हमारे स्वयं के हित में भी है अपनी मेड का ध्यान रखना
आज कारखानों, फैक्टरियों, कार्यालयों अथवा दुकानों पर ही नहीं, आप किसी भी महानगर या शहर के किसी भी मध्यवर्गीय अथवा संपन्न परिवार में चले जाइये। वहां घरेलू कामकाज के लिए फुलटाइम मेड या सर्वेंट का पाया जाना स्वाभाविक है। महानगरों अथवा शहरों में लोगों की व्यस्तताएँ बहुत बढ़ गई हैं। पति-पत्नी दोनों नौकरी अथवा व्यवसाय में होते हैं। अधिकतर परिवार एकल परिवार हैं। जहाँ घर में बड़े-बुजर्ग हैं वे भी या तो कुछ न कुछ काम-धंधा करते हैं अथवा अशक्त हैं।
महानगरों अथवा शहरों में लोगों की आर्थिक स्थिति भी काफी सुदृढ़ हुई है। ऐसे में घरेलू कामकाज के लिए फुलटाइम मेड या सर्वेंट रखना उनकी आवश्यकता बन चुका है।
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वो जमाना बीत चुका है जब एक उच्च पदस्थ कामकाजी महिला भी अनिवार्यत:
किचन का सारा काम करती थी। महानगरों अथवा शहरों की आज की अत्यंत व्यस्त और भाग-दौड़ भरी जिÞंदगी में सामान्य परिवारों के लिए अब यह संभव ही नहीं रहा।
यातायात और संचार के साधनों में बेशक बेहद तेजी आई है लेकिन साथ ही काम के घंटों में भी वृद्धि हुई है। ऐसे में एक प्रोफेशनल कपल के लिए बिना सहायक के घर चलाना असंभव ही है। सुदृढ़ आर्थिक स्थिति के परिवारों की गÞैर कामकाजी महिलाएँ फिर कैसे बिना मेड के काम चला सकती हैं? कहने का तात्पर्य यह है कि मेड या सर्वेंट महानगरों अथवा शहरों के सामाजिक जीवन का एक जÞरूरी हिस्सा हो गया है। वैसे भी जहाँ पति-पत्नी दोनों काम करते हों अथवा परिवार की आय काफी हो, मेड या सर्वेंट रखना महंगा सौदा नहीं? अन्य खर्चों के मुकÞाबले मेड या सर्वेंट रखने का खर्चा अपेक्षाकृत कम ही पड़ता है और लाभ ज्यादा बैठता है।
मेड के तौर पर काम करने वाली ये लड़कियाँ प्राय:
पिछड़े इलाकों से होती हैं। वास्तव में जिन राज्यों अथवा क्षेत्रों से ये लड़कियां आती हैं, वहाँ सुविधाओं की बात तो दूर पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी, तन ढकने के लिए कपड़े और सर पर सही छप्पर भी नहीं होता। वहाँ बहुत गरीबी और अभाव है। गÞरीबी, भुखमरी और अभावों से त्रस्त व्यक्ति क्या कुछ नहीं कर गुजÞरता? मेड के तौर पर काम करने वाली लड़कियां प्राय: दस-बारह साल से लेकर बीस-पच्चीस साल तक की होती हैं।
ये लड़कियां देश के विकास को गति देने वालों के जीवन को गति प्रदान करती हैं अत: इनके बारे में सोचना, इनको शोषण से बचाना तथा इनके विकास के लिए काम करना हमारा नैतिक कर्तव्य ही नहीं, हमारे अपने हित में भी है।
क्योंकि मेड के बिना हमारा काम चल ही नहीं सकता,
अत: मेड को अपने यहां रोके रखने के लिए उसका सही ध्यान रखना बेहद जरूरी है। जो लोग हमारी सेवा में संलग्न होते हैं, उनकी हमें कम ही चिंता होती है। यदि हम धर्म-कर्म के नाम पर आडंबर और अनाप-शनाप खर्चा न करके अपनी सेवा में संलग्न लोगों के जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करें तो इससे बड़ा धर्म हो ही नहीं सकता। यदि हम उसके खानपान का उचित ध्यान रखेंगे तो उसका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और वो अपेक्षाकृत आसानी से और अधिक कार्य करने में सक्षम होगी।
अपनी मेड के लिए अच्छे कपड़े और टॉयलेटरीज ही खरीदें। कोई भी बीमारी होने पर फौरन उसका उपचार करवाएं। यदि आपकी मेड साफ-सुथरी रहती है और अच्छे कपड़े पहनती है तो इसका लाभ भी आपको ही होगा। इसके लिए लोग न केवल आपकी प्रशंसा करेंगे अपितु आपके घर का वातावरण भी ख़ुशनुमा बना रहेगा। आपके बच्चों और घर के अन्य सदस्यों को एक अच्छी सहायक मिलने से उनके जीवन में सकारात्मकता का विकास होगा।
साफ-सुथरी और स्वस्थ मेड के होने पर बच्चों और घर के अन्य सदस्यों को किसी भी प्रकार की बीमारी अथवा इंफेक्शन का ख़तरा नहीं रहेगा। यदि घर में कोई बुजुर्ग हैं और आपके काम पर जाने के बाद अकेले रहते हैं तो उसकी देखभाल और अकेलापन दूर करने के लिए आपकी मेड से अच्छा सहायक हो ही नहीं सकता।
अपनी मेड को शिष्टाचार और मैनर्स सिखाना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। जब आपकी मेड आपके मेहमानों और मिलने आने वालों का ठीक से स्वागत-सत्कार करेगी तो इससे न केवल आपको अत्यधिक प्रसन्नता होगी, अपितु आपके बच्चों में भी स्वाभाविक रूप से इन गुणों का विकास संभव हो सकेगा। यदि आप अपनी मेड को अपने परिवार के सदस्य की तरह रखेंगी, उसे प्यार करेंगी तो वो भी न केवल अपने आप खुशी से आपका सारा काम करेगी और आपका आदर भी, अपितु आपके बच्चों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उसमें अधिकाधिक संवेदनशीलता और करुणा का विकास हो सकेगा।
इसमें संदेह नहीं कि हम जिन मूल्यों का पोषण करते हैं फिर वो मूल्य ही हमारा पोषण करते हैं। नौकर रखना नहीं, आपके नौकर या सहायक जिन परिस्थितियों में रहते हैं, वो आपकी वास्तविक प्रतिष्ठा का मापदण्ड होता है।
-सीताराम गुप्ता