़ा नहीं रहेगा।’ सतगुरु के वचनानुसार उसके बाद आश्रम में बालण की कभी भी कमी नहीं आई।
यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि उस समय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज सोहन सिंह के अर्ज करने पर उनके घर चले जाया करते थे। उनका घर डेरे के नजदीक था। वे डेरे को हर तरह से सहयोग देते थे। वह परम पिता जी का बहुत आदर व सम्मान करते थे। सन् 1966 की गर्मियों की बात है कि एक दिन शाम के चार बजे का समय था। पूज्य परम पिता जी (गुफा) तेरा वास से बाहर आए और टूटियां वाले गेट से होते हुए सोहन सिंह की ढाणी उनके घर चले गए। मैं (फरियाद सिंह) तथा कुछ और सेवादार भी साथ थे। पूज्य परम पिता जी ने उनके घर जाकर उनके परिवार की राजी खुशी पूछी और उनके काम-धन्धे के बारे में पूछा। उसके उपरान्त परम पिता जी थेहड़ की तरफ चल पड़े जो कि मिल्क पलांट की तरफ था।
पूज्य परम पिता जी जब सोहन सिंह के घर से निकले तो वचन फरमाया, ‘गुआँढी जो होए, ले जाणे जो होए।’ पूज्य परम पिता जी ने अपने पाक-पवित्र मुखारबिन्द से यह वचन तीन-चार बार दोहराया। परम पिता जी थेहड़ पर जाकर विराजमान हो गए। वहां बच्चों की कुशती करवाई। परम पिता जी ने वहां पर भी वचन फरमाए कि सतगुरु के हुक्म अन्दर घास खोदना भी परम पद है। सतगुरु के हुक्म से बाहर अगर कोई सोने की र्इंटे लाकर रख दे तो वह भी किसी काम नहीं। उसके बाद पूज्य परम पिता जी दरबार में आ गए। यहां पर यह भी स्पष्ट किया जाता है कि सोहन सिंह जी ने नाम शब्द तो नहीं लिया था परन्तु परम पूजनीय परम पिता जी का अदब सत्कार तहदिल से करते थे। पूजनीय परम पिता जी ने अपना रहमो-करम बख्शते हुए उकनी आत्मा का उद्धार किया।
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